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अनेकान्त/55/1
पं. श्री फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री वाराणसी आदि के साथ पण्डित श्री हीरालाल जी शास्त्री ने साहाय्य कर जिनवाणी की अविस्मरणीय सेवा की है। सम्पूर्ण धवला टीका 16 भागों में प्रकाशित हुयी, जिनमें से आपने प्रारम्भ के 5 भागों को सम्पादन और अनुवाद किया है, जैसा कि आपने स्वयं लिखा है परन्तु प्रारंभिक दो भागों में ही आपका नामोल्लेख है।
कन्नडी लिपि मूल से रूपान्तर करने में अनेकत्र भ्रमवश अनेक अशुद्धियाँ थी। उनके शुद्ध पाठ निर्धारण में विद्वान संपादक पं. हीरालाल जी ने गहन अध्यवसाय किया है। उसमें जो प्रक्रिया एवम् नियम अपनाये गये प्रस्तावना में वर्णित हैं, जिससे संपादक की सूक्ष्मेक्षिका का ज्ञान मिलता है। ___ ग्रन्थ का इतिहास, आधारभूत पाण्डुलिपि में रचनाकार का काल निर्धारण सहित संपूर्ण परिचय टीकाओं एवंम् टीकाकारों की साड़.ोपाइ. ऐतिहासिक खोजपूर्ण विवेचना, ग्रन्थ की भाषा आदि का विमर्श भी प्रस्तावना में विस्तार से उपलब्ध है। ग्रन्थान्त में 6 परिशिष्ट ततोऽधिक शोध सामग्री प्रस्तुत करते हैं। प्रमेयरत्नमाला- यह ग्रन्थ जैनन्याय विद्या में प्रवेश कराने के लिये विरचित आद्य सूत्र ग्रन्थ माणिक्यनन्दी रचित परीक्षामुख के सूत्रों पर लघु अनन्तवीर्य द्वारा रचित लघुवृत्ति है। जिस प्रकार ग्रन्थ तत्त्वार्थ सूत्र है, उसी प्रकार जैन न्याय में प्रवेश हेतु माणिक्यनन्दी ने विक्रम की दशम शताब्दी में परीक्षामुख ग्रन्थ रचकर एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की।
परीक्षामुख पर आचार्य प्रभाचन्द्र का प्रमेयकमल मार्तण्ड, भट्टारक चारुकीर्ति ने प्रमेय रत्नालंकार एवम् प्रस्तुत प्रमेयरत्नमाला आदि टीकाएँ लिखी गयी हैं।
ग्रन्थ में छह समुद्देशों में मूख्यतः प्रमाण एवं प्रमाणभास का वर्णन है। प्रथम समुद्देश में प्रमाण का स्वरूप, विशेषणों की सार्थकता, प्रमाण के स्व-पर व्यवसायात्मकता की सिद्धि, प्रमाण का प्रामाण्य कथञ्चित् स्वतः कथाञ्चद् परतः सिद्ध किया गया है।
द्वितीय समुद्देश में प्रमाण के भेदों का वर्णन कर अर्थ एवम् आलोक के ज्ञान की कारणना का निरास सयुक्ति रीति से प्रतिपादित है। तृतीय समुद्देश में