Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दसवाँ चरमपद]
[ ३१ इसी प्रकार (संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ वृत्तसंस्थान से लेकर) आयतसंस्थान तक (के विषय में कहना चाहिए।)
७९८. परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेजपएसिए संखेजपदेसोगाढे किं चरिमे. पृच्छा।
गोयमा ! असंखेजपएसिए संखेजपएसोगाढे जहा संखेजपएसिए (सु. ७९७ )। एवं जाव आयते।
[७९८ प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी और संख्यातप्रदेशागाढ़ परिमण्डलसंस्थान क्या चरम है, अचरम है, (बहुवचनान्त) अनेक चरम, अनेक अचरमरूप है, चरमान्तप्रदेश है, अथवा अचरमान्तप्रदेश है ?
[७९८ उ.] गौतम ! असंख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के विषय में (सू.७९७ में उल्लिखित) संख्यातप्रदेशी के समान ही समझना चाहिए।
इसी प्रकार (असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ वृत्तसंस्थान से लेकर) यावत् आयतसंस्थान तक समझना चाहिए। . ७९९. परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेजपदेसिते असंखेजपएसोगोढे किं चरिमे. पुच्छा।
गोयमा ! असंखेजपदेसिए असंखेजपदेसोगाढे नो चरिमे जहा संखेजपदेसोगाढे (सु. ७९८)। एवं जाव आयते।
[७९९ प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ परिमण्डसंस्थान चरम है, अचरम है, अनेक अचरमरुप है, चरमान्तप्रदेश है अथवा अचरमान्त प्रदेश है ?
[७९९ उ.] गौतम ! असंख्यातप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान चरम नहीं है, इत्यादि समंग्र प्ररुपणा सू.७९८ में उल्लिखित संख्यातप्रदेशावगाढ़ की तरह समझना चाहिए।
इसी प्रकार (की प्ररूपणा) यावत् आयतसंस्थान तक (करनी चाहिए।) ८००. परिमंडले णं भंते ! संठाणे अणंतपएसिए संखेजपएसोगाढे किं चरिमे. पुच्छा। गोयमा ! तहेव (सु. ७९७ ) जाव आयते।
[८०० प्र.] भगवन् ! अनन्तप्रदेशी और संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान चरम है, अचरम है, (इत्यादि पूर्ववत्) पृच्छा (का क्या समाधान ?)
[८०० उ.] गौतम ! इसकी प्ररूपणा सू. ७९७ के अनुसार संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ के समान यावत् आयतसंस्थान पर्यन्त समझनी चाहिए।
८०१.अणंतपदेसिए असंखेजपदेसोगाढे जहा संखेजपदेसोगाढे (सु.८००)। एवं जाव आयते।