Book Title: Sutrakritanga Churni
Author(s): 
Publisher: 
Catalog link: https://jainqq.org/explore/002426/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृलांगचूर्णि: | शमणाउसो से उप्पाले खुइए।एवं च श्वानुमए अण्णाहुटुसमणाऽसी ! से एवमेयं युक्तं // 8 // ------ - 643 लोगं च स्खलु मए अपगाह मए लोगो अविही [आव० नि. 7 0 1057 पत्र 1942] यथाटामा पटात्मा एवं लोकात्मानं हृदि आवृत्य मया सा पुष्करिणी इला,अथवा आत्मना झाल्या मया पुष्करिणीटिटन्ली बुइती नान्यत श्रुत्वेत्यर्थः।कर्म उदगं। कामभीगा सैओ, कर्मी दयाद्धि कामसडीभवति, कामसडाच्च पुनः कर्म,ततो अन् / पौंडीयाणि पोर-जणवता / वड़पाउरीयं राया अण्णासुस्थिया लै पुरिसर धामी शिकस्सू धमकाता सट्टो गैडळाणं उप्पाली अवमात संस्मनुत्तीर्य को मागै स्थानम् एवं च अखलु भएणिचाणाटी बुइतं ॥८लावं संवेण पोक्रयारिणीदिद्रुती समो लारिलो। इटाणि विस्थारिजा उक्तं हि-"पुत्वभणितं हि" कल्पमध्ये गा०] ------- 644 ईह स्खलु पाइण वा पडी वाउदीण वा दाहिण-वो सलिंग रष २॥-संलिए गतिया सणुस्मा भवति अणुपुठलेणं नोटोतं उdawun! तं जहा-आश्यिा वैगे अगारिया वेगे, उच्चागी वैरीणीभागीआ बेटी, कायमंता वैगे हुस्समता वैगे, सुनण्णा वैगे दुवमार वैगे, सुरूना वैग-३पा मणुयाणा एो र्ख २पु१ पुर। 4 महाहिम० श्यै द रटा 2 पु१ पु-२॥-लुरूना बैगे। Hएकमेयंच खाल खं२ पुरवृ०दी। एवमेवं चरखनु वं पु॥२ वा संग० यं // 3 लोग उपमहाा पूर पुश लोग उपउतारखं 2 | आयरिया वो अणायरिया वेरी रखे 2 पुर॥५.० गोला वैगे गीता गोला गो रखें।। 6 माया यो 2 पु पुसा माहिम खेर 11 125 8 हस्तचिन्हान्सालिराजवर्णक स्त्रपाठस्थाने रख 2 पु 5 पुर - प्रतिषु जाय इत्येव पाली पर्तते / एष एव पाठी वृषि-दीपिकाकडयं / सारख्या तो 'ऽस्ति।चूर्णिकला तु समय राजवर्णक सूनायो व्याख्यातोऽस्ति। उपलभ्यतेऽसौ चर्णिकदाहतो राजवर्णक सत्रमन्ट खोप्रल ॥३दी डाय' औप 7 // 10 0 पिया जगवद्पाले अजय पुरी औ५०॥. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैशिच मह एी राटा भवइ महताहिमवंत-मलयन्मंदर-महिंदसारे अच्वंतावसुद्धायकुलवंसप्तसूते निरंतररायनकरून णाविरलियंगामगे बहुजणबहुमाण पूलित सव्वगुणसमिद खातिए मुदिए मुद्धानिमित्त माउँ-पिउँसुमाए दयप्पत सीमकरे-सीमधेरे - खेमाकरे धरे मणुस्सिंदै जावदपिया जणवदपुरोहित सेठकरै उकरे जारपवरे पुरिसपवरे पुरिससी है प्लरिसासीसिसे पुरिसवण्ये पुरिसवरपीडीए पुरिसवरगंधहत्थी अड्डे दिले विसे विधिण्णा-विउलभवणा-सयणा - SAण-आण- वाहणाइण्णे बहुजण-बहुजात-रव-रतए आओगापौगसंपले विच्छिड्डिय परत-पाणे बहुदा सी-दास-गो-महिस-गवेनाप्पभूत पडिपुणणाको स-कोहारा ऽऽऽहाघरे बलव दुब्ब पचामिले ओहयकटयनिहयकत्यं मलियकंट्य उद्वियकंत्य अकरयं औहयस्तू मिहयसतूमलियसत्तू उद्धियससू निनियसन पराद्धयससू ववगटादुभिक्स-मारि-भयविप्पीछे रोमं शिवं सुभिक्रया मिलबि-उमरं रक्तरं पसरीमा विहरति / तश्स रणौ परिसाभवति-ग्गा उग्णपुत्ताभाग भोगपुताईक्खागा इयरवारापुता नासानायपुत्ता कोरल्ला को स्वपत्ता भाभहप्ता लेहगा नेहमपुत्ता सत्यारी सत्यपुत्ता लच्छवी लक्षतिपुत्ता माहणा माहणफुत्ता इडा इमपुत्ता सैणावती सेणावतिपुता | - सिंच एगतिए सड्डी भवइ / काम से ममा वा माहता वा पहारसु माणाएIRELESoलरे| धम्मेणं पण्णसारी का इमेणं * | 4 नु राय 31 उ4३ आब पसंद. रय१॥ 2 उपसं सर र मदा० // 3. पसाडेमाणे पु५ पुर॥४. शादिमा दिसा / / 5 मा मह पुन 2.6 पु२॥ ताना मागता जच्छई अच्छता पसत्यारा पसस्थापनासेगावला या युदपुर वृदयायला सवा संपधारिंसु खं२ 165 // ९वसरवंदाचयले लेगसंपुश्पुसा नाहोडभF४॥६१ अडाने सावर 13TTAR एसय 32 आया पर्वखे // 13 मा पुर.दी। एवं सरपुरदी०॥ 15-16 असतो असचिमचंद ख Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 91 -3-धम्मैणं पण्णवइस्लामी से एवमायाणधम्मयंतारी जहा मेसे धम्मसुंभकरवाते सुपण्णा भवति, महा-उबुं पाढताना अधे केस गमत्थया तिरियं तयारिय ते जीवे, एस आय पनवे कसिण, एस जीव जीवति, एस मए णो जीवति,सरीरे धरमाणो धरइ,विणाडम्मि येणी 13 धरइ एकसावं जीवितं भवति अहणाए पशहं णिज्जति अगणिझामिए सरीरेकवोलमणि अट्ठीणि भवंति,आसंदीपंचमा पुरिसा 14 15 शाम पागच्छति,एवं असती अविजिमाण,जेसि त असतो अविक्रामाणे तसिं त सुयक्वाटा भवति अण्णा भवहि जीवी रखे 2 पु९ पु२॥ - जीवी अन्नं सरीरं। ------ |--- ----- सम्हा लेणी एवं विपवैदेति रखें 2 वृन्दी॥ पु 1 पुर - अयमाउसो! आया दीहे सिवा हुस्सै ति वा परिमंउले - वास तिवा अस तिवा आयतीतिबा किण्हेरखें। विवावति वा तसे तिवा चउरसे ति यो आयते ति वा छलसे ति वा असति वा किण्डे शिवाजीले ति वा लोहिय-हालिह-सुकिले तिवा सुधेि ति का दुमिग तिवा तिते ति वा कडुए ति दामसाए ति वा अविल तिवा महुरे ति बा कवरवडे तिवाम3ए तिवा गुगए तिब लड़ए ति वा सिते ति वा उसिणे सिवा निद्धे ति वा नुक्से तिवा एवं असली 4 अविजमाणे (असंबिका ख 1 र 2 पू१. पूर०टी० ) जेसि तं ( अहवायं रखें।) सुमक्वायं भवति-अन्ती जीवो अन्नं सदी / - * लम्ब ने तो एवं उवनभति-से जहाणामए केइ पुरिसे कोसीओ अमि अभिनिहित्ता में उबक्सेजा-अयमा ठसी असी इपुरिस समिनिब्बड़े ताण उवदसतारी-भय मुहिले नायं पाठी वृति-दीपिकाकृती : सम्मत्ता जहाव के इखार इयं इसीय खरा कु हस्तचिन्हान्तर्गलसुत्रपाठस्थाने खंर पूपपु२ रा दोषु एवं रूपासूत्रपाठ उपलभ्यते - इझीटा, साओ आढ-अयमारसी।सं अयं अड़ जारलाओ आमलय-अटामाउसी करत भट आमजप.दहीली पीय-अयमा सोधणीट भयं उद.सी,लिमाईलो सिल-अयमाउसो जिजंटांकिonda, जहाणामतेम H दपुरम उक्ता खेलिरस भिणिहिताण उपदसे ज्जा-अयमा उसे खोयरसे भयं जेए; एवमेवनस्थि केइ उवद सेत्तारो भयमा सो आय। अयें सर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / अयं को सीए, पवामेव णस्थि केई अविना क्षाणां उवदशैति-अयमाञ्सीआया अयंसरीरे से उहाणामएकेइ पुरिसे मुजाओ इसियं अभिलिताण उवद-सज्जा-अरामाउसी / मुंजे अयं इसी या एकामेव मथि केइ पुस्सेि उवदंसे तारो-अयमाउसी! आता इदं सरीर से अहामएकैति पुरिस मंसाओ अढि अभिनिलहिताणं उवद-सेन्जा-अयमाउमी' ।मसे अयं भट्टी, एवामैव नस्थि के पुरिसे उबदसैतारी-अयमाउसी! आयाइवं सरीरं से जहाणामए केइ पुरिस करतलाओ आमलकं अभिनित्यट्टिताणं उवदं सैज्जा-अयमा उसी परतलेअयं आमलए, एवामिव णस्थि केइ पुरिसे अदंसेत्तारी-अयमाउसी ! आटा इदसरीर से अहाणामए केइ पुरिसे दहिओ णषणीय अभिनिवट्टित्ताणं उवदसेज्जा -अयमा सोनवानी अयं उदमी, (उद-सी तक मित्यष्टः / दनी वनीले पृथक्त तकमेवा वज्ञिस्यते इति भावः।) एवा मेव स्थि केइ पुरिसाव सरीरं से जहाणामए केइ पुरिसे हिलहिली तेल अभिनिता उवदसैज्जा-अयमाउसो तेल्ले अयं पिनाए, एवामेव जाव-सरीरं / से जहाजामए केइ पुरिस इक्खू तो खीसरसं अभिनियहिताणं उन दंसेजा-अयमाउसो! खोत रस अयं चौए, एवामेव आवसरी से जहाणा मए के पुरिसे अरणही अग्गिं अभिनितदेताणं उवदंसेज्जा-अयमाउसो! अरणी अयं अग्गी, एवामेव जाव सरीरं। एवं असती अविजमाणे (अस तो अविका खं१ ख 2 पु पु२ वृ० दी० जेसिं तं सुयक्रवायं भवति,त. - अन्नी जीवी अन्नं सरी, लम्हा सं लिच्छ।।. से हंसा एह, रणर छणह इहह पयह आलुपहविलुपह सहसकारह विप्परामुह, एताव ताव (ता जीवे अस्थि परलाऐ(वं 2 कद Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीते, मस्थि परे लोएलेणी एवं विष्पवैदेति(विष्यवैदेति स्वं ५-रखर पूद पु२ वृन्दीगा) मा सं०महा०-किरिया इवा अकिरियाइ वा मुक्कडे इता दुक्कडे इ वा कलाणए 3 वा पावए इ वा माहुइ षा असाहु इवा सिद्धी इ वा असिद्धी इ.वा निरए इ.वा अनिरए इवा / एधे से विरूवरूवेहि काम समारंभेहि विस्वरवाई कामभोगाई समारभति ( भिति र 8 रखे 251 // भोयणाए / एवं एगे (गे) वृ०॥ पाली (भिया जिक्खम्म रख 2 वृ०-दी०॥ पु-१ पुर)णिक मामगंधम्म पाणवैति, सं सहमाणात पत्तियमाणात रोएमाला साह सुयात सामगै ति वा माहने ति वा, काम खलु आउसो तुम पूथ्यामी,जहा-असणवा पाणण वा खातिमेण वा सातिमण वा वस्थेण वा पडिगहेण या केबलेण वा पाय पुंछोणा वा, तत्टोगे पूयाणाएसमा उहिंसु, लत्यगे पूयणाए कामईसु (काईसु खं 2 5.3 व दी०॥ - पला मेव ले जायं भवति-सम भवितामा अणारा अकिंचा अपत्ता अपुला खं१ ख 2 पूवृत्तिकृता नास्तीदं पदै व्याख्याता) अपस परक्तभोड्णोभिक्खुणो पाबं काम करिस्सामी,समाएते अप्पणा अप्परविरया भवंति, सयमा इयंति अन्ने हिम आदियाति अन्नं पिया ऽऽइयंत समगुजाति, एवामेव ते इस्थिकामभोगेहि मुच्छिया सिद्धां गढिला अझविवण्णा मुद्धा राग-दीसत्ता सट्टा, ते व 2 पु.१पुरते अप्पन अप्युसमुच्छेदेतिले तो परे(परं खं व 2.30 वी० // ) समुच्छेदेति ते जो अण्णापागाई भूता Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाइंसत्तासमुच्छेदोलापहीण पुबसंजोगासवंगपुरा)आयरियमगं असंपला इसिलेणी हलाएणीपाराएलराकामभोगसि (कामभौगहिदि सार पुर पुस कामभोगेसुवि० ख 1 वृ० दी०॥)विसा इतिपढने पुरिसज्जाती सजीवलास शरए ति ( १२ए बंद खरपुश्पुर) आहित // 9..." - 644. 1. यह खलु पाईण वा एकाइह मणुस्सलपोपण्णवगं पुडुच्च सति वियन्तै एतिया सने अभिगिहीतमिच्छादिहिणी भवति, उपलक्षणत्वादनभिगृहीला अपि केले, आर्या अपि खेत्तादिआयरिया,तब्बइरिसा अणारिया ।इकिला उध्यागी आणिच्चागोआ,जच्चातिएहिंमतवा लेहि अंता उच्चागीता, लैहि विणा आगो। नाशवः कायवन्तः वामन-कुबजा स्ववती / एकेका पुणो सुवर्णा वेगे भवदाला झ्यामावा षण्ण मला,कालापिंगळा वा दुबण्णा अथवा कालाअपि स्निग्धच्छायावन्सस्तेजस्विनश्च सुवर्णाः,अपदाता अपि फरुसच्छविणो दुबा| उक्तं हि चक्षुः स्नेहन सौभायंदन्त स्नेहन भोजनम्। बकरने हे परम सौख्य नखस्ने हे धनादिकम् // 1 // सुवा जामगे सुरुवा भेगा। इछिका सुरूवावुसता अही नपंचिंदिया नातिधूरा नातिकृशाश्व सुरूपा, इतरे दुल पार येवा चक्षुधोरीचन्तै ते सुरवा, इतरे दुरूवा। सैसिं राया भवति महतगह महाहिमले सको वेव मलयो वृच्छति।दरी सुरू।हिंदी सको तत्थ हिमर्षत-मन्या Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्चक्खी दिवती, मंदर-माहंदा परोक्वीसारं स्थैर्य पर्वतानां औषधि-रत्नसम्पच्च,महेन्द्रस्यापि गाम्भीर्येश्चर्य-विभवा कुल प्रसल- - स्वादमायदिन करोति अच्छतविरुद्ध पूर्वकमपितस्थ असडीविलक्षणसम्पनी चिरजीवी निरु पहृतं च तस्याराज्यं भवति।मात-पित सुजातं जहिच्छिले मणौरहे पूरयति दयालू दाणशीलो वाट्यप्पत्ती।सीमा मर्यादाकारः। क्षेमं परचक्रातिनिरोधी।सैऊपाली, यया सेतुं न्यतिवर्तन्ते आप एवं तत्कृतांमर्यादा नातिवर्तन्त भृत्याः केतुनाम ध्वज,केतुभूतः स्वकुलस्या आसीविसौ जहा दृष्टमात्रमेवमाश्यति एवं अवकारिणो रिणी अ आशमाश्यतिविग्यौ अमीस-दरगाहीय।पौंडरीय प्रधान गंधहस्थी जहा सैहा (सेस) हत्थी गंधण जस्सति एवं तस्स सत्ताबलं सारीरंच सुरंगच। पच्चमिता सामंता।केटका सामनदाई आकरा | डिवं सचल रज्जखोभादि / डमरपरचक्र परबले। - परिसतीति परिमा। ... उमा भीगा राइण्ण रखतिभा संगहो भवै चउहा। - - ------ आ रविव गुरुवयंसा सेसा जखतिआते उ // 1 // आव निगा रुश - भट्टा जोहान लाव भत्त्वमताप्तवयस्त्वात् कुन्ति ते भट्टपुत्राः, एवं सर्वत्र लेखकाः धर्मपाठका रक्षकाद्या / प्रशस्तानि कुर्वन्तीति - प्रशस्तारो लिच्छवि कुन लिप्सा जीविणी वा वणिजादि। माहणा बंभणा | जैसिं अण्ण वणियाबवहरंति ले इड्डिमतवणिआ इति इमा माह -हि-"अनुभवणपुत्राया." वि .स . .. इत्यादि। शाल ---- --- -- -- -----...-- - - ------- ---- -- - - - - तैसिंच of पातिए सड्डी भवन,धर्म शुक्षुर्वा धर्मजिवक्षुर्वा काम अबतार्थे, अतधृतमेव हि भायणाय नीयते Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रफुल्लसरी वा पत्तीवगादिजुत्ती वा वणसंडी"किमुबुच्छायां"ना, कामयमाणाहं प्राहिध्यामाससमयं परममाय इत्यैव समणापाडीमाठणा --- - हा पहारेंसु पलटोलि तथा तरेण नारदीयेन जयमलेन स्वप्रणीतन धर्मेण पण्णवरासीत एवं सम्प्रधा8 लदन्तिके गत्वा ऽह से आमन्त्रणे, अत्यर्थं जाण यद्वक्ष्यामः,भया बान्ति इति भयवातारः,तेतु राजानः उनाद्याश्च तस्माता महा मैसै घम्मे माएप प्रत्यक्षः सुहअक्खा तै सुपण्णत्त कसरी ? लौगायलधम्मी, तेषां आत्मा विद्यते न तु शरीर दर्थान्तरम् शरीरमेरेमातल्परिम म उड़ पादलला अधे के सागा तिरिय तया, एतावाने न जीवति (जी ति)। एस दाविजलि पाजतो प्रकारोकसि मास्न शारीरमा माजीव जीवइति सरीरे जीवति, अव्य) शारीरे जीवति, शरीरादनान्तरमैव जीवितम् तबिना जीवविनाशी,बात-पत्त-मणश्य शरीरं त्रिवियामसुत्रवर्द्धलेतीघामेकतराभावेशरीराभारतदभाव चाऽऽत्मामाव:एतावतं जीवितं यावच्छरीरमविकासमा आहाह एतावानेव परमात्मा, त्याविगतं शरीरम्"[ ] आदET पहिं णिज्जइ, आत्य यस्मिन् सुदो दहन्ति तादहणं स्मशा लम् परेहि चाहिं पुरिसैहिं जिला अगणिज्झामिए सिरीरे] बौती पारेवओ आसनं ददातीति आसंदी आसंदोधारा चत्तरि गाम पर पन्तिमंचा पि पाणा आणहिीयाद पुनरामा विद्यारी तैन बारीरे छिद्यमान यमाने वानिरसन्नुपलभ्येत, वृक्षविनाश इकुनिवत्, इत्येवं शनी गईम्सतः शरीरदाहेऽपिसति छदे वा नदोषः पारामिकोऽस्ति अविद्यमानी जीवा अनुवा शरीरादूईमविद्यमानी जैसिं तैसि तु सुभक्र नं। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किमाव्यातम्य - था अण्णो जीवौ अण्णसरीरंकलरमादप्पेवा १सअक्रवातं। -- - --- -- जी विविध पवेदिति- अरामा उसी! आयादीहेलिवा, यदि शरीरादर्थान्तरमात्मा स्यात् तेन तस्य शरीखत् संस्थान वर्ण-गन्ध-रस-स्पा उपलभ्येरन न चोपलभ्यन्त इह यदस्ति बारीरादर्थान्तररूपं दी हंबा हुस्संवा जाव अडसं वा,किण्हे लि जावनुक्रव ति एवं सापच्छीरादन्यो नास्ति। कहं ? सै जहाणा मए केइ पुरिस कोसीओ असिएषमादिभिदृष्टान्त:शारीरदाहे सलिछेदे वा को दोषः पारामिको ऽस्ति अविद्यमान जीवे? अथवा शारीरादूर्द्धमावद्यमानी जैसि तं सुअक्खातं किमाख्यातम् 1 यथा अन्यी जीवोऽन्यच्छ रीरं तम्हा मिच्छा। यरमाच्चैवं मरमात से हंसा हगध० पयध० / उहंब-लल मौदत (मोद च) साधु शौभने / " सार्ष ते जीवा न "भवेतिथि परेलोरा एवं वादियोगी विप्पवेदिति विविध प्रवेदयन्ति विप्रवेदयन्ति [किरिआवा अकिरिआइवा, यद्यात्मा मृतः परलोक गच्छेत् सक्रियः क्रिया कर्मबन्ध इत्यनान्तरमायै च कियावादिनः सैसु सुकर टि-दुक्कड] विवागो भवति / सुकडाण कला जफ जविवागो [दुछडा पावफलविवागा सुकउकारी च साहू, दुक्कडकारी अमाधू। सुकृतकल्याणाच्य साधीः सिद्धिर्भवति, विपर्ययवत् असिद्धिः असिद्धस्सव छडकारिस्सगिरयो, तरस्स अगिरयो सेवामैती एवम्प्रकारा:स्वकर्मजनिता: सुकृताद्याः फलविपाका न भवति |AQवं संसार स्वकविहित अभद्दामा: विरूबरूवेहि कम्मसमारंभेहिं प्राणवधा:अथवा स्वयं परैहि उभयथा च विरूवरूबाइंसहाईणिकामभोगाई समारभलि Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्जयन्ति रक्षायन्ति "भुजपालना-ऽस्यववहारथी: "इलि भोजनार्थ भोज नायव एवं एरी पाराणि प्रागल्भत पृष्टाः, अण्ण जीव अण्णे हारी, जाति-स्मरण-थापा भिलासादिएहि दिलुतहि एत्या विदितं अन्यत्वं दरिसिजमाणं असदहमा स्थापि धृतराः जिलज्जा मा धम्मं पण्णवयंति कथमितियथा नान्यःशरीरादात्मति। त सहमाणा तं पत्तिअमाणा साधु अक्रवाता भारख्याती त्या ख्याताः कामं कमु इच्छायाम्" इच्छामि देवाणुप्पिा! जं तुम अम्हाण तज्जीव लस्सरीरको पक्रवौ अक्वाली, बहरहा वयं परनोगभएण हिंसा दीणि सुहसाहाणि परिहरमाण टुकिवता आसी,संपति णिस्संकित प वलिस्सामो, बहरहा हि मन्नं मंस परिहरामी उबवास करमी रित्ययं चेव, अश्माच्च कारणात् वयं भाषता प्रत्युपकार कुर्मः आयुष्मन्। पूजया मकेण? असणेणवाकवत्थेण एक तत्थ [ए] पूजणाए आउटिंसु, एसेहिं चेव असणाईहिसयणा-Sऽसणवसहीहि वालिस्थ एो पिकामसु, जिका में णाम पज्जतं,त एवं सावपुर जेहिं समणमाहीहि गाहिला सेले पूरन्तिास्माद् बुद्धिः-यदि नास्ति परजोगी किं ते पव्वता१, उच्यते,लेसि लोगायतियाण पाम डोचैव जस्टिा, ते पुण अण्णेसि केसिं गामलिंगमाईण सच्चमलिकणिधाम सोतुं भणति लेसि अतिए पल्लतुं। समा भविस्सामी, अणारा जाव पावं कम्म जो करिक्सामो एवं सम्पधार्य तदन्तिके प्रवजिता लोकायत आदत्ता पतित मोतुं च पच्छा सितंचैव रुचित। अथवा लोकपक्तिनिमितं सुखमात्रपाषण्डमाभिव्य विचरिष्यामः, पुङ्गलमातिपुत्रवत् / किञ्च-चरणदिनिङ्गमा 'श्रयन्ति, लोकपतिनिमितं (पक्तिनिमित) च प्रच्छन्द्यन्त्यात्मानं पयामी, एन्वतुं समणा भविस्सामो अमारा जाव पावकम् जणो Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करिस्तानो, पव्वव्या विय संता समेव वादंवदंतियथा-वयं अणारा अकिंचा जाव पावकम्मणो करिस्मामी। उक्तंच-अतीते सरहस्य" - इत्यादि / एवं ते कुकुडा पापण्डेमानित्य एमेव पचन-पाचममादि एसु हिसासु पावकम्मेनु अप्पणा अप्पारविरक्षासयमाइयंति, जवंत अगाराई सचित्तकम्माई हिरणादियं लि अदत्तमादियंति, अण्णीहि अादिआवेति, आदियंत अण्णे] समणुजालि| सालाब हला अजिसिदिआजहा पयजादीणि तिविहकरणे णा SS दिअंति, एवमेव इस्थिकामा पवणा देसु इस्थिकाइएसु कामसु मुच्छिता,जहा मुच्छितो किंचि जाण इ एवं नै मुच्छिता इव न तत्र दोषान् पश्यन्ति ! गृहाः ल भिलाषिणःगन्यिताःबद्धाः, न लेभ्योऽपसर्पन्ति अज्झौववाती लीनाभिनिवेशा कामस्य वित्तं च वपूर्वयोति मूलम् इति कृत्वा | कामसाधनस्वपि लुळा तेषुलासुच रक्ताः तत्स्यनीकभूतै विरामनसि चकाउपकार (1 "यति,परेहिया कृत्वाताम्यामेव राग-द्वेषाभ्योछादितममरत्वादब्धाः (दन्धाः) जी अप्पाणं समुच्छेदिति,कुतः१ काम-भीगतृष्णा पङ्कात् / पराः तच्छिष्याः तब्बइस्त्तिाई।णी अण्णा पाणाई एक समुच्छेदिति। अहवा-सैसिं लोगाइलिगामसारी चैव प्रस्थि, किं पुण मोक्यो ?, टन नयुक्त वक्तुं नौ अपाणे समुच्छेदिति'उच्यते-केणापि प्रकारेणासझावनेनेत्यर्थ समुच्छेदो नाम विनाशः, अभावकरणमित्यर्थः। एवं विप्रल पत्तो ऽप्यात्मनः अभावंकर्तुमसम्म कथाम मनूकम्-"जातिस्मरणात् स्तमाभिलापात पूर्वा-ऽपरागमना-SS Tमानात्" C ] इत्येवमादिभिः सरीरी जीवा ते एवं महामहिमोहिता पहीणा पुबसंजोगं गृहावास णातिसंजोग वा आरिओ समम्मी , Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसारी यानीव इतिभखामा अहमट्टारएहि भणिती सती अन्योऽमूसी: इति उपप्रदर्शनार्थीहब्बं गिहवासो, जहा-“हत्विं पिताम्वार ------ - 7म विना पारं। प्रव्रज्या फलं वा पारलौकिक वा मागी मोक्षी वा अंतरा कामभोगासि पंकस्मि विसणि गादिदुर्गति संयसि वा / पदमै पुरिसज्जाले // 9 // ------- - --645.1 अधिवरे दोच्चे परिसजाए पंचमह भूलि ले ति आहिज्जइ-इह रखनु पाईणं वाक स्लैगतिया मणुस्सा भवति अणुपुष्वणं को ज उवषण्णा जहा- आरिया वैगे अणारिया वेग एवं भाव दुदारवा वैगे। तैसिं च मह एो राया भवति महया एवं चैव शिरवसेस जाव सेवावतिपुत्ता / तेसिं च णं एगतिए सड्डी भवतिकामं तं समा य माहणा य पहारसुगमणाए -- - तत्थडणयरेण धम्मेण पसत्तारो वयं इमै धम्मैण पावइस्सामी-से एवमायाणहभयंतारो जहा मेसे (मेएस - व संशाधने सुअवाले सुपण्णसे भवतिाह खलुपंच महब्भूता,हिंगो कज्जइ किरिया ति वा अकिरिया ति वा सुकडे तिवा इकडे ति वा कल्लाण लिवा पावए सिवा साडू ति बा असाह लि वा सिद्धी लि वा असिद्धीति वा शिरए ति वा अनिरए ति वा 'अवि यं तसो लगमायमति. - - - - - मंच (वापिहुई. सं 2 पुष 12 1) पदुद्देसैणं पुढो भूत समवात आणेजा। जहा-पुढवी शो महत्भूते आ35 (67 बीए मg Yu) 1 धाव मे 2 // 2 °सज्जाले सं१व २॥३पंचभूलित रख 2 / 4 हस्त चिन्हार्गलसूत्र पाठस्थाने खं 241 पुर प्रसिछुजाव इत्ये लावदेव सूत्रपाठो Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -दोच्चै महाभूते सेऊलच्चेमहभूले पाऊ महमूत आगासे पंचामे महल्भूत इच्चैते पंच महसूया अणिम्मिया अणिम्मिया (अणिम्माविता - -- अक' वृन्दी०॥) अकडा पार (शौ कत्तिमा) कित्तिमा (6मा यो कयगा अणा खेप वृन्दी० 1 माणी कडगा अणा खं रापपुर।)अणादिया - अणिधणा अवंझा अपुरीहिता सकतता (संतता सामता / तो 1 पू.