Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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३०
प
२३५
अनुक्रमाङ्क
विषय २२ प्रवचन संबन्धी आप्तोपदेश
१५१-१५२ २३ भगवत् शब्द का अर्थ तथा षट् जीवनिकाय का स्वरूप
१५३-१७५ २४ षट् जीवनिकाय के दण्ड परित्याग का उपदेश
१७६-१८५ २५ प्राणातिपातादि पंचअप्रत एवं रात्री भोजन विरमण
१८६-२०४ २६ शिष्य का महाव्रत स्वीकार
२०५२७ पृथ्विकायादि षट्काययतना का स्वरूप कथन
२०६-२२७ २८ अयतना से दुःख फल प्राप्ति का कथन एवं यतनावान को पापबन्धनन होने का कथन
२२८-२३४ २९ ज्ञान प्राप्ति का उपाय ३० संयमज्ञ का परिचय
२३६-२३७ ३१ पुण्य का स्वरूप एवं जीवों के कर्मबन्ध के स्वरूप कथन
२३८-२५४ ३२ मोक्ष का स्वरूप
२५५-२६२ ३३ पुण्यादि ज्ञानसे भोग का विचार
२६३-२६४ ३४ भोग के विचार से संयोगादि का त्याग एवं संवरधर्म तथा शुक्ल ध्यान व लोकस्वरूपका कथन
२६५-२६८ ३५ शैलेशीकरण का स्वरूप तथा अयोगी ध्यान की सिद्धि और खिद्धों के उर्ध्व स्वरूपगमन का कथन
२६९-२८८ ३६ सुगति धर्म फल किस को दुर्लभ एवं किस को सुलभ है उसका कथन २८९--२९० ३७ चारित्र का महत्व एवं अध्ययन का उपसंहार
२९१-२९३ पांचवां अध्ययन ३८ पांचवां अध्ययन की अवतरणिका
२९४-२८५ ३९ भक्तपान गवेषण की विधि
२९६ ४० गोचरी में चित्त की स्थिरता का उपदेश
२९७-२९८ ४१ गोचरी गमन की विधि
२९९-३०० ४२ विषममार्गसे जाने में संयमविराधनाका संभव
३०१-३०२ ४३ गमनमें पृथ्वीकायकी यतना रखने का विचार
३०२४४ अपकायादिकी यतनाका विचार
३०३४५ चतुर्थ महाव्रत-ब्रह्मचर्य यतनाका विचार
३०४-३०६
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