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अनेकान्त/55/2
शताब्दियों से चली आ रही है। यहाँ पर एक शिखरबन्द मन्दिर है, जिसमें भगवान् महावीर की श्वेतवर्ण की साढ़े चार फुट अवगाहना वाली भव्य पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यहाँ वार्षिक मेला चैत्र सुदी 12 से 14 तक महावीर के जन्मकल्याणक को मनाने के लिए होता है।"
गत छह दशकों में कुण्डग्राम, वासुकुण्ड (वासोकुण्ड) वैशाली को भगवान् महावीर की जन्मस्थली माना जाता रहा है। यद्यपि पं. सुमेरचन्द्र जैन दिवाकर आदि कुछ जैन विद्वान् इससे अपनी सहमति नहीं बना पाये तथापि पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री एवं डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन आदि ने वैशाली को जन्मस्थली मानने में अपनी सहमति व्यक्त की है। 31 मार्च 1945 ई. को मुजफ्फरपुर जिले के बसाढ़ गाँव को वैशाली के रूप में उद्धार करने के लिए बिहार सरकार के तत्कालीन शिक्षा सचिव श्री जगदीशचन्द्र माथुर, डॉ. योगेन्द्र मिश्र, श्री जगन्नाथ प्रसाद साहू आदि ने मिलकर एक वैशाली संघ नामक संगठन की स्थापना की तथा जन सहयोग से यहाँ तीर्थकर महावीर के नाम पर एक हाई स्कूल की स्थापना की। इस संघ के प्रयासों के फलस्वरूप 3 वर्ष बाद 21 अप्रैल 1948 ई. को बसाढ़ गाँव में भगवान् महावीर की जन्मजयन्ती का प्रथम बार आयोजन किया गया। इस समारोह में जरिया भूमिहारों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। बाद में वैशाली संघ और बिहार सरकार की ओर से प्रतिवर्ष महावीर जयन्ती मनाई जाने लगी। वैशाली संघ ने 1955 ई. में वैशाली में एक रिसर्च इन्स्टीट्यूट की स्थापना की। इसकी स्थापना में साहू शान्ति प्रसाद जैन का महनीय अवदान रहा है। 1951 ई. में स्थापित 'वैशाली कुण्डपुर तीर्थ प्रबन्धक कमटी' न वंशाली में जंन बिहार नामक एक धर्मशाला बनवाई तथा यहाँ से लगभग : कि मां की दूरी पर भगवान महावीर की जन्मस्थली को प्रचारित-प्रसारित किया। परिणाम स्वरूप गत आधी सदी में यह स्थान भगवान् महावीर की जन्मभूमि मान लिया गया।
भगवान् महावीर की 2600 वीं जन्म-जयन्ती के उपलक्ष्य में भगवान महावीर का एक विशाल एवं भव्य स्मारक वैशाली में निर्माणाधीन है। सम्पूर्ण जैन समाज को इसका स्वागत करना चाहिए। पूज्य ज्ञानमती माता जी के प्रयास