Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ४ सू० २० (६) प्रसकाययतना
२२५ शव्यायां वा संस्तारके वा अन्यतरस्मिन् वा तथाप्रकारे उपकरणजाते ततः संयत एव प्रत्युपेक्ष्य२ प्रमृज्य२ एकान्तेऽपनयेन्नैन संघातमापादयेत् ॥६॥२०॥
(६) त्रसकाययतना. सान्वयार्थः-संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे = वर्तमानकालीन सावध व्यापारों से रहित, भूत-भविष्यत्कालीन सावध व्यापारोंसे रहित, वर्तमान कालमें भी स्थिति और अनुभागकी न्यूनता करके तथा पहले किये हुए अतिचारोंकी निन्दा करके सावध व्यापारके त्यागी से-वह पूर्वोक्त भिक्खू वा-साधु भिक्खुणी वा अथवा साध्वी दिया वा-दिनमें राओ वा = अथवा रात्रिमें एगओ वा अकेला परिसागओ वा अथवा संघमें स्थित सुत्ते वा-सोया हुआ अथवा जागरमाणे वा = जागता हुआ रहे, वहां से वह कीडं वा= कीडेको पयंग वा = पतंगेको कुंथुवा = कुंथुवाको पिवीलियं वा = कीड़ीचिऊंटीको हत्थंसि वा हाथ पर पायंसि वा = पैरपर बाहुंसि वा = भुजापर ऊरुंसि वा जांघपर उदरंसि बा= पेट पर सीसंसि वा = सिरपर वत्थंसि वा = वस्त्रपर पडिग्गहसि वा = पात्रपर कंबलंसि वा = कम्बल पर पायपुच्छणंसि वा पैर पोंछनेके उपकरणविशेष पर रयहरणंसि वा = रजोहरण पर गोच्छगंसि वा = पूजनी पर उंडगंसि वा = स्थण्डिलपात्र पर दंडगंसि वा = दंड पर पीढगंसि वा = चौकी पर फलगंसि वा = पाठे पर सेज्जसि वा = शरीरपरिमित शयन करने के उपकरण पर संथारंगसि वा-संस्तारक-साढे तीन हाथ परिमित बिछौने पर (अथवा) अन्नयरंसि वा = फिर दूसरे तहप्पगारे = इसी प्रकार के उवगरणजाए = उपकरणो पर (लगे हुए पूर्वोक्त कीडे आदिको) तओ = उस स्थान-हाथ पैर आदिसे संजयामेव = यतनाके साथही पडिलेहिय२ = बार-बार प्रतिलेखन करके पमज्जिय२-बार-बार पूजकर एगंतं = एकान्त-निरुपद्रव स्थान-में अवणेज्जा ले जाकर रखदे, (किन्तु उनको) नो णं संघायमावज्जेज्जा-एकट्ठा न करे ॥२०॥
(६) सकाययतना। टीका-हस्ते, पादे, बाहौ, ऊरौ = जानपरिभागे, उदरे, शीर्षे, वस्त्रे = मुख-वस्त्रिकाचोलपट्टादौ, प्रतिग्रहे = प्रतिगृहाति = आधत्ते स्वस्मिन् भक्तपानादिकमिति प्रतिग्रहः अब त्रसकायकी यतना कहते हैं-'से भिक्खू वा०' इत्यादि
(६) सकाययतना । हाथ, पैर, भुजा, जाँध, उदर, मस्तक, मुखवस्त्रिका, चोलपट्ट आदि वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद-प्रोञ्छन-पैर पोंछने का वस्त्रखण्ड, रजोहरण, गोछा-पूजनी (पैरोंमें लगी हुई रजको पोंछने व सायनी यतना ४ छ-से भिक्खू वा०' त्याह.
(8) अययतना. डाथ, ५, सुन, ar, २, भरत, भुभवनि, याण५४ मा १७ पात्र, કામળી, પગલુંછણું, હરણ, પંજણી, Úડિલપાત્ર, વૃદ્ધાવસ્થાઆદિને કારણે ચાલવામાં
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શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