१ पृ-२ -दी-) सामतााआयचट्ठा पुण पुगेएवमाहु-सती पस्थिविणासी, असतो गास्थि संभवी, एतापरतावं रब 25 लाव जीवकाए, एताव (एता खालाव अस्थिमाए एताव लाव सब्बलोए, एतं मुहं लोगस्स कारणयाए, भावअंतसो (अविर्यतसीख पुरापुर) तणमायमति से किणकिणावेमाणे हणं घायमाणे पयं पयावेमाणे अवि अंससा --अवि यससीख र पुर) पुरिसमवि विकिणिसा घायइत्ता एeerवि जाणेध गास्थित्या दामी। -------- वे जी एवं विप्पडिवेदेति, तंजहा-किरिया इबाजाव अणिरए इवा एवं ते विख्वस्वैहि कामसमारंभहि विरुवरनवाई कामभोगाई समारभति (रंभति वं भायणाए। एवमेव ते अारिया विप्पडिवण्णा तं सहह माणा तं पत्तियमारा जाव इति तेणी हवाए -- पाराए अंतरा काममोठीसुविसण्णा, दोच्चे परिसज्जाए पंचमहभूतिए ति आहित ||10|| ------------- पू.-२. अधावरे दौच्चे पुरिसजाए। इह खलु पाईणं वा एक सतगतिया (एक इति चतुःसयाद्योलको अक्षराङ्क: 1) -- सिंगतियानी ( इति पञ्चमद्वया द्योलकोऽक्षराङ्कः / / ) माव से एवमायाणह भयं सारौ ! प्रहा मैसै धम्म मुअक्वात कलरे धम्मे / / प्रय एतच्चिाम्हान्तर्गतसूत्रपाठस्थाने खर आदर्शे जाव इत्येव पाठीवर्तते ।पुरपूर आदर्शयो जाव अनिरए लि; इतिपाठी वर्तते।। ---- 16 // एतचिन्हान्तर्गल पाठस्थाने खरपुपुर प्रतिघु जाव विसपण त्येव पाठी वर्सते || Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचमहाभूइएाइह रखनु ,वालु इति विशेषण। किं विशिमष्टि, साडूय सिद्धान्त:-सोहणी कज्जइ किरिआ इवा भकिरिआ व वा, किया कर्म परिस्पन्द इत्यमर्थान्तरम् / सद्विपर्ययः अकिटा, अनारम्भः अवीर्य अपरिस्पन्द इत्यमर्थान्तरम् / सुदु कडं सुकउं. दुहु कडं दुछडं / सुझउमेष कलाणं पापमितरं शोभनं साधु, इतरमसोमण / ईप्सिता मिष्ठान सिद्धिः, विपर्ययः असिद्धिः निर्वाण वा सिद्धिः, असिद्धिः संसारः।। संसारिण जिरए तिवा, अणिरयःनिर्यग्योन-मनुष्याऽमराः। स्यात्-कथं महाभूतान्यचेतनानि किया कमकुर्वते १,उच्यते, सत्त्व-रज-स्तमौत स्तमीभिः) प्रधानगुणैरधिचितानि कर्म कुर्वते / उतं च | सत्त्वं लघु प्रकाशकमिष्टमुपरमकं चलंच रजः। गुरुवरणकमेत AR:प्रदीपवच्चार्थलो वृत्तिः // 1] सिांख्यकाका. 13] इत्यादि। "स्लमां साम्यावस्था प्रकृति प्रकृतिः प्रधानमव्यक्तमित्यर्थान्तरम् लित्र मोबाहल्या क्रिया भवलि सस्त गर्वावरणक कृत्वा आकृयापरवालासस्वबरल्यात मुबारजस्तमोबाहल्यात दक्कडं / एवमन्यान्यपि कल्याणा-सा-सिद्धि-नरका दीनि अपास्तानि सत्वबाहुल्यात् / रजस्तमी म यदि स्याद् आप येतसी तृणस्य कुब्जीकोऽपि पुरुषोऽमीश्वरः, गुणकृतं तु फल भुते / उक्तं हि तस्मात् सत्संयोगादा वेतनाबदिव निमसिनावदवनिमत्वकृतिगुणकर्तृन्सप्र०)चेतना चश्व भाति लिङ्क ल्वाप्रकृतिपूर्ण 'कतृत्वे च भवत्युदासीनः मु) गुणक तत्वे च तथा अषि भवत्यु दासनः॥॥ सायका० मा० 2] . Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T- ------- संच पदुद्देसैण पदामामुद्देशः पदैर्वा पञ्चभिरुद्देशात्वाच्यस्यसमवाटाणं समवाया,स्यात् कथं समवायः प्रधानत्वात् / लो) मायका० का० 22] उर्फ हि-"प्रकृलेर्महान महतोऽ हड्डग प्रतिलोम महारः प्रधानमैव समवैति अनिर्मिताः मकेमविदश्वरेणान्येन वा, -अभेन्ट्रधन्वादिवत स्वयं प्रादुर्भूताः अमिर्मियाम मिर्मियाः म निर्मितव्यम येषाम सत् कार्य सेवामभूत एव काप्ठादग्निनिर्मीयते मपिण्डाच्च घटः पट इत्यादि,भैर्व साड्डयामा मारणे कार्यसनावात्महि किञ्चिानामतव्यमिति अकडा णो कहा, यथाऽन्येपामकृतकमा का एवमकडायथा च घट: कृमि: एवं णो अकलिमा।। अकृत्रिमत्यादेवच अणादी अनिधिणा (जामताभ मो० वा०1०TA सत्ता भ७ मु० // समू-सा म भवंतिम सती अवध्या मान्या न तेर्धा कश्चित् स्वामी प्रवर्तत इत्यतः अपुरोहिताः पुरुषार्थ सुस्वतःप्रवृतिरेषा आहहि बसविवृद्धिनिमित्त क्षीरस्य यथा" [साइयका का०५] -(वत्स प्रवृद्धिनिमित्त पुणवत्सविवृद्धिनिर्वृतं मोठवा॥) अथवा ----- वेषां कधिदेकं इन्द्रियाणामिव चक्षुः प्रधामन स्वविषयबळवन्ति हि भूतानि / सकलेला नाम सासत सिस्वकातभावः स्वकतंत। - आयच्छ? डा) पुणेगे उक्तानि भूतानि भूतकारणानि चाव्यक्त-महदहङ्कार-तन्मात्राणिस्यात् क्रिीया प्रवृतिरिति,तबुच्यते, पुरुषार्थःस एवैधां पत्त यदर्थ नातिवर्तते, असावपि सन्नेव, सत्त्वेऽपि प्रधानवत् शाश्वतःसतथ्य नास्तिविनाशःपरमाणुवत् असतः सम्भवी नास्ति खरविषाणवत् / आहहि असदकरणादु पादान;"(सांडय का का०९)। एतावताव जीवकाएति,किमिति,म कशिदुत्पते वादिनस्यलिवा, Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मापिससरति वाल त्यात कूटस्थवदवतिष्ठते / एताव (ताव) अस्थिकीऽस्ति (अस्थिकातीयदस्ति सदेलावदेव,प्रधान-पुरुषावित्यर्थः। एताव लोक .. ताव सब्बलो प्रधान-पुरुषवेवच लोक एकमुह कारणमित्यर्थाः,कारण भावः कारणता अिवि अन्तसी प्रधान-पुरुषो व्यवस्य + तृणासादपि न किञ्चिदन्यता प्रायत इति। परमात्मा कारणात्मा तुकरोति तत्फलंतु परमात्मा भुढे लद य एतत् प्रकृति-पुरुषान्तरंजामीले सकिणकिणा वैमाणे, जी किण किणावति च सोऽनुक्तोऽपि ज्ञायते अनुमोदृतऽपि करण-कारणाई पुणी भारियतराई लैण साई गहिसाई ।कंच - जो रवाइमाणुस मसं अब कत्ती स मेलेति / [ - ]----- एवं पयण-घालणाई पि।एलेहि पुण तिहि वि णव की डी ओ गहिताओ। अवि अन्तसी पुरिसमविविक्रिणिता० एत्थ विजाणे येत्य होसी / ले गाएत) विप्पाडवैदेलिसवे सिद्धत मोतुं अण्णात्य किरिआ दिवा अकिरिया ति वा महा संवसिद्धले वुतं सहाकिरि --- -- ---- लिवा अकिरिटा 2 तिघामुत्तरम् - अत्यन्तानुपलब्धः प्रधानमेव नास्ति,सत्कार्यमप्येकान्तेन मास्ति कस्मात् ? यस्य च भवति उपनमधेरमु सपलब्धेश्व,तथा कारणात् कार्यस्यामन्यत्वात् इत्येवमादिभिर्हेतुभिः साङ्मयसिद्धान्तस्योत्तरम् एव ती विरूवरूवहिं कम्मसमाहि जाव भी अणाए एवं एो मामा धम्मं पण्णवेति, आHIS पायघामका लथापिनिनव्जा मामगंधम्मपण्णवेति। यद्यकर्ता तेन पण्णवणा जुलते, बुद्धेरप्यचैतमत्वाद घटस्येव प्रज्ञापनासामर्श नास्तीति। ततस्तदुपदेशद्रप्रभावाताकासंच खलुभी! परली गणिमित्त तै ग्रहावका: - Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साड्यात समण-माहणा पूएंसिनतु प्रत्युपकारार्शम् लोकायतिकवला जादणिकामइसा पुत्वामेव सैसिंजातं भवतिधम्मवाए पवयंतिजाव पावकार शो करेरशामी समुहाए से अप्पणा अविरताउदेसगादीनि प्राप्तियति,एवं आव कामभोगसैर्यसि विसणी दोच्च पुरिसजाले // 10 // 646 1. अहावरे ईसक र पुर फूसाअहावरे सच्चे पुरिसळाले इस्सा (ईसर)काशिण ए ति(०ए इति खो आ -हिज्जइ-इह गलु पादीणं वा 4 मगलिया मणुम्मा भवति अणुपुब्वेणं लौयं उबवना। तं०-भारिया बेटी जाव सिंच महसे एगे राया भिवति जाव सैणाबलिपुत्ता। तसिं च ण एालीएसडीभवति, काम तं समणा य माहणा य पहारिसुगमणाए प्राव जहा में एस धम्म सु अक्वात सुपण्णत्ते भवति। इहरवलु धम्मा पुरिसामा दीया पुरिसोत्तरीया पुरिसप्पणीया पुरिसपज्जी० ख १५-२०ट्टी सादीया पुरिसुस रीला पुरिसप्पणीया पुरिससंभूता पुरिसपजोख 2 पु.१॥ या पुश्सिप्पणीया पुरिसोत्तमीया पुरिसपजीतिता पुरिस अभिसमण्णागला -पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति। से जहाणामते गंडे सरीरे जाते सरी३'बुडे (संखुड़े रख 6 // ) सरीरे अभि समाणा गते सरीरमेव अभिभूय चिति, एवामेवधामा पुरिसादीया जाव पुरिसीव अभिभूय चिट्ठतिासेजहाणामए अरई (अरतिए सि रखे // ) सिया सरीरे जाया सबीरे अभिसंखुड्डा सरीरे अभिसमणा गला सरीरमेव अभिभूत चिलिएवामैव धम्मावि परिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूत चिटुंति * on एतचिन्हान्तर्गलसूत्रपाठस्टाने जाब इत्येव पाठः रखें 2 पूपू.२ प्रसौ वर्तते / / . M usiaslation Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सज्हाणामए सम्मिए सिता पुढवीजाएपुढवीसंखुड्डे पुढवीअमिसमण्णणगए पुढवीमैव अभिभूतचिंति एवामैव धम्मावि पुरिसादीया जाव पुरिसमेष -- -अभिभूततितिासे पाहाणामए सम्वेसिया पुढविजाए पुढविसंबुडे पुढविअभिसमणगए पुठविमैव अभिभूय चिति, एवामेवधम्मा वि -- पुरिसादीया भाव पुरिसमेव अभिभूय चिति / स जहाणामले पुक्रवरिणी सिसा पुढविजाला आव पुढविमेव अभिभूत चिट्ठलिएषामेवधम्मा वि - पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूतचिट्ठति से जहाणामते उदगापौरखले सिताउदगजाए जाव उदगमेव अभिभूत चिटुति,एवामैव + - - धमा वि पुरिसादीया जाव(जाब चिट्ठति / एवं उदगबुब्बुए भाणियन जंपियखं 2 पु.१ पु२) पुस्सिमेव अभिभूत चिटुंलि / से जहाणामए उपबुबुए सिया उदगाए जाव उदगमेव अभिभूत चिट्ठति एवामेवधम्मा वि पुरिसादीया जाव परिसमेव अभिभूय चिट्रलि जपि यइमं समणाणं णिगांधाण उद्दिष्टुं पणीयं वियंप्रियंदुवालसंगं गणिपियं,तं जहा-आयारी सूधगडी भाव दि -दिवाली,सबमे मिच्छा, ण एवं नहियं ( लेलं आ ख२ पु१ पु२५) एयं आधुत्तधियो वन सच्चं हम बहियं इमं आहालहियं आसहितं - अहसहियं पृ.१.पू (अत हालहित रव 2 पुप.पुर) ले एवं स कुन्नति, से एवं समा ठति (सह संठ रखपुर पु-२॥), एवं सन्न सोउवयंलि, --- सोनवयंति वृ० दीना, तमेवं ते वजातीयंदुक्ख पालिरणादिउ० व 1 // ) उट्ठतिसउणं (सउणी खे१ख 211. पुरव दी.॥) - पिंजरं जहा।----- Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ----से णो एवं विप्पडि वेदेतिल महा-किारया वा जाव अणिरए इघाएवामैवते विरूवकवेहि कम्मसमारंभेहिं विश्वरवाई, - कामभोगाई समारभतिर रेभित्ता भी रखें 3 4) भौयणाए। एतामेव से अणारिया विप्पडिवना त सद्दहमाप जावइति ले णो हत्याए णी पारा एअतरा फार्म-भोगेसु विसणा(सपणे ति ख र पु.प. पु.२॥ सच्चे पुरिसजाए इस्सरका रणिए सि आहिले // 11 // 646 1. अहहरे सच्चे पुरिसे इस्सरकारणिए ---------- इधधम्मा पुरिसाच्या धम्मा स्वभावाः, जीवानाम जीवाला चाला जीवधाः सन्म-व्याधि-जरा-अरा-रोग-शोक-सुख-दुःख जीवित-मरणाद्या : (अजीवधर्मा जन्म-व्याधि-जश-रोग-शोक सुख-दुःख-जीवित-ारणाद्यो:) मजीवधर्म अपिरमूर्तिमताम)मूर्ति न्धि-रस-स्पशनि-अमूर्तिमला आका-विकालादीनाम दिव्यन्त इलि दिशा परा-5 परत्वा - नदिक्का लस्य शब्दस्य शब्दगुणमाका शम् , कसरः पुरुषः योऽसौ परमेश्वराविष्णुगरीश्वरो वा आहे हि-पुरुषः कर्म कर्ता, या चाहुः- ईश्वरात सम्प्रवर्तले - 1 अपरे द्या:-"एका मूर्तिस्त्रिधा जाताo"[ - ]इत्यत: पुरुषादीया। पुरुषप्रणीत पुरुषेण प्रणीयमानास्तान प्रकारानापद्यन्ले दीरवना पुरुषोत्तमीयाः स्त्री-नपुंसी:पुरुषःप्रधानः पुरुषेण प्रदर्शिताः प्रद्यौतिला:, यथा प्रदीपेना दिल्येन वा घटापुरुषेणाभिसमन्नामलाः सर्वगतत्वात् पुरुषेण आभिमुख्यन अनुगला:,सर्वगतत्वाद् मृणाल सुवन्न पुरूषमुद्रस्य क्लेसे, Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रलयकालेऽपिपुरुषसेवावलिद्धं से, अलौम्मिवला आहहि - अह सलिलम्मि सरेगा 'दृत्तान्तः डे,जहा गडे सरीरे जासी सरीरे बुड्ढे - --जाब अभिभूय चिट्ठइ, यथा तं समानादिभिः क्रिया विशेषैः समितं सरीरमेव अभिभूध चिइ.एवामेव धर्मा इस्सराईआ। एवं सेसाई पि / - ------ जंपियइम दुवानसंग गणिपिडयां, तं जहा-आयारी जाव दिट्ठीवामी सबमे तंमिच्छा,अनीश्वरप्रणीतत्वात येहि ईश्वरं न -प्रतिपद्यन्ते सतः स्वच्छन्दविकल्पितानि शास्त्राणि प्रथयन्ते वयं तीर्थकराः" इति मूढानांच वची सट्स ही रविशेषात् यच्छीपलब्ध उन्मत्त विद् असत्यम् असत्यत्वाद् अतथी अलध्यामित्यर्थः। यथा तथ्यं आहतधिया एकार्थवाचकानि वा पदानि शाकेन्दवदव्य अनविशिष्टानि। इमं सच्चाइमं ईश्वरकारणीय दरिस सच्चं आधितधियं / त एवं मोहाः महिलाः सणं कुर्वन्ति,कातुं तथ्येव ठवेति सुइ ठवेंति सोठति / लेसिएवं मोहमोहिला मोह पुरस्सरी रागीभवति तस्मिन्छासनै तड्डिष्टेषुच द्वेष रागद्वेष राग-द्वेष-मोहाश्वकर्मबन्धहेलवः कर्मणा संसारी खंच तेनोच्यले समेव से लज्जातीयं दुःश्वं नातिवर्तन्त स पंजरंजहा। लेणी विप्पाउवेदेति, ईश्वरं मुक्त्वा अन्यतः किरियाति वा करे व धाम गिलियवादीइह स्खलु दुवै पुरिसमाताकिरियाणां] अकिरियाणं च हेतु एवं ईश्वरस्योपारभर छोढुं विर बसवहिं भगति यस्य वृद्धिन लिप्येत हत्वा समिदं जगत्। आकाशामित पढेन न स पापन लिप्यते // 1 // --- ---..] Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसेऽपि परलीगकरवी धर्मबुद्धया ईश्वरं भकृया पूजयन्ति जाव विसणा तिच्च पुरिसन्जालगाया ---------- -- ----- 647.1. अहावरे व पुरिमजाते जितियाबादे (णियातितालिए खेद पु.६ क्लियतिवाए ख 2 पु.२॥ ति आहिजति -इह खलु पाईणं वा एक र तहेव जान सेवावलिपुत्ता वा / लेसिं चातिए सड़ी भवडा काम सं समणा य माहणा यसपहारिंसु गमगाए मासिकरवलि खं खं 2 पु.१.पु.सा.) --जाव जहाम एस धम्म सुभकरमा सुपण्णते भव / इह खलु दुवे पुरिसा भवति-एो पुरिसे किरियमायक्वंति एगै पुरिसे शोकिरिय -मायोति जे य पुरिस किरियमाइक्खद् जे य (यसे पुखं श) पुरिसे शोकि रियमावूक्खइ दो दो वे ए पु० रख १॥)वित पुरिमा तुल्ला एण्डा कारणमाROOT | बाले पण एवं विपडिवैदेति (विप्पउिवेदेति पु-१ पु.र. खे२॥ कारणभावण्णेरवणे,तं- जीड- हमंसि खंद वृ. दव०॥) - अहमसि दक्खामिवासीयामि वा(वातिप्याप्ति वा पीडामिवा परिलप्यामि वा जरामि वाह खरवृतहाशझरामिवातिपाति वा (दक्खव वा जाव परितप्पडबा खं 2 पृ.१.१.२) पिडाति वा परितामिका अहमतमकासी,परो वाजं ब(अहं तमकासी ख 1 वृ० दी दुक्खति वासीयलि वा जूति वातिप्पति वा पिसि वा -परिलप्पतिवापरी एसमकासि, एवं से बाजे सकारणंवा परकारणं वाएवं विष्णठिवेदेखि कारणमावण्णा मेधावी पुणएवं विप्पडि वैदेसि कारण मावणे -अहमसिक्वामि वा(वा माव परित. खं 2 पु पुरा सोयामि वा जुरामि वा तिप्पाप्तिवा पिडामिषा परितप्पामि वा, णो अहं एलमकास परो वाजं टुक्रवति वा जाव परितप्पति वा णी परी एतमकासी,एवं से मेधावीसकारण वा परकारण वा एवं विपाडिवैदेलि कारणावण्णे। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "पंचमहत्भूपाइह खत्नु ,रवलु इति विशेषण। किं विशिमष्टि, साडूय सिद्धान्त:-बहिणी कज्न किरिआ इवा भकिरिआइ वा किया कर्म परिस्पन्द इत्यनर्धान्तरम् / तद्विपर्ययः अकिटा, अनारम्भः अवीर्य अपरिस्पन्द इत्यमर्थान्तरम् / सुदु कडं सुकउं, दुहकई दछडं / सुकमेव कलाणं पापमितनं / शोभनं साधु, इतरमसीमणं / सिता मिष्ठान सिद्धिः, विपर्ययः असिद्धिः / निर्वाण वा सिद्धिः, असिद्धिः संमारः। संसारिण लिए तिवा, अणिरयःनिर्यग्योन-मनुष्याsमराः। स्यात्-कथं महाभूतान्यचेतनानि क्रियाकमकुर्वते १,उच्यते, सत्त्व-रज-स्तमोमि स्तमीभिः) प्रधान गुणैरधिष्कितानि कर्म कुर्वते ।उतं च-- - सत्त्वं लघु प्रकाशकमिष्टा परम्भकं चलंच रजः। गुरुवरणकमेत तमप्रदीपवच्यार्थली वृत्तिः] सिॉरव्यका का० 13] इत्यादि। सत्व-रम-सममा साम्यावस्था प्रकृतिः प्रकृतिः प्रधानमव्या मित्थरन्तरम् / तब रजो बाहुल्या क्रिया भवति समस्तु गुर्वावरणाकं चेस कृत्वा अक्रिया भवति (सत्व बाहुल्यात मुकरजस्तमोबाहुल्यात् दुछडं / एवमन्यान्यपि कल्याणा-सा -सिद्धि-नरका दीनि अप्रास्तानि सत्त्वमाहुल्यात् / रजस्तमौ न यदि स्याद् अधि येतसो तृणस्य कुब्जीकोऽपि पुरुषोऽमीश्वरः, गुणकृतं तु फलं भुने। उक्तं हितस्मात_सत्यपगत चैतनादिव नि / बेसनावश्वनिम्न्वकृतिगुणकर्तृ मन० चेतना चल्वभाति लिहत्वाप्रकृतिपूर्ण कतृत्व च अब्त्युदासीनः मु) गुणकर्तृत्व च त्या अषि भवत्यु दाप्तिः // 6 // माङ्कटका का० 20] Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -किश्यिमायक्वंतिम पुरुचकर्ता,नियहिस्सु कर्मणा किरिक्षा, नियतिवहीन पुरुषो गमनादिषुक्रियासु पलतीएवं भयंतापि से दो विपुरिमा बुल्ला पिण्यतिवणतन्त्र नियतिवादी. आत्मीयं दर्शनं समर्थयन्निदमाह - यः खलु मन्यते अहं करोमि' इति असावपि नियत्या एवं कार्य अहं करोमि' इति तदायत्तत्वात् चरावस्या अत्रश्चैव यत्र यत्र मेधावीरहण सत्रतत्र नियतिवादिनः रामः एगो मण्णाति- अहंकरीमि, वितिओ मण्णइ-णियती करैइएगट्ठा कतरोऽर्स:१ -करणार्थः कारणार्थ (कारकार्ड्स से मो० वा०॥) इत्यर्थः। लत्य पुण वाले एवं पडिवजांति एवं विप्पाइवेदेति) कारणमावण्णी - अहमझि दुक्रवामि वा बाधनालक्षण दुःश्वं शारीरम्।शो को इप्रदारा-ऽपत्यादिविप्रयोगादि, शोकः मानस शारीरेण मानसेन वा दुःखेन शारीरेण जीर्यति / झशमि त्रिभिः काय-वाङ्-मनीमिः तस्यामिति (? तप्यामीतिगतिप्पामि बाहौरभ्यन्तरेव दुःखविनोधै उमय थाऽपि पीडयामि।सब्बती त - प्याति परिसप्यामि / एतत् सर्व दुःखोदयं कर्म अहमकार्यमा परो वा बंदुक्रवति वा सौयति वा प्राव परितप्पतिवा, परी एसनकासी,मेश्वरोनियतिर्वेलि एवं खनु सकारण परमारणं एवं विष्यवैदेति कारणमावण्णा मेधावी एवं विडिवैदेइ-जंखनुदुक्रवामि जाव परितप्पामि वा णो एलमहमकासी, किन्तु गिय तीकरैइन चाकृतं फळमस्तीत्यतः पिटालीकरति अति पुरिसी करेज लेन - - - - सर्वमीप्सितं कुर्यात् नवेदमस्तीति तलो नियती करेइ नियती करे नियतकारिका / परीधि खलुजं दुक्खति वाणी परो एतमकासी Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणियहीए संकृतोएवं खलुसे सकारण एवं विप्पडि वेदेखिइह खलु पाईणं वा एक जे तसा थावरा पाणले एवं संघातमागच्छति कण संधाय मागच्छति,सरीरेण परि आगः बाल-कौमार-यौवन-मध्यम-स्थविरान्तःपर्यायभेद परि आगः परिआगःले एवंविधणेव शारीरेण -बालाविपज्जवे विहिविवेग, पृथक्करणमित्यर्थात एवंविधा विधिविधानम् सच्चैवम्-संघात-परिया-विवेगा विधाणं स्वकृत वाकर्म विधान जन्म-जरा-रोग-शोक-मरणानि वा, मरक-लियंग-मनुष्य-देवेषु उत्तमाऽधम-मध्यमविशेषाः। विशेषेणाह- देवेषु] इन्द्र-सामानिक वायसिंहात-पारिष द्या-त्मरक्ष-लोकपाला- उनीक-प्रकीर्णका-ऽऽभियोग्य-किल्बिषिकाश्च विधानम् , तिर्यक्षु चैकेन्दियादयः पण्णवण पदे [प्रज्ञा० पद ] अ हा मणुस्सैसु सम्मुच्छिमा गल्भवई लिा या ते एवं संगतियं ठवेंति, नित्यकाल सकता हि पुरुषेण नियती, यथा रूपं -स्पना अग्निरोधायेन, अथवा आपोगवा-डस्थैर्यवतीच, यथा गो: दक्षिणविषार्ण सवेण,एवं स जीवा णियलीए णिच्वं कालं संगता, सत्कृतानि विधानामि प्राप्नुवन्ति / उपेक्षण मुपैहा, नियती करोलीत), पुरिसी उवैकवा, उवसंख्या पुरुषवत् , एवं उपेक्षा हि गियदीवाद। एवं तावज्जीवणिस्मिता णियती वृत्ता। इदाणि अजिवजिरिसला, से जहा-तएव महगलमागच्छन्ति परमाणवादयः,अभेन्द्रधन्वाटिकानां वा संघात परियागं लसिं दोबादिपज्जया विवेगालेसिंचव संधाताण भेदा बण्णादिविवेगा याविधाणतेसिं भेदः प्रकार इति, लैसिपि भियतीकात एवं संगतियं तेसिं अजीवाणं जियती चैव पिच्चं संता जाव संधालाईणिकरेड,एवं ठवेक्वाहि पश्येत्यर्थः। ते जो--- Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विप्पडिवैदंति-किरियाति वाणियतिमतरेणे णस्थि अण्णती / अकिरियाइवा जावअणिरएं लिवा समाउदेति समावो एव,ण पुण जहालोशा-- यलियाकारूपकारणिमित्तं जाव सेयंसि विसण्णा - .......... -- ----................... + एलेचेवचत्तारिपूरिसजाला पाणापण्णा सक्ष्म-सूक्ष्मतर-मन्दबुद्ध्यादयःणाणावण्णा वा बाह्मनादयःजातिकृता + -- वर्णाः, शारीरा वा कृष्ण-श्यामादयाउन्दोऽभिप्नायो ऽभिलाष इत्यर्थः। अन्यस्यान्य रोचते "अण्णस्स पिया छासी०" गाहा जहा दोहनए चैव महिलाणं णाविहा दाहला उप्पति, जहा मनिसामि या गाणासीला दारुण-भद्रगसीला |Uणादिट्टी एते चेवा चत्तारि लोगायलिशादयो, एमागहणे राहणं तिणि वा तेसहाई पावालियसताईाणाणारंझा असि-मसि-कसि-वाणिज्जादयो आरंभा अ ण्णोणं करेंसिाणाणा अन्झवसाणा तीघ्र-मन्द-मध्टाध्य मानागसब्वैपि पहीण पुबसंजोग (पुखi) आयरियभग अंसरा कामभोगे विसा उक)च-"यथा भवास्तेऽपिकिलापवर्ततोगसिद्धसेन-द्वात्रि पूकायव्य र] अण्ण उत्थि आशा संपति भिवरख वृच्च जो सो पोडरीयमुपाडेति 648.6 को वेमि-पाईण वा एक संगतिया मणुस्सा भवति तंजा- भायरिया वेग भणायरिया धेगे उच्चा गोया वेगे --- जीयागोया वेगे कायमंला वेगे हस्सम सा बैगे सुन बेगेसिंचणं खेत-बत्थूणि परिगहियाणि Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भति) तंजहा अप परा वापतेसिंचजण-जाणवयाई परिगहियाइंभवंतितंजहा अप्पयशवा मुज्जयरा वा ------ लहप्यारे हितो कुलेहिती आगम अभिभूयएने भिक्खा यरियाए समुट्टिता,सतो वा विएणतयो यउवारणं च -- विप्पजहाय भिक्खायश्यिाए समुडिता,असतो वा विएगो णातटो यउवगरणंच विप्पजहाय मिरवायरियाए समुहिता,जे सती --- वा असती वा पातयो व अपातयो य उवकरणं च अणुवकरण रिच विप्प---------------- * 1 आरिया वेग अणारिया धेगे पु१॥