Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ अध्ययन ५ उ. १ गा० ९४-९५ अन्यमुनिभ्य आहारग्रहणप्रार्थना ३८९ ही है, अगर वे न लें तो उनसे कहे-'हे भगवान् ! आपही अपने हाथ से किसी दूसरे सन्त को दीजिये। ऐसा कहने पर यदि वे अपने हाथ से किसी को दें तो ठीक ही है, यदि खुद न देकर उसीसे कह देवें कि 'तुमही तुम्हारी इच्छा के अनुसार जो लेवे उसको दे दो' तब उसे क्या करना चाहिये, सो बताते है सान्वयार्थः-तो इस प्रकार गुरु महाराजकी आज्ञा प्राप्त होने पर वह साधु साहवो सब सन्तोंको चियत्तेणं-त्याग-बुद्धिसे अर्थात् उदार चित्तसे जहक्कम-रत्नाधिकके क्रमानुसार निमंतिज्ज=निमन्त्रण करे-आहार धामे, जइ-यदि-अगर तत्थ=उनमें से केइ= कोई साधु इच्छिज्जा आहार लेना चाहे तो (उन्हें देवर) तेहिं सद्धिं तु उनके साथ बैठकर भुंजए-खुद भी आहार करे ॥९५॥ टीका-तो-ततः गुरोरादेशाऽनन्तरम् असौ साधून चियत्तेणं = देशोयशब्दोऽयम्' परमप्रीत्या उदारचेतसेत्यर्थः, यथाक्रम-रत्नाधिप क्रममनुसृत्य निमन्त्रयेत् = स्वभागग्रहणाय प्रार्थयेत्-'इदं गृहीत्वाऽनुगृह्यता'-मिति वदेदित्यर्थः । यदि तत्र = मुनीनां मध्ये केऽपि मुनय इच्छेयुः = ग्रहीतुमभिलषेयुस्तदा तेभ्योऽपि वितीर्य तेःसाई स्वयमपि भुजीत = 'चपड़-चपडे' ति शब्दमकुर्वन्नभ्यवहरेत् ॥९॥ मूलम्-अह कोइ न इच्छिज्जा, तओ अँजिज्ज एगओ । आलोए भायणे साहू, जयं अपरिस्माडियं ॥९६॥ छाया-अथ कोऽपि न इच्छेत्, ततो भुजीत एककः ।। आलोके भाजने साधुः, यतम् अपरिशातयन् ॥१६॥ ___ सान्वयार्थः-अह अथ-यदि कोइ-कोई न इच्छिज्जा = आहार लेना नहीं चाहे तो तओ= फिर साहू = वह साधु एगओ= अकेला-द्रव्यसे स्वयं एक ही, भावसे राग-द्वेषसंग-रहित आलोए प्रकाशयुक्त-चौडे मुंहवाले भायणे = पात्रमें जयं = यतनापूर्वक अर्थात् मांडलेके दोषोंको टालकर अपरिसाडियं = सीथ-कणका बिन्दु-मात्र भी आहार नहीं गिराता हुआ भुजिज्ज आहार करे ॥९६॥ ___ गुरुकी आज्ञा मिलनेके अनन्तर प्रसन्न चित्तसे उदारताके साथ दीक्षा में बड़े-छोटेके क्रमसे साधुओंको अपना भाग ग्रहण करने की प्रार्थना करे, अर्थात् 'यह आहार ग्रहण करने का अनुग्रह कीजिए' ऐसा कहे । उन मुनियोंमेंसे कोई प्रहण करने की इच्छा करे तो उन्हें वितीर्ण करके उनके साथ आप भी चपड़-चपड़ शब्द न करता हुआ आहार करे ।। ९५ ।। ગુરૂની આજ્ઞા મળ્યા પછી પ્રસન્ન ચિત્તથી ઉદારતાની સાથે દીક્ષામાં મોટાનાનાના ક્રમે કરીને સાધુઓને પિતાને ભાગ ગ્રહણ કરવાની પ્રાર્થના કરે અર્થાત્ આ આહાર 9 ણ કરવાને અનુગ્રહ કરે' એમ કહે. એ મુનિઓમાંથી કઈ ગ્રહણ કરવાની ઈચ્છા કરે તે તેમને વહેચી આપીને તેમની સાથે પોતે પણ ચડ-ચપડ અવાજ કયો વિના આહાર ४२. (८५) શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480