Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दसवाँ चरमपद ]
संस्थान की अपेक्षा से चरमादि की प्ररूपणा
७९१. कति णं भंते! संठाणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंच ठाणा पण्णत्ता । तं जहा- परिमंडले १ वट्टे २ तंसे ३ चउरंसे ४ आयते ५ ।
[७९१ प्र.] भगवन्! संस्थान कितने कहे गए हैं?
[ ७९१ उ.] गौतम! पांच संस्थान कहे गए हैं। वे इस प्रकार - १ परिमण्डल, २ वृत्त, ३. त्र्यस्त्र, ४. चतुरस्त्र और ५. आयत ।
७९२. परिमंडला णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा असंसखेज्जा अणंता ?
गोयमा ! णो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता । एवं जाव आयता । [७९२ प्र.] भगवन्! परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? [७९२ उ.] गौतम! (वे) संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, (किन्तु ) अनन्त हैं ।
इसी प्रकार (वृत्त से लेकर) यावत् आयत ( तक के विषय में समझ लेना चाहिए।) ७९३. परिमंडले णं भंते! संठाणे किं संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए? गोमा ! सिय संखेज्जपएसिए सिय असंखेज्जपदेसिए सिय अणंतपदेसिए। एवं जाव आयते । [७९३ प्र.] भगवन्! परिमण्डलसंस्थान संख्यातप्रदेशी है, असंख्यातप्रदेशी है अथवा अनन्तप्रदेशी है ? [७९३ उ.] गौतम! (वह) कदाचित् संख्यातप्रदेशी है, कदाचित् असंख्यातप्रदेशी है और कदाचित् अनन्तप्रदेशी है । इसी प्रकार (वृत्त से लेकर) आयत ( तक के विषय में समझ लेना चाहिए।)
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७९४. परिमंडले णं भंते! संठाणे संखेज्जपदेसिए किं संखेज्जपदेसोगाढे असंखेज्जपएसो गाढे अणतपसो गाढे ?
गोयमा! संखेज्जपएसोगाढे, नो असंखेज्जपएसोगाढे नो अणंतपएसोगाढे । एवं जाव आयते ।
[७९४ प्र.] भगवन्! संख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान संख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है अथवा अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है ?
[७९४ उ.] गौतम! (संख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान ) संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, किन्तु न तो असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है और न अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ । इसी प्रकार आयतसंस्थान तक (के विषय में कहना चाहिए ।)
७९५. परिमंडले णं भंते! संठाणे असंखेज्जपदेसिए किं संखेज्जपदेसोगाढे असंखिज्जपदेसोगाढे