Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ५ उ०२ गा० ३६ मद्यपाननिषेधः शल्यं = शल्यते = वाध्यते पीडयते आत्माऽनेनेति विग्रहः, मायालक्षणं भावशस्यं कुरुते = उत्पादयति, हृदयनिखातत्रुटितबाणाग्ररूपद्रव्यशल्यवदिदं मायारूपं भावशल्य हृदयस्थितं सत् निरन्तराऽनन्त दुस्सहदुःखकारणीभवतू चतुगेतिकसंसारे भ्रामयत् अविचलशान्तिसुखाद दूरतरीकरोति तादृशं साधुमिति भावः ।। ३५ ।। मद्यपानप्रतिषेधमाह-'सुरं वा' इत्यादि।
५ ६ ७ ९ ८ १० ११ १२ मूलम्-सुरं वा, मेरगं वावि, अन्नं वा मज्जगं रसं ।
१३ १४ १५ १ ३ . ४
ससक्खं न पिबे भिक्खू, जसं सारक्खमप्पणो ॥ ३६ ॥ छाया--मुरां वा मेरकं वाऽपि, अन्यद वा माधकं रसम् ।
ससाक्षि न पिबेद् भिक्षुः, यशः संरक्षन आत्मनः ॥ ३६ ॥ अब मधपान का दोष बताते हैं--
सान्वयार्थः - भिक्खू = साधु अप्पणो = अपने जसं = संयमको सारखं - बचाता हुआ सुरंगौड़ी माध्वी और पैष्टी, इन तीनों प्रकार की मदीराको या = 'या' शब्दसे अथवा बारहों प्रकार की मदिरा को वावि = तथा मेरगं = सरकेको अन्न वा और भी दूसरे प्रकारके मज्जग = मदजनक भंग गांजा अफीम चरस आदि मादक रसं = रस-द्रव्य को ससक्ख = केवली भगवानकी साक्षीसे अर्थात् उनका ज्ञान सर्वव्यापक होमेसे पकान्त में भी न पिबे= नहीं पिये ।। मदिराके बारह भेद इस प्रकार हैं-(१) महुआ (२) फणस (३) दाख, (४) खजूर, (५) ताड (ताडी), (६) गन्ना 3 सेरडी, (७) धावड़ीके फूल, (८) मक्खियोकी शहद (९) कैठ (कठोतो), (१०) मधु (अन्य प्रकारकी शहद), (११) नारियल, ओर (१२) पिष्ट (आटा), मदिरा इन बारह वस्तुओंसे बनती है ।। ३६॥
टीका--भिक्षुः आत्मन:- स्वस्य यशः-संयम संरक्षन् सुरां-मदिरा, सा च त्रिविधा-गोंडी, माध्वी, पैष्टी चे' ति । तत्र गोंडी = गुडनिष्पादिता, माध्यी-मधु(महुडा नोंक) की तरह हृदयमें स्थित मायारूप भावशल्य निरन्तर असीम व्यथाका कारण होता है, तथा चतुर्गति संसारमें इधर-उधर भटकता हुआ अविचल शान्तिमय सुखसे उस साधुको वञ्छित (अलग) कर देता है ॥३५॥
मद्य-पानक निषेध कहते हैं-'सुरं वा' इत्यादि ।
जो साधु अपने संयमकी रक्षा करना चाहते हैं उन्हें मदिरा या सिरका एकान्तमें भी દ્રવ્ય-શલ્ય (તારની અણ) ની પેઠે હૃદયમાં રહેલું માયારૂપ ભાવ-શલ્ય નિરંતર અસીમ વ્યથાનું કારણ બને છે, તથા ચતુગતિ સંસારમાં અહીં-તહીં ભટકતાં અવિચલ શાન્તિમય सुभथी से सांधुन यत (२त) ४३१ नाणे छे. (३५)
भयपान निषेध -सुर वाया જે સાધુ પિતાના સંયમની રક્ષા કરવા ઈચ્છે છે, તેણે મદિરા યા સરકે એકાતમાં પણ
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