Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 397
________________ अध्ययन. ५ उ. १ गा० ५६ निःशङ्किताहारग्रहणाशा m ३५७ सामान्यरूपेण विशेषरूपेण वोद्दिश्य सम्पादिते सम्भवति । अध्यवपूरकं साधुसमागमश्रवणसमनन्तरमधिकनिक्षेपेण जायते । मिश्रजात-पाकप्रवृत्तिसमय एव गृहस्थ-भिक्षाचरयोः कृते संमिश्रितेऽन्नादौ समुत्पद्यते ॥ ५५ ॥ मूलम्-उग्गमं से अ पुच्छिज्जा, कस्सट्ठा केण वा कडं ?। ९ ११ १२ १३ १० सुच्चा निस्संकियं सुद्धं पडिगाहिज्ज संजओ ॥५६॥ छाया उद्गमं तस्य च पृच्छेत्कस्यार्थ केन वा कृतम् ।। श्रुत्वा निःशङ्कितं शुद्धं, प्रतिगृहोयात्संयतः॥५६॥ सान्वयार्थः-से-उस आहारादिकी उग्गम-उत्पत्ति पुच्छिज्जा=पूछे कि-(यह अशनादि) कस्सट्टा किसके लिए वा और केण-किसने कडंबनाया है । फिर सुच्चा गृहस्थ के मुख से अशनादिकी उत्पत्ति सुनकर (यदि वह) निस्संकियं औदेशिक आदि शङ्कारहित य और सुद्धं निर्दोष हो तो संजए साधु पडिगाहिज्ज-ग्रहण कर लेवे ॥५६॥ टीका--'उग्गमं' इत्यादि । कस्यार्थ-किन्निमितम् , केन वा का कृतं-निष्पादितम् , अन्नादौ 'विशुद्धमविशुद्ध वे' ति संशये तन्निराकरणाय तस्य संशयितस्यान्नादेः उद्गमम् उद्गमनमुग्दमस्तम् उत्पत्तिमित्यर्थः, पृच्छेत् प्रतिवचनेन ज्ञातुमिच्छेत् , श्रुत्वा 'प्रतिवचन' मितिशेषः संयतः शकिताऽऽहारग्रहणभीरुः साधुः निःङ्कितं-दोपशङ्कावर्जितम् अत एव शुद्धं निरवयं प्रतिगृह्णीयात्-निरवद्यत्वेन निश्चये सतीति भावः ॥ ५६ ॥ बनाये हुए आहारमें औद्दे शिक दोष होता है। आहार बनाते समय, साधुका आगमन सुन कर अधनमें अधिक ऊर (डाल) कर बनानेसे अध्यवपूरक दोष होता है भोजन बनाते समय, गृहस्थ और भिक्षु दोनों के लिये भोजन बनानेसे मिश्रजात दोष लगता हैं ॥५५।। 'उग्गमं०' इत्यादि । 'आहार अशुद्ध है' इस प्रकारका सन्देह होने पर साधु, ऐसा पूछ लेवें कि यह आहार, किसके लिये बनाया गया है और किसने बनाया है ?, इसका उत्तर सुनकर निरवद्यताका निश्चय करके निः शंकित अत एव निरवद्य आहार हो तो साधु, ग्रहण करें ॥५६॥ સાધુને માટે બનાવેલા આહારમાં ઓશિક દોષ લાગે છે. બહાર બનાવતી વખતે સાધુનું આગમન સાંભળીને આંધણમાં વધારે ઓરી દેવાથી અધ્યવપૂરક દેષ લાગે છે. ભેજન બનાવતી વખતે ગૃહસ્થ અને ભિક્ષુ બેઉને માટે ભોજન બનાવવાથી મિશ્રજાત દોષ લાગે छ. (५५) उग्गम०७त्याहि. 'महा२ अशुद्ध छ । विशुद्ध छे' से प्रारनी सहेड ५i साधु એવું પૂછી લે કે આહાર કોને માટે બનાવેલ છે અને કોણે બનાવ્યો છે, એનો ઉત્તર સાંભળીને નિરવઘતાનો નિશ્ચય કરીને નિઃશંકિત, એટલે નિરવઘ આહાર હોય તે સાધુ अहए ४२. (५६) શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧

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