Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 406
________________ श्रीदशवैकालिकसूत्रे संस्थाप्य तद्वारा असंश्लिष्टापरभागे गमनागमनेनाऽऽनीता । दुष्प्रापशिक्यादिस्थस्यातिगम्भीरकुमुलादिस्थस्य चान्नादेहणे चरणोन्नमनादिनाऽनेकविधकष्टसम्भवादेवंविधापि भिक्षा तदन्त येति ॥६७॥६८॥६९॥ मूलम्-कंदं मूलं पलंब वा, आमं छिन्नं च सन्निरं । तुंबागं सिंगवेरं च, आमगं परिवज्जए ॥७॥ छाया---कन्दं मूलं प्रलम्ब वा आमं छिन्नं च सन्निरम । तुम्बकं शृङ्गवेरञ्च, आमकं परिवर्जयेत् ।।७०॥ सान्वयार्थः-आम-सचित्त कंद-सूरण आदि कन्द मूलं विदारिकादि मूलं पलंबताल आदिके फल चा= तथा छिन्नं च %काटो हुई भी सन्निरं - बथुए आदिकी भाजीको (तथा) आमगं - सचित्त तुंचागं - तूंबे च = और सिंगबेरं = अदरख-आदे-को साघु परिवज्जए = वरजे ॥७॥ ___टीका- 'कंद' इत्यादि । कन्दं, मूलम्, इमे प्राग्व्याख्याते, वा = अथवा प्रलम्ब -तालादिफलम् आमम् = अपक्वं-सचित्तमित्यर्थः । च=पुनः छिन्नं = कर्तितमपि सन्निरं = पत्रशाकं-वास्तूकादिकं, तुम्बकम् = अलाबूविशेष, शृङ्गबेरम् = आद्रकं चकारादन्यदपि प्रत्येकसाधारणवनस्पतिमात्रम् आमकम् = अपक्वं सचित्त परिवर्जयेत् = त्यजेत्-न गृह्णीयादित्यर्थः ॥७०॥ है। जिस मंजिलमें देनेवाली मौजुद हो उसी को बराबरी पर दूसरी ओर जाने के लिये पुल की तरह नसैनी (निसरणो) या लकड़ी आदिको तिरछा रख कर चढे तो वहाँसे लाई हुई भिक्षा, तिर्यग्मालापहृत कहलाती है । बड़ी कठिनाईसे पहुंचने योग्य छींके या आलेमें तथा गहरी कोठरी में रक्खी हुई भिक्षा ग्रहण करनेसे पैर उठाने आदि अनेक कष्ट होते हैं । इसलिये ऐसी भिक्षा भो इसी मलापहृत भिक्षा में अन्तर्गत समझनी चाहिये यह सब प्रकार को भिक्षा साधु को अकल्प्य है॥॥६७।६८।६९ ॥ _ 'कंद इत्यादि । सचित्त कन्द, मूल, ताड-फल आदि तथा कटा हुआ भी सचित्त पत्तोंका शाक-बथुआ आदि, और सचित्त तुम्बा तथा अदरख भी साधु ग्रहण न करे । 'च' शब्दसे यह ભિક્ષા અધેમાલાપહત કહેવાય છે. જે મજલામાં ભિક્ષા આપનારી હાજર હોય, તેની બરાબર, બીજી બાજુ એ જવાને માટે પૂલની પેઠે નીસરણી યા લાકડું પાટિયું તીર્ણ રાખીને ચડે તે ત્યાંથી લાવેલી ભિક્ષા તિર્યમાલાપહત કહેવાય છે. બહુ મુશ્કેલીથી પહોંચી શકાય એવાં સીકા, યા છાજલીમાં તથા ઉંડી કોટડીમાં રાખેલા અશનાદિ ગ્રહણ કરવાથી પગ ઉપાડવા આદિનાં અનેક કછો પડે છે, તેથી એવી ભિક્ષાપણ આ (માલાપહતો ભિક્ષા भायता समसवी. से सर्व प्रश्नी सिक्षा साधुन मोट २५४५य छे. (६७-६८ कंद० छत्या. सथित्त ४६, भूस, ५ माह तथा पेसा ॥ छत सथित्त શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480