Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 440
________________ १० श्रीदशवकालिकसूत्रे टोका-हे भिक्षो ! त्वम् अकाले = असमये चरसि-भिक्षार्थ गच्छसि किन्तु कालं = भिक्षोचितसमयं न प्रत्युपेक्षसे नाद्रियसे, तेन च हेतुनाऽऽत्मानं क्लमयसिम्पीडयसि भिक्षालाभाभावेन भ्रमणाधिक्येन चेति भावः । संनिवेशं-ग्रामं च पुनः गर्हसे = निन्दसि । भगवदाज्ञाविराधकत्वेन दैन्यप्रकाशनेन च चारित्रमालिन्यं जायते, ततोऽनुचितकाले भिक्षाथै न गन्तव्यमिति । ५॥ मूलम् -सइ काल चरे भिक्खू, कुज्जा पुरिसकारियं । अलाभु-त्ति न सोइज्जा, तवु-त्ति अहियासए ॥६॥ छाया-सति काले चरेद भिक्षुः, कुर्यात्पुरुषकारम् ।। अलाभ इति न शोचेत्, तप इति अधिषहेत ॥६॥ सान्वयार्थ:-भिक्खू = साधुको काले-भिक्षाका समय सइ-होनेपर चरे-गोचरीके लिए घूमना चाहिए और पुरिसकारियं उत्साह पूर्वक घूमनेरूप पुरुषार्थ भी कुज्जा = करना चाहिये, और भिक्षा न मिलनेपर वह अलाभु आज मुझे भिक्षा नहीं मिली ति= इस प्रकार न सोइज्जा = सोच न करे, किन्तु तवु = आज मेरे अनशन ऊनोदरी आदि तप हुआ है त्ति = इस प्रकार सोचकर अहियासए = क्षुधा-परीषहको सहन करे-सन्तुष्ट रहे । तात्पर्य यह है कि-साधुओंको सिर्फ भिक्षाके ही लिए गोचरीमें घुमना नहीं हैं किन्तु वीर्याचारके लिए भी भगवान्ने गोचरीमें घुमना कहा है ॥६॥ कोई साधु द्वार। असमयमें भिक्षाके लिए जानेवाले दूसरे साधुसे पूछा गया कि-'हे भिक्षु ! तुम्हें भिक्षाका लाभ हुआ या नहीं ?' तब उसने कहा -'इन कंगाल कंजूसोंके गाँवमें भिक्षा कहाँ प्राप्त होसकती है?' तब वह अकालमें गोचरी करनेवालेके प्रति कहता है-'अकाले ०' इत्यादि । हे भिक्षु ! आप असमयमें भिक्षाके लिए जाते हैं, समयका खयाल नहीं रखते । इसो कारण अधिक भ्रमण करने से या मिक्षाके न मिलनेसे तुम अपनी आत्मा को पीडित करते हो, और नाम नगर की निन्दा करते हो। अकलमें भिक्षाके लिये गमनरूप भगवान की आज्ञाकी विराधना करने से तथा दीनता प्रगट करनेसे चारित्रमें मलिनता आती है इसलिए अनुचित समय में भिक्षाके लिए नहीं जाना चाहिए ॥२॥ કેઈ સાધુ અસમય માં ભિક્ષાને માટે જનારા બીજા સાધુને પૂછ્યું કે-“હે ભિક્ષુ ! તમને ભિક્ષાનો લાભ થયો કે નહી” ત્યારે તેણે કહ્યું “આ કંગાલ કંજૂસેના ગામમાં ભિક્ષા यांची प्रात यश ?' त्यारे थे भाले गोयरी ४२ना२। साधु प्रत्ये ४९ छे-अकाले० इत्यादि હે ભિક્ષુ ! આપ અસમયમાં ભિક્ષા માટે જાઓ છે, સમયને ખ્યાલ રાખતા નથી. એ કારણે વધારે ફરવાથી યા ભિક્ષા ન મળવાથી તમે તમારા આત્માને પીડિત કરો છો અને ગ્રામ-નગરની નિંદા કરે છે. અકાળે ભિક્ષાને માટે જવારૂપી ભગવાનની આજ્ઞાની શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્ર: ૧

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