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अनेकान्त/55/2
2. अथ देशोऽस्ति विस्तारी जम्बूद्वीपस्य भारते।
विदेह इति विख्यातः स्वर्गखण्डसमः श्रियः।। 2/1 तत्राखण्डलनेत्रालीपद्मिनीखण्डमण्डलम्। सुखाम्भः कुण्डभाभाति नाम्ना कुण्डपुरं पुरम्।। 2/5
-जिनसेन (8 वीं शती ई.) हरिवशपुराण, 2/1 एवं 5.पृ.12. “अथानन्तर इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में लक्ष्मी से स्वर्ग-खण्ड की तुलना करने वाला, विदेह इस नाम से प्रसिद्ध एक बड़ा विस्तृत देश है। उस विदेह देश में कुण्डपुर नाम का एक ऐसा सुन्दर नगर है, जो इन्द्र के नेत्रों की पंक्तिरूपी कमलिनियों के समूह से सुशोभित है तथा सुखरूपी जल का मानो कुण्ड ही है।" 3. तस्मिन्षण्मासशेषायुष्यानाकादागमिष्यति।
भरतेऽस्मिन्विदेहाख्ये विषये भवनांगणे।। राज्ञः कुण्डपुरेशस्य वसुधारापतत्प्रथु। सप्तकोटिमणिः सार्धा सिद्धार्थस्य दिनम्प्रति।।
-आचार्य गुणभद्र (9 वी शती ई.), उत्तरपुराण. 74/251-52. पृ.460 "जब उसकी आयु छह माह की बाकी रह गई और वह स्वर्ग से आने को उद्यत हुआ तब इसी भरत क्षेत्र के विदेह नाम के देश सम्बन्धी कुण्डपुर नगर के राजा सिद्धार्थ के भवन के आँगन में प्रतिदिन साढ़े सात करोड़ रत्नों की बड़ी मोटी धारा बरसने लगी।"
विदेहविषये कुण्डसंज्ञायां पुरि भूपतिः।। नाथो नाथकूलस्यैक: सिद्वार्थाख्यस्त्रिसिद्धिभाक्।
तस्य पुण्यानुभावेन प्रियासीत्प्रियकारिणी।। वही, 75/7-8. "विदेह देश के कुण्ड नगर में नाथवंश के शिरोमणि एवं तीनों सिद्धियों से सम्पन्न राजा सिद्धार्थ राज्य करते थे। पुण्य के प्रभाव से प्रियकारिणी उन्हीं की स्त्री हुई थी।" 4. श्रीमानथेह भरते स्वयमस्ति धात्र्या पुंजीकृतो निज इवाखिलकान्तिसारः। नाम्ना विदेह इति दिग्वलये समस्ते ख्यातः परः जनपदः पदमुन्नतानाम्।।