Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 459
________________ अध्ययन ५ उ. २ गा० ३१-३२ भिक्षाऽपह्नवनिषेधः तद्दोषाश्च अब स्वपक्ष-साधुपक्ष में चोरी का निषेध बताते है सान्वयार्थ:-सिया-कदाचित्-अगर एगइओ-जघन्यप्रकृतिवाला अकेला गोचरी गया हुआ साधु लद्धं-सरस अशनादि पाकर लोभेण खानेके लोभसे (उसे) विणिगूहइ-छिपा लेवे-नीरस वस्तुको ऊपर रखकर सरस वस्तुको उसके नीचे दवा रखे, क्योंकि मम-मेरी दाइयं संत-दिखलाई हुई एय-इस वस्तुको दणं सरस देखकर सयं-स्वयंआचार्य आदि खुद आयएलेले गे अर्थात् मुझे नहीं देंगे या थोड़ी देंगे ॥३१॥ टीका-स्यात् = कदाचित् एककः = कश्चिज्जघन्यप्रकृतिः साधुः लब्ध्वा = प्राप्य आहारादिकमिति शेषः लोभेन = उत्कृष्टसरसवस्तुलिप्सया विनिगूहते-संवृणुते-नीरसवस्तुजातमुपरि कृत्वोत्कृष्टरसवद्वस्तु समषहूनुते । अपह्नवे हेतुमाह-ममेदमुत्कृष्टं वस्तु 'दाइयं' = दर्शितं सत् दृष्ट्वा आचार्यादिः स्वयमेवाऽऽददीत - गृह्णीयात् , न मह्यं दास्यति अल्पं वा दास्यतीति भावः ॥३१॥ अपह्नवकरणस्य दोषमाह-'अत्तट्टा' इत्यादि। मूलम्-अत्तहागुरुओ लुद्धो, बहु पावं पकुव्वइ । १० ११ १२ १३ दुत्तोसओ य से होइ, निब्वाणं च न गच्छइ ॥३२॥ छाया--आत्मार्थगुरुको लुब्धः, बहुपापं प्रकुरुते । दुस्तोषकश्च स भवति, निर्वाणं च न गच्छति ॥३२॥ पूर्वोक्त आचरण करनेवाले साधु की क्या दशा होती है ? सो बताते हैं सान्वयार्थः-अत्तट्ठागुरुओ = अपने स्वार्थ साधनमें लगा हुआ लुद्धो = जिह्वाका लोलुपी से= वह साधु बहु = बहुत पावं = पाप पकुव्वई = करता है, य = और (इस भवमें) दुत्तोसओ = असन्तोषी होइ = बना रहता है, च = तथा निव्वाणं = मोक्षको न गच्छइ = नहीं पाता है, अर्थात् अनन्तसंसारी होकर चतुर्गतिमें भटकता है ॥३२॥ टीका-आत्मार्थगुरुकः = आत्मनः अर्थ = प्रयोजनमित्यात्मार्थः स एव गुरुः = स्वपक्षमें चौर्यका निषेध करते हैं 'सिया' इत्यादि । जो क्षुद्रप्रकृतिवाला साधु उत्कृष्ट सरस आहार प्राप्त करके इस विचार से उसे छिपा लेता है कि-मैं इसे दिखा दूंगा तो आचार्य आदि इसे ले लेगे-मुझे न देंगे अथवा थोडासा देंगे॥३१॥ अत्त द्वा, इत्यादि वह दूसरोंसे छिपाकर सरस आहार करनेवाला स्वार्थ साधनमें समर्थ साधु स्वपक्षमा योयना निषेध ४३ छ-सिया त्या જે ક્ષુદ્ર પ્રકૃતિવાળા સાધુ ઉત્કૃષ્ટ સરસ આહાર પ્રાપ્ત કરીને એવા વિચારથી એને છુપાવે ક-હું એને બતાવીશ તો આચાર્ય આદિ એ લઈ લેશે, મને નહીં આપે અથવા થડો જ साप' (१) સરદાર ઈયાદિ એ બીજાથી છુપાવીને સરસ આહાર કરનારે સ્વાર્થ સાધનમાં સમર્થ શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧

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