Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 353
________________ अध्ययन ५ उ.१ गा० १५ गोचर्या कायचेष्टाप्रकारः ३१३ टीका--'आलोअं०' इत्यादि । चरन-भिक्षितुं गच्छन् मुनिः आलोकं वातायनजालिकाप्रभृति, थिग्गलं=देशीयभाषया प्रसिद्ध भित्त्यामिष्टकादिरचितम्, द्वारं-विवरम्, सन्धि तस्करादिखातभित्तिभागं दकभवनानि जलस्थानानि, 'चेति समुच्चये न नैव विनिायेत्-सविशेषं विलोकयेत् । यत एतानि (आलोकादीनि) शङ्कास्थानानिसाधोराचारविषयकसन्देहोत्पादकस्थानानि, सूत्रे जातावेकवचनम्, अतस्तानि विवर्जयेत्-विशेषेण परित्यजेत् ॥१५॥ मूलम्-रन्नो गिहवईणं च, रहस्सारक्खियाण य । संकिलेसकरं ठाणं, दृरओ परिवज्जए ॥१६॥ छाया-राज्ञो गृहपतीनां च, रहस्यमारक्षकाणां च । संक्लेशकरं स्थानं, दूरतः चरिवर्जयेत् ॥१६॥ सान्वयार्थः-रन्नो चक्रवर्ती आदि राजा महाराजाओंके च-तथा गिहवईणं सेठ आदि सगृहस्थोंके च और आरक्खियाण-नगरके रक्षक-कोतवाल आदिके रहस्सं सलाह करनेके एकान्त स्थानको (साधु) दूरओ-दरहीसे परिवज्जए-त्यागे; (क्योंकि ऐसे) ठाणं स्थान संकिलेसकरं असमाधिको पैदा करनेवाले होते हैं। भावार्थ राजा आदिकोंके एकान्त स्थानकी तर्फ देखनेसे अथवा वहां जानेसे उनको साधुके प्रति क्रोध अश्रद्धा होना आदि अनेक दोषोंकी संभावना है ॥१६॥ टीका:--'रन्नो०' इत्यादि । राज्ञः चक्रयर्द्धचक्रिप्रभृतेः, गृहीपतीनां गृहस्वामिनां श्रेष्ठयादीनाम् आरक्षकाा =नगररक्षिणां च रहस्य-रहसि एकान्ते भवं रहस्य मन्त्र 'आलोयं०' ईत्यादि । भिक्षा लेनेके निमित्त गमन करता हुआ मुनो झरोंखा, जाली, भीत, दरवाजा, सेंध, (चोरों द्वारा दीवार में किया हुआ छेद-सन्धि) और उदक भवन अर्थात परेंडा आदि की तरफ दृष्टि न डाले, क्योंकि ये शंकास्थान हैं, इनकी ओर देखने से लोगों को साधुके चारित्रमें संदेह उत्पन्न होता है, अतएव इन शंकास्थानों का विशेष रूपसे परित्याग करना चाहिए ॥ १५॥ 'रनो.' इत्यादि । जिस एकान्त भवनमें चक्रवर्ती, अर्द्धचक्री, माण्डलिक आदि राजा,श्रेष्ठी (सेठ) आदि गृहस्थ और नगरकी रक्षा करनेवाले (कोटवाल) आदि सलाह करते हों उस भवन आलोय त्याहि. मिक्षाने भाट गमन ४२ते। मुनि ३, जी, मीत, वान, રે પડેલું બાંકુ (ખાતરીયાથી પાડેલું બાંકે રૂ) અને ઉદકભવન અર્થાત પાણીઆરાની તરફ દૃષ્ટિ ન નોખે, કારણ કે એ બધાં શંકાસ્થાને છે. તેની તરફ જેવાથી લોકોને સાધુના ચારિત્રમાં સંદેહ ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી એ શંકાસ્થાને વિશેષરૂપે પરિત્યાગ કર. (૧૫) _ रन्नो० ४त्यहि त सपनमा यवती, मयी , भांडसि मा २01, श्रेष्ठी (28) मा भने नारनी २६॥ ४२ना। (2वाण) मेरे सदाह (भा ) ४२ता શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્ર: ૧

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