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अनेकान्त/55/1
(भूमि के विषय में) णासावहारे अर्थात् धरोहर के विषय में झूठ न बोले तथा (दूडसक्खिजे) झूठी साक्षी न दे। अर्थ की दृष्टि से सत्याणुव्रत का पालन कोर्ट-कचहरी में झूठे दस्तावेजो में भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी में नही हो पाता, क्योंकि इन सभी क्षेत्रों में अर्थ की प्रधानता होने से असत्य का आश्रय लिया जाता है। जिससे समाज के मूल्य ध्वस्त हो जाते हैं। इसीलिए सत्याणुव्रत समाज रचना का आधार बन सकता है। ___ अस्तेय व्रत की परिपालना का साधन शुद्धता की दृष्टि से विशेष महत्व है। मन, वचन और काय द्वारा दूसरों के हकों को स्वयं हरण करना, और दूसरों से हरण करवाना चोरी है। आज चोरी के साधन स्थूल से सूक्ष्म बनते जा रहे हैं। खाद्य वस्तुओं में मिलावट करना, झूठा जमा-खर्च बताना, जमाखोरी द्वारा वस्तुओं की कीमत घटा या बढ़ा देना ये सभी कर्म चोरी के हैं। इन सभी सूक्ष्म तरीकों की चौर्यवृत्ति के कारण ही मुद्रा-स्फीति का इतना प्रसार है और विश्व की अर्थ व्यवस्था उससे प्रभावित हो रही है। अतः अर्थ व्यवस्था संतुलन के लिए आजीविका के जितने भी साधन है और पूंजी की जितने भी स्रोत हैं, उनका और पवित्र होना आवश्यक है, तभी हम समतावादी समाज-निर्माण कर सकते हैं।
इसी संदर्भ में भगवान महावीर ने आजीविका उपार्जन के उन कार्यों का निषेध किया है, जिनसे पापवृत्ति बढ़ती है। वे कार्य कर्मदान कहे गये हैं। अत: साधन शुद्धि के अभाव में इन कर्मादानों को लोक में निन्द्य बताया गया है। इनको करने से सामाजिक प्रतिष्ठा भी समाप्त होती है। कुछ कर्मादान हैं जैसे1. इंगालकर्म ( जंगल जलाना) 2. रसवाणिज्जे (शराब आदि मादक पदार्थो का व्यापार करना) 3. विसवाणिज्ज (अफीम आदि का व्यापार) 4. केसवाणिज्जे (सुन्दर केशों वाली स्त्रियों का क्रय-विक्रय) 5. दवग्गिदावणियाकमेन (वन जलाना) 6. असईजणणेसाणयाकम्मे (असामाजिक तत्वों का पोषण करना
आदि)
6. “अर्जन का विसर्जन" नामक सिद्धान्त को जैन दर्शन में स्वीकार्य दान एवं त्याग तथा संविभाग के साथ जोड़ सकते हैं। महावीर ने अर्जन के साथ-साथ विसर्जन की बात कही। अर्जन का विसर्जन तभी हो सकता है, जब