२- एतचिन्हान्तर्गलपाठ स्थाने ख 2 पू१ पु 2 प्रलिघु "जाव इत्टोव पाठी वर्तते // 3 वेगेति। तेसिं पु 1 पुरा४ि हवंति खेर परापूप्यमारहि कुले हि आ° वं खंर पूर पुर॥६"क्खालरियाते स पुरा॥ एतच्चिन्हान्तर्गलः सूत्रपाठसन्दर्भ सवेष्वपिसूत्रादशेषु उपलभ्यते, किञ्च चूर्णिदीपिकयो या व्यान नास्ति॥८सतो वा असतो वा खं 1 ख र पुप पु 21 // 9 अणुवकरण च इति सूत्राधा सूत्रादर्शोषू न दृश्यते / अवकरण च चूपा०॥ -- Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जहाय भिकरवायरियाए समुट्ठिला -----------पुत्वमेव लेहिं जातं भवति, लं जहा-इह खलु पुरिस अण्णमण्णं मम अट्टाए एवं विपरिवेदेति, महा-खेत मवत्थु मे हिरणं मे सुवर्ण मेधणं मे धण्णं में कसं मै दूस मै विपुनधण-कणा-श्यण-मणि-मोतिय-संव-सिलप्पवाल-स्तरयण-संत सारसावतजं मे सहा मे रूवा मगंधा मे रसा मै फासा मे,एसे कामभोगा अहमविएसेसि - --- से मेधावी पुवामैव अप्पणा एवं समभिजाणेजा,तं जहा-इह रखनु मम अण्णयरे दुक्खे शेयांत के समू ज्जेज्जा अपिण्डे अर्कतै अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणाम दुक्रदै णो सुहै, से हताभयंतारी काम-भोगा ! इममम अण्णासरं टुक्रवं रोयातकं परियाइयह अणिहँ अर्कतं अपिर्य असुभ अमणुन ममणामं दुक्खं गौ सुहं नाहं डक्वामिवासोयामिवाजूरामि वातिप्पामि वा - पिडामि वा परितप्यामि वा, इमाभी मै अण्णलराभी दुक्खाओ रोगालंकाभी पडिमीयह अणिढाओ अकेताओ अप्पियामी असुभाभी भमणु-- साओ अमणामाऔ टुक्रवाभी गो मुहामी! -- --------- ---- एवामेव जी लद्धपो भवति इह खलु काम-भौगाणी लाणाए बासरणाए वा,पुरिसे वा एता पुब्धि कास-भागे विपाजहति, काम-भोगेगा वा एगला पुब्बिं पुरिसं विपनहेति, अण्णे खलु काम-भीगा अण्णी अहमसि, से किया। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण वयंअण्णामणीहि कामभोगेहि मुच्छामो "इलि सखाए णं वयं काम-भोरी विष्पज हिस्सामी। - से महावी जाणेज्जा बाहिरामतं डणमेव उवणीयलरोग तं जहा-माता पिता में - +---- - --- भाला मे भगिणी मे भज्जा मे पुत्ता मे धूता मै मन्ता मै सुण्हा मै पैसा मे सुही मीस - - * 6 विप्पडितदेति ख१ वृदी विपरिचएति पुर। विप्परियावेति खेर पु१॥ र तैयं म खेरपुर पुर॥ 3 खनु मम का खं // 8 भोगाई!मम खरपूर पू२।। 5 °टादियध अणिटुंजावणी सुहं, पु.१ / / 6 सुहे, आहं ख / / सुह माऽहं पु 6 / / पिट्टातिरख 2 4.1 पु२॥ 4 मोए तु अणि डाभी जावी सुहाभो छ र पुष्परााए "पुबै मखंछ पु. शाप मुच्छिया मोखर पुरा तयांपुर र भगिणी म पुत्ता मे-- धूता में सुण्डा मे पिया मे पिया मसहा में सुही खं 1 // 13 पुत्ता मे नत्ता मधूया मे पेसा मे सहा मे सुही पु 1 // . Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चण-संगंय-संयुसा मै,एते खलु ममणायमी अहमविएलेसि। --------- __------ से मेधावी पुवमेव अप्पणा एवं समभिजाणेजा-इह रखनु ममे अण्णयरे दुक्रवे रोगात के समुप्पज्जेज्जा अनिष्ठे जाव दुरवे णो मुहै;से ता भयंताशे णायऔर रेइमं ममऽण्णय टुक्रवं रोगालंक परियादियध आणिषु ष णी सुहंमा हिं टुक्खामि वा सो तामि वा जाव परितप्यामि था,इमालो मै अण्णयरातो दुक्खाती रोगातकाओं परिमोएहे अणिवासी जाव गरी सुहाती - एका मेव री लवपुर्ब भवइ-तैसि वा विभयंताराणं मम ाययाण अण्णायरे दुक्खे रोगात के समुप्पज्जेमा आगडे - अवो सुहे से हताअहमे तीसं भयंताराणं णाययाणं इमं अण्णायरंदुक्ख रोगातक परियोदियामि अणि जावणी सुहमा मे दु--- क्विंलुवा जावमा म परिसप्पनुवा, इमामीणं अण्णयरामो दुखाती रोगालंकामौ परिमौएमि अणिडाभी जायणी सुहाओ। |--- --- एवामेव जो लद्धपुत्वं भवइ -अण्णस्स दुक्खं अण्णो नौ परियादियति, अण्णण कई अण्णौ णी परिसंवैदेति, पत्तयं जाति पत्तेयं मरति पत्तेयं चयति पतेयं उपवर्जति (1000) पत्तैयं झंझा पत्तय सणा पत्तेयं मण्णा एव १२विन्न वेदणा, इलि खलु जातिसंजीणी ताणाए 13 वाणी सरणाएवापुरिसो वा एाता पुल्विं गतिसंजोए विप्पजहतिषणातिसंजोया वाएगाता(ता, विं पुरिसं विप्पजहंति, अण्ण अखलु जातिसंजोमा अण्णी अहमंसि,ये किग पुण वयं अण्णमोहिं जातिसंजोरीहिं मुच्यामो Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इति संखाएणं वयंणातिसंजोगे विप्पजहिस्सामी 1. से मेधावी जाणेज्जा बहिरंगमेयं, इणमेव उवणीयतरागीतज्हा- हत्या में पाया मै बाहा मे ---- खनु मे णापुरा र ममं रखे // 3 इमं मे अण्ण ख 2 पुरा इनमण पुणा याति यह - खं 2 पुर।। 5 एध अणि खं ॥६रिताइतानि खं 2 / रिटाइटाभि खं 131 / / 3deg मौतमि खं 2 पुस------ 8 परियाइयति रख रपुर। पडियादियति पाए कतं अण्णी खं शकतं काम अण्णा पु१पुर / / 10 जायति -रखं दख 2 पु१ पु 2 // पनि संख्या पु.१ आदर्शे एवं वर्तते / र विण्णा वैखं 1 ख 2 / / 13 वाणी सर खं 1 खेर प्र. 6 // पष्ठ पुरिसे रख र पुरा पपू बहिरंग में एतं पु 2 // बाहिरंग मत खं / / .------ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नउरू मै सीस मै उदरं मैसील मे आयु मै बलं मै वण्णो मेलया मे छायामेसीय मैचक्व मेघाणं मे जिल्मा मे फासो मामात जास्स... 7 वद्यालो परिश्इ तंगहा में ॐ तो वा बला तो वा जाव फासा तो वासुसंधिता संधी किस मवइ बनि लरंगी गाते भवइ, किण्हा केसा पनिया भवंति तं जहा-जंपि य इमं सरी उरालं आहारोवञ्चियं एटोपिय मे अणुपुर्वणं विप्पजहियवं भविस्मति / ---- ..--- - एवं संरव्या (संखायासे भिक्खू भिकरवायरियाए समुहिते दुहतो लोग जाणज्जा, तंजहा- जीवा चेव - अजीबाचेकलसा-चैवथातराचैव // 3 // - -- 618.1. से बेमि भिक्खो क्षीरुपोद्धातं विवक्षुः सोऽहं ब्रवीमि।पाईणं वा पण्णवादिसाओ भावदिसाओ वा] गधिता संगलिया मणुस्सा,सन्ति विद्यन्ते ।लं जहा-आयरिया वेगे जाव दुरूवा वेगे। अणायरियाविपल्वयंति,जहा अहयो वक्ष्यमur tii यागीता वि जहा हरिएसबनी।स्ववन्तौ जहा अतिमुत्तो वामणा वा दुबण्ण-सबैसुमो चेव हरिएसबलो, अण्णो वा जी को दुब्बण-रवी संपतं पिरीयागोतवना पल्ला विनंति, अण्णदेसे वा हरिएसवजा दुरूव-दुवा पुण अव्यंगस रीरा सदेसे वि पल्ला विज्छति। तसिं चेव खेत-वत्थुविभासा / अप्पा दुगत-हारादीनाम् / भूयो बाहुल्यै, इदं च भूयार इदमनयो भूयस्तरमा अल्पेभ्या बहुलराणि भुज्जसरे वैगैसितिद्यथा-कुबुंबिध-राज उलिय-महामंडलिय बलदेव-वासुदेव Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चकवट्टीण य जहछम्म मुलरो तसिंच णं जा-जाणवताई जनः सर्व एव प्रजाः,जनपदस्यैतानि जानपदानिशामनगर-रखेट---- कर्बटादीनि अथवा जनः प्रजाः, ----- - 1 उदर मे सीसं मै सा० / नोपलभ्यतेऽयं विपर्यस्तः पाठोऽस्मत्पार्श्वस्थषु प्राचीन समजादर्शेषु। | दीपिकाकृताऽपि नास्त्यय पाठ आतः / तथाहि-"हस्तौ मे मनोहरी एवं पादौ बाहू से हीसुदरमायुर्बलं वर्णस्वक छाया श्रोतां चक्षुर्घाण जिव्हा स्पर्श इति सर्व 'ममाति-ममीकरोलि"॥२ आउ म ख 1 ख 2 पु 1 पु.२॥ ३वण में बलमख 2 // 4 चक्र में खं 1 पु थापू जसि वयऔ परिजूरइश्व / जंसिवया मे परिजूरइ छ र पुप पु शाह, आउओ बिलाझा वळणामी तताओछासाओ सौहामी जावफासाझौ,सुखा विसंधिया भण् खंर पुरा उत्तराध्ययमसूत्रे द्वादशामध्ययने हरिकेशबनचरितम् Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तित्पतिराहीलामि द्विपद-चतुष्पदादीनि जामपदामि। सहप्पगारहिती भिक्खू भाणितल्वी, जती पल्वइलो उच्च-पीय-मज्झिमहितो कुलहितो कश्चित् केचिद्धा साधुसमीपमागन्य धम्म सोच्चा तं सद्दहमा अभिभूय,कि, परिसहोवसगै भिक्खायरियाए समुहिता दुरव भिक्ख अडितुं उक्त हि-"पिंडवातपविदुस्स, पाणीटप्पा"। लथा उक्तम् चरणकरणस्स सारी भिक्वायरिया 7 सम्म --- उहितासमुहिता ।सतो विएो णातयो पुवा-वरससट्ठा जगातयो काम-भोगोवकारी उवकरण लाणि चैव खेत-बत्यु-हिरण-सुवण्णादी - - -- -चाजेते सती वा असती वा, सति ति अस्थि से गातयो नहा भवहस्स असतित्तिस्थिसे णातयो, अहवामास्य माताःसन्ति अणातयो अणालमा से जस्थि, किन्तु अण्णे मिउपरिचिन्तगा मिच्चा अत्थिा उवकरणं चाणुवकरणंच,उपकरीतीत्युपकरणं घट-पट टा शकटादि, नास्य उपकरणं विद्यसै अनुपरणः / अथवा मोपकार करोलीति उपकरणम् यथा-छद्र खुधात्वाघटः, प्रीणत्वात् पटः। एवमन्यान्यप्युपकरणानि एकाडु विकलानियानि यथास्य (स्व) ख कार्यं न साधयन्ति तान्यमुपकारित्वादनुपकरणम् समुडिला। ---- धन्मे पव्वज्जाए यसमुहिता / कथं समुद्विता ? ----पुलमव तहात भवति, पुर्वधम्म सुणति पच्छा जाति एवं सौतुं जातं भवतिाइह खलु पुरिसे अण्णमण्ण Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मम अट्टाए,अण्णंच अण्णं च अण्णमण, अनेक प्रकारमित्यर्थःकानाश्चात्यत् अण्णमण्णं, एवमवपिणे, विरिष प्रवेदयन्ति विप्पडि - वेदयन्ति किनिसि विप्प०१ से जहा- खेत में जात सद्दा म कारणे कार्य वपचारात लाङक-तोडका-पु. तो जुन मालसमुटा सद्दा, एवं सर्वेषु कामगुणेषु विभाषा,एल मम साहील, अहमवि एएसिं स्वामी / ... ------- - मेधावी पुवामेव किमिति समभिजाणज्जा, एते रखनुकामभीगा ममिअट्ठाए गजिजांति परिवट्टिनंति परिवारिज्यहिन चैकान्तेन सुखाय भवन्तिा कथमिति? इह खलुमम अण्णतरे शेशासके विपुण भासा या पुणवालिओ वा पेलिअ-सिभिय सणिवाइय. इषु इच्छायाम्" न इष्टो अनिष्टः / अकमनीय: अकान्तः / न प्रीतिकरः अप्रियःनि शुभ अशुभः, सोमनः, अहोमन --- इत्यर्स, सर्वएवाशुभी व्याधिःकुष्ठादिश्च विदोषतामनसा ज्ञायतै मनोजः मन सोऽमम:मनमरखे किमु हीदीर्घकालस्थायी शेगः सधौघाती आलङ्क अइ वि अहं सैण रोगा-55 लड्डु णाभिभूय है कामभोगी भणेज्ज-से हमाप! हृतासम्प्रेघे भयात् ब्रायन्न इति भयंतारी ! म दुक्रवं परिआइयंतु,एत नम अनि-रक्षणादिसमुत्य भवन्मिानितमेव दुक्रवं नानुस्थितं मरो बाधते ते भवन्त एवैत प्रत्यापित बन्तु स्यात्-अचेतनत्वात् काम भोगानामामन्त्रां न विद्यते, तल उच्यते-क-शाने का-मरा- पुश्वा दीनां आम मिष्टन संजहा- भकलण्णुश्री सि तुंडिय!"तथा च-6 भी हंस! निमल नदी पुलिनाद [ पार ni च “बोहित्थ! ते Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यतकान्तास्पृरामपि स्पृशय इति। ------ एवं तेषां पुत्र योऽपि प्रियतराणां काम-भोगाना पुरस्तात् भवद्भिरपि न लळीपूर्व भवति वा , जम्हा एवं तम्डा काम भोगा तन्निमिन्सहिंतु दरवेहि अण्णाणिमित्तेहिती वा विज्वट्ट-लडिमातादीहि, णो ताजाए घा,न चात्यन्तं भवति, कह?, पुरिमी वेगाता पुब्धि काम-भोगे विधजहेज, जहासंयोग-विप्पयोग कामभोगा ना पुरिसं पुदि विष्पजहाय,संचेव पंडु मधुर बानिय ताजम्हा है SEतिया भवति ण चैवैगन्तिया शैगितादीना, जहा कालसोवरियम्मि, लम्हा एवं गच्चा अण्णी खल कामभीगा जाव भण्णमोहिं मुच्छामी, इति संखाए ज्ञात्वेत्यर्थः,धयं काम-भीगे संबुज्झितु विजहिस्सामी कुत्ता काम भीगा से मेधावी आणीना वाहिरंगमेत एते च उप-सामीप्ये,“जी प्रापण"आसनातरमित्यर्थः।तं जहा-माता मै जाव संयुसा एते मम अहमदि एतेसिं कथानति?, मीष पिता अहमस्य पुत्रः,भार्या पतिः, एवमन्ये त्वपि यथासंभवं विभाषा। से मेधावी पुत्वमेव अप्पा एवं समभिजाजा, इह खलु मम अन्तरे दुक्रवे रोगांसके जाव' ----- सुमे। लेसिंवा मम भयं लाराणं जाव एवामेव को लद्ध पुर्वभवतिअण्णस्स दुक्खं जो अण्णी परिझातियति, अज्जेजकडं जो अण्णी पडिसवेद यति टुक्रवे, युक्रवं ला णियमा कृतम्। कृतं दुःखं वा स्यात् सुखं वा,अहुवा टुक्श्योदयमपि कृतं यावन्नौदीर्यते म बाध्यत इत्यर्थः तावत् . Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृतमेवनाकृतम् / -------- |--- यस्मादेवं तस्मादेत तस्मद(स्मादन्येन कृतं अन्यो म प्रतिसंवैदयसिसम्हा पत्तेयं जाति, पत्तेयं मरति,फ्तेयं त्यजति उपपद्यते झंझा कलहो, संजाना लीति संज्ञा हो, विज्ञमेव वेद्यत इति वेदना इतिखलु इत्येवं जातिसंयोग लाए वा सराए बा,पुरिसो -वैक्ता पुध्विं जातिसंजोरी विप्पजहति, जहा मरहो, पुरिसंवा एगला प्रातिसंयोगा विप्पजहंति, जह अॅडण / ---------- बाहिरए साव एस संजोगे इमै उचणीलतरिए। किमितिी शारीरं चैव सवयवा हस्तादयः, यथा मा पमतल कोमलो लक्षणोपचित्तौ हम्सो तथा कस्यान्यस्य? - - ..... . 1 आतइय के फाम // 2 आवश्यक परम् // 3 आवस्याके योगसङ्कहे पाम् / --------... इमौ करिकराकारी भुओं परपुरंजनौ। प्रदाला गौ सहसाणा जीवितान्तकरः करः // 6 // पदा में कुम्मणिमा, आयु मे दीह निरवद्रतंच, बलं उरम बुद्धिबलं च,वणी अवदातादी, त्वक् स्निाधा,डाया प्रभारवर्ण-च्छाययोक को विवोधः?,वर्ण : अनपायी,छाया तु उत्तिमपरिसमभपायिनी, शेषाणां भवति वा निवा] / अमिला-उनल-सलिलसमुजवा बुद्धि पंचधास्मृता,छाया अशुभ-शुभदा विकार्यनक्षण अथवा अवलीयेऽपि ममीकारो भवति शरीरे हाररावयवैषु बा, सडतं पि कोइ णेच्छइ च्छेतु जाति या च्छविकाति जीपति, सप्प-गोण-सरवलाई सडइणव सक्केति परिच्चइतुं एवं अच्छीण विशाल स्तु Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्धवलाई,दिट्ठी मै बलिया उजु-सुगाऽऽयता णासा, जिसमावि लगुइआ विसदाफासी कक्कड-मउसी, इत्थी विपरीती एवमन्ये sपि दंलोड- कवोल-भमुग-ण्डिाल-गल-संध-उर-पट्ठि-कडि-जाणु-जंघादि ममासि ममीयते,आरिस मम सरीरं सरीरावयवा वा सारिसा कस्स?। स एवं ममीयमाणो जस्सिं पढमे मज्झिमे पच्छिमै वा वये ममाति सस्सिं च वयातो परिसूरति कय ? पढम लाव षये परिदारमाणी मज्झिमो भवति मज्झिमै वि परिझूरमाणो पच्छिमो भवति एव मैकै कस्मिन् वयसि परिसूरमाणो अन्यांषयोऽवस्था प्राप्तीति।जहा वयोसे परिझूरति तथा बलतीवि,ज पढमवयस्सणस्थि,सणकुमारदिईतो / उक्तं च-"पणास गस्स चक्खू परिसरतिः” परिझूरमाणे तुषयसि सुसंधिता संधी विसंधीभवति सुणिगूढ-सानुग्ग-णि-मुगासठिला पाया उक्काउसठिता हारुसंघातपरिणिज्जा भवंति, पलितरंगे गाते,किपडा कैसा पलिया,अंपि इर्म सरीरं तदपि परायतं,ण विणा आधारेण सेमीच्यते-आहारीपचइयं विणा माहारण सुस्मति सरयति य,सतापि आहारणकाली पण जिवेण मगुणोण पजते पदिजमाणेण आणुपुल्लीए जाव तीसरिमाणि वड़ितुं सावत पिअवदित वा गमे - ऊजार्जपिणिरुवकुम भाउसं भवति पिपुवीए परिहाति,तं नहा-पण्णासगस्थ चक्रवहायति। अधिवा स्मएसमए आवीचिय मरतीण मरमाणी मरमाणोजीर्णशकटवत् पलति। एवं शरीरं अगिच्चं अधुर्व संखाय भिक्खू पक्षजापुरेक्खडे भिक्खू चैव ववहारि 'यणस,णिच्छयण यस्म भिकरवू चैवा भिक्खायरियममुहित,ण भिक्याथरियं विणा Hon:, प्राणाम् बिना न झानादीनि तैम Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिकरवायरियाग्रहणम्दुहतो लोगंजाणिज्जा किं दुहतो, जहा-जीवा चैव अजीवाचेवजदस्थि लोए, अहिंसापालनार्थम् / जीया दुविधा,से उहा- तसा सेव थावरा चेव]॥१३॥ इमं च अण्णां प्रमाणेऽना -- ------- 649.1. इह खलु गारल्या सारंभा सपरिग्गहा, मैसेगलिया समो माहणौ वि सारंभासपरिगाहा, जे तुम तस-थावरा पाणा ते सयं समारंभंति अण्णेहि वि समारंभावेंलि अण्णे वि समाभंसे समणुजाति / -- + इह खलु मारत्या साईभा सपशिगहा,संगलिया समणा माहणाविसारंभा सपरिगहा, जे इन काम-भीगा सचित वा अचित्ता वा ते सयं परिमिण्हंति अण्णेहि वि पशिगण्डावेति अण्णे वि परिमिण्हत समाजाणति। --------- इह रखनुगारथा सारंभा सपरिग्गहा मतेगतिया समों माहणाति सारंभा सपरिगहा, अहं खलु भणा रंभ अरिगहे। जे रखलु गारत्या सारंभा कापरिग्गहा, संतगतिया समा माहणा विसारंभा fx संलि एतिला स खं 2 पुर। 2 °म-मा ख१ पु.१॥ 3 * UTI सारं 8 तसा धावपुधा पूअण्ण वि। समारंभावेंति अj पिसमारंभेत सम खंदखर पू.द.पु. ६°मा-मापुर॥ सयं चेद पाखंर पुरा सयं जैपखं॥८अण्णण ... 'वि खंदा व सं. 2. पु.२ // एअण्ण परिण्डिंतं सम रख१, रखे 2 प्ल५ पु२ // 10 मण-मा पु.१॥ 19 °EO-मां खं 1 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्परिगहा ते चैव हिस्साए बमचेरंवमिस्सामी, कस्स हं हेठ 1, जहापुल्बलहा अवरंज्हा अवरंतहा पुळलं अंजू बैते अणुजरया अणुबविद्या पूणरविलारिसवाचवा --------- ------------ --- - -.... ........ ........................... - .....जखल गारस्य सारंभासपरिग्गहा, संतालिया समण माहणावि सारंभा सपरिग्गहा। दुहती वि पाइं संखाए दोहि वि अलैहि अदिस्समाणे हि इति भिकरवू घरीएका / - -------------------- से बैमि पाईर्ण वा एक एवं से परिणातकम्मे, एवं ....से 'ववेयकम्मे, एवं से वियंलकारए भवतीलिमक्खातं // 14 // .... . .... .. . .... . . ............. . ................................................... ...... 49.1. इह खलुगारल्था मारेभाशारिवगहा,आरंभा पचण-पाचादी हिंसा प्रवृत्तिः, परिगाही खेत चल्थुहिरवणादिासंगतिया समणा पंचाच,माहणा द्विजाआिह-गणुगारत्यागहीण द्विजातयो गहिला?, उच्यते-के-- सिविना घर-दारं पयहिण समाई तित्यासावणाई आहिंडसि,मिगवारियादिचरंति,समणौवासमा वा ते सु अविरतत्वाता जैइमै लस-टावरा पाणा से कन्सर्य पयण-पायणादिस बढमाणासमारंभति अण्णेहि समारंभा३ति- उद्देसियभीडशो पुण भण्णे समारंभते समणुजाति। --किंञ्चान्यत्- जे इमे काम-भोगगा सद्द-रूवा कामा, गंध-रस-फासाभोगा, तदुपकारिषुद्रीषु काम भोगोपचारं कृत्वाऽपदिश्यन्ते ले सथं पशिशण्हंति वणिय- करिसादयो, इस्सरपुरिसा परिगिण्हावेंति परिगिहिन्से व Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समजाणति / - - ---------- ------ एवं समण- माहोसु विभासा सिविहं लिविहेण सारंभे सपावए णातुं गारल्य' समण-माहणे यसंसारभया - - अहं खलु अणारं भे अपरिग्ग हे भविस्सामि / - ------------ स्याद् बुद्धिः- अणणारंभी अपरिगही य काय शारीरं धारयिष्यसि 9, उच्यते-जै खलु गारत्या सारंभा संसेग-- * 10 हा एले चैव जिस्साते बंभचेरं चरिस्सामो ख 9 वृ० दी / अत्र पाठभेदे दीपिकाकृताक्षरिस्सामो स्थाने ----- | बसिरसामो पाठ आहतोऽस्ति |" हा एलेसिं चेव गिस्साए बेभरवासबसिरसामी घर पु.१.पू.२॥ 2 समण-माणा सारं रख 1 र 2. पुशा वि इति सूत्रनलिघु नोपलभ्यते।चूर्णि-वृत्ति-दीपिका सु व्यत / 4 वाइकुत्बंति इति संरवाए पुन्छ पुरन्दीन वाई इति सखाए रखें 25 °माणे इति भिक्खू री लेज्जा खे२ पुर वृन्दी०॥ 6 पादीण रखें १७विवेयं रख द.खे र पू.६ पूरा लियासमणा दबारंभ प्रलिजणा के इ अणारंभा अपरिहा भावारं प्रति असंयतत्वात् सारंभासपरिगहाचेव,तत्य जे ते बारंभ प्रति सारंभा सपरिगहा भिक्खुगमादीलेचैव णिवस्साए आहारोबहि-सेन्जादि जायमाणा बमचेर घसिस्सामो Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारित्रमित्यर्थः करसणं तंहेतुं कस्माद्धेती: भवांस्तानुत्सृज्य लानेवाभायोति र, उच्यते। जहा पुत्वं सहा अवर अथावरंसथा पुर्व। आह-जुत्तं गिहरी रिसाए ण जुलं, किंवा (वा) तेसिं अस्थि ज दाहति? , उच्यते, पुल्व पेरी सारंभासपरिणहाय भासी, इटाणि) - पिपवइता संता पचमणगा सारंभा], गणमादिपरिग्रहेण य सपरिगहा जैवि दुग्गला आसीले विमादी णि-सेवी, केवलं सेहिं फणिहा परिक्त्ता केकतली। उक्तंच-जस्साऽऽरंभी य घरवासपायोग अजुवेता रिजुभावेण अणुवरता भाविकं धम्ममनपस्थिताः पणरबि लारिसगति. ... .. .. .. . ... .G m .............. . .... .. ..... .... . .. . . --- ---- --- असजलाचेब, असंजतत्वा संसारिणः। -----जे खलु मारल्या सारंभा सपरिगहा पाउत्था वि सारंभा दहतीवि दीवि से, अधवा पुल्लिं -पच्छाय, महवा स्यं परीहि य, मिन्टासम्८०००] अहया रागेण दोसणय इति संखाए ज्ञात्वा (दोहि अंतेहि अदिस्यमाणोहि तो गारसालै पासं कृते इलि भिक्रयू सज्ज हि इति परिसमाप्ती उपप्रदर्शने वा, भिक्खू यीजा --- Rथ पवादिस पुडुच्च-सेबेसि घाईणे वा एक एवं दुविधाए परिवाए परिणातकम्ने, परिजातकर्मत्वात् व्यपेतकर्मा अबन्धक इत्यर्थः अवन्धक त्वात् पूर्वोपचित-- कर्मणः वियंतकारए मंतं करोति इति] एषमाख्यातं भगवता ॥ष्टया - कथमन्तं करोति? इति अत्रीच्यते- - - 650.6. सत्य खलु भगवता छज्जीवणिकाय हेऊ पण्णता, तं नहा- पूढवीकाए [* का या हे 5 रखे ६.पु॥ 2 पुतवीकाझ्या जाव लस्काइया ।से खे 1.31. पु-२॥] Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जावलसकाएासे 'जधाणामते मम असालं दंडेण वा मट्ठीणवांमुट्ठीणपालेलूण वाकवालेण वा आउडिजमाणास्स षा हम्म- -- -माणस वाजिनमाणस्स वा तालिज्जमाणसवा परिताविजमाणस्स वा पाकिलामिजमा पास्स वा उपविफरमाणरस वा नाव लोमुक्खाणमातमवि हिंसाकरं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इच्चेव जाण सवे पाणा सवे भूला सलले जीवासले सत्ता दंडेण वा जाव --कवानेण वा आउबिजमाणा वा हम्ममाणाधा सजिजमाण वा सालिजमाणा वा परिताविमाणा वा परिकिलाभिज्जमावा उद्दवि RBI बाजाव लोसुक्खा METAमविहिंसाकर टुक्रबं भयं पडिस लि, एवं च्या सल्ले पाणा प्राव सपे सत्ता ण समा ण अप्जावयचा - परिघेतला ग परिलायन्या उतवेयवा। ---- - --------- ------- -------- --- से बेमिय अतीला जेय पडुप्पणा य आगमस्मा अरहला भगवंलो सवे से एष माइक्रवलि एवं भासंति एवं पण्णवेलि एवं परुति-सवे पापा जावसबैसत्ताण हलबा अमावेयवाण परिघेतवा परितावे यवाणा उद्दषयब्वा एसधम्मधुर्व णितिए सामए समेच्चलोग खेयणहिं पवेदित, एवं से भिक्खूविरत पाणालिवाला ती जाव विरते परिग्गहाती णोदलवणेणं दस धोवैज्जा,णो अंजणं जो वरण जो धूषण जो तंपिआलिएज्जा / ... से भिक्खू अकिरिए अलूसए भको हे अमाणे अमाए अलोभे उ वसंसे परिणिबुडे णो आसमं पुरतो कातुं विहरेजा इमेज मै दिवेण स सुए बामएण या विणणाएण वा इमेणना सुचरितलव-नियम Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -विमरवासणं इमेणवा जाता-मातात्तिएण धम्मेण इसी चुते पच्चा देवेसिया कामकामी वसवत्ती सिद्धेवा एत्यवि सिया एer विणी सिया। से भिक्यू सद्देहिं अमुच्छिते रूबंहिँ अमुच्छिते राधेहि अमुच्छिते सहि अमुच्छिते फासेहिं अमुच्छिते विरत को धातो माती मायाती लोभातो पैजालो दोसाली कलहाती अमरवाणालोसुण्णालो एरपरिवादासी अरतिरतीली मायामासाली मिच्छामिण - सल्लाती इति से महता आदालो उक्सले उहिते पहिबिरलै। - से भिक्खू जे इमै लस-यावरा प्राण धाम भवति से पोसयं समारंभतिणीas हि समारंभावेलि अन्ने समारभत विम सम्णुजाणइ इति से महतो आदाणा तो उपसंतोते) उवहिते पडिविरते से भिवरवाजे इमे काममोगा सचित्ता वा अचित्तावा से परी सयं परिगिहति धरी भन्ने परिगिण्हावेति अन्नं परिगिण्हा पिण समजाणति इति से महती - आदाणालो उवस ते उवहिते पडिविरलेल्यै भिक्खू॥र्ज पि य इस संपराड्यं कर्म कज्जइ. 2 री संसय करे तिणी अण्णा कारवेति भन्न पि करेंतं ण समणुजाणवू इति से महती भादाणातो उपसले उहिते पडिविरत से भिकरवू ।।आणा असणं वा एक असि परियाते च्वं ए साहम्मियं समुहिस्स पाणाई भूताई जीवाई सताइसमारंभ समुद्दिस्स की पाभिव्य अच्छेको अणिस अभिहडं आहहुदसियं ते चैलिय सितातं जो सयं भुगइ णौ अण्णोर्ण भुवैति मकां पि भुजत पा सम्णुआणाः इति से महतो आदाणासो उवस ते उहिते पडिविरत।से Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिक्खू अह पुणेषं जागोजा,त-विजाति सेसिंपरकर्म जस्सऽहाते चैलितं सियाहं जहा-उप्पणी से पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं धातीणं णातीणं . रातीणं दासाणं दासीणं कम्ममराणं कामकरीण आदेसाए पुढी पहणाए सामासाते पालरासातै सण्णिाधिसणिचए कज्जति इहमेरी सिं माणवाणं भीयणा / सस्थभिवरलू परकडं परणिहिरमुगामुप्पारणसणासुई सशातीतं सत्यपरिणामितं अविहिसितं एसियं वेसियं सामुदाणिय - पामसणं कारण हा पमाणणुतं अक्खोर्वजण बाजे बज भूयं संजामातामातावत्तियंबिलमिव पलगभूतेणं अप्पाणणं आहारं अहारेजा, -तंजल- अन्नं अन्नका ले पाणं पाणकाले वत्थं वत्थकाले लेणं लेखकाले सयर्ण सयणकाले। सै भिक्खू मायणे अण्णय दिसंवा भादि-सं वा पडिवणे धर्म आइक्रवे विभए कि उवहितेसु वा अणुवद्धितेसु वा सुम्सूसमाणेसु पवैदए, सति विरतिं उवममं निवाण सोयविर्त अजवित --- ----- महवित लाद्यवितं अणातिवातिय सल्लेसिं पाणरण सल्लेसिंभूताणं जाव सत्ताम् अणुवी किट्टए धम्मं / सेभिक्खू धम्म किमाणे णो अण्णस्म - हे धम्ममातिखेजा, जो पाण स्स हे धम्ममाति करखेज्जा, णो वत्यस्स हे उधम्ममातिरवेज्जा,णी लेणस्स है धम्ममातिकवेज्जा, जो सथणस्स हे उं धम्ममावेजा, णो भन्नेसि विरूषकवार्ण कामभोगाणं हे धम्ममाकरवाजा, अगिलाए धम्ममाइक्वेजा, ISIN कम्मनिज्ज रहयाए धम्मम्पवेजगाइहरखलुलस्सभिक्खुम्स अलियं धाम सोच्चा निसम्म उहाणेणं उट्ठाय वीरा अस्सिं धमे समुहिता जे तस्स भिक्खु स्म अंतियं धर्म सौच्चा जिसम्म सम्म उहाणेणं उदाय वीरा असिधा समुट्टिता ते एवं सलोवगता एवं सम्बोवरता ते एवं Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नसतोवसंतातेएवं सत्ताले परिनिव्वुड त्ति धेमिा एवं सैभिक्खूधम्मट्टीधम्मविणियागपडिवण्ण से जहा सैसं(सत्य) बुइटा अदुवा पत्ते पठमवरपी दुरीयं अदुवा अप्पत पठमवरपोउरीयं, एवं से भिक्खू परिण्णायकम्मे परिणरायम्संग परिणायगिहवासे उवसंसे समिए सहिए -सदा जले,से एवं क्तव्ये तं जहा- समयोतिबा माहणे ति कम खते ति वा दंते ति वा गुप्तत्ते) ति वा मुत्तेवाइसी लिवा कती ति वा यती - - ति वा विऊ ति वा मुणी ति बाभिक्खू ति वा लूहे ति वा तीरडी ति वा चरणकरण पारविदुति बेमि॥१५॥ / बितिटासुयक्रर्ष धस्स पोंडरीय[णा] पढम अज्रय सम्मत / / 650. लय भावता छजीवणिकाय। उक्तं च-"पुवमाणितं तुज रित्या भण्णती तत्थ किल्पभात्ये गा०२५५४]] - तेकहं रविश्वतला अतीव्रम्मैणोकहं अत्तोवम्मं भवतिी से जवाणामते मम अस्सालं दंडेण आउडिज्जमाणस्स आउउिजइखीलओ ...------- जहासीसे हम्मइ रवीला जहा सकण्जे आउउिजातिहम्मति सज्ज वायाएगाउडिज्जति हम्मइ तालिज्जइ एगढ़ा देसिवा आसज अण्म य मुच्चति, जहा-औयणी करो मतं ददाति एक एवार्थ: अण्णणधाऽभिलावं लि, एवमाननक्रियायां केइ आउउति त्ति भ णंति केइ हम्मति सि भजति के इतालेति त्तिभति, केइ पुण तिहिनि पारीहिलाए तिगाढं दुक्खं परिसावणा,जेण बामरणसंदेहेण भवति किलानगं पुण मुच्छा मुच्छकरण,जावलोमुक्रवणण लूयते लूनति वा तमिति लीना दुश्वाविजतो अंगाई, अक्रिवतो हिंसति करोति। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - इच्छेवं जाण सवे पाणा जाव टुक्रवं परिसंवेदेति एवं उत्तीवम्मेण जाणित्तासल्वे पाणाण हतवा आष्ट-किमयं धमों कीनामस्वामि -नैव प्रणीतः१ आहौश्चिद् वृषभाद्यैरपि तीर्थकरैरन्यैश्च तत: परेालिकान्तः१, किमिति, जनुत्तं सब्बे पाणा०, एवं शिष्येण चीदित आचार्य -वाक्यम्-से बेमि जे अतीता अर्णला जे अ पुडुप्पण्या साम्प्रतं वर्द्धमान स्वामिकाले पण्ण रससुकम्मभूमीसु जे आगमेस्सा अणेता अरहता भगवतो सब्वे ते एवमास्यातवन्तः एव मारव्यास्यन्ति,अर्थतः अतीता- Sनातकालग्रहणम् सूत्रेण तु वर्तमानकाली गृहीतः,सो त एवमा - वंति, आकारकथर्म आरख्या म यथा-"अवलोअणं दिसाणे." नन्वेवमाकारेण भगवन्ती अरहन्तःधम्ममाइक्रवति, किन्तु भाषथाss- - ख्यान्ति / भाषमाणा अपि भृशं लापयन्ति प्रज्ञापयन्ति / भृवां रूपयन्ति प्ररूपयन्ति,स्यावादती वारूपयन्ति ।उक्तं हि-नामामार्गप्रगम-- महही कि तं पररूपयन्तिा,सबै पाणाणहंतला "हन हिंसा-त्योः"आज्ञापनं प्रमहाभियोगः तद्यथाकुरुयाहीत्यैवम् ण परितावैयब्बा ण उवयव्या, एस धम्मे धुवै, ध्रुव:नित्यं तिष्ठति, सर्वकर्मभूमिषु नितिओ नित्यः, शाश्व भवतीति शाश्वतः एगहाईवा एवं मंता अत्तोवम्मण से भिक्रव विरते पाणातिबाटाभो जाव परिणहाती।तत्परिपालनार्थमेव उत्तरगुल विरक्खन संजहा-पी दंतवणैर्ण दंते धोवैजा, गि लाणो अमिलाणो वा विभूमावड़िए, भाया बाणो अंजणे, शिलाणी या रोगामा) पडिकम्मदा जी यमण-विरैयणं वा कुजाणो] धूवणं, - Lणो] तमवि धूम पिबति कासादिप्रतिघातार्यम् / एवं मूलगुणोत्तरगुणेसुमुसंवृतात्मा से भिक्रय भकिरिए नास्य क्रियाविद्यले सोऽयमकर्मबन्धक Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इत्यष्टटा लूप हिंसायाम"हिंसक प्रत्यर्थी अकसायणं णेवाणं तिकांतु अकोहे जाव अलोमे,सएवं मूलगुण-उत्तरगुणसंवुडी भवतिाजति कसायग्नहं करेइ, कसाइती पुण मूलगुणे उत्तरगुणे य विप्पं अतिचरति, जो पुण अकोहो जाव अलीभी सोचैव उवसंती भवति सकसायी अणुवसंती चेव। परिणित्युडो सि.जहाउण्हीटगं, उल्हाणं समाण परिणबुडं ति बुध्दइएवं कसायो वि उसिणो, तदुवसमे परिणेषुडे बुच्चति / एवं ता य इष्ट + लोइएसुविरतो अथ पारलोइया कामभोगा किमा संसितब्बा ?ण ति उच्यते, परलोइएमु कामभोगेसुणोआसंसा पुरतो काठ विहरेज्जया | कथमिति, युमेण मैं दिवेण वा, दिलु धामफलमिहेव,तं जहा-आमोसहि विप्पी सहि अरवीणमहापासिमा चारण-विवाणिड्डि पत्ताणि, परलोए साग-सुकुल पच्छायादिमादि।सुतं अक्रवाणएमु धम्मिन खंभदत्तादि, मनताने"मत समयमैव जातिस्मरणादिएहि तेहिं चैव -दिहसुत-मतोह विविध विसिटुंगात विणालाइमेण वासुचरित-तव-णियम सुदुचरितं तवी बायसविधी, नियमी इंदियनीइंदिय ०,ब्रह्मण |श्चरणं बंभचेरं चारित्रमित्यर्थः।इमेण वा जाता-मातावुत्तिएणधम्मेण, याता-माता यस्य वृति:सभवति याता-मालावृतिक यात्रा नाम मोक्षयात्रा,मात्राऽल्पपरिमाणा यावृतिराहारादि। चोभायात्रा-मात्रानो भिक्षुः परिशुद्धमलाशयः।-- विविक्त-नियताचारः,स्मृतिदीने वयबाध्यते // 1 // - - इली चुतो देवे सिया कामकामिति यान इप्सिलाम कामान् कामयते तान् लभते / बसपति सि क्से इंदियाणि जस्स चिट्ठति कामकाम-क्स -"बत्तिगहरोण अविध लोइयं इसिरिट सूइतं, जहा-अणिमा लघिमा महिला प्राप्तिः प्राधान्य ईशित्वं वशित्वं यब कामावसायित्वम् / Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्ध वा अदुक्रबासु ति,एले चैव अद्वविधा सिद्धाले इच्छाए सुहवा दुक्खं वामवाला एटा वि सिया एत्य विणी सियति रिसओ भवामि, -एरिसमति एरिसओ देवो भवामि, एस्मिओ वा पुरिसौ इस्थिस्व इस्सरिऔववेदी वा एस्सिया व मे सहादयो लिसया भवतु एवमादि आसध्ययोगा "पुरती कातुं णाविहरेजा।सएवं भिक्खू सहेहिं अमुच्छितो भाव फासैहि विरती कोधालो जाव मिच्छादसणसवातो जहा अमुच्छिली सद्दादिएसु विमएसुसुभेसु, असुभेसुवि अनुढे,विरसी की धातो ति णिशाहपरी,णिकवीणा सक्सोचैव उत्तरगुणा एते जे मुत्ता अमुच्छिते लि। इतिसै महता आढाणा -सी, इतिः परिसमाप्तौ उपप्रदर्शने पाकस्स आदाणं ९,की धादि एक,अथवा आरंभी पयणादि, परिग्गही वा सचित्तादी कामभोगा सण्णातगा सरीरेवा, महं ति महतएस कामादाणं सहादि अमुच्छिते द्वेषी वा, यानि:क्षा0धनो उपस तो ण उहति उखसंसो मौकरसनु सम्ममुहितो उपमृत्य उपरतीहिंसादिकर्मसुझायरियसगासैषा अविरति प्रति प्रतिविरती पडिविरती येभिक्षू भवतिाजे सुमे लस-पाषरा विषया अधि--- तसा दुपदेशकल्याच्च पूर्व चसमा उपाता, लेविषयार्थ सई समारभति पति योगविक-करणत्रिकेण अहिंसा गला,सेभिक्ख जे दात सचित्ता अचिसामीसा सहमता कामा गंध-रस-फासा भोगा| सचिता पदादिमुपदेसुसदादि वृत्थी-पुरिसगील-हसित-भगित सहा कोइत-सुग-मलणसलागा-हंसाण वा,एतेसिंचव अनंकित-अनंकिताणं माणुआ तिरियाण चहंस-मयूराणा रुत-संपण्णे मेरो यो स्पर्शपणे चतुभंगा। चतुप्पदसहा यहैसित-हथिगुलगुलाइय-वसभवितादि रूब एतेसिं चेव अण्णसिं च अपयसक्षा Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पासवणपवादादि वातरिया वासालीण रुक्मवाण तणार्णवाअिचित्तार्ण सैसिमित तणाणं मीणय केरिसएसद्दे? किण्णरखरेत्यादि। -विभासा, वीणा दीणं वा ।मीसाणं पि भासितवा िसद्दे घेणुसही लवे अलं किलाणं ।युत्ता कामभोगा।सचित्ता गंधा दुपदाणं पदोच्छ्वासा मणुआ,रसी सस्टीव,फासी इत्थी चिउपाद विदाणगंधी, रसी वि सत्यैव, फासी अप्सपट्ठादीण रसैसु पुप्फफलाणं च रसो अचित्ते,गंधी कत्थूरियादी गंधद जाणे वा संजोमा असंजौमाणं वा, रसे मकरादीणं,फासे हंसतूलादीणं / एते कामभोमे योगत्रिक-करणत्रिके व सर्य परिमिण्हेज्जार से भिक्खू। जं इन संपरायं कर्म कामइ (काजइ) सत्यराए भवं संपराय,सं पति वा जैणतासु तासु गतीमु-संपराइयं अवरक्षणादिषु म - -कृतनावं संवेद्यते,तच्च तत्प्रदीप-निनव-मात्सर्या-उतराया- सातमीपधातेध्यते जाव अन्तराईय लेकमहतव नापि स्वयं करोतिर सीभिकरबू जिं पुण जाणेज्जा असणं वा एक आहारो, इदाणि यम्माकम् ----------- नाशवीरश्चरेदधर्म, नाबारीरस्तपश्चरेत / तस्मात् सर्वप्रयत्नेन, कर्तव्या देहरक्षणा // च :- - धम्म ण चरमाणस्स पंच णिसाठाणा पण्णता रायादि" स्थिाना० स्था० पूसू उक्तं ------------ ---- पत्र 339] कण्ठयम् / अह पुणवंजाजे -ज्जाविति तसिं परकम हिंसादि प्रवृत्तिा, पराकानःप्रकरणमित्यर्थाः, आत-पर-उभयपराक्रमः स्वभावधर्मः जस्स अट्ठाए अप्पणो परस्य य भंगा एक चेतितकृतं करिष्यमार्ण वा सित् किमर्थम् , उच्यते अप से पुत्ताईणं भोजाए त्ति, भुजपालना-उभ्यवहारयोः यत् Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पालनीय अभ्यवहरणीयं च वस्त्रा-डाभरणादि आहारश्याएवं तम्सिसअट्ठाए णिहिले हटा भिक्रवू परकड-परणिदिते सम्म कर्ड लस्स---- णितिभा 4 उगामी 16 प्पादणाए 16, एसजा वासस्था शसु हिंसायाम् इासति लेनेति शास्त्र-अठन्यादि,सत्यण कामिल जीवभावात् सत्यादीतं सत्येण अजीवभावपरिणमित जीविता वा परिणामितं, नण्णादीहि अवहिसितं, उमामदोसादीत एसगिज्जे एसियं वैसि --- त्यादि अहवा जहा वेसी याणि रूपादि जोएत्तिात पिसामुदाणियं एतत्प्रज्ञस्यासण पिंडकप्पियस्येत्यर्थः। अहवा पण्णगहजाणं कुसणं द पद धेरैतिअसणारगहणा उदाणो अवबववादि(ओशो अधव दवादि) वा / कारणहाविदणादि।पमा बतीयं / बिल मिव जहा बिले पण्णी पविसतिण "यत बिलं भासातैमित्ति कातुं सम्मिलाति तडाई,जहा बा किंचि बिले छुटभति पात बिलं संमिलावेति भासादन्ति बापिण्ण उत्ति जहा पाओ किंचि मंडुछादि अण्णासादिलो मसतिभूतण सुल्लेण एवं साधू विणणे वामाती हणुवाती दाहि हणुवातं दाहिणी वा वाम। अर्ण अण्ण महणकाली परिभोगकाली याहिती भिक्खावेलाए अकाले चरसि, सिसिली पाणं पिबति,पुल व जति सझे पाणगं - पिबति वर्थ जम्मिकाले परिभुज्जति उववासासुरा,वासे वासत्ताणसीतेवालेणं, लयति लीयते इसे)ऽस्मिक्षितिलेणं सेजा गहिता,जहा यसोत पडिमापविणएण विगएण विणावि सैजाए वसति,सुशाणादिसु उडुबहे,वासारते सज्ज उपनीयति, सेसाणिवं सेनं ... सयं तिसयणं अयणकाले ति संधार सेजा गहिला, जेण य विहिणा सुप्पति,सै भिक्खू स एव अणगारो भिक्खूमात्रज्ञः आहारीषधि-सयण -- Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वाध्याय-ध्यानादीना मात्रां जामाहीति अण्णतरं दिसंषा[अणुदिसंबरीयमाणे आयरवेज धम्ममाक्खे जायाधुतासै भिक्खूधिम्मकहेमाणी जो अण्णस्स हेतुं पाणवथ लेण सयजना अण्णसिं विश्वरूवार्ण पूया-समार-सह-सव-गधादिकामभौमार्णण Sणत्यधम्म (काम)--- -णिजरनुलाए।इति रखनु हेतु एवं णिक व णिरासंसं धर्म, तस्स भिक्खुस्स अतिय जो सी उडदिदिरसमागलो तीरही तस्स अलिए धम्म सोच्चा त सदृहमाणा उडाए धीरा अस्सिंधम्म सुहिता / ले एवं समोवगता सवीत्मना उवाता वृत्यर्थः बाहिरेण अहिभतरकरणेण य आचार्यसमीपं गत्वा उपत्यसता सर्वतो सबमेव संता (सलोवसंता)1 उण्होदगंबा उसिणं होऊण पिच्छा कमैण सर्वात्मतया गिलुहा - परिणिबुडा। एवं सै भिक्खूधम्मट्टी से बेमि पाईणं वा एक एती आरंभे ऊण जाव परिणिबुडे ति] बेमिति एवं अवधारणे, सै इति स . -भिक्खू एवं गुजजाईझो धम्मेणा वाजस्स अट्ठी धर्म बावैत्तीतिधम्मविनाणियागं णाणादी चरितं वासेजहा सेन्तं (सत्यबुझ्यं ति, से इति निर्देशः,येन प्रकारेण यथा, एत्य अज्झयणे किंचि वृत्तं तं सत्वं बुइत अदुवा पते पोंडरीयंत सवं बुइतं केवलणार्ण,जहां पते तहायुतं / अदुवा अप्पते अण्णउथिया तं पित्त / एवं से भिक्खू ,कतरी १जी लिणि IIIदीणि ठप्पारेति सो कुतो स एव परिणायकम्मे भवति दुविधाए परिणाए पाबाइंकालाई मस्स पारालाई एवमेव तु बाहिरभंतरैसुबत्यूसुरमा-दौसादिलक्खो संगी। गृहंसमृद्धं -- सकुथकवाडादिलक्खणं कलब-तिब-पुब्रादि, एयं पिटुविधाएपिरिणाए] परिणातं1 कोधादि उवसंतोएहि तिहि कामसीहि मिहयासेहि Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामसरमाणे उपसतै भवति, रियादिसमिती प्राणादिसहितो सदासबकालंजते तिजतेजाहि, जातज रजतजमोत्ति टया मतीभिहवा... (एस्ट) जो उक्संतो ? जो समिती,को सामिती 1 जी परणादिसहितों को सहिती? जो सदा जततिा से ति लिहे से, स एवं गुणाजातीयो वक्तव्यः ,तस्मेवं गुणजातीयस्स भिक्खुस्स इन्द्र-शाका-पुरन्दरबत् नामानि भवन्ति, क्तद्यथा-समणे ति वा माही सिवा साणि, अमुलपसि खेदे च" श्रमणः, अवा" तो समणो "ब्रिह्म अतीति ब्राह्मणाः अधवा माहणे // हणतीति 2 / खमतीति खेलो देती इंदियणी इंदियः इति त्रिभि गुप्तः। बाद्या-क्यतर-मुक्तत्वान्मुक्तः। तीति यति) मोक्ष प्राधिः, यातीत्यर्थः करोलीति कतु यलः।"यती प्रयत्ने"यतत इति यतिः। “विद् ज्ञाने विद्वान् विदुः।मुणित गमितमित्येकोऽfः, मुमतीति मुनिः। भिक्षणशीली भिक्षुः। राग-दोषविमुक्तत्वात् नहे। संसारतीरेण जस्स अट्ठी सभवति लीरडीचरंतितदिति चर व्रताभ्युपगममा कुर्वन्तीति तदिति करण पडिलेहणादि,पारमन्त रामनमित्येकोऽस:,चरणकरणपाई विदन्तीति चरणकरणपारविदु / ति बेमि' एवं ब्रवीति तीर्थकरवचनाद् अज्ज सुधम्मो जंबुणामस्स कहैति। छ।.. ...--- -..पौण्डरीकाध्ययन समाप्तम् 1 // छ। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवमाय पुंडरीए लस्सैवय उवचएण निजत्ती। - अधिगारो पुण भणिो जिणावदेसेण सिद्धि सि // 658 // - सुरमणुयतिरियनिरऔवंगे मणुया पडू चास्तिम्मि। अविय महाजणनेयत्ति चक्लवदिमि अधिशारी॥१५९॥-------- ------ अवियहभारियकम्मा नियमा उक्कस्सनिरयठिलिगामी। ----- तेऽविहु जिणोवदेसेण तेणैव भावेण सिझंसि // 160 // - - जलमालकद्दमालं बहुविह तल्लिगहण च पुक्खारिणि / - जंघाहि व बाहाहि व नावाहि व तं दुरखा है // 16 // "पउमंउल्लंघेत्तुं औयरमाणस्स होइबाक्ती / किं नस्थि से उवाओ जेणुळघेज अविवन्नी / / 16 / / विज्जाव देखकम्म अहवा भागासिया विठवणया।' --पउमटलंधेत्तुं एस वृणी मिक्खाओ // 163 / / - सुद्धप्पओगविज्जा सिद्धा उ जिणस्स जागा विज्जा। भवियजणपोंडरीया उ जाए सिद्धिगतिमुर्वेति // 16 // Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --------- किरियाणरस अभिसंबंधी-एवं लेण चरण-करणपारगेण विदुणा भिक्षुणाकम्मा खवणदुप्पध्मुद्वितण काम बंधणदाणाणि वोलखा जि, तलिवरी तागि य सौरवबन्धटाणागि आसे [व] तवाति / एस संबंधो अहवा से अण्णास्थिया कह . संसारं अणुपरियइंति?,कम्मणा, कम्मबंध बज्झति इमेहिं बारसहि किरियडाणेहि मुच्चति तैरसमैणं,एलेणाभिसंबंधेणं किरियाणं णाम अज्जायणं आगतं तस्सचत्तारि अणुओगद्दारावण्णेलला। .. -----किरियाऔभणियाओ किरियाठाणे ति तेण अज्मायणं। -------- ----- अहिगारी गुणाईसे बंधे तह बंधमोक्रो य - // 165 / / अहिगारों पुणाई से बंधे त ह बंधमोकरखे अ।। आह-अस्तु ताव मोक्रवणाधिकारी, बन्धेन किं प्रयोजनम् ?, उच्यते-नानाबन्धे मौकरतो भवतीति अती बन्धेनाप्याधिकारी भवति,तच्च क्रियास्थानं कियावत्स्वेवर भवति मानियावत्सुर,तै चक्रियावन्तः केचिद्वध्यन्ते केचि न्मुच्यन्ते तेण इमस्स अन्झयणस्स बंधणाहिगारो बंधमोक्रयेणय धुत्तो अधिकारी ।।इदाणि प्रामाणिकपणे किरियाठाणं / किरिया औ णिक्खि वियवाओ ठाणं च। किरियाऔ पुलमणिसाओ,कत्थ भणिताऔर पडिलमणए-पडिमामि पंचाहं किरियाहिं "किरिया णिक्खि----- - वितव्वाणामााि --- दवे किरिएयणए पयोमुषायकरणिज्जसमुदाणे। इरियावधसम्मत सम्माक्टिछे यमिच्छ-से / / 166 - - Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिले किरियामाहााजीवरस वा अप्रीवस्स वा जाकिरियासा दवकिरिया "एकापने "एजसे इत्यर्थः एजनं कम्पन गमन कियेत्यनान्तरम्। तत्र जीवनोदना कर्मणो गुरुत्वाविनसायोगाष्ट्वा या गतिः सासला अनुपयोग इति कृत्वायकिया। द्रव्यजी वस्यैह प्रानपूर्वकत्वेऽपि सतिया परप्रयोगादनुपयोगाद्वा ईचदपि कम्पन अप्यक्षयोनिमेषमात्रामपि सा दृवकिरिया भावकिरिया तु पयोगुपाय करणिज्जसमुदाणे दरियावधसम्मले मिच्छत्ते सम्ममिच्छत्तोपयोगी तिविधी मणप्पयोगी 3 ।मणप्पयो दिनमा 3 स्फुङ्गि मनोद्रव्यरात्मनो योगी भवतीति मणप्पयोमा किरिया एवं बाकायद्रव्यैरपि ।उक्तं हि-गोण्हइ य काइए.[आव०नि०मा० ] काय- . किरिया रमणादि / उवायकिरिया द्रव्य येनोपायम कियाते, यथा पटं वैम-ननिकां-छणि-तुरि-वि- रवानादिभिःपटसानोपायैः शिक्षित प्रयत्नपूर्वकं पत्कारः करोति,एवं घटादिष्वपि आयोज्यमाकरणं ाम यद्येनो पायैन करणीयं द्रव्यं तत् तेनैव कियते नान्यथा, अथवा करणे हितम् कराीिटान्मृत्पिण्डाद् घटः क्रियते, नाकरणीयात् उपदग्धाच्चक्यतै पाषाणसिकताभ्यो बाासमुदाणे किरिया जाम सप्रित्येकीभावे नं काम पयोगगहितं तं पसिडापऊणसमुदयसमुत्थं पुढ-निधत्त-णि कायितं स्थित्युपायापेक्ष करीति में सा समु दाणकिरिया।