Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 424
________________ ३८४ श्रीदशकालिकसूत्रे शब्दार्थ वर्चते तेन से = तत्र उन्दुकं = स्थानं प्रत्युपेक्ष्य = सम्यङ् निरीक्ष्य गुरोः = रत्नाधिकस्य सकाशे आगतश्च मुनिः ऐपिथिकीम् इच्छामि पडिक्कमि" इत्यादिलक्षणाम् आदाय = पठित्वा प्रतिक्रामेत् = कायोत्सर्ग कुर्यात् ॥८७॥८८॥ तत्र (कायोत्सर्गे) किं कुर्यात् ? इत्याह-आभोइत्ताण इत्यादि 'उज्जुप्पन्नो' इत्यादि च । मूलम्-आभोइत्ताणे नीसेसं अइयारं जहकमं । गमणागमणे चेय, भत्ते पाणे य संजए ॥९॥ उज्जुप्पन्नो अणुब्विग्गो, अव्वक्खित्तेण चेयसा । १९ आलोए गुरुसगासे, जं जहा-गहियं भव ॥९॥ छाया-आभोग्य निश्शेषम् , अतिचारं यथाक्रमम् । गमनागमने चैव, भक्ते पाने च संयतः ॥८९॥ ऋजुप्रज्ञः अनुद्विग्नः, अव्याक्षिप्तेन चेतसा । आलोचयेद् गुरुसकाशे, यद थथा गृहीतं भवेत् ॥९०॥ सान्बयार्थ:--संजए-कायोत्सर्गमे रहा हुआ मुनि गमणागमणे-जानेआनेमें चैव =और भत्ते आहार य-तथा पाणे पानी के ग्रहण करने में लगे हुए) नीसेसं-सब प्रकार के अइयारं अतिचारोंको तथा ज-जो अशनादि जहा=जिस प्रकार गहियं भवे ग्रहण किया हुआ हो उसे भी जहक्कम यथाक्रम अनुक्रमसे आभोइत्ताण-उपयोगसहित चिन्तन करके, उज्जुप्पन्नो सरल बुद्धिवाला अणुव्विग्गो-उद्वेगरहित वह मुनि अव्यक्खितेण = विक्षेपरहित-एकाग्र चेयसा-चित्तसे गुरुके समीप आलोवे ॥८९॥९॥ टीका–संयतन्कायोत्सर्गस्थो मुनिः, गमनागमने गतागतें चैव भक्ते पाने च संचासं निम्बोष-समग्रम् अतिचारं-मुनिमर्यादालवानलक्षणम् यथाक्रमम् आभोग्य-सोपमोजन करनेके स्थानकी सम्यक् प्रकार प्रतिलेखना करके दीक्षामें बड़े मुनिके समीप आकर "इच्छामि पडिक्कमिउं “इत्यादि ईरियावहिया का पाठ बोल करके कायोत्सर्ग करे ।।८७॥८९ ॥ कायोत्सर्गमें क्या करना चाहिए सो कहते हैं-' आभोइत्ताण — इत्यादि, 'उज्जुप्पन्नो' इत्यादि । कायोत्सर्ग में स्थित होकर गमनाऽऽगमनमें, तथा-आहार पानोके लेनेमें जो अतिचार लो हों उन सबका क्रमशः चिन्तन करके सरल बुद्धि-शान्तचित्तवाला संयमीव्याकुलतारहित चित्तसे सभीय भाषीने इच्छामि पडिक्कमिडे त्याहि धरियावडियाना या मातीन योत्सा रे (८७-८८) यसभा शु४२ ते ४ छ-आमोइत्ताण. त्याहि तथा उज्जुप्पन्नो इत्यादि કાયોત્સર્ગમાં સ્થિર થઈને ગમનાગમનમાં, તથા આહાર પાણી લેવામાં જે અતિચાર લાગ્યા હોય તે સર્વનું કમશ: ચિંતન કરીને સરલબુદ્ધિ શાન્ત-ચિત્તવાળા સંચમી વ્યાક શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧

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