Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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भाषा .. - जैन परम्परा के अनुसार आगमों की भाषा-अर्द्धमागधी मानी गई है। तीर्थंकर सदा अर्द्धमागधी भाषा में ही उपदेश देते हैं और उनका प्रवचन समस्त जाति एवं देश के व्यक्ति तथा पशु-पक्षी भी समझ लेते हैं। आगम में यह भी कहा गया है कि देवता भी अर्द्धमागधी भाषा में बोलते हैं। ___ आचारांग की भाषा-अर्धमागधी है जिसे आजकल प्राकृत कहते हैं। कुछ विचारकों का कहना है कि आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की भाषा पालि और प्राकृत के बीच की कड़ी है। अन्य आगमों एवं प्राकृत ग्रन्थों में प्राकृत भाषा अपने विकसित रूप में मिलती है, किन्तु प्रथम श्रुतस्कन्ध में प्राकृत का सबसे प्राचीन रूप सुरक्षित है। इसकी भाषा की तुलना सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के साथ कुछ अंशों में की जा सकती है। आर्ष प्राकृत के अधिक प्रयोग प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध में ही मिलते हैं, द्वितीय में नहीं। प्रथम श्रुतस्कन्ध में परस्मैपद में 'ति' प्रत्यय उसी रूप में मिलता है, जबकि द्वितीय श्रुतस्कन्ध में वह 'इ' के रूप में प्रयोग किया गया है । इसके अतिरिक्त प्रथम श्रुतस्कन्ध के वाक्य छोटे और सादे हैं, जब कि द्वितीय श्रुतस्कन्ध के वाक्य लम्बे और अलंकार युक्त भाषा में हैं और गहराई से अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि द्वितीय श्रुतस्कन्ध की भाषा प्रथम की अपेक्षा कुछ विकसित रूप में परिलक्षित होती है।
नाम. .. ___आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों को ब्रह्मचर्य सम्बन्धी अध्ययन कहा है। इससे धर्म सूत्रों में प्रयुक्त ब्रह्मचर्य-आश्रम, उपनिषदों में उल्लिखित ब्रह्म शब्द
और बौद्धों के ब्रह्म-विहार की स्मृति ताजी हो उठती है। नाम की साम्यता होते हुए भी अर्थ में जो अन्तर है, उस पर ध्यान देना आवश्यक है। धर्मसूत्र में ब्रह्म का मुख्य अर्थ है-वेद। अतः ज्ञान एवं ज्ञानप्राप्ति की चर्या का नाम ब्रह्मचर्य है। उपनिषदों में
1. पमुच्चति (श्रु. 1, अ. 2, उ. 1) परिसड्डइ आदि (द्वितीय श्रुतस्कन्ध) 2. नवबंभचेर पन्नता।
-समवायांग, 9/51