उहं हि-काम जोगणिमित बज्झति०साय पूण समुदाजकिरिया असंजलस्म संप्रतासन्तस्साप्रामत्त संजलस्स वि केवलियम्स साव सकसाया तावकीरति इरियावधिया पुण छउमत्यवीतरागस्मजाव समिति ताव कीरति, किरियावाणं एवं चेवसयोगी। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -सम्मान्तकिरिया गाम जावतशाओ सम्माद्दिडी कम्मप्पाडी मोबेधत्ति, प्रायोण अप्पसत्याउने | बंधति / इदाणि मिच्छदिड्डी सल्लासि कम्मपगडीणं मिच्छादिड्डी तु बंधओ होइआहाररातिशास्तं चमातूणं सम्मामिच्छदिट्ठी उदाणिजाओ कामपाडीऔ बंधति येन बंधलि यताओ विभासितबाओ, लं जहाँ-सम्मामिच्छद्दिवी मिच्छतं पंचगं आहारगं तित्थक रविभासा णिहाणिहा पयलापयला-श्रीग क्षीण बंधी एवं तू एवमादिव उवाठिाणं- - णाम ठपणा दविए खेतद्धा उड्ड उवरती वसही। ...... संजम पगह जो है अचल ID संधणा भाव // 16 // ----- णाम ठवणा दविएश्वेतऽद्धा. Mar| जहा लोगविजय [आचा० निगा] भाणि ताओ किरिया ओ द्वाणं च // एत्थकतराहि कतरेण ठाणेण अधिकारो,लत उच्यते समुदाणियाणिह ओ सम्मपयुत्तेण भाव ठरणेण / "किरियाहिं पुरिस पावातिएतुसवे परिक्विज्जा ||168 // ----------...--- --11 किरिया ठाणं सत्सतं समुदाणियाणिह ण यो धासमुदाण किरियाहिँ अधिकारी / इणिधणयो अधिगारी सम्मपयुत्तेण भावठाणणं / आह - किं इरि यावहियाकिरियाए धिगारी 1, उच्यते, सासामपयुत्ते ठाणे वढमाणस्स भवत्येवालाई पुण सम्मपयुत्ताई भावठाणाई विस्ती संजमढाणं जोगत्तरियो परिगही पसत्यभावसंघणा यति। एतेसु वढमाणो इरियावट्टियावधी वाभिबंधी वा] होना जो पुण Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्पसत्येसु भगवडाणसु बदृति सीणियमा पायोशियं यासामुदाणिर्य घासंपराइयं वा बंधतिअथपित्तिश्चात्र द्रष्टव्या,समुदाण यग्रहणाद् इरियावधिया वि गहिता, पसत्यंभावहाणाहणा अप्पसत्थट्ठाणमविगहित / एताहिपुण किरियाहि कि कति?, उच्यते किरियाहिं पुरिस पाबालियात मब्वे परिकिरवजा, जहा-धम्मति लोयाणुगामियभाव पडिसंधाय लटा चसे भवति महच्छ महारंभे हाधम पर विपुणो तओ उपकरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठत्ता इति वक्ष्यामि तत्थ मियाधम्मिट्ठा से जधाणामए अजमायभगवती सिधा पावालिया परिमिविश्वज्जति मंडलवाहिहिला अनिकायपातीय। -- -- ----------- जिजुत्ती सम्मत्तामा छ सुतणुगम सुत्तं उच्चारेतलं Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T सुत में आसिलेण भगधला एवमक्रवातं- इह खलु किरिया ठाणो णामझयणी पण्णासे,त्स्यणं अयमडे-इहवलु संजु हेण दुवे ठाणा एवमाहिज्जलि , अहा-धम्मे चैव अधम्मे चैव उवस से चेव अणुवसते चेव॥ तत्थ ण जैसे पढमरस ठाणस्स अधम पक्रवस्स विभगे लस्य णं अयमढे पाते, इह रख लु पाईणं वाक संसारिया मणुस्साभवति तं जहाँ-आरिया वेरी अणारिया वेगे उच्चागोता वो पीटागोता वेगे कायमंता येगे हस्समय वेगे सुवण्णा वैगे डुलण्णा वेग सुरूत्वा वैगेदुरवावगे / / सि चणं इमएडावं देसमादाणं संपहाए संजहा-गैरइएसु वा निरिक्रवणोणिसुबा मणुस्सैसु वादेवसु खा,यावऽपणे सहप्पारा पाणा विष्णू वेद वेदिति सि वि याई इमाई तरस किरियाठरणाई भवतीति मावळ्यायं संजहा- अढा दंडे 1 अण्डाडे हिसादडे 3 कम्हाडे विद्वाविपरियासिया दंडे प मासबक्षित 6 अदिण्णादाणवक्षिते 7 अज्झस्थित टमाणपलिते 9 मित्तदोसवत्तिते मायावत्तिते पलोभवहित 52 हरियावड़िते 43 // - -------- सुतं माउसंतेण भगवता इह रखनुसिंहेणं दुवे सबूहः संक्षेपः समास इत्यनान्तरं येते - क्रियावन्तः स विएतेसु दोसु ठगणेसु वडंति संजधा-धमे अधिमे च उसमे य अणुवसमे या धर्म एवोपरमः उपशम एव च धर्मः, उमयावधारणाकयता अथवा ठपामाद धर्मो भवतीति लेन धर्मगहणे कृतेऽपि उपामग्रहण क्रियते। एवं अधर्मे अनुपानेच Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विमापा (मार्चलत्वात् पूर्वधर्मस्योपशमस्यच राहणकृतं इसराहि पूर्वमधर्मोऽनुपशमश्च भवति पच्छाधम्म उवसमं च पडिवालि, इनरथा . गएत दो चेव पक्रवाभवति,संजहा-धम्मपक्खो अधमपम्यो यो सम्सालस्य पदमम्स हाशास्स अधम्मापरवस्म विभंगी विभाग प्रत्यर्धाः। -इहच रखनु पाईण वाद संत गालिया मणुम्मा प्राव सुरूवा देनेत घासो हिसामारणं दण्डः अधम इत्यनान्तरम् ।लेमि पुण सल्वेसि अधम्मघकर बट्टमाणा दुमैलासवं दंडसमादाणं संपेट्टाए, जथै सापराधस्स दण्डः क्रियते एवं अधम्मपनवे अणुवसमे य वट्टमाणस्स दंडस्य समादाणं ग्रहणमित्यर्थाः,संपेट्टाएसि सम्म पेट्टाए दट्टणं। लं जहा - गौरइएसु लिरिकरव० मणुस्सैसु देवगलीए य, एतावता वापामा दिकातुं नाबमाणिएसु लिमगुम्मा देउसमादाणं समीक्षितु आह-यदि मणुस्साणं चतुगतीसुदंडसमादाणंसेसाणं गैरइय-सिरिय-देवाणं सेसि ITH किरियाटाणेसु वढमाणाण दंडोथि, उच्यते,अस्थि,कथाम,जे यावणे तहप्पगारा, अण्णो मणे) मणु अवमासु तिसु गतिसु प्रकार इतिसादृश्ये शारीरेन्द्रियादि, णेरड्य-देवाणं पण्यादिनक्षणत्वात् शारीरसाहस्यमस्ति लिरिक्रवजोणिया तु औरातिकशारीरसादृश्य इन्द्रियसादृश्य,विष्णू वेदणं वैदिन्ति विष्णू संज्ञा मग्रहणं इन्द्रियाणा च, सानि केषाञ्चित_सnorfo(fr), इंचियणिमित्तं चैव वैदणं वेदेति। उक्तं हि भवपच्चइयं देहं." गाहाओ हिणि | अहषा विष्णू वैदेलिय भंगा क - सणिणो वेदणं विमाणंति य वैदतिय सिद्धा बिनाणेति वेदंति 2 असणिणो ण जाति वेदंवि 3 अजीवा या माति ण वेदेति / एत्थ पुण पढम-तलिए हि भगेहि अलिगारो, Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वितिय-चउत्थाअवत्या लीसं पियाईसिजहा मणुस्सा तधा (en) लेसिपि तेर किरियाठाणाईमलीलि अरवाताईतं जहा- . -- अस्थादडे जाव इरियावहियाए॥ --- ----------- पढमे दंडसमादाणे अट्ठार्दडवलिए सि अाहिज्जइसे जहाणामए केइ पुरिसे आतहेउ वा णातहउँ वाअगारहेउवा -परिवारहठ वा मित्त हे उंना मागहठंबा भूत है उंबा जकरव हे वाले दंड लसया वरहि पाणेहि सयमेव जिसिरति अण्णोण वि णिसिरा -वेलि अण्णं पि हिसिलं सामणुजाणति,एवं खलु तम्स तप्पत्तियं सावनं ति आहिज्जलि, पतमे दंडसमादाणे भट्ठादंड वत्तिए ति माहिए। सत्य पढमे दंउसमादाणे अट्ठादाणे आहिज्जति सि आरव्यायत इत्यर्थता जहाणामए केयि पुरिसे आतहेतुं वा आत हेतुंति आत्मार्थम् | प्रामहेतुं ति पुत्र-दारादीणं अद्वाए। भारहेतु ति घरस्स खर्भ इट्टकादि का करोति / परियारो चि दाम-भलग चार-भ-आस-हत्थिमादि परिवारी, अहवा-घरोव वाडिमाद परिवारं करोति / एवमादी अढाए दंड सस- शावरहिं पाणेहि सयमेट -णिमिरति लस्सैलता व अण्णे अहिउंजलि, अण्णे वाहेति,अण्णे मसादीणं अट्ठाए उदवैइ, थातरं वि अण्णे बाहेति अ अण्णे छिदृति अण्णे लच्छति अण्णे आहारहेतुं खाति वा,एवं अण्णेहि वि कारवेंति कीरंत पि सामणुजाणातियोगनिक -करणनिकण विभासा एवं खलु तरस तप्प लियं तत्प्रतिकं सावधाकम पदमे दंडसमा दाणे 1 // महावरे दोसो दंड-समादाणे अणहादंडवत्ति ते ति आहिज्जति से जहाणामते के Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नापुरिस जे इमे तसा पाणा भवंति से जो अच्चाले णी अजिणात णी मसात पोसिोणियात एवं हिययाएपित्ताए वमाएपिच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाए दैताए दाढाए णहाए हारुणीए अट्ठीए अद्विमं जाए णी हिसिसु म ति णी हिंसति मैत्ति णो हिसिस्मति मे ति णो पुत्त - पीसणयाए णो पसुपासण याए णो अगारपरिवहणताए णो समण-भाहणवत्तियहेतु णो तस्स मरीशास्स किंचि विप्परियादित्ता. भवति से ईसा छेता भेला चुपक्ता विलुपत्ता उद्दवत्ता उझिङ बाले वैरम्स अभिाती भवति अणडाडे / हाणामए केइ. पुरिस में बम थावरा पाणा भवति, ते जहा- वृक्कडाइ वा कडिणा वा जंलुगा इ वा परशा इ वा मोक्ता इवा तणाइ वा मुसा हु वा कुछग इ वा पवार - वा पलाला इवा, लेणी युत्त पोसणा याए णो पसुपौसणयाए णी अगार पडिवूहणयाए णी समणमाहणपोसण "याए णो लस्स सरीरंगम्स किंचि विपरियादिता भवति से हंबा छेत्सा भत्ता लुंपत्ता वितुंपइसा उद्दवइसा उन्झिउं बाले वेरस्स अभिागी भवति, अजहादंडे। सै जहाणामले केइ परिसकच्छसि वा दहंसि वा उदासि वा दवियसि वा वनर्यसि वा मसि वा गहसिवा गहण विवादग्गसि वावणंसि वा वणविदुग्गसि वा पव्वयंसि वा पब्बयाविगंसि वा लणाई कसविय ऊन्सलिय सयमैव अगणिकार्य णि सिरति अण्णोणाव अगणिकायं णिमिशवलि अण्णपि अगणिकायं णिसिरसमणुजाणइ.अणद्वादडे, एवं श्वनु लस्स सप्पलियं सावने ति आहिज्जत, दोच्चेदंउसमादाणे अणदादेउवसिए ति आहिले / / ------ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +--- अहावरे क्षेच्चे अणस्थडे सिासै जहाणामए केइ परिसै जै इमै लसथावरा पाणा से जो अच्चाए अर्चयन्ति लामिति अर्चा-शारीरं वस्टा शार्यमाणस्य शारीरमुपयुज्यते, यथा मग हणं हालि। एवं जी अणाए ति अपूर्णा यामाचर्म तं वग्घ-दीवादीणा एवं आव णो अडिभिजाए तिहिसिं सु मे ति एलेज ममपिता अण्णी वा कोइ मारितो जहा-कलाविरियावराहे [ -] गाहा। सो ममं चैव अण्णं वा माहिति,जहा दसारहि जरासंधी हिसिस्मति त्ति भत्थं वा वाले वा मारैलि जहा केसी देवइ पुत्तीणी पुत्तपोसण मारयित्वा पुत्रादीनां मांसानि दास्यति / पसुपासणसाए नि गवां गवात्राया,आस-हस्थीण वि ओदण-संसादीणि दीयते / अगार हिरहण an (अगार परिवहणता) अगारं-गृहं सं बृहयन्ति इष्टककाष्ठादिभितई यन्तीत्यर्धः। पी समणमाहणेहिंसु (सुर-(माहीतुं समाणे चरगादीण पंचाह भन्समावस वा करीति, एवं माहणाण विसव्वत्थ वासरीगदीणि किंचिपति / स हेलाचता जाव उद्दवेउं उज्झितु बाल वैरम्स आभागी, थावराण विइछडादीणं एमेव,जहा पथवच्चलो रुकवस्या पर सूर्ण छड्केइ नहीए वा मोडेसोमाणाई वच्चति,कुहाडिं वा आयुधं वा रुक्रवबंधेसु रुक्रवडालेसुवा जिवाडेतो वच्चलि से बाले न किंचितलो पत्तं वा पुप्फ वा फलं वा आजीवति, केवलमेव वैरं कम्म तस्स भागी भवति अणडदंडासै जाणामले केइ पुरिस कच्छसि वा जाव पव्वतद्धार्गसि वा सणाणि-सैडिय-भंगियादीणि ताणिपुण सुक्रवाणि उस्सविय उस्स विध जा बाद वो वावतुबाध्तुति अगणिकायं सिरति 3, योगन्त्रिक-करणत्रिक 3 ।एवं खलु लस्सतप्पत्तियं ति सावजे ति दोच्चे दंडसमादाणेर। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T...... -'अहावरे सच्चे दंड समादाण हिंसादडवासिए ति माहिजइसे जहाणामए केइ पुरिस मम वाममि वा अण्णं वा अपिणं वा हिसिस - वा हिंसति वाहिसिस्सलि वातं दंड तसन्थावरेहि पाणेहिं सयमैव णिसिरति अण्णण विशिसिंशवेति अनपिणिसिरंतं समजाजर हिंसा दंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तिय सावने ति आहिलाइन्सच्चे दंडसमादाणे हिंसादरवतिए सि आहि है। अहावरे सच्चे देउसमा दाणे हिंसावत्तिए ति आधिज्जति,से जहाणामए के पुरिस स इति निर्देश यैन प्रकारेण यथानाम परोक्षसूचादिघु, केइ. अणिद्दिगिद्देसी की रति ममं ती मानेव, सीयंसे तं तदीयं पुत्र झालरं ना दुहितरं वा अण्ण पान अणि एमयं, अणि वेलि अणिएल्लियां / जहा-कप्पिसप्पेण खइतोअमत्तों अणीसहो मरतिक्षिणच सीसप्पी गहितीसैण चिंतितं-अहं तावरिवओ] मातोय,माएसजीवंती अ0 पिलोग साहिति लेण मारेमिएवं सौ अण्णस्स अट्टाए संसप्पं मारति अथवा अन्य इति परपराक्यः अणियं हिंसिस् ति एतेण कोइ मम मारितो आसि हिंसति उद्यतायुधाएवं जथा मुरायादि / हिमिस्सति ति जहा आसगीवोतिविटुं मा में मारेसलि'तिमारेतुमिच्छति रायाणी वाऽहाणए खलएचैव मार ति एवं ममवारममि at) अण्णं वा अपिणं वा एक्छेछ हिसिसु वा हिं-- "सितिति त्रिकाली भाजितध्यातसैस दुपद चतुप्पद-अपदावि जावावरेसुवि हिंसिंसुलि कम्यवसानिय अजाण ती भावरितो रोसेण --- Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छिदलिउ हि एती किं कहतरंज 11हिंसतित्ति रुखसालं पडसं अनागतं चैव आयुधैण छिंदप्तिाहिंसति म्ति दोसुइमादी -- - कण्टए मलेति यथा वा साक्यभिक्षुः एलां पत्र छिन्नं वा यौगत्रिक करणत्रिकेण णिसिरति / सच्चे दंउसमायाणी३॥ - - - --- अहावरे चउस्य दंडसमादाणे अकस्मात् दंडवत्तिए ति आहिज्जइसे जहाणामए केइ पुरिसे कच्छसि वा जाब - -- ------ -- पब्बतविगंसिवा मिरावृत्ति मिगसंकप्पे मि पणिधान मिगवधाए गंता एते मिगसि कह अण्णयरम्स मियस्स बधाए उसु आयामेत्ता" र्ण जिसिरेजा, से मियं वधस्सामिति कह तितिरं या वहां वा चडछा वा लावगं वा कवीत बा कविवा कविमलं वाविधित्ता भवति इह -खनु से भण्णस्स अट्ठाए अण्णं फुसति अकस्मादडे / / से जENTIमए मई (केवापुरिसे सालीणि वा वी हीणि वा कोद्दवाणि वा कंगूणि वा --- -परगाणि बारालाणिवाणिसिज्जमाणे अण्णसंरग्स तस्स बहाए सत्य जिसिरहा, से सामगं मदणागं मुगुंदुगं वीहिश्वसितं कालेसुर्य सर्ण विदिस्सामि तिकट्टसालिं बाबीहिँ वा कोहवं वा के गुवा पर्श वा रालगं वा छिदित्ता भवाइ इतिखलु से अण्णास्स अट्ठाए अण्णं फुसति अकस्मा दंडे, एवं रखनु लस्स तप्पत्तियं सावज्जैसि आहिज्जइ, चर्को दंडसमादाणे अकस्मादेउवत्तिए ति आहिते // ------- अहावरे चउत्थे अकस्मावतिए सि आहिलाइ अकस्मात् नाम हे त्वा पञ्चमी अकस्मात से जहाणामए के इताव पब्बतविसिवा मिवृत्तीए मृगा एव यस्यवृत्तिासङ्कल्पो नामाभि प्राय: मृगान् मारयिष्यामि इति कृत्या गृहनिर्माच्छति तदेवास्य प्रणिपानं Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुद्धिरमिनाय इत्यमर्थान्तरम् अधवा प्रणिधानंदीतं संगमादीहि अप्पाणं ण वैति। उक्त हि-वीत समणासरणीला भिगवाएगता एते मिति कट्टु जावाणिसिरतिा से मिग तधेस्सामीति कट्ट तिरं तिवा जाव कार्वजन वा विधित्ला भवति, जटामृग बहा अण्णं दूपद-चापद मिशसिर्व वा विधित्ता भवति / इति खलु से अण्णास्स अट्ठाए जाव सैजधाOIमए के इ पुरिसे सानिमाति णितिज्जमाणे सि बिहेमाणे अन्नतरअण्णतरस्स वह निसिरति सत्यं वा असिगमागमेवा (उसुमायामैत्ता) मदणकी सुगंधा लणजाति सालिमाइ छिदिता भन्नति इति रिवनु] से अ पास्स अट्ठाए अण्ण फुसति, फुसति णाम छिंदति,अथवा फुसति फुसमाणो चैवदु(दाकरवं उप्पा देति, किं पुणछिजमाणे? चउत्थे वेडे४॥ अहावरे पंचमै दंउसमादाणे दिडीविप्परियासियादडै लि आहिजइ से जहाणामए केलि पुरिस मादीहिं वापितीहिं वा भातीहिया भगिणीहिं वा भजाहिरवा पुत्तेहिं वा धूताहि वा सुण्डाहि वासद्धि संवसमाणे सितं अमित्तमिलि मन्नमाणे मिते हयपुबे भवइ. विट्ठीविप्परियासियादडे से जहाणामए कैद् पुरिस गमधार्यसि वाणाम्रघायंसिवा खेड कब मडंबद्यासि वा दोणमुहघायंसिवा पढनायव्य)सि वा आसमघायंसियासक्षिवैसघायंसिवा निगमघायंसिवा रायहानिघायंसि बा असण लेणमिति मणमाण अतण हरपुवे भवति दिढीविप्परियासियद(यादेडे), एवं खलु लस्स लप्पत्तियं साव लि आहिज्जति पंचमे दंडसमादाणे घिडिविपरियासियाई लि आहिए -------- - - Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहावरे पंचम दंडा से महागामए केइ पुरिसे माहीहि वा पितीहिया , नित्यमात्मनि गुरुधुच बहुवचनम् अहवा माताहि ति माति सवत्तिणीको मातुसियाली पितुस्सित्ताओ गोहिलाओ, पितीहिं हि पित्यादयः पितृवयंसा वा सैसाणि भातिमादीजि,मित अमित्तमिति मिग्रहण एते चैव पुलदिहा माया दीया महिला, तैनिं पातरं वा रातो वा रक्षण्णवणउ लि काउं घरं अतितं वा नितंवा मितं अमितमिति स्तेि वधिलपुल्वे ति सान्दृष्टक कियते / अस्थि के इवधितपुबे भवति अजाणती वृविपर्यासः दिविविप्परियासिया | सैजधान केइ पुरिसे गामघास सिवा गलो बा वियालं सि ता दिवसली पा सावत्झान्तलोचनः अक्षणं लैणं सि असेणे हत पुल्ले भवति, आसणे वा असिमादियो जति विट्ठी विपज्जासो होती ण मारतो,तस्स तं सावज्जेति पंचमा किरिया दंडो घात इत्यर्थान्तरम् |सतु पराश्रयदण्ड समादियति एभिरिति दंडसमादाणे (इ- . -दाणिप्रायेण आत्मा भयाणि एव एकान्तन लेख परस्स ववरोवणं भवति तथा वि कामबंधो भवति सिकाउँ किरियाद्वाणाणि कुच्चेति,आदिलाई (पुण) किरिया हाणते विसति दंडसमादाणे ति वि सति दंउसमादाणा पुच्चति 5 // -------अहावरे छठे किरियहाणे मोसत्तिए ति आहिज्जति सैजहाणामए के पुरिस मातहेतुवा पायहेतुं वा अगारहेतुवा परिवारहे वास्यमेव मुझे वयति अण्णा विमुझं वदावेति मुसंवयं तं कि अण्ण समणुजाणति एवं खनु तस्स तप्पत्तितं सावजे सि आहिजाति, छठे किरि यहाजे मौसवत्तिए तिमाहिते।। - --- - -------- - - - Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -------- महावरे छट्टे किरियहाणे मीश्ववतिए सि से जहाणामए मोसवलिए आतहेतुं वा महेतुं वा महोढवि स को इ चोरो गहिती अवलवाल शाहुं चोरो'लि. पायहेतु नि पुत्ती वा से अण्णी या से कोइ एस चोरी,मी पारमारियो / दास-भल-शाही परिवाशे शङ्क मुसं, असोजाब मोमोबदेशं करेइ एवं तुझ भोज्जयास' कूडमधल्पी वाति ।अण्णं वा अणुजाति, चैव भणहि-सुबुलुहि अवलत , योगनिक करणविकेण सावज तिराहे किरिय०६॥ - अहावरे सत्तमे किरियहाणे अदिण्णादाणवसिए ति आहिजाति से जERIES के व पुरिसे आतहेतुंवा जाव परिवारहेतु बासयमेव अधिष्णं आदियति अण्णण विभदिण्णं आदियावेति अदिग्ण आदियंत अण्णां समशुजाणालि एवं खलु लस्स तप्पत्तियं सावति आहिज्जति,स त्तमे किरिया आदिण्णादाणवत्तिए ति आदिते // ----- अहावरे सत्तमे किरि भविन्ना (दिना) दाणवत्तिए ति से अधाणामए अातहेतुं अहमेलं परिभुनिस्सामिति एवं जाति, अार-प वाहरतियोगनिक-करणविकेण सावजे ति सलमे किरिय०७॥ --- अहावरे अट्ठमे किरियहाणे भज्यस्थिएं लि आहिज्जति,से महाणामए केतिपुरिसे स्थि कैति किंचि विसंवादेति सयमेव होणे दीणे दुढे दुम्मणे औहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविट्ठे करतल पन्हत्थमुहे अदृज्झाणोवाए भूमिगतदिट्टीए झियाइ लम्स ज अज्झ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -शिष्यासंशजुटा चक्षारि माणा पुछमाहियोति ,तंक-कोहे माणै माया लोहे महात्यमेव को इमाणमाटालो है एवं शालु तम्स तप्पलियं. सावजे ति आहिज्जसि,अद्रुमे किरियहाणे कोव वंसिए ति आहिते॥ ययदाऽन्येन अपा लि.यो हि यद् विवक्ष्यश्चिकीर्षवा दिसुयो कस्यचित् कित्रि -------अहावरे अट्ठम अन्झस्थिए / से जधा० केइ पुरिसे णास्थि विसंवादेयते एवं कुरु वहिवा अस्स वा दैहिस एवं विसंवादितो दिज्जती पुण कोइरुस्स ति, एवं कोइ विसंवादेति,सयमेव अज्झस्थियत्तेण हीणे अदीणे दाणे अधवा समित्येकीभावे सम्यावाट: विसंवादः,क्षेपः प्रपञ्चः,अन्यं वा किञ्चिदप्नियां वचनं काममप्रियमुक्तस्य कोपः, स एवं विसंवादितो वि अकस्मादेव हीणे लिहीणे सरीराती - ओयालो छायालो बपुउवचयासी घीणी णाम अकृपणोऽपि सन कृपणापति संहृतोऽवतिक्षते / दढे ति अकृतापकारस्थापि प्रदुप्स्यते / दुष्ट मनादुर्ममाः। इष्टविषयलार्थनाभि मुख हिमनः तदलाभ अपहृतं भवति, अभिहतमित्यर्थः,मनसाच संकल्पः मनःसंकल्प : चिन्ताजा बन्झ --त्तिातस्स ण आत्मानमधिकृत्य वर्तले आध्यात्मिका, अध्यात्म संश्रिताः अज्झत्थर्ससइया,अधिवा मुक्तसंसयमेव समानदीर्घत्वकते . - अज्झस्थिया असंसड्या, अहवा संशयः अज्ञाने भये च, संज्ञायं कुर्वन्तीति संशयिता | कसाएहिं कषायावृत्तमतिर्न किंचिजानीते, भयं - चास्य इह पस्त्र च भवति।चक्षारि संजधा-सीधं दू,अप्पणी कुज्झति आभ्यं वागतुंवाया टुत्तरं वा कातुं अप्पणो चैव सस्सतिरुहो -- "ओहतमणासकप्पी। अज्झत्थमेव कोमाणपिस्सो पुच्छति-एते को धादि अझत्यातो जातो कि अज्झत्थं भावति ? ठप्पत्तिमार्ण भावाणं Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उमयत हटत्वात् संशयः,लव तावत् तन्तुभ्या पटो जातीम तन्तुप्रत्याख्यानाय भवति, गोलीमा-ऽविलोमभ्यो दूर्वा जाता कारण विल क्षणा भवति, एवमध्यात्माकोधद्या जाता किमध्यान भवति पटवत् स्वकारा(कारण दमन्यत्वे आहोश्चिदुर्वा यथा स्वकारणेभ्योऽन्या, एवमध्यात्म कषाया अध्यात्मवितिरिक्ता भवन्तीति सन्देहः, उच्यते-करायास्तावनियमादध्याम तु स्थात, कषायाः स्यादन्यत् खदिर-वनस्पतिवत् च,कथम, येनाकषायस्यापि अध्यात्म भवतीति,कथम् ? “काए। विहु अल्झर्ण"अकफायस्यापि काय-वाह - मनोयोगा भवन्तीति कृत्वा माध्याम भज्यते इति,निरालयकवायवती हिकधायिणथा एवं रवलु तस्स तप्पत्तिर्य अतुम किम् 1 कोषव लिए सि आहिते 8 // ".