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अनेकान्त/55/1
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जिसके चित्त में हिंसा के विचार नहीं है, उसे शेर या सांप आदि कोई भी हानि नहीं पहुँचाता है जिसके हिंसक भाव होते है, उन्हीं के ऊपर सिंहादि क्रूर प्राणी भी हमला करते है।
अहिंसक वृत्ति वाले व्यक्तियों के समक्ष हिंसक से हिंसक प्राणियों में परिवर्तन देखा जाता है भगवान् महावीर जब मुनि अवस्था में ऋजुकुला नदी के तट पर साधना में लीन थे तभी एक सिंह चमरी गाय का पीछा करता हुआ उधर पहुँचा। गाय प्राण रक्षा हेतु दौड़ रही थी कि उसके पूंछ के बाल झाड़ी मे उलझ गये। बालों के उलझने से वह खड़ी हो गयी क्योंकि चमरी गाय को अपने बाल प्राणों से भी अधिक प्रिय होते हैं सिंह ज्यों गाय के पास पहुँचता है तो उसकी दृष्टि साधना में लीन महावीर पर पड़ती हैं, उन्हें देखते ही उस हिंसक वृत्ति वाले सिंह की वृत्ति बदल गयी और अपने पंजे से चमरी गाय के पूंछ के बालों को सुलझा देता है। यह है अहिंसक की भावनाओं को प्रभाव ।
इसी प्रकार को प्रसंग जयपुर के दीवान अमरचन्द का है, वह व्रती थे उन्होंने मांस खिलाने का त्याग किया हुआ था। जब चिड़ियाघर के शेर को मांस खिलाने के कागजात उनके पास आये तो उन कागजो पर आज्ञा नहीं दी । कर्मचारियों ने जब कहा कि शेर का आहार ही मांस है, वह अन्य कुछ नहीं खाता, तब दीवान जी ने कहा मैं खिलाऊंगा और अगले दिन वह दूध जलेबी लेकर निःसंकोच शेर के पिंजडें में घुस गये। शेर के सामने दूध जलेबी रखकर बोले कि यदि भूखे हो तो दूध जलेबी खा लो। हाँ, यदि मांस ही खाना है, तो खड़ा हूँ सामने, मुझे खा लो।
मैं
उक्त प्रसंगों से स्पष्ट है कि अहिंसक भाव या विचारवालों का दूसरों पर कितना प्रभाव पड़ता है।
अहिंसा का सिद्धान्त सर्वोदयी है। सर्वोदय तीर्थ में अहिंसा का सर्वोच्च स्थान है इसमें मानसिक, वाचिक, कायिक अहिंसाओं का महत्त्व प्रतिपादित है । जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, और सम्यक् चारित्ररूप अभ्युदय के कारणों की उत्पत्ति वृद्धि में कारण होता है, वह सर्वोदय तीर्थ है।
संसार में जितने भी धर्म, पंथ, सम्प्रदाय या मत है, वे सच्चे अर्थ में धर्म हैं या नहीं, उनमें धर्म का अस्तित्व है भी या नही? उनमें धर्म का आधार है