Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ४ स० ५ वनस्पतिकायमेदाः
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१६९ सम्प्रति वनस्पतिमेव सविशेषं वर्णयति-तं जहा' इत्यादि।
मूलम् ---तं जहा-अग्गबीया मूलबीया पोखीया, खंधबीया बीयरुहा संमुच्छिमा तणलया वणस्सइकाइया सबीया चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥५॥
छाया-तद्यथा-अग्रवीजा मूलबीजाः पर्वबीजाः स्कन्धबीजाः बीजरुहाः सम्मृच्छिमास्तृणलतावनस्पतिकायिकाः सबीजश्चित्तवन्त आख्याता अनेकजीवाः पृथकसत्त्वाअन्यत्र शस्त्रपरिणतेभ्य ॥५॥
यहां बनस्पतिकायका विशेष वर्णन करते हैं---
सान्वयार्थ:--तं जहा-वह इस प्रकारसे है अग्गबीया=जिनका बीज अग्रभागमें होता है, मूलबीया-जिनका बीज मूलभाग में होता है, पोरबीया-जिनका बीज पोर (सन्धि ) में होता है, खधबीया-जिनका बीज स्कन्ध ( डाले ) में होता है, बीयरुहाबीजसे उगनेवाले, संमुच्छिमा विना बीजके उत्पन्न होनेवाले, तलणया तृण और लताएँ; ये सभी वणस्सइकाइया वनस्पतिकायिक हैं सबीका-पूर्वोक्त अपने-अपने नामप्रकृतिके उदयसे उत्पन्न हुए बीजसहित सब वनस्पतिकाय चित्तमंतं-सचित्त अक्खाया कहे गये हैं, अन्नत्थ-सिवाय सत्थपरिणएण-शस्त्रपरिणतके ये वनस्पतिकाय अणेगजीवा अनेक जीववाले और पुढोसत्ता-भिन्न-भिन्न सत्तावाले हैं ॥५॥
टीका-तथाहि अग्रजीवाः अग्रेअग्रभागे बीजं येषां ते तथा कोरण्टकादयः । मूलबीजा:-मूलमेव बीजं येषां ते कमलकन्दप्रभृतयः । पर्वबीजाः पर्वणि-ग्रन्थौ पर्वैव बीजयेषां ते तथा इक्षुप्रमुखाः स्कन्धबीजाः स्कन्धः-स्थुडं स एव बीजं येषां ते तथा शल्लशस्त्र है, परशु ( फरसा) दात्रा आदि उभयकाय शस्त्र हैं । भावशस्त्र उसके प्रति मनके परिणाम दुष्ट करना ॥ ४ ॥
अब बनस्पतिकाय का विशेष वर्णन करते हैं-'तं जहा' इत्यादि । अग्रबीज-जिनके बीज अग्र-भाग में होते हैं ऐसे कोरंटक आदि अग्रबीज कहलाते हैं। मूलबीज-मूलही जिन का बीज हो वह, कमल का कन्द आदि मूलबीज हैं।
पर्वबीज-पोर (गांठ )में या पर्व ही जिनका बीज है ऐसे, गन्ना (सांठा ) आदि पर्वबाज कहलाते हैं। યશસ્ત્ર છે. કેહાડ, દાતરડું આદિ ઉભયકાય શસ્ત્ર છે. ભાવશસ્ત્ર એની પ્રતિ મનના પરિ. शाम इष्ट ४२१। ते. (४)
डवे वनस्पतियन विशेष पणन ४२ छ-तं जहा त्याह.
અઝબીજ –જેનાં બીજ અગ્રભાગમાં હોય છે એવા કેરંટક (હજારી ગુલ ) આદિ અગ્રબીજ કહેવાય છે.
મૂલબીજ–મૂળજ જેનું બીજ છે તે કમળને કંદ આદિ મૂલબીજ છે, ૨૨
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