---. ... .. अधावरे णवमे किरिथट्ठा माणवत्तिए ति आहिसि सैमधाणामए केइ पुरिसे जातिमएण वा कुळमएण वाबळम एणवारूवमएणवातवमएज वा सुयमएणवालाभमएण वा इस्सरियमएण वा पण्णामएणवा अण्णतरेण वा मयहाणेणं मत्तेस ति माण पर हीले ति विदेति विसति गरहति परिभवति अवमण्णेति, इत्तरिए अयं, अहमसि पुण दिसिजाइ-कुल-वन गुणोववेह, एवं अप्पाणं विउछसे, देहाचुए कामबितिए अवसे पयातितं जहा समालो गल्भ जमाती जम्मं माराती मारं गाती जाग चंडेथद्धे चवले माणी याविभवति एवं खलु लस्य तप्पत्तियं सावन ति आहिज्जति,णवमे किरिया ठाणे माणवत्तिए त्ति माहिते। अधावरे णवमे किरियट्ठाण माणवतिए ति / से अधा केथि पुरि जातिमएण वा अहं जात्यादिविशिष्टः असंकीर्णवर्ण Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसमाजातीयः,अन्यैष्वपि विभाषा| अण्णातरेण वा मलैणं ति थिएनेहिली अट्ठहिलो मयट्ठाणहिती अण्णं मयट्ठाणं वलिरित अस्थि, - - - - किंतुसंजोगा कायव्वा,तंअधा-मायमयाते-जानेगे णो [कुलमयम ते णो जायमयमले कुनमयमत्ते णामठो 2] आतिमदमत्ते विकुलम - दम विएगे 3 णो जातिमदमत्ते णो कुलमदमत्ते,सी वि अवधु 4 आदिला लिण्णि भंगा घेण्यति,एवं जातीए सेमा विपदा भयितवा,द्ग संजोगो गती लिगतिगसंशोगो एगो जातिमदमत्ती विकुलमद मत्तीवि पन मदम्तो वि,एवं चउक्लग-पंचग-अक्कग-सलग-अडासजोगा कायदा बुद्धिविभवेण,एवं सब्वे संजोगा भाणितवा जाव परंहीलति, परीणाम यो जात्यादिहीमः अतुल्यजातीयस्त हीनयति लज्जाति एवं जाव अणिस्सरं दुर्गत हीनये ति / निंदिता नाम परजात्यादिन्यूनसमुत्थमात्मसमुथो मनस्तापः, जहा-मो पराओ हीणाजातीओ दुग्ग तो बत्ति,मा मरिसओ कोइ कुलो भोन्नाजीविकणइमदेण विसिट्ठो संपिणं दिति-सच्चर्ग माम महिती सोपलिओमविभो तधा वि दुजातीभो त्ति कातुं शमशानसुमना वववर्यः गरहाणामपरैसिं पाहाडीकरण-एसटजातीओ चंडाली हूंबाचम्मारादि वा परिभवो जाम आत्मनी जात्यादिम्दावलम्मात सद्धीनेषु परेषुअवज्ञा करोति वृद्धष्वपि अनभ्युत्थान न्यूममासने असक्कारिता हारादि प्रदानमित्यादि।इत्तरिओ अल्पप्रत्यय ET इस्वरमिति अल्पसरोऽयमस्मात् जात्यादिभिः, अम्माद हं जात्यादिभिर्महत्तर इति अप्पाणं विचसे इ विविध विशीष्टं पा आत्मानं विठक्क--- सनीति अप्पाण विउल्लासे-सी पूण किं] जाणवराओाएतानि जात्यादीनि सदस्थानानि इहैव भवंति ,नान्योति अधवाबल-रूप-लप Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सलामैश्वर्येभ्य इहापि कदाचिद्भश्यते किं पुनः परत्र? बद याद अत्यन्त जातिमदादीणि भवति ली कित्यमजितव्यं ? इतौ पुण देहती चुती कम्मावितिओ अक्सी पयाति तासु तासु उच्या'च्च)- नीयमा (वी) सु गतिसु,उपपद्यत इत्यर्थः ।रों नट इनसोचेव राया भवति सोचैव रायाभ वित्ता सोच्चेव दासाः,सोच्छवीकिकोवा लस्समायो? एवं जीवी वि“एगता वत्तिभी."[उत्तरा० अ०३ गा.४] |अथवायत्रा परवशता ब्भ 1 गब्भातो अगब्भअगब्भातो गब्भं अगमातो अगम मस्सपंचेदिया गया. तत्रा की मानः , सच कर्मवशेम,एवं गहभातो गल्मी ससाण अगभी ।जम्माती जम्म एवं एकभंगाणगातो पर तुभगो यावत् स्व कमविज्ञादेव सुरवी भवति दुःश्वी घा, मृतश्च कर्मभिरेव शोभना मशोभना बिा] गति नीयते ।उक्तं हि-आण कर्मा, काणि विकति' इति। - एतदभावे (एलद्भावे) उत्कर्षाकर्षे को मामः(मानः)? जी पूण मामी तस्स अवमाणितस्स रोसो भवति तैनीच्यते-चढे थो चंडी कीधीत्यर्थः, प्रा -त्यादिधर्मस्तब्धः अवमाणिती पियमा सस्सतिरुट्टीपिमाणं पिकरीति, नकोध-मानोनित्यमन्योन्यसाचिव्यताचिवले नाम अठांमारे मुहत्तैण अव - ----- -------------- ------ ----- माणितो सस्मति थरथरेति अलौस ति जात्यादिभिरामा प्रशंसति। माणी याविभवति, च शब्दः पूरणे, अपिःसम्भावन,माणी अवमानती चंही चवलो च भवति एवं माणदौसा सावको ति वम किरियाट्ठाणे 9 // अहावरे दसमै किरियहाणे मित्तदोसवलिए सि आहिज्जति से सहाणामए केति पूरिसे मातीहिंवा पीतीहिं वाभातीहि वा भगिणी -हिंवा भज्जाहिं बापुत्तेहिवाध्याहि वासुण्डाहिँ वा सदिसंक्समाणे तैसि अण्जतरंसि अहालहमगंसि अपराहसि सयमेव गार्य दंड णित्तेति तंजहा Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीतीदगवियसितोरवा) कायंउवलेला भवति उसिणोदगवियडेणवाकार्य औसिंत्तिता मषति अगणिकाएक कार्य उहित्ता भवलि,जीलैणवावेतेण व -णेत्तैण वा तयाइना कसैण वा डिवाए वा लयाए वाअिन्नयरेण वा दवरएज] पासाइंउहालित्ता भवति देडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वाले लूग वा कवानेण वा कायं आउहिता भवहि, तप्पगारे पुरिसजाते संवसमाणे दुम्मणे भवति पवसमाणेसुमणे भवति, तहप्पगारे पुरिसज्जाले दंडपासीदंडगुरुए दंडपुर क्रवडे आहते वमसि लोगसि अहिते परमि लीगंसि संजलणे कोहणे पिटिमंसि याविभवति एवं खलुतस्स तप्पत्तियं सावज्जे ति आहिज्मति, इसमे किरियडाणे मित्तदोसवत्तिए ति आहिते // 9. - अहावरे दस मित्त दोसवत्तिए ति माहिते से जहाणामए के पुरिसेमाती हिं बा पितीहिं वा जाव मुण्डाहिं वा० संवसमाणे तैसि अण्णतरे सिवाए वा अवराधावाइए ताव अक्कीसो वा पच्छूसरी वा प्रतीपभणनं संदिट्ठो वा भणति वामित्त वा विटाहिआउवा करति हिकार तिवाधिकारेति वा काएणहत्थोण वा संघद्देत्ता उवकरणे वा कम्हियि भिषणे वा एवमादि लहसी अल्प इत्यर्थः सीतोदग० वा कार्य ठवलेत्ता भवति हेमंतरातीसु। उसिणीदगवियडेण वा कार्य ओसिंचित्ता भवति, वियग्गहणा उसिणतैलेण वाउसिण किजिएणषा। अगणिकारण वा उन्मएण बास्तलोहेण वा कार्य उड्डहिला भवति, कडएण वा वैदेखें पली वेति सोचैव कमिग ति बुच्चति। आह "हिंसानवा के शवमायया बा,विषेण गोविन्द ! दिवाग्निना बा"।। - -7 छिव ति से सो कसओ,सैसंकण्ठ्यम् उहालेति तिचम्माई संबावेति 'वंडोप्दंडो) तिलउडऔ अदिति कोप्पर, तेन खीलं देति / अंगुद्वंगुलितल-संघातोमुट्ठी लावयति प्रहारेणेति लैलू / कवाने बसकप्पर Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -मित्यर्थः कुट्टयतीति आउद्देति सधपगारे पुरिस संवसमाणे दुहितादुिम्मणा] भवंति।तएव यथा मालार प्रीषित मूषिकादि सत्या सुहं सुहेणविहरति / एवं हामिपवसिते वीसत्था घरे ठिया पाडिवेसिया वा जागरगा मामलगा वा, सलो वा जाणवतो पीसत्थी स्वकर्माम्ममुिष्ठायी भवति।तध प्पगारे दंडगी तिवद्वान वाऽऽरंभतिषा शस्तस्सहरण वाकरेइ हाच्छिन्ना ति व करति णिनिसटा वा करेति / दंडपुरवण्डे लिवा दण्डं पुर स्कृत्य राया आयोझा एगट्ठा वैति आउल्लगा वि दण्डमैव पुरस्कृत्य करणे णिवे-सेन्ति,सचालिए बवहरति / अपणो चेव अहिले अस्सि लो मंसिक किंचि देडेलि,सोणमारेति, भहवा पुतं अण्णं बासेणिएलगमारेइ वा अवहरति बा, अण्ण वा किंचि अप्पियं करेति, तस्स घरं वासे डहति, सरमाण वाचतुप्पदं वा से किंचि शोण वा अस्सं वा हस्थिं ताथूरति अवहरेति वार अह ले परलोगम्मि एवमादिएहि पाहि कम्मोह सुबहुं पावं काम कलिकलुससमजणिता पारग-तिरिक्रवजोणीसुवासुबहुं कालं सारीर-माणसापच्चणुभर्वति। संजिणे सि (ति) संजलति याऽस्तिः भस्मीपधावीत्यी) त्वनुयोमा देहं सोऽपि लहसए वि अवराध खणे खणे सेनतीति सजलणी,परं च संजाल यतिा टुक्रवसम त्येण रोसेण संजलण एषय कोधणो बुच्चति ,एडिता दो वि, परं च अवगारसामुटण टुक्रबुणादण कोपयति / एवं ताव उरं ठरैणसय करोति कारवे वा, अण्णा पुणो सयं असमत्यो रुटो विसंतो परस्म दुवं उप्पाएतुं पच्छा यसै रायकुले का अण्णस्थ वा पट्टीमंसं - - रखा यति चौपयतीत्यर्थः,पृष्ठिना खादतीति पिहिमसिओ एवं ताव अधालहसए अवराधे जो हरि एरिकसं दंडं वत्तयतिसो महते Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवराधे दारुणतरं दडमिवत्ततिाकहं 1, पुत्तदारस्सेव यथोक्ता नि दंडस्थानानि शीतोदकादीनि अविरोसेणसयं करोति वा कारखेलिना एवं पुण केजि(यि)दो सवलियं अट्ठम किरियट्ठाण भागितुंपच्छाभांति, परे दोसवत्तियं णवर्म किरियाणं पच्छा माणवत्तियां दसम किरिया डाणं पच्छा माणबलियंट्सम किरियट्टाणं / एवं खलु तस्स सावजे सिट्समे किरियट्ठाण 10 // अहावरे एक्कारसमे किरियडाणे मायावसिएत्ति आहिजइसे जै इमे भवलि-मूढायारा तमोकाया उनुगपत्त - लहपापव्वतगुरुयाते आयरिटा विसंता अणा रियाती भासाली विउज्जलि,अण्णहासं अपना अण्णधा माणति, अण्णं पडा अण्ण - वागरे लि, अण्ण आइतितलं अण्ण भाइरपंति // से जहाणामए केइ पुरिसे अंतोसले त झालं णो सयं णीहरति णी अन्नैण णीहरावेति णो -पलिविखंसेति, एवमेव तिण्हवैति, अविट्टमाणे अंतीअंती झियातिाएवमेव माई मायंकह णी आलोएति णी पडिक्कमति णो जिंदति णो गरहति गोवि-- उदृतिणो विसौहलि जो अकरणयाए अस्मद्वेइ णौ आधारिधं सवोकामं पायच्छित्तं पडिबजाति,मायी अस्सिं लोए पच्छायाति मायी परंसि लौए प चायाति मिंदति गरहति पसंसति जिगरति णी णियवृति दृति) णिसिरियदंडं छाएति,माई असमाहउलेरसे याविभवति,एव रखनु लस्स टप्पत्तियं सावज्जति भाहिज्जाति, एकारसमे किरियहाणेमायावत्तिएति आहित // ---- ---------से ले वने भवंति गुदायारा गुह संवरणे"गूठोटो) आचारो औसिं ते गूठायारा,यथा तजगत सीदिनचारी Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा, णाणाविधेहि उवाएहि विस्संभंजाशि पच्छा मुमतिबा मारतिवा,जधापज्जोएण अमयोदासीहिंहराविलो।तमी तिमिरमन्धकार इत्यनर्धा-- - न्तरम् यथा नक्तञ्चराः पक्षिणःरतिं चरन्ति अदृश्यमानाः केचित् एवं ते विचौर-पारदारिया लमसि कार्या-चैप्टा कुर्वन्तीतितमीकाझ्या / - उलापत्तलहुए सिउलकाः पक्षिणः पात्यतेऽनेनामा समिति पत्र विश्वमित्यर्थः,जहा उलगपत्तं तणुएणावि वालेण चालिज्जति वा उत्थति -ज्जति वा उक्खिप्पति वा एवं लहुगमम्मी, जेण केणइ लंचेण गुरुए विकज्जे उत्थलिप्तति ।पलालगरुए ति, जहा पलाता गाढावगाढ - बद्धमूलो संबहरावातणाविणा सोलि चालेठंबा उम्मूले उंबा,एवं सोऽपि मायावी सुसाव भी जत्थाणेण लंधो गहितो जंवा असं तेणावि अभियोगेण विणास्तुकाम तस्य अण्णेहि अल्मस्थिनमाणो वा अवि पादपडणेहि न सक्छति उत्थल्लेलु (भारिया वि संता अणारियाहिं विउंटति आयरिया खेतारियादि, आरियमासाहिँगच्छ भणभुज एषमादिएहिएते चैवऽत्थे कलाद-हालाचर-चोरादी आत्मीयपरिभाषाछम्मए. हिभाति,मा परो जणी हीति, अजाणं लो मुह बंकिज्जा अण्णं पुडा आमान पृष्टः कोविचाराम कथयति एवं कोइ सोहिलाए गोषीओ पंरते -कुठिएहि गातो चोरो ति विमाणो गहिलो राउलं जीती करणिएहिं पुच्छिो भणति-पतहं चोरो पहिउ सि अमुगस्थ पडितो,कचि समा-- वत्सीए एतासिं]गावी पिढती संपततो चेवगहिलो अधिवा कस्स किंधि भासियाहित,पच्छासोतं चौरं कोचि भणति-अवस्स एतं असुगेण हितंभविस्सति सोयतं आणलो विजधा तेण हितंति भण-अमुगण हितं अण्णेण वा, एमादी अण्णं वागरेलि अण्ण Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महासंसं अप्पाणं अण्णधा दंसते त्ति,जहा सलग णाजाविदेहिं पासंडवैसैहि अपरं वचैति एवं चासिा विचारैति / अण्णधा आखिलवं ति, उहा पुढे केणइ को सि तुमं १,मोढेरगाली अती (आगतो) भवान् ?, सो भणति-णाहं मोढेरगाती, भवदामादायाती।विछतो वा पुच्छइ को अन्यो? निठणं भालि, किणं तो अधियंसो एवं कूडकरसावों छैयं कूडगं ति।से जहा वा के रिसे अंतोसल्ले'मा मै टुक्रवाविज्जिाह' ति कंटे णो सयंपी हरति यो अण्णेणं ति वेज्जेण अण्ण वाणीहरावैति, णो पनि विसैति तिनात्येन केनचित् औमहेण को धति, केण वा पुढे दु बली' एलेणएस वणे पउणति सिमा ससल्लो अज्न वि होजा। पच्छा एवमेवं ति, जहा से सयं णी उद्धरति एवमेव अण्णण वि - पुट्टी वेदशाभीलो गस्थि मल्ली सिण्डिाइ / अविउमाणे लिपरणपुट्ठी अपुट्टो वा अणालीएमाणी तैनान्तर्गतेन दुःखेन पीलसक्खो विव अन्तर्गलदावाग्निना अंती मज्झौसियाति (अंती अंतीझिया ति) एवं पच्छण्णं पारदारिगादि विरहेण लप्पंति, अलममाणो पौलसक्यो विव अ-- -न्तर्गत पावकः अंतो अंती झियाति / आह हि-मित्र मन्तर्गतमूदमन्म[ ]एष दृप्रान्तोऽयमपिनयः - एषमेव मायी मार्य कट्ट चौरी बा अचोरो अण्णो वा पुच्छिज्जलो वि जो आलोएति / उत्तरिओ दिकिंचि मूलगुणातिचार वा उत्तरगुणातिचारं वा कहजो आलोएति, आलोचना आख्यानम्। प्रतीपंक्रमण प्रतिक्रमण | निन्दा आत्मसन्तापे / गरहा परैसिं वारातस्मात् स्थामा निवर्त विद्यम (दृगंणो - आधारिहजरजस्म अवराहस्स अणुरूवं पायच्छित्तं लोगे वेदेवा, लोके लाक्व भगम्यं गत्वा, अमद्यपोवा मद्यं पीत्या,णिजिसमे वामांसं - Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रखाइसामाणावधम्ममौखिताण उवद्वेतिजावपत्तिछत्ता बेदेखि किम्चिद् अतियार पलण्डुभक्षणादिकृत्वा मद्यं वा पीत्वा सद्यः पतति मासेन?' - ] अध्यापकामामालौचयति जाव पच्छित (समये विश्वाम्नायविरुद्धं कृत्वा सयाण सियाण गुरूणं आलो एति / लोगुसरे वि - एवं चेवणी आधारिधं,मायी अस्सिं लोए मणुस्सलोए,जो ताव गृहस्थी मायी सौ कदा इउम्सण्णवादोसो वा इम लीगलाण चेव लभति, पर लोगे पाग-तिरिकवलीजिएमु अप्पणो गासा पच्चायाति।जह कौड़ औसण्णदोषत्वात् अस्सं चेवलोए पच्चायाति देवलो पिलमति कती मोक्यो? अणालोइय पडिक्क तो वा सम्मदिट्ठी भाव णो सिज्झति। पर नोए पच्चायाति, देवलोक इत्यर्थः किं पुण सएवं मायी, निन्दा-गरहा निन्दनीया मिथ्या उतं हि- "अमायमेव सैघेत"[----] मायी च निन्द्यते लोके न इत्यर्थः / आत्मानं प्रशंसतीती, सेविताचमए असुद्धवचेति अप्पणी तुस्सप्ति आहाह-"येनापवपले साधुरसाधुस्तेन सुष्यति"। [- ]णिगरति यदामायिना परो वंचिती - भवति तदा लब्ध पसरी अधियं चरतीति गियरतीलिाणी नियति ननिवर्तने तस्मात् प्रसङ्गात् / उक्तं हि-“करीत्यादौ ताब" 7) --णिसिरियदंडी गाम हरणे माह वा तं कातुं छादेविण करैमिति, अण्णस्स वा उवरि छुभति। माई असामाहरलैस्स हिडिल्लाओ तिणि असमाहउलेस्साओ, सत्याभिः नियो गैरात्मन्या हृता असमहडाओ, वरिल्लाओ तिण्णि समाहडा औ ।एवं खनु तस्स मायि रस असमाहउ लैसस्स सावज्जे ति आहित / एकारसमं किरियाणं 11 // Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “अधावरे बारसमे किरियहाणे लोभवति ते ति आहिज्जति जे इमे भवेति तंजहा-आरणिया आवसधिया गामलिया कण्हुयिरहस्सिया जो बहसजा(जता) णो बहुपडिविरतासब्वपाण-भूत-जीव-सत्तेहिं ते अप्पणों सच्चामोसाई पजति, अहं ण हतलो अण्णे हेतला अहंण अज्जा वेतन्यो अण्णे अन्जावतला अहं ग परिघेतली अण्णे परिवेत्तव्वा अहं परितायलो अण्णरे परि सायला अहं उद्दवयवी अण्ण उद्दवेयवा, एवामेव ते इस्थिकाहिं नच्छिया गिद्धा गादिया गरहिया अज्झौबावणा जाव वासाई चउपंचमाई छवसमाई अप्पतरो वा भुज्जत वा नित्तु भौगभौगाई कालमासे कालं किच्चा अण्णतरैमुकिल्विमएमु जाणेसु उपवत्तारी भवति, लतीविप्पमुच्चमाणे भुज्जी भुज्जो एनमूयताए समोकाइयत्ताए पच्चायति एपंखनु तस्स तप्पत्तिय सावजनेत्ति आहिज्जति दुवानसमे -- किरियटाणे लोभवसिएति आहिते। इच्चेलाणिद्ववानस किरियाठाणाई दविएण समणेणवामाहणेण वा सम्म सपरिजाणियाणि भवंति -- -------अधावरे दुवालसमे ।एताणि पायेण गृहस्थानां गतानिएकारस किरियाणाणा पुण पासंडत्याणं बारसमं कि - रिया सेनोच्यते-जे इमे भवंलि भारणिया अरणेसु वसन्तीति आरणिया तावसा ते पुण कैइ क्यमूलेसु वसंति,कै उदएसु(उडएसु) -आक्सधेसु वसन्तीति आवसतिगा (गा अतिक-अभ्यासे ग्रामस्य सामयी मामाणावा अलिए वसंतीतिगालिया, साप्तमुपजी वन्तीत्यर्शः। कण्हुयिर हस्सियति"रह त्यागे, किश्चिद रहत्य एषां भवति,यथा होम मनाच, आरण्यगं वा इत्यादि,सर्ववेदा एषा Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहस्य येनामाह्मणाटा न दीयन्ते ।णी बहुसंमता णो बहुएसु जीवेसुसंगता पंचिदिए जावणमान्ति,एगेदिय-मून -कंदादि उदय अगाणिकायं. - वर्धन्ति,संयमो नाम यत्नः। विरती वैरमणं, जहा मए अनुओ तब्लो सिपच्छा तेसिं चेव #मुविरतो तेसु जवणं करति मा ते मारेस्साम्मि ति। अधवा संजमोविरती एगट्ठा, सल्लपाण जाव सहि / अधा जो बहुसेजओ णो बहुरते अप्पणो सच्चामोसाई प®जति सच्चं मौसकतं, संमधा-अझुण हंसली अण्णे हेतला,बामणा न हन्तव्याः, बामणघातकस्य हिन सन्ति लोकाः,शूद्रो हन्तव्यः शूर मारयित्वा प्राणायाम - उपेत् विहमितिका कवा कुर्यात् किंचिद्वादद्यात् ,अनस्थिकानां सत्वाना शाकटभरं मारयित्वा ब्राह्मणों भोजयत्। हगाणं पिट्टणं आज्ञापन अमु. -कुरु अमुगं देहि चेत्येवमादि / परितावणे दुक्खावणं / परिवेत्तव्वं ति दासमादि परिगेण्हलि उद्दवणं मारणे / महाऽतिवातातो अणियाला" तथा मुसावादादिण्ण०३।अधा एतेसु आसवहारेसु अणियत्ता एमैव स्थिकामेसु अण्णे सहादयी कामा लैहि सहिंती वि, इस्थिकार्मा। भारिया / च-"मूल सैयमहम्मस-"E-- --71 आह च स्निाधीदर कृते पार्थ "[ 7अथवा इस्थियासु सद्दाट्यो पंचाविकामा विद्यन्त इति। उक्तं च-पुप्फ-फलाणं च रसी० [ - ]|मुच्छिता गिद्धा जाव अज्झौववण्णा जाव वामाईचतुः पचारातु:-राञ्चहण छस्त जाव छड्समाई, मज्झिमो कालो गहिती। परेण काहाण माहिती जाव वीस तीस सयं तिवार, उच्यते, एते प्रायेणअण्णउत्थियाभुक्त भोगा अवच्चीपादाणाइ काऊण पर्यति, भौगपिवासाएषा भोगे कत्विहरंति, जीवति ति गलवार Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -जाव अवच्चाई उपादेलियावंतिय सावा चैवसे वयो भवति / आहहि-"या गतिःक्लेशदामi."[ - लैनचतुःपञ्चग्रहणम् / उक्त च-“सोयसुल थोररणमुह."[ ] / एवं ताव तैसिं रिपबइ ताणं एस कालो ठस्सीण भाणतो, पच्छा सुतेण चैवऽवदि सलि,एतस्माद यथोद्दिष्टाद् अपतरो वा भुजतरी वा, एवं वा दोघा तिणि वा वासाई महिलाई,भुजतरी भवति, दसण्हं परेण जाव सतं बानपावृताण,महा सुगलस्सजणो णासि ति मगो न जालो।एवं लावतपाइता अणियसभोगा यथा शास्त्रोक्ताः,आमाकर्म आहारी आवसध-सयणा-SS छादण-स्नान-गन्ध-माल्यादिभोगा भुजति ल एवं अणियतकामा कालमासेकालं किच्चा अण्णातरेसु वा आसुरिएर स -किलिसिएसु जैसुसूरी स्थि दाणेसु ताणि पुण अधेलोए सूरोणात्थि,तत्य भगवन-धाणमंतरा देवा सेसूबवण्जति किल्विस कलुस कल्मषं पापतित्यनान्तरमा किल्बिसबहुला किब्धिसिया ।लली वि किल्बिसियाली विमुच्चमणा जइ विधावि अतरं परंपरे वा माणुम्म लभतिसथा वि एनमयलाए एमओ जहा बुल्बएलि एवंविधा तस्स भासा भवति। नमीकाव्यसाए ति जात्यन्धी भवति खालंधी वा एवं खनु तस्स दुवालसमी राडच्चेसाणि दुवाल सकिरि० संमारियाणि प्रयेण मिध्यादभिमाश्रित्य / दतिओ रागदौसविष्यमुच्छो ।ममाणे सिवा माह स वा पाईसम्म परिलहितवाणि भवेति, तात्वा न कर्तव्यानीत्यर्थः / / --------- - महावरे लेगसमे किरियडाणे इश्यिावहिए सि आहिज्जति इह खलु असत्ताए संवुडस्मा अपारम्स इप्रिया समि Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयरस एसपसमियरस आयाणमंउमसणिक्खेवणासमियस्स उच्चार-पासवज-खेल-जल-सिंघाणपारिद्वावणियासमियरस मणसमियस्स 4. वयसमिथस्स कायसमियस्स मणगुत्तस्स क्यगुंलस्स कायगुस्सस्स गुत्तिदियस्स गुप्तबंभचारिरस आ गच्छमाणस्स आउसंचिताणस्स आत जिमीयमाणस्स आसं तुय माणस्म आउसं भुज माणम्म आ3त्तं भासमाणस्स आउत्तं वत्थं पाउगह केवलं पायपुणे हि माणस्म वा जिविस (क्रित)वमास्स वा जाव चतुपन्हणिवालमवि अस्वैिमाता सुहमा मिरिया इरिया वहिया माम कजाति,सा पढमसमए बद्धा पुट्ठा बितिसमते वैदिता ससियसमए णिजिणा सा बद्धा पुढाउदीरिया वैदिया णिजिणा सेयकाले अकम्मे याविभ वलि एवं खलु लम्स सप्पत्तिा सावजेत्ति आहिजाति,तेरसमे किरियट्ठाणे ईरियावहिए ति आहिति॥ से बेमि जे अतीताजे य पडुप्पण्णा जय आगमस्सा मरहता भगवली सव्वे ते एताई तेरस झिारश्यहााई भासिंस वा भासेंति वा भासिस्मति वा पण्णवेंसुषापण्ण वेंलि वापण्णवेस्संलि बा,एवं चेव तेरसम किरियडाणं सेविसु वा सैर्वति वा सैविस्तंति वा - अदुत्तरं च णं पुरिसविजयविभंगमाविश्ववस्मामि इह खलु पाणापण्णाणं गाणा छंदाणे णाणा सीलाणे जाणादिट्ठी णार ईणं जाणारंभाणं णाणा झवसाणसंक्षाणं गाणा विहपावसुयज्पयण एवं भवति, तं जहा- भोम्न उपायं सुविण अंतजिवं भगं सरं लवण वजण इस्थिनकरवणं पुस्सिलक्षणं हयल करवणं गयलक्रवण गीणलरवणं मिढलकवणं कुछडलरवणं - Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तित्तिरलक्खणं वदृगल खणं लावयलक्खणंचकुलस्वर्ण छत्तलक्खणं चम्मलक्रवर्ण दंडलक्खणं असिलवखणमलि लक्रवणं - - कालिकखणं सुभगाकर दूभगाकरं गभाकर मोहण करं आहवान पासासणि दव्वहोम खलविणं चंदचरियं सरचरियां सुक्क चरियं बहस्सासिचरिय उक्कापायं दिसी दाह मियचक्कं वायपरिमंडळ पंसु बुद्धि केसवुद्धि मंसवुष्टुिं सहिरवुद्धि वेलालि अद्ववेत्तालि ओसो वणि तालु ग्याडणि सोवाति माबरि दमिलिं कालिंगिं गौरिगंधारिउपालणि णिवाणिजमणि भाणि लेसणि आमयकरणिं विस लूकरणि पवमणि अलद्धाणि आयमाणि, एव मादिआओ विज्जा भी अण्णास्स हेतुं पहुंजलि, अण्णोमि वा विरूवस्वाणं कामभोगाण हेतुं पति,तिरिच्छते विज सेवेति,ते भणारिया वियाडिवण्णा कालमासे कालं किच्चा अण्णतराई आसुरियाईकिब्लिसियाई ठाणाई उवक्ताशे भवंति तनोति तिप्पमुच्चमाणा भुज्जो एनमूनाए तमअंधयाए पच्चायति। --------- ------------ अहावरे तेरसमे किरियहाणे इप्रिया वहिए सि आहिए।