Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 416
________________ ३७६ ___श्रीदशकालिकाले आस्वादनविधि प्रदर्शयन् निर्णयप्रकारमाह-'थोय.'इत्यादि । मूलम्-थोषमासायणट्ठाए, हत्थगम्मि दलाहि मे । १२ १ ६ . १० ८ ९ मा मे अच्चंबिलं पूयं, नालं तिहं विणित्तए ॥७८॥ छाया- स्तोकमास्वादनार्थ, हस्तके देहि मे। मा मे अत्यम्ल पूति, नालं तृष्णां विनेतुम् ॥७८॥ सान्वयार्थ:-(निर्णय करने के लिए साधु दातासे कहे कि-हे आयुष्मन् ! ) आसायणहाए-चखनेके लिए थोवं-थोड़ासा धोवन मे मेरे हत्थगम्मि हाथमें दलाहिदो, (हाथमें लेकर चखने पर यदि निश्चय हो जाय कि वह धोवन) अचंबिलं अत्यन्त खट्टा पूर्य-दुर्गन्धित और तिहं =प्यास विणित्तए-बुझानेके लिए नालं =समर्थ नहीं है इसलिए यह मे मेरे लिए उपयोगी मा=नहीं है।।७८॥ टीका-आस्वादनार्थम् = उपयोगित्वाऽनुपयोगित्वज्ञानार्थ स्तोकं स्वल्पं तिलतण्डुलादिजलं मे = मम हस्ते 'देहि' इति दात्रीमुद्दिश्य वदेदिति भावः । तदत्तं धौतजलमास्वाध निश्चिनुयात्-इदम् अत्यम्लं पूति = अनिष्टगन्धयुक्तं तृष्णां=पिपासां विनेतुम् = अपाकर्तुं नालं = न समर्थम्, इति मे = मम मा = नहि उपयोगीति शेषः॥७८ ॥ आस्वादन (चखने) को विधि बताते हुए निर्णय करनेका प्रकार बताते हैं - थोव० । इत्यादि । 'धोवन उपयोगी है या नहीं ?' इस शंकाका निवारण करनेके लिए देनेवालो बाईसे साधु कहे कि-'मेरे हाथमें थोड़ासा पानी दो।' उस दिये हुए धोबनका आस्वादन करके निश्चय करे कि-'यह बहुत खट्टा है, दुर्गन्धवाला है प्यास शान्त करनेके लिए समर्थ नहीं है अत: मेरे लिए उपयोगी नहीं है ॥७॥ ऐसा निश्चय करके क्या करना चाहिए ! सो कहते हैं-तं च' इत्यादि । કરવાને માટે થોડું પાણી ચાખીને નિર્ણય કરવું અની શબ્દથી જીવરાહિત્ય અને ળિ शपथी भित्रनी शान। अमाप सूरित ४थे। छ. (७६-७७) मारवाहन (या41) नी विधि बतातानिय ४२वान। ४२ मतावे छे-थोव० त्यादि. ધાવણ ઉપયોગી છે કે નહિ ?' એ શંકાનું નિવારણુ કરવાને માટે ધાવણ આપનારી બાઈને સાધુ કહે કે “મારા હાથમાં થોડું પાણી આપે. એ આપેલા છેવણનું અસ્વાદન કરીને નિશ્ચય કરે કે “આ બહુ ખાટું છે, દુગધ વાળું છે, તરસ શાંત કરવા માટે समय नथी, तथी मारे भाट उपयोगी नथी.' (७८) એ નિશ્ચય કરીને શું કરવું જોઈએ ? તે હવે કહે છે- ર૦ ઈત્યાદિ. શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧

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