Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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દરદ
श्रीदशवैकालिकसूत्रे संपादिता, पैष्टी ब्रीद्यादिपिष्टनिवृत्तेति । यद्वा 'पिटेण सुरा होइ' इति वचनाद् बीयादिपिष्टनिवृत्तैब मुरेत्युच्यते । चन्द्रहासाभिधं मद्यमिति वा । मेरकं = सरकानामधेयं मघम् । अन्यद्वा माधकं = मदजनकं रसम् । मादकत्वेन द्वादशविधमद्यस्य तदितरस्य विजयादेश्च सर्वस्य संग्रहः, तदुक्तमितरत्र मदहेतुद्रवद्र्व्यं मद्यमित्यभिधीयते' इति द्वादशविधमधानि यथा--
"माध्वीकं पानसं द्राक्षे, खारं तालमैक्षवम् । मैरेयं माक्षिकं टाडू, माधुकं नारिकेलजम् ॥१॥
मुख्यमन्नविकारोत्थं, मद्यानि द्वादशैव च ।" इति । एतत्सर्वं मुरादिकं ससाक्षि न पिबेत् , सा भिः केवल्यादिभिः सहेति ससाक्षि कदापि न पीना चाहिए । मदिरा तीन प्रकारको है (१) गौड़ी (२) माध्वी और (३) पैष्टी । गुड़से बनाई हुई गौडी, महुआसे बनाई हुई माध्वी तथा धान्य आदिके पिष्ट (आटे) से बनाई पैष्टी कहलाती है । 'पिटेण सुरा होइ' इस वचनसे यहि जान पडता है कि-धान्य आदिके आटेसे मदिरा बनती है । अथवा पैष्टी मदिरा' चन्द्रहास' नामकी मदिरा समझनी चाहिए । इनके सिवाय भंग गाँजे आदि और कोई भी नशैली वस्तुका साधुको सेवन नहीं करना चाहिए जैसा कि कहा है-'मदके कारण-स्वरूप पिघले हुए पदार्थको मद्य कहते हैं ।' मद्य बारह प्रकारके समझने चाहिएँ वे ये हैं--
"(१) महुआका, (२) पनस IT, )३) दाखका, (४) खजूरका, (५) ताड़का (ताड़ी), (६) सठिका, (७) मैरेय-धौ-धावड़ीके फूलका, (८) (माक्षिक मक्खियों की शहद) का, (९) टंक (कवीठ-कैथ) का, (१०) मधुका, (११) नारियलका और (१२) पिष्ट (आटे) का बना हुआ मद्य । ये मद्यके मुख्य मेद बारह हैं।" हाल पावन नय. महिश व प्रा२नी छ, (१) जोडी, (२) भावी, () पेष्टी. गाण. માંથી બનાવેલી ગૌડી, મડડાંમાંથી બનાવેલી માધ્વી, તથા ધાન્ય આદિના પિષ્ટ (આટા) માંથી मनावती पैटी उपाय छे. पिटेण सुरा होइ मे क्यनथी म मासुम ५ छ ?-धान्य આદિના આટાથી મદિરા બને છે. અથવા પૈછી મદિરા “ચંદ્રહાસ” નામની મદિરા સમજવી જોઈએ. તે ઉપરાંત ભાંગ, ગાજે, બીજી–બીજી કોઈ પણ કેફી વસ્તુનું સેવન સાધુ ન કર भो छ
“મદના કારણું સ્વરૂપ પીગળેલા પદાર્થને મદ્ય કહે છે મઘ બાર પ્રકારના સમજવા, તે नाथ भुस
"(१) माना, (२) सना, (3) द्राक्षने। (४) मरना (५) तान (asa), (6) २२ीना, (७) भरेय-थापडीनiसनी, ८) मा .मधनी, (6) ८४ (81) ना; (१०) मधुनी, (११) नारियोजना, मने (१२) पिट (421) नो मने भव. सेम भयना अभ्य लार छे.
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧
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