ईरणा-ईर्या, ईर्शाया पथश्च जातं (र्या पथिकम् [ईरण ईया, ईरणात_पयश्च जातम्] सन_कुत्रा भवति', उच्यते-३ह खलु, इहेलि वह प्रवचने, स्वन्नु विशोषणे,नान्यत्र भवति, कस्य वध्यते ?अ. ------ --- -- - ससाए आत्मभावःआत्मस्वम् / आह - सर्व एवायं लोक आमार्ग प्रवर्तते?, उच्यते, येमाऽऽत्मनो निश्चयेनाहितं भवति सध्यमात्मवती कर्म? अशोभनश्यामा अमात्मैव लोकेनापिदिश्यते,यो हि विहितो भवति स अनामवापदिश्यते / आह हि-"अनात्मना चैष - Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रात्मवृत्तिः "[----] / यस्य च नित्यो जीवस्तस्याऽऽस्मार्धा प्रवृत्तिरयुक्का,येषां चात्मा नित्यः काफिलं च भुतः लेखा मन्यःकरोति अन्यः प्रतिसंवेदयते / इन्द्रिया-ऽनिन्द्रियसंवडः अणमारः। इरिया समियरस जाव उच्चार० माणसमित स्स वइ० काय० सम्या योग प्रवृत्तिः समितिरिति कृत्वा अg समितीओ गहिलातो। मागुत्सस्स व३० कायगुत्तस्स ति तिणि गुत्तीओ गहिसाओ, एते पुणतिण्णि वि काय-वाघ-मणी-योगा सम्यक् प्रवर्तमानस्य समितीओ भवंति एते एव त्रयोऽपि योगा सत्यगयोगानिग हो गुप्तिः' इति कृत्वा - गुप्तयो भवन्तिापुनः गुप्तिाहणं एतावान् गुहिगोचरः, नातः परं गुप्तिरन्याऽपि दृश्यते। गुत्तवेभचारिरस त्ति जस्म णवर्हि बंभचेरगु सीहिं गतं बभर भवतिसी गुत्तभचारी / आउत्त ति णिच्चमेव संजमे उवयुत्तोमा म सुहमावि विराहणा होज्नति,अप्रमत्त इत्यर्थः बाहरती बालस्स आण करत्ति, माणस्य आणावमाणास्य कोष्ठस्य वातस्य प्राणनं कुर्वतः पाणवमाणस्म चिटुमाणसाणसीयमाणम सुअट्टमाणस ता आउ-तं व जिविश्ववमाणस वा पहिलहितुं पमानिसुमित्या जावचक्षुः पम्ह यावत् परिमाणा-SAधारणयोः , प्रश्शालीति चर्चक्षुषःपक्ष्माणि अक्षिरोमाणीत्यर्थ: गिवालमवि त्ति उम्मेस-मिर्स करैमा ति। एवमादि अण्णी विकी --- सहमी वि गायसंचारी भवति, तंजधा-जाव जीवो मजीसी ताव निच्चली | सक्केइ होउं उर्ह च- केवनी भिंत! असं समयसि जेन्सु भागासपदेस सु." [भग 20 उ० सू० पत्रा सन्तो आलावगो भागितली,एवं सजोगिकेवलिणी सुहमा गत्तादिसंचारा भवंति, Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कामयसरीराणुगती राजीवो तत्तमिव उवास्थमुदकं परियत्तति लेण केवलिणो अस्थि सूहमा गालसंचारा। विधमा मात्रा माता, कदाचिच्छरीरस्य महती क्रिया भवति स्थान-गमनादि कदाचित् उस्सास-णिस्सासमुहुर्मासंचानादि अप्णा भवति। स पुनर्महत्या मल्पायां वाचनार्या सुल्यो भवति कालती द्रव्योपचयलश्च / कालतस्तावत्-सापटमसमए बज्यमाणाचैव पुट्ठा भवति, न तु संपराइयम्सेव --- -- जोगणिमितं गहणं जीवे अज्झत बज्झमाण चैव परस्परतः पुष्टं भवति संश्लिष्टमित्यर्थः,बज्झमाण चेव उदिज्जाति, बिलिए समए वैदिज्जति तलिए समए गिफारिज। प्रकृति-स्थित्यनुभान-प्रदेश क्रमश्च वक्तव्योऽत्र-सस्स पगडिबंधी वेदणि जं.ठितीए दुसमयठिति समाययं पदेसती बादरं शुक्ला पोग्गला, अणुभावती सुभाणुभावं, परं सालं अणुत्तरोववातिगमुहातो, प्रदेशलो बहुप्रदेश अधिरबंधांउक्तंच -- अप्पं सदरमउभं 7 अप्पं ठितीए, बादरं पदै सैहि, अणुभावती मउअणुभावं, बहुपदेसतौ,सुछिल्लं वण्णाती,सुगौधं संधतो,फासती मउ ,मंदलेवं शुल्ल कुडुलेववत् ,महब्वयं बहुअंएासमएण अवैति माता बहुलं अणुत (सराण वि तारिस सातं - जस्थिा बंधौ फुसा य अस्थि, संपराइ यस्सैव बद्ध-पुढ-गिधत्तमणिका यणा यणस्था सेयकाले अकम्मं चाविभवति,सेयकालो ति एस्सो कालो, सै ति लिईसे, से इश्यिावधियाए कम्मे अकालो, लस्स दोण्हं समयाणे परेणं अकम्मं चावि भवति, व शब्दोऽधिकवचनादिषु,तथा वेदन पकुच्चा अकर्म, तीतभावपण्णवणं पुडुच्च कम्म गुडघट दृष्टान्ता, दुबिधा कम्मसरीरा-बद्धेल्ला यं मुक्केला य, मुकेल्लए पडुच्च कम्म, एवंच Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महणेन संभवता च सद्देणाचलमतिाएवं रखनुलस्स०सावज्जेत्ति आहिज्जाति एवं साव वीतरागस्साजे पुण सरागसंजता सिं संपराइया, ते पुणगई एताई इरिया बहियताई बारस किरियट्ठाणाई लेसु वटुंसित्ति काउं तो तत्थाणुलता,तेसिं प्रमाद-कषाय-योगनिमित्तो संपराइय बंधो होइ,जत्थ प्रमाद तत्थ कपाटा जोगा यजिटामा,जोगे पुण पुबिल्ला भनिता (पमादपच्चयो जातिदीहकालहिलीभी होति सतो कायप च्यायो वा ऊणतरी अंतीमुहति भी षा अनुसंवत्सरिओ का, जो पुण कसायविरहित जोगेण बन्झति सो य इरियावहियो,हिहिल्ला पुण सावजाचैव बारम किरियहागाई भवति,पंचपच्चा इमो चउपच्चइओ बाएवं सरागसंतलस्य बंधी सावज्जो चैवाएताई. पुण लेम्म बद्धमाणसामिणा पुताई सहा किलोहि बुत्ताई ? आगम-स्से वा भणितिहिलित, उच्यते-से बेमि जे अतीता ३एलाई तेरस किदियद्वाणाई पगासिंसुबाशमहाबुद्दीषे दुवे रियातुल्ल उज्जोति, यथा वा सुन्यस्नेहोपादानात प्रदीप्पास्तुल्यं प्रकाशयन्ति,वीलागल्यात सर्वज्ञत्याच्य सुल्यमेवा हन्त्यै भगवन्त: तीतानागतसंपता भासिसु वा३। अदुत्तर चर्ण,तेभ्यःक्रियास्थानभ्या अधा उत्तरं अदुत्तरं,यथा वैद्यसंहितानां उत्तरं जं मूलसहितासु श्लोक स्थाननिदान-शारीर-चिकित्सा- कल्पेषु च यथोपदिष्ट तत्तरोऽभिधीयते,रामायण-छन्दोपहितमादीणं पि उत्तरं अस्थि,एवमिहापि तैरसस किरियहाणेसु जवुत्त अधिम्मक्खस्स अणुवसमपुवकं उत्तरी उवैति | विजयो माममार्गा, विविधी -विशिष्हो वा विभागो विभाः, पुरिस जातविभङ्गं भाइविश्वस्मामिाकेसिसी विभंगी? उच्यते पाणापण्णाणं, नाना अर्थान्तरत्यो, प्रज्ञायते Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राऽनयेति प्रज्ञा साया (प्रज्ञा आसटी), उत्तमाधिमा पOणा,लोके दृष्टवाद छटाणापडिलावा पणा। छन्दो ऽभिलाष इत्यनयन्तिरम् कोइउच्चा च्छन्दो भवति कोब् णीअच्छंदो भवति, उत्त[मा]म प्रकृतिरित्यर्थ:उच्चैणामे उच्चच्छंदे ९उच्च जानेगे भगा चतारिणाणासीलाणं स-- सीनो दुस्मीनो इति, सुखभावभदा सुसीला | णाणादिट्ठीणं तिणि तिसदा िण पावातियसयाणि दिट्ठीणं | UTOार यीण आहार-विहार-सट -55सना-च्छादना-भरण-यान-वाहन-गीत-वादिवादिषु अण्णमण्णरस रुच्चति।णाणारंभागं कृषि-पापाल्य-पणिक-- -विपणि-शिल्प-कर्म-सेवा दिषु |पणाभा जाष णाणाझवसाणसेजुत्ता,शुभा-शुभाध्यवसानानि तीव-मन्द मध्यमानि / इहलोकपडि बद्धार्ण परनीगणिप्पिवासाण विसयतिसियाण इणं जाणाविध पावसूलपसंग वण्णइस्सामि तंजधा-भोम्म उप्पा यं० इस्थिलकवणं. महा सातिसणुईति तन्वी पुरिसनक्रवणं लि मानीन्मान-प्रमाणानि, यथा-सचि भोगाः सुख मासे."[ हिनीति हीयते हया, लस्य मानीन्मान-प्रमाण-वर्ण-जात्यादिलक्षणम्। गच्छतीतिगजः, तस्य लक्षण "सलंगपलिहिते"[ ति वा गोणी मानोन्मान-प्रमाण-यपुर्वर्ण-स्वरादिलक्षण एवं चैव माव लोगो त्ति चकच्छत्त-ऽस्स-दंड-मणि-काहिणि चक्कवहिस्सा लस्सल खणं सारप्रभादीनि लक्षणानि, एतानि स्वमूर्तिनिप्पन्नानि लक्षणानि इदाणि विज्ञातन्तकम वच्चति, तंजधा-सुभग दुभगं दृम्या। सुभगं करेलि।विज्जाए गभी जेणसंभवति। मीहं मेहुणे वाजीकरणम_I अथर्वणा वेदममा हिंदयउड्डियपक्षसदोधैः पाकान शास्तीति पाकशासन, Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्नतश्येन्द्र मालविद्या | दळाई घयन्मधु-संदुलादीमि दव्वाणि तेहिं होम करैति दवहोम एवं सव्वविज्जाकम्मरबत्तियाणं विज्मा वत्त विज्जा ईसस्थं धणुवेदादि,तत्य विज्जा ओ अधा अबाणिाइदाणि मोतिसंवृच्चति,तं अधा-चंदचरितंवर्ण-संस्थान-प्रमाण प्रभा-नक्षत्र-योग राहु गह-महणादिचन्द्रचरितम्। सूर्यस्यवर्ण-प्रभा-राहु ग्रह-नक्षत्रयोगादा सुचरितं सुझचारो पढमे होति मुभिवत: [ ] बहस्सती संवच्छरलाई . एकेक रासिं वरिसेण चरति, सत्य के सुयि संवच्छरेसु सुभी के सुइ असुभी केमुइ मज्यिभो / उक्छवाया दि सीदाहा वा यथा -अग्गेय वारुण माहिन्द तेजसा सत्य-ऽग्गि-छुहाभवा दिला यवादीया एवं वारुणमाहिंदा विभाणितला मृगा हरिण गालादिआरण्याः, लेसिं रुतं दरिस ग्राम मगर प्रवेशादिजधा-श्वेमावामा घातेन्ति दाहिणा.[ वायसाण बसीसरुदाइं परिमंडल त्ति काकाई उंडका धई करत्तिा पसुबुद्धि जाव रुहिरवुट्टि त्ति कण्ठं / पुणो विजातीवैताकीदंडी उडेलिदिसा-काल दिसिट्टो ।अद्धवैलाली अचेदुलो जाति पच्छा पुच्छिन्नत्ति सुभासुभ। तालेति कवाडं मलेणविहाडेति न हा पभवी सौवाई मायंगविजयास बरीसबरार्णसबरमासाए वादमिली दमिलभासाए। कालिंगी गौरीगंधारी कंठोका जाए उपयतिति सयं अण्णवाउप्पतावैतिसा ठप्पा दणी जाए अभिमंतिती णिवडति सयं अण्णवाणिवहावेति णिव डीजा विजाभलि-जाएकंपावति पासाद कक्ख पुरिस वा सा भिणी जाएधभिज्जलि सा थंभणी, मधाबराडए अज्जुणेण कोरवा भिला।जाए अंधा कुरा य लेसिजलि भासणे वा तस्येवलाइज्जतिसा Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "लिसाआमयोणाम बाधी जयमादि नाही वालाएति आमयकरणी सल्लं पविट्ठ पीहरावलि सा पुण विज्जा औसधीषा,अधा-सी .... वागरज हवली. बि.नि.अंदिस्सी आए भवति सा अंतद्धाणी अंजी(ण) वाएवमादिआओ विज्जाओमन्तं जोगे य सावज्जे य अण्णास्स हेतु जाव सयास्स हेतु, अण्णोसि वा विविधाई विसिट्ठाई रूवाई से सिलाई विर-वरवाई सयणा-ऽऽसण-s च्छादा-वस्था-ऽलंकारा दीणटा, अधिवा समासैण सहादीण पंचण्हें विसयाण पयुंजलि से पुण पासंस्था [गिहटा] वा / जे लाव पासंडत्या पउंजनितिरिच्छते. लिरिच्छ नाम अननुलोम [म्हित्सा] वासे ताव पासंडत्या पउंजति तिरिच्छं ते लिरिच्छं नाम अननुलोमनित्य,अधा गलए अड़ा अदिवा कवू वा लागं लि एवं से जवि मोक्रवकं खिया धाविण मोरयं गच्छति अणारिया,जवि खेत्तारिया तहा दिणाणदसण-चरित्ताईपच्च अणारिया कालमासे कालं किच्चा अप एलमूअ "चाए पच्चायति पासंडस्था। जे पुण मिहत्था एते नवख-विज्जा-महे पठजलि लिरिच्छ से तिरिच्छं नाम अननु तेज धा कम्माणि चिट्ठामो सत्तारि वि गच्छति // एवं ताव अणुवसमयपुलोपाएसु पासंउत्थास्था अधम्म परवी भजिती उदाणिव अधम पारखी -मिहत्यो पाएग वुच्चहि Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ---सी एलिओ ति की जिससो मातहेतुं पा जाव परिवार हेसुवा, अण्ण वा किंचि णिएल्लग---- णिस्सा ए ति वितिजा, सी य असमत्थी गौहतु (गोपिठतुंग आह हि---- ........... - बिलाम विवाह चाललीट ग्रहकर्मा। नशक्यमसहायेम, निस्सर्तुमधने न पा / 6 // "---------- महलामो हि साहवासो, सो पुण बासी एसी एकगामिला मी व किं करें लि?, अटुवा अणुगामिनी अदुवा उत्तरए जात सौदागर ति," सूचनात् सूाम्" इति कृत्वा एवं एताणि संवेवेण सुत्ताई वुत्ताई ।एतसिं इदाणि मुत्तेण चैव वित्ती भण्णाति,जहाद -वेतालिए चत्तारिविणयसमाधिटाणा उच्चारनु पच्छा एकस्य विभासा, जघा वा “उविस्तणात संघाडे "- ]ति उ----- च्चारेऊण पदापिच्छा एकमेझस्स अज्झयण वुच्चति,दिडिवाते सुत्तानि भाणिऊण पच्छा सखी चेव विहिवाती तमि------ सुतपदा सुतेणचेव वृत्तिर्भवति | अधा-एगदिए भाणुगाप्तिय भावं पडिसेंधाय- अनुगच्छतीत्यानुगामिकासी पडिचरितु अस्सिएतस्य किति ..............---- Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से एगलिओ आयहेउं वा मायहेउं वा अगारह वा परिवारहेउवा नायर्ग वा सहवासयं वाणिस्साए | अनुवा अणुगामिए अदुवा उक्चरए अदुवा पडिपधिए अिदुवा संधिछेदए] अदुवा गठिछेदए अदुवा उरमिए भिटुवा सौवरिए] अदुवा बागुरिए अदुवा साष्ठणिए अदुवा मच्छिए अढुवा गोधाए अिदुवा गौवालए] अदुवा सोणइए अदुवा सौवाणिटोलिए। से एगराडा मी माणुगामियभाष पडिसंधाय तमेव अणुगामिथाणुगानिय हृता ईसा मेता ढुंपत्ता विलुपत्ता उद्दबत्ता आहएं आहारेति इति से महया पावहिं कम्महिं अत्तार्ण उवक्रवा इत्ता भवति / / से एगतिभी उक्चरमावं पडिसंधाय तमेव उवचरियं हसाछेत्ता भेलालुंपत्ता विनुपझ्झा उद्दबाता आहारं आहारेति इतिसे महला पावे हि कम्महिं अत्ताणं उसपरवाता भवप्तिा से एगइओ पाडिपडियभावं पडिसंधाय तमेव पउिपहेठिच्चाहताछत्ता भेत्ता लुंपत्ता विलुपत्ता उद्दवइत्ता - आहार महारैति, इति से महया पावहिं कम्मैहिं असाणं उवक्रवाइत्ता भवतिय [से एगतिमी संधिछेद्गभाव परिसंधीय | समेव संधिछेत्ता मेसा जाव इति से महया पावहिं कम्मेहि अत्ताण उवकखाता भवति ] से एगलिओ गंठिछेदगभाव पछिसंधाय समेष गठि छेसा भेला जाब इति से महता पावे हि कम्महि भत्ताणं उबक्रवाता भवतिगासे एप्रतिमओ उरम्भियभावं | पडिसंधाय Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1उरम वा अण्णतरं वालसं पाणं हंसा जाय उवक्रवाइत्ता भवति। एसी अभिलावा सबस्था सिएगतिओ---- सोयरियभावं पडिसंधीय महिसं वा अण्णत वा तसं पाणं हंसा जाव उतकवास्ता भवति // ] से एगलिओ बागु - शिवभाव पडिसंघीय मि वा अण्णलर बा तसं पाणं हूंला जाव उववश्वाइता भवति ||से एगतिओ सउणियभावं.... पहिसंधीय सउणि वा अण्णातरं वा तसं पाणं हेला जाव उवक्खाइता भवति / / से एगतिओ मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा अण्णातरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइता भवति // से एगतिओ गोधाताभाव परिसंधाय तमेव गोणंवा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उववरवा इत्ला भवति। [ से एातिआ गोपालगभावं पडिसंधाय तमेव गोवालं वा परिजविय परिजविय हंसा जाव उववरखासा भवति।] से एगतिऔ सोणयभावं पडिसंधाय तमेव सुमागं वा अन्नातरं वा तसं पार्ण हुंता जाव उवक्खाइत्ता भवति।। से एाति ओ सोवागणियतियभाव पडिसंधाय तमेव मणुस्सं वा अन्नतरं वा तसं पाणं हंता जाव आहारं आहारैति, इति से महला पावहिं कम्मेहि अत्तार्ण उवक्रवाता भवति / -- Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महत्याए। पच्छा सीदिलाए पस्थिी अहमिति का गलागतोऽन्यो वा सं अणु वा गच्छति मागण, सोचि चिंतेति-एतेण अहं गच्छामी, - पच्छा बोल्लो चाक्लेहिं विरसंभऊण गुविलए दैसे गलगत्तो करति बभियं रखरगं दौरं गले छोएं एक्करलेवेण चैव पाडेति, अणुसु समत्तिभो पाहरे सावैक्खं खलुगादिसु, गिर वेरा गीलाए अण्णास्थ वा हृदि / से हंसा पनिपहाय दुता बीयाणार्ग खानु गादिसु छन्दित्वा हत्या छता,भिंदित्ता सीतल 33 पहारेण, पोट्टे वा गल्लएण उद्दावेत्ता मारेसु,“लुप्ल छेदने "लुम्पत्ति,जधाविधा विनुत्ते सत्वे गामी य आहारोति त्ति एवं प्रकारा तत्थ आहार कृत्तिः, द्रोहेणेत्यर्थः,णी वा सो भण् किंचि करस्सणं वा आहारणिनित करैति / इति से इसीत्युप दर्शने, महर्मिहता बहुपदेसिएहिं चिरकाल द्वितीएहि य पावेहि अहि कम्मेहिं आत्मानं उप सामीप्ये, आइ-मर्यादाभिविध्योः, "रख्या प्रकटने" आबुक्सपिस्वयमेव उपेत्य आश्व्यातीत्यर्थः,यथाऽहमेवकर्मा, तेनैव महता द्रो हेणापापेम कर्मणेति वक्तव्ये एके अनेकादेशाच्या पावेहिं कम्मेहि। अधवा लेन द्रोहैण महता पायेहि कामहि अट्टाहं बज्झति / अवाह-एकस्मिन प्राणतधे कथमटविधं कर्म बध्यत इति?, उच्यते, यथा घन पदाष्टिीक, मान अहि वि।से एगतिओ उक्चर गभाव पडिसेंधाट,उपेत्यचरतीति उपचरकः,भाओ भेडेतु मुसार्वति आव उवक्खा इस भवति। पउिपधिो पछिपण सोचिलाए एगहता खेत्ता भत्ता जाव उवक्खा इत्ता गठिोदी लोहमण समुगए बगपोलियं करिति ििदतुं ठरभो शाम ऊरणओ,तं कुत्तमालो वा मारेति, अण्णतरो वा तसी पासी पाणी ति तस्या लंभे छालादि। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवागुरिनीति वाही वग्गुरं करीति, आहे हेसाधाशयादिणोमिए पराए वग्गुराएवैदेखें मारेलि,अण्णासर ससे ति सूकर-रोज्न-वाद्यालिए समारतिसउणा मौरतित्तिरादि,अण्णसरोपाणो तस्य तस्स बाहितए अण्ण किंचि मारैति नान्यमारण्य वा सवं (सत्त),जधाचकवाई। मारितो मच्छगंजानेणगलेण घा, अण्णलरंवा लहप्पगारादि। सैगतिओ गोधातगभाव पडिसंधाय गोण मारेति,तस्यालामे महिषमेला वा। केइ पुण भांति-सोअरियभावं ति० महिसं, अण्णतरो लब्बतिस्तिो गोणादिी सोणइओ आगास पाणं डवो य, अण्णातरं ति तदलामे खाइलाओ बिराव) मारेति। सोवागणियन्तिउति सुणए पचंती सोवागा, णि आधिक्ये, अंतेसु [ग] मादी वसे तीति अंतिआ, मधा पच्चंतिया,एवं सो a वि अधियंति जोणियंतियो सो पुण सोवाहिन्तो वि अंतियतरी भवति, रहित इत्यर्थः, चो(जी) पुण पुरिस मारित्ति गोल्लविसए साह्मणघालक इव पुरिसघातओ वि गरहिप्नति, परतोयणिगच्छति।उता वृत्तिः।। दाणिं-- ---- ----- से एगतिमी परिसामझातोउल्लेता अहमैयं हंतिरं वावगं वा नावगंवा कवीयगंबा कविकविजलं वा अन्तरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्रवाइसा भवति।से एगतिओ केणइ आदाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खल केदाणणे अदुवा सुराधालएणं गाहावतीण वा गाहावतिताण वासयमेव अगणिकाएणं सस्सा शामेति अन्नेण वि अगणिकाएक समसाई झामावेलि अगणिकाए सम्माई झा तंपि अण्णं समणुजाणति इति से महता पावहिं क महिं अत्ताणं उक्मळावृत्ता भन्नः / / से एगतिओ केण भादाणे विरुद्ध समाणे अदुवा रवलदाणे अदुधा सुराधालरोण गाहावतीण वा Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहावतिपुत्ता वा उट्टा वा गोणाण वाघोडगाणवागहमाण वा सयमैव धराओ कप्येति अन्नेण विकप्पावैतिकपोतंपि अण्णं समणुन जाणाति इति से महताजाव भवति // से एगइओ केणति आदाणे विरुद्ध समाणे अदुवा रवालदाणेणं अदुवा सुरायालगेर्ण गाहावतीण वा - गाहावतिपुताण वा उट्टसालाओ वा गौणसालाओ वा घोडासालाी वा गद्दभसालानी वा के रगोंदियाए परिहिसासयमेव अग-- पिकातेणं झामेति भण्णेण वि झामावति झामें तं वि अण्णं समणुजाणाति इतिसे महता जाव भवति॥ से एगतिओ केण आदाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावती वा गाहावड्युत्ताण वा कुंडलं वा गुर्ण वा मणि था मोतियं षासयमैव अ वहरति अण्णण वि अवहरावैति अवहरंतं पिअण्णां समणुजाणति इति से महया जाव भवति॥से एगतिओ कैणति आदाणे विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदवा सुराधालएणं समणाण वा माहणाणवा छत्तां वादंडगं वा भंडगंवा मत्तगंवालडिगं वाभिसिां वाचेलगंवा चिलिमि लिगं वामगंबाचम्मछेदणगंबाचम्मकोसं सयमेव अवहरति जाव समणुजाणलि इति से महया मावस्वक्खाइता भवति।से एगतिओणी ति, विलिगिछता-गाहावतीण बागाहायतिपुत्ताणवासयमेव अाणिकाएणं ओसहीओ झामेति जाव अण्णं पिझामतं समणुजाणति इति से महया जाव उपक्वाला भवति॥से पालिभो जोखितिगिछति,तं. - गहावतीण बागाहाबलिपुत्ताण वा उहाण वागोणाण वाघोडगाण बा। गद्दभाण वासयमेव धूरातो कपीति अण्णण वि कप्याति अण्ण पिकप्तं समगुजाणाति।।सै एमतिऔ जो वितिगिंधलि तं०-गाहा Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वती वाताहावतिपुत्ताणवाउट्टसालाओ वा जाब गद्दमसालाझोवा कंटगोंदियाए पंडिपेहितासयमैव अगणिकाएक झामति जाव समणुजाणति से एगतिओ णो वितिगिंछति, सै०- गाहावतीण वा गाहावतिपुत्ताण या कोडलं बा जाव मोत्तिर्य वासयमेव अषहरति जावसम्णुजा गति से एगतिमी णी वितिमिंतितं०-समणाण बामाहणाण वा दंड वाजाय चम्मच्छेदणगंवा सयमैव अवहरति जावसमणुजाणति इति से महता जाव उवक्रवाता भवतिासे एातिओ समणं वा माहणंषा दिस्सा प्राणाविहेहिं पाव कामेहि असाणं उपक्खास्ता भवति, अदुवाणं अच्छराए अप्फोडित्ता भवति, अदुवाणं फरुसं बदित्ता भवति,कालेण वि से अणु पविदुस्स असणं वापाणघा.जावणीदवावेसाभवलि,जे इमे भवतिधण्णसंसाभरोसाशनसगासलगाकिमणगासमणमा पव्वयंति ले वणमेव जीवितं पिज्जनीवितं संपडितूति,नाइते परनोगस अट्ठाएकिंचिति सिकिस्सति तेक्वति ते सौयति तेति सीलिप्पंप्ति ते पितॄति ते पारलप्पति ते दुक्रवण-सोयण-जूरण-तिप्पण-पिट्टण-परितिप्पण-वह-बंधण-पारफिलेमाओ अप्पडिविरताभ वति, ते महता भारंभण ते महता समारंभेणं ते महता आरंभसमारंभेणं विस्यमबाहं पावकम्मकिच्चहिउरालाई माणुस्सगाई, भौगभोगाई भुमित्तारो भवति त जहा- अण्ण भण्णकाने पाणं पाणकाले वत्थं वत्थकाले लेण लेणकाले सयणसयणकाले सपुष्वावरंच णं हासे कतलिकामे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सिरसा एहातेकंठमालकडे भाविद्यमणि-सुबणे कप्पितमाला-मउली पहिबद्धस दा रेवाटीरियसोणिसुत्ता-मानदाम-कलाये महततत्यपरिहितेचंदणोकिरवत्तागाय-सरीरेमहतिमहालिताए फूडागार Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालाए महलिमहालियंस सीहासांसि इत्थीगुम्म संपरिबुडे सब्बराइएणं जोइणाझियायमाणेणं महताहतणतणशीतवातियतती-तत लाल-तुडिय-घणमुइंगपडप्यावाइसरवणं उरांलाई माणुस्सगाई भीगभीगाईमुंजमाणे विहरति तस्स णं एगमवि आणर्वमाणस्स---- -जावचत्वारिपंचजणा अवृत्ताचैष अमुटुंति,भणहदेवाणुप्पिता कि करेमी? किं आहरेमो? किं उवणेमो? किंवणेमोकिं आधि - -हवेमी? किं भी हियच्छित किंभे आसास्स सयवर, समेव पासित्ता अणारिता एवं घदप्तिाति-देव खलु अयं पुरिसे,देवसिणाए स्तनुमय पुरिसे देवजीवणिज्जे खलु अयं पुरिसे, अण्णेवि यांउवजीवंति, तमेव पासित्ता आरियावदंति-अमिळूतकूरकम्मे रबलुमयं पुरिसे अतिधण्णणे अति आतररखे दाहिणगाभिए रतिए कहपक्विए आगमिस्साणं दुल्लमबीहिए याविभविस्सति इच्येतस्म -गाणस उविता वेरी उमभिगिझंति अणुहितावेगे अभिगिप्रति अभिझंझाउरा अभिगिमंति, एस ठाणे अणारिए अकेवले "अप्पडिपुन्ने अनुमाउए असंसुद्धे असलगत्तणे असिदिमागे अमुत्तिनग अणिलामागे झणिज्जाणमग्गे असबटुक्रवपहीणाम असल्वदुक्खपहीणम्पी एतमिच्छ असाधूएस खनुपढमस्स ठाणस्स मधम्मपखस्मविभंग एवमाहित। -से एमति ओ परिस्समझाती उड्वेता अहमेत्तं हूँच्छामि, ही विसेसो पुव्युत्तेहिती, उस्यते (उच्यते) - ले के पच्छण्णं करें सि, इमो पुण अण्णीमाटीणकारी एस्सको कट्टानिमित्त वामसंवा खाइ सुकामो हत्यत्यो षा Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -अधम्मपक्रती वा वाणज्जमाणे जावलियाट्रीहकारका कइ समासैण उाद्दरसंलिाएतैपुणसव्वे अवरवकुद्धा कुत्ता, इमे अण्णे------ विरोधिता बुच्चंति-से एालिओ केणइ आदाणेण आदीयत इत्यादानं ग्रहणमित्यासत्कस्यकांवाभादाण १शब्दादीनांविषया णाम्सद्दे ताव आकुट्ठोणिदिती केणइपच्छाकट्ठो भवतिरूवैसुपरसणा दिटुंभिक्खुकादीविरुस्सलिागंध-रसे उदाहरणं सौत्रमैव- - खलके दाणं खलभिवावं तदूर्ण दिवंण दिणं वा तेण विरुद्धोासुरायालगंति थालोण मुरा पिज्जति,तत्य परिवाडीए आवेदुस्म वारी णदिण्णी उडवित्तीवा,तेण विरुद्धी जेलो लोग(लोग) भणतिवारविरुद्धो-गाहापतीण वा गाहावतिपुतावासयमेव सस्सा -पसा आलूलालूणाणि पगरणस्थाणि उम्मग्गेण झामप्ति, अण्णवाझामावेति, झामिलाई अणुभाणप्तिसुट्टतुमे झामिताइंति एवं फासे विआहलो भरिती वाकेणइ असुअणा नवेलेणं उच्चिटणवाासेएातिओघूरातो कप्पेइसालासोडहतिा किंचि कुंडनमुणे तिजाइण्णा ताणिकुंडल-गुणेसियाबण्णाइताणामेहलादीणिताणिहिताणिमोतियहारादिाएवं ताहाहा)गिहाण विवादमी अण्णो पासंदुस्थाण दिद्विरागणं वादे वा पराइतो सयमेव तैसि अण्ण किंचि परियाज अस्थि तं अवहरसितंजधान्दंडगंवा भंडावा पाव परिधोरण वान् सयमेष अवहरति जाव सादिजहिति। एवं ताव विरोधिया गता।इमे अण्णे अधिराहिता बुच्चंति-सोएगतिमी णिो] विलिगिच्छदिन -नेति प्रतिधेधे, वितिमिच्छाणाम विमी मीमांसा इत्यर्थः, नाविमति नमानसे इत्ति, इह-परली के वादोघोऽस्ति नास्तीति वा | गाायतीणव Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयमेव अगाणिक्काएणं सस्साईझामेइ अण्णण वा जाव समणाणबान्दंडं अवहरित्तए।एतै ताप असंवृताउता सागम्मणिराग-- -स्सुवा गिहस्थ-पासंडत्यस्य दहणच्छेदणा-उपहार C]कृता इति। इदाणि दृष्टिविरुद्धा आमाढमिच्छदिडिका बुच्यति-सो ऍगतिमो समणं वा माहणंवा गार्म घरंवा अतितीवा अण्णस्य वा कत्थइदुल्लभदंसणं अवसउणं लि मण्णमाणो आसुरुत्ते रुहा अदुवा अच्छराए माझियारे रोसेण वामाव भणति, अच्छरा नाम चप्पुडिया,किं ज्ञापकम् ?,तीहि अच्छरालिवातेहिलिसत्तरबूती एाए अच्छराए अप्फोडेति त्तिभिगुडी कुचितनिडाला फिट्टफिट्ट भांति। अदुवाणं फरुस भगति काले विसेज्जति भिक्खाकात - - दवावेत्तागजो विदेति तंपि वारेइ,एवंचणं वदति-से बम धुण्ामत ति धूयते ऽनेनेति धुण्ण कम्मं तण-कहारगादिकमहता, अशुभैर्वा प्रागुपचिपापकर्मभिर्हता पब्बयंतिमिरोळूत तिकुटुम्बसरेण अनंताण तरंति कुर्बुवाति पीसेंतुंती पव्वता आलस्सियावसन ति वृषलाःत्रिवातिचारका शहाइतः कृपणः पाषण्माभिताति एवं दृस्या असवृत्ता:सद्धमम्मीनत्यनीका इणमेवाधिज्जी-वितं धिक् कुत्सायाम् अशोभनं जीवितधिज्जीवितं इहलौकिकाम् , तृहवृहपृष्ठो "सपी हयति हयात) संपव्हिंसिन परलौकिक किंच्थि विअत्याश्लिष आलिदुःने "(संपति हयंति संपनियूहात न परलौकिकं किंचि वि अत्यही नलिस्यन्ति न साधयन्तीत्यर्थ इहलोकपरा ते तुम्हांसि दुरवेहं संजोएंति दुखेति भाव परितप्पप्ति ते ऐलेसिं साधूणं दुबरखणाणालो सोमाणातो लि Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाधपरितापाती अप्पडिविरता भवतिात पुणकेइ इडिमतोमवंतिण्यादिणो, केयि अणिड्डिमंतो, इडिमले साव भणतिएते पुणकेइ-इडिसती भवेतिरायादिणी,कैयि आणिडुमलो, इजिमाइट्टिमात तोवा-महया आरंभेण परणिमित्तं चैव ताव इष्टझापाकादिस्वारंभी भवति जाप लसकायो वधिज्जति, आहारनिमित्त लिसिर-वग-च्छालग-महिसन्सूगरादि पुढवि-दग-अगणि-वणस्सइकाइयावधिज्जति। उहंच-“लणकदुग्णेमयस्सिता सम्मत छण्हंकायाणं आरंभसमारंभे विरूवस्वैहिं पावकिच्चहि अण्ण दंडति अण्ण वैधन्ति अण्णं -रुंधति कारणावेतिसवस्सहरणं करिति अण्णं मारेंति, एयमादीहिं पावकामहिंधणंउवजिणित्ता बंधवाणुलोमता(बंधाणुलोमती)विभात भेदा ति कातुं किं करेंति विठला माणुसा जावभेसारी भुमितारो भवति। मिमिति से भंजते ?, उच्यते, अण्णं अण्णकाले सायं पायंच, प्राण -उदा प्रामाचा हात-समालखाणं वत्थकालोरले) रामघराणि ,मोहणकाले सयला-ऽऽसणाणि तिायोवायस्याभीष्टा कालविभागः -क्रीडाचेश्वराणां विद्यतेसो पुल्लो पुलण्हे अपरहेाहाते कतबलिकम्मे अच्चणियं करेंति कुलदेवतादीणाकोतुआई सीज्झय-ज्जोहा -लोणादीणि च इहंति मंगलाणि सिहत्थया हरियालयादीणि से करेंति सुवण्णमादीणिच छिर्वति पायच्छिन्तं दुस्सुविणापडिया तणिमित्तं धीयाराणं देहिासिरंसिण्डाते सिरहा रणदीणि ससीसोण्हातिामाविद्यमणिचूलामणिः सो वि सुवणेण हेवा पडिषज्झति, सवण्णाभरणेसुनायेण मणीओ विज्नति |कप्पित घडित,माला मक्खत्तमालादिमौलीसओहो (मउहोसीपुण कमलकुलसंवुतीमौली Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च्याति,तिहि सिहरएहिउडी वुच्चति, चतुरस्सीहि तिरीडावग्धारियलंषितं ज्ञापकं "आसत्तोवसत्त्वग्घारियन सोणि कडी, -सोणिसुभगं कडिसुत्तकामालिज्जति मल्लं सिरदामडादि कलावी ति कलाचीकडाईचुमव्वलगादीणिापब्वतकूडणिभी पासादेसत्तते वामिहेरगिहे उच्चे महता अक्वतंणाम अक्रवाणबद्धं गिज्जति,जहणाडगं पवंची वातिलणं ताहाघणं लतमादीणि रतषा,घणा - यामहा महारवेत्यर्थ: उसलाई उरालाई अस्यते अनेनेति अस्यकं मुरखालमेवकीडन्त अणारियत्ति अण्णाली मिच्छादिडी अच रित्रीदेिवोऽयं पुरिसोणमणुस्सी,णग्लोके जाली वसहि तिवातेणारदेवी। देवसिणाएत्तिस्नातक श्रेष्ठदेवत्वे वसति इन्दतुल्याजलजी ---सोभित इव सरो,सपफ-फलोवावणसंडोलर्थिभिः उवजीवणिज्जी अणे विणं बनिये ह्याग्निता अपरिभूता भवन्ति तदेवं णाणादीमा यरिया, अभिमुखं कान्त अभिक्रान्तमा, करदीनि हिंसादीनि, अधिधूण्णे धूयतेऽनेमतासुतासुगतिषु वाताइद्ध इवरेणूधृष्णं कम से जिओ तितलुि हिंसादीहि कामेहि अप्पाणं एकांतीति आयरपरखी दाहिणगामिएसि जे आकिरकामा भवसिद्धियाविते प्रायेण दविखण्णेझुर --- -- -एसुवामणुस्सदेवेसुय उववज्जतिाज्स्स भवसिद्धीयस्स अवड्डो पौगालपरियट्टो सेसो अच्छतिसंसारस्त सो सुपरिवओ,अधिए मण्डपक्विएअभवसिद्धियासले कण्ह परिवया आगमिस्साणे तित्थातराणं तित्टोणगातोउवढे माणा अकहवि माणु म्स लमति तत्थावि दलूहबोधिए यावि भवति एतस्स हास्स इस्सरियट्ठाणम्स उविता णाम पवाजासमुहाणेणसमुट्ठिया परे Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पासंडालिम्हा अभिज्यालोमो प्रार्धमत्यनान्तरम्।अणुहितागिहएषाअसव्वदुरवप्पहीणातगोएतमिच्छत्ति एसिमिच्छट्ठिी-- परिग्गहा, असोभणा असाधूपढमस्स० अधम्म पक्रवस्स विभंगे आहित।। अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपरवस्स विभग एवमाहिज्जइसे बैमिपाईणं वाकसतेगलियामणुस्सा - भवंतितं जहा-आयरिया वेगे अपायरिया घेगे उच्चागोयावीयागीयावेगे कायमसावी हुस्समता वेगे सुवण्णा वैगेवण्णा वेगे -सुरूवावगे ठुरूवावेगे, तैसिंचणं खेत्तचणि परिगहियाणि भवंति एसो झालावगी जहा पोंडरीए तहाणेलल्वी तेणेव अभिलावेण मावसयोवसंता सव्वत्ताए परिनिखुडे ति बेमिसाएस ठाणे आरिए कैवले मावसब्वदुक्रबप्पहीणमागे एलसम्मे साधू दोच्चस्म ठाणस धम्मपक्रवस्मविभंगे एषमाहिते। अधावरे दोच्चस्सन्धम्मपखस्सएषमाहिज्माताएवं तावत् अधम्मपक्रवो बुसो,छायान्डऽतपयत् शीतोष्यावर जीवित-मरणपत्सुखदुःश्ववदा, तत्प्रसिद्धये इदम्युच्यते-सेबोमि पाईण वाद संतैगतिया मणुस्सा भवहितंजधा आयरियारोगलेसिंचर्णवेतन्वत्थूणिसोचेव पोंडरीयामओ सूित्राव सव्वदुक्रवाए परिणिज्युडे ति वैमिाएस ठाणे झा रिए केवले जाव साधादीच्चस्स गणस्स विभोएयमाहिए। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहावरे तच्चस्स हास्स मीसगस्सविमंग एवमाहिज्जति जे इमेमवसि मारण्णिता भावसहिया गामणियलिता कण्ड ईराहस्सिला जाव ते तमो विप्पमुच्चमाणा मुज्जी एलमूयत्ताएसमयत्ताए पच्यायलि,एस ठाणे अजारिसे अकेवल जाव अम्सबटुक्रवाही मागे एगंतमिच्छे असावएसखलु तच्चस्मामास्समीसगस्स विमंगेएवमाहित अहावरे तच्चस्स ठाणसमीसास्स विभंगे एवनाहिज्जति अधम्म परवेणधम्मपरखे संजुतो मीसगपक्खो भवति तब त्वधर्मो भूयानिति कृत्या अधर्मपक्खएव भवति रिणदेशेवर्षनिपातयत् अभिणवेवा पित्तोटो शर्कराक्षीरपानवत् अम्लरसभावित वाद्रव्ये क्षी प्रपाटवल एवं लावनिमय्यादर्शनोपहतान्तरात्मान: यद्यपि किञ्चिविरमन्सेलथापि मिथ्यादमिभूयस्त्वात् अविरतिभूयस्त्वाच्चाधर्मामुनु बन्धाच्चाधर्मपक्ष एव भवति,जाव एलमयत्ताए पच्चायतिएस ठाणे अणारिएजावअसाधूएसबलूतच्चरसम्मीसगस्स अधम्मप क्रवस्स विभगे आहितेग अहावरे पदमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभगएवमाहिज्जलि-इह रखनु पादीणंवा कसंगलिया मणुस्सासर्वति -महिच्छा महारंभामहापरिगहा अधमिया अधम्माणुया अधारमहाअधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइयो अधामपल ज्जा अधम्मसीन समुदाचम्म अधामणचैवविति कपीमाण्य विहरतिहण छिद भिंद वित्तमा लोहियपाणीचंडारुहाखुद्दा साहसि Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तंचणचण-माया-णियडि-कूड-कवड-सातिसंपोगबहुला दुस्सीला दुव्वता दुष्परियाणदा असाधुसब्बाती पाणासिवासामी अप्पडिविरता जावजीवाए जावसबाऔ परिगहाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए सव्वाती कोधातोजावमिच्छादसणसल्लाती अप्पडिबिरता,सलातो ण्डाणुम्मद्दण-वण-गंध-विलेवण-सद्द-फरिस-रस-सव-गंध-मल्ला-लंकारातो अप्पडिविरता जावज्जीवाए सव्वातीसगड-रह --जाण-जुग्ग-गिल्लिथिल्लि-सीय-संदमाणियान्सया-ऽऽसण-जाण-वाहण-भोग-भोयणपवित्थरविहीती अपाडिविरता जायज्जीएकय-विक्कय-मास-ऽद्धमास-स्वगसंववहाराओ अप्पडिविरता जावज्जीवाते सव्यानो] सिव्वातो कूडतुल-कूडमाणाली अपधिविरना जाव जधानी सव्वाती वाले सवातो हिरण-सुवण्ण-धण-धण्ण-मणि-मौत्तिय संख-सित-प्यवानाती अप्पडिविरता जावज्जीवाए सव्वातामारंभ-समारं भालो अप्पडिविरताजावज्जीवाए सवाऔकरण-कारावणातीअप्पडिविरताजावज्जीवाते सब्बातोपयणपद्यावणातीअप्पडि -विरताजावज्जीबाए सलातो कोण-पिदृण-जमणलालण-वधबंध-परिकिलेसातो अप्पडिविरसाजावज्जीवाते जे आवडण्ण वहप्पगारासावज्जा अबोहिका कम्र्मता परपाण परिसावणकराजे अणारिएहि कजति ततो वि अप्पडिविरताजावज्जीवाते से जहाणामए केयि पुरिसे कलसन्मसूर-तिनमुग्ग-मास-निफाव-कुलस्थ भालिसंदग-पलिमंथामादिएहिं अजमते कूरे मिच्छाई पउँअंति। एवानेव तहप्पगारे युरिसाठा तित्तिर-बट्टा-लाव्या-कवोत-कविंजल-मिय-महिस-वराहनाह-गोह-कुम्म-सिरिसिव मादिएहि भजातेकरेमिच्छादंड पहुंजंतिजा वियसे बाहिरिया परिसाभवति, तंजा-दासे ति वा पैसे ति वामायए तिषाभा Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इल्ले तिताकममाकारे ति वा भोगपुरिसेलि वा तैसि पि यणं अन्नयंसि वा अहाल हुसांसि अवराहसि सयमेवगरुयं दंडं णिव्यत्तेइ लजहा - -इम भेध दुम मुंडेह इन तज्जेह दुर्म सालेह इमं अदुयलंधणं करेह इमं गिटालबंधणं करेह दम हडिबंधणं करेह इमंचारागबंधणं करेह इमं जमलणियलसंकोडियमीडियं करेह इमं हत्याठिण्णर्य करेह इन पायछिण्णायं करेह दसणुपमाडिययं वसणुप्पायर्य जिभुप्पा डियर्य औलं विलयं करेह उल्लं वित्यं करेह घंसिटा करेह धोलियटा करेह -सूलातयं करेह संला भिन्नयं करेह रखारवतियं करेह वज्झयलियं करेह सीहपुच्छिया। करेह वसभपुच्छियां करेह कम्गिदट्टा कामानिमसरवादियगंभत्त-पाणानिरुद्धा इमजावज्जीव बह बंध करेह इमं अण्णतरेणं असुभेण कुमारणं मारेह / / जावियसे अभितरिया परिसा भवति तनहा माताति वा पिता ति वा भाताति वा भगिनी लिवाभमा ति वा पुत्ताति बाधूता ति वा सुण्डा लिया, लेसि पियणं अण्णायरंसि अहालांसि अवराहसि सयमेव मां दंड गिबत्तेइ, सीओदगवियर्डन (सि) ओबोले साभवति महा मित दोसवलिए जाव अहिते परसि लोमि,दुर्खलि सोयंति "जूसि लिप्यति पिटुंसि परिलपति से दुक्खणा- सोयण-जूरण-तिप्पा-पिट्टण-परितप्पण-वह-बंधण (परितप्पति ते दुखणा-सोयण जूरण-लिप्याण-पितृण-पश्लिप्पण-वह-बंध परिकलेसाती अपडिविरता भवति॥एवामेव ले इस्थिकामे हि मुच्छियागिहा गदिता भज्योववण्णा जाव वामाईचउपंचमाई उस्माई वा अप्पनरो वा भुज्जलरो वा काल भुजितु भोग भोगाईपसक्लिा वेगमगाई - वेरायताई Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संचिणिता बहुई पावाई, कामाई उरसण संभारकडेण कम्मुणास जधाणामए अयगोले ति वा सेलगोले लिवा उदासि पक्वित्ते समाणे उदगतनमतिबतिता अहे धरणिस्लपंडवाणी भवति, एवामेव तहष्पगारे पुरिसजाते वज्नबहुले धुण्णबहुले संकबहुळे वेरबहुले अप्पत्तियवहले देमबहुले णियडिबहुले साइबहुले अयसबहुले उस्सण्णत सपाणघातीकालमास कालं किच्चाधरणिसलमसतित्ता भहे मसलपतिद्वाण भवति॥ -- अहावरे पठमस्स० अधामपक्रवस्स विभंगे एवमाहिज्जति ।अधाह-दृत्तप्रयोजनानामप्रयोग१ उच्यते किन्तु यदव तापदिष्ट सादहोच्यते, अधम्मपरवे धम्मपरवे मीसओ य / उहि-पुल भणितंत इह विज्ञोषोपलभी दत्तव्यः कथम्? स एक (अ)धर्मो वडानकारः अपदिश्यते, लत्कारणं कार्य वा धर्मपठं नरकोपपत्ति, तखा च पाण्डमिश्रामधार्मिका उक्ता इहगृहस्था येव तायेणोच्यन्ते अधर्मिकाणि कर्माणि प्रलोकयन्तीत्यतः अधम्मपनोदणी। रन्योरैक्यमिति तवैव च अ] धार्मकै छु Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - णं णरगा अंती वट्टा बाहिं चउरसा अहे खुरुप्पसंठाणसंठिया णिच्चंधकारतमसा ववग्धगह -चंद-सूर- णक्रवतीतिसप्पहा मेद वसा-मस- साहिर-पूय- पलचिवल्ललिताणुलैवगतला अमुई विस्सा परमदुहिमगंधा काउ किण्ह अगणिवण्णाभा कवरवड फासा दरधियासा असुभा गरम असुभा रएसु वेदणाओ ॥णो चैवणं आरएमु गोरड्या गिद्दायति वा पयलीयंति वा सुई वा रति धिति वामति वा उपलभते ते णं तत्थ उज्जलं विपुलं पगाढं कडयं कसं चंडं टुक्रवं दुर्गा तिवं दुरहियासं गैरइया वेद पच्चणुभवमाणा विहरंति / / ..से जहाणामते सक्रो सिया पललागे जाते मूनीछिन्ने अग्गे जाए जतोणिण जती विसमं जतो टुग्ग ततो पवइति एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाते गमालो गल्भ जमाती जम्म माराती मारं पारगाती पसंदुक्रवातो -- -दुक्खं दाहिणशामिए गैरदए कण्ह पविश्ववए आगामस्सा णं दुल्लभवीहिए यावि भवति। एस ठाणे अणारिए अकेवले जाव असबक्रवप्पहीणमगरी एगंततिच्छे असाहू पठमस्स ठाणस्म अधम्मपक्रवस्स विभंगे एवमाहिते // ------- Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कासुरज्यन्त इति अधर्मपलज्जमा जेरत्तएसे लत्तए"f अनुयोगासू० झापकाला अधर्मसमुदाचारा अधर्मवित्तिति कण्डं। - वृस्यामिव च हण छिन्द, हण सि कसलतादीहि छिंद त्ति कण-णासोट्टन्सीसादीणिासीसपोट्टाई कन्त त्ति वमोचंडा -शैदा आसुरा रौद्राणि हिंसादीनि कर्माणि करेति रौद्राराक्षुद्रोणाम स्वमनसाहवासोऽपि ण मुंचतिा भसमीक्षितकारी साहुस्सिओणवमारेमाणस्स विकृतीयास्स यणीली रागस्सेव णीनीए। एवं तम्स महिसमादीसत्ताणि लोहियलिता पाणित्ति मोहितवाणी वंचकुचकुंच ौटिल्यै"उद्-उद्भावोभावेषु छैटौपु ईघरकुंचनं सोकुंचनं,अधा कोइ किच्चि मूलाइसगं,सस्थकोइ मामीमानविचक्षणः तिष्ठति, सो आणति मा सव्वं छिज्जतं इन 8 आहायश्वरसति एतरस, राउले,वा कहेहिति,तो उचंचेऊण अच्छति -जायसो बाला वच्चु प्रलम्भने"वच्चनं जधाअभयो धम्माच्छलेण वंचिती पज्जीतस्मसंलियाहिं गणिझाहि, मृगोऽपिशीण ब चिज्जतिाअधिका कृतिः विकृतिः अत्युपचार इत्यर्थः,यथा प्रकृतस्योपचाशत् सम्य निवृत्तिा,तथा अत्युपचरोऽपि दुष्टलक्षणमेव जधाकत्तिओ सेडी शयाणएए अत्युपचारेण माहिती अनिश अगनवेंचुल धमल्झयसीन सैनिक्रवाहावीसभकरणमधि कच्छतहिं तं वेति किमाडिक्षिणा देश-भाषादि विपर्ययकरण कपटम,जधा आसाढभलिणा आर्यारयोवझायन्सघाउल्लगाल अप्पणी Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जय चत्ताश्मिीदगाणिक्कालिसाउंकवौवं लोकसिद्धत्वाच्चयया कटकार्षापण-कूटमाणामितिासातिसंपयोग बहुला शौमाविशेष: मालिया न्यूनगुणानुभावस्य द्रव्यस्य या मालिशयण द्रव्येण सह संयोगःक्रियते सो सातिसंपयोगी, अगुणवतश्च गुणानुशंसा गुणवतीति आहच 'सोहोतिसातिजोगी दबं जं उवहिताब्बेसु / दोसगुणा वयणेसु य अत्यविसंवादणं कुणइसाक्षा -एले पुण उल्लंचणादयः सब्वे मायायाः पर्यायशब्दाः योन्द्रशब्दस्य शक-पुरन्दरवत् शब्दाः यद्यपि क्रियाविशिष्टा; तथापिनेन्द्र जीवा शब्द व्यतिरिच्यन्ते त्वं यद्यपि क्रियानिमित्तोऽभिधानभेदः उत्कंचनादीनां तथापि न मायामतिरिच्यतरन्से) एवं अग्नि-सूर्य-चन्द्रमा अभिधानमैदेनार्थभेदः (दुस्सीला दुब्बता दुष्टशीनं येषां तैभवन्ति दु:झीलाः, पारमिताविकरिखप्पं विसंवदन्ति दुरणुणेयाद -रुणस्वभावा इत्यर्थः दुष्यानिवृतानिमेषां ते भवन्ति दुव्वता,यथा यज्ञदीक्षितामा शिरोमुण्डर्न अण्हाणण्यं दमासयणंच एषमादीनि चले सानि तथापिच छालादीनि सत्ताणि घातयन्ति (आह हि-"फ्ट्शतानि नियुज्यन्ते." "टणादिसमृद्धो "तस्य आनन्दो भवति कश्चि -दन्येन यस्तु प्रत्यानन्दं करीति प्रतिपूजामित्यर्थः, सतुगर्वात् कृत तत्वष्टा नैनं प्रत्यानन्दति टुप्पाठियाणं दो भवलि। आहरि उपकमिशक्तिप्ता,मराः पूर्वोपकारिणाम्। दोषमुत्पाद्य गच्छन्ति, मङ्गनामिव वायसाः गाया Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सवाऔ पाणातिवालामीतिजैवि लोग गिरहिताबभण-पुरिसवधादी पाणातिवासालीवि अप्पडिविरताएिवं मुसावालाकूडस -विश्वयादिसेण सहवास-लेणादीन्यासावहारा इस्थि-बालाले गादी वा। मेहुणे अगाम्मरामणादी पारगाहे जोणिपोसगाट्रिासलाते कोधातीजाव मिच्छादसणं,सव्वाओण्हाणुम्मण काम पुवमंगितो बामद्दिजाति पच्छा हालि,तथा विसब्बती ण्हालुम्मद्दणएण -उमहिन्जाति क्षण अभंग गाहितावणी कुंकुमादी कसाया या विलेवर्णचंदणादि। सहादी पंच विसयालिहिती अपडि विरललाम गष्टिम अगंथिमं वा,एसचे अलंकारी, अण्णो वि वत्थालंकारादि ासबातो आरंभ-समारंभालोसि विमासासिव्वातीकरण कारण करणं सयं एतेसिंचेवजधादिवाणं पाणातिवादादीणा अण्णसिंच सावज्जाणं,कारावणमणोहिं इस्सरादीण पथणपाटाण लिमांसादी ईसरा अण्णेहिं पायेंतिसिलातो कोदृणन्कौद्धरणं अहिमरणं वाद्येत्तुं पलं पन कोट्टति पिट्रेति याचिंचनता-कस-वेत्त "लला लउडादीहि लज्जेइा पातादीहिं तालतिशतलपहारा रतीन-पण्हिमादीहिीएसवधीमारेलिवावधति वाणगलादीहिएतेहि चेव परिकिलेर्स करेंति,अण्णेहि अकरदंडादीहिं किलेसहिं कि लेसेनापरं जे आवडण्णे तहप्पगारा,केलिया बुच्चंति, गोरगहण-बंदि ग्रहण-उदोहण-गामवध-गामघात-महासमर-संगामादीहिं-सावजा भवोधिकरा कम्मलीगा कम्र्मता इह परत्र वा परेषां प्राणाः आयुः प्राणादि परषांनाणा परितालिादृस्टान्तः क्रियते नियत्वे लेघाम से जहाणामए केयि पुरिसे कलम-मसूर लूणे तो वा Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा मुसलैण वा उक्खले कोट्टतो रंधेतो वा ण सेसु दयं करति अजए अयते,कूरो निर्पणः,मिच्छादंडेत्ति उपवारद्धकुद्धो / एवामेव तहप्पा तितिरादीए णिवेवरवो जिद्दयो तिच्छादडे पउंजलि |जाविसे तत्थ बाहिरिया परिसा भवति, तं जहा दासे तिता अदासो दरसतत् / तेसुलेसु पेसणेसु णियुजति पैमा। ओलागाही भली वि वित्तीएघेप्पति।भाइली भाइलभी। कामकारका ओ लोग उवजीवति लि, घरकम्म-पाणी यवाहादीहिं से विराउले वेडिं काराविमति। तेसि पि य ज अण्णत सि. लहुओ लहुसओ