________________
अनेकान्त/55/1
जी, डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. ज्योति प्रसाद जी. डॉ. ए. एन. उपाध्ये, और आचार्य ज्ञानसागर जी के समान पूर्व में और अब आ. विद्यासागर जी, गणिनी ज्ञानमती जी, आ. विशुद्धिमती जी, राष्ट्रपति सम्मानित डॉ. राजाराम, पं. पद्मचंद्र शास्त्री, डॉ. एन. एल. जैन, पं. शिवचरणलाल जी, प्रो. उदयचंद्र जैन के समान अनेक विद्वान् हैं। हाँ, यह बात अवश्य है कि आज की विद्वत्ता--विषय विशेष से संबंधित होती हैं। साहित्य के अनुयोग विभाजन के बाद यह प्रवृत्ति विकसित हुई है। श्वेतांबरों में आचार्य महाप्रज्ञ, डॉ. ढाकी, डॉ. सागरमल जैन आदि की विद्वत्ता को हासशील मानना भ्रामक हैं। अतः लेखों के लेखक को अपना मत संशोधित करना चाहिए। __ अपने लेखों में लेखक ने स्पष्ट किया है कि उन्हें न तो दिगंबरों का साहित्य उपलब्ध हैं और न ही पश्चिमी जगत में उन्हें दिगंबरों के विषय में कोई बतानेवाला हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि आज की विद्वत्ता व्यक्ति के करिश्मा और भाषण कलाबाजी के रूप में परिणत हो गई है, जिसे पश्चिमी जगत में उन्हें दिगंबरों के विषय में कोई बतानेवाला है। उन्होने यह भी संकेत दिया कि आज की विद्वत्ता व्यक्ति के करिश्मा और भाषण कलाबाजी के रूप में परिणत हो गई है, जिसे पश्चिमी जगत् स्वीकार नहीं करता। फिर भी इस बिन्दु पर विद्वानों को विचार करना चाहिये और अपनी विद्वता को शोधमुखी बनाना चाहिये।
इस संक्षिप्त लेखसार से यह स्पष्ट हैं कि पश्चिम में दिगंबर जैन धर्म के परिचय, अध्ययन एवं शोध को प्रोत्साहित करने के लिये निम्न वातें ध्यान में रखना चाहिये :
1. पश्चिम में दिगंबर जैनधर्म के प्रति भयंकर अज्ञान है। 2. इसका कारण है कि उनका साहित्य अभी पश्चिम में नहीं पहुंचा है।
दिगंबर विद्वान् (जिसे पश्चिम विद्वान् माने) इस विषय में अंग्रेजी में शोधपत्रादि प्रकाशित नहीं करते और न ही अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में, आर्थिक समस्या के कारण, भाग ले पाते हैं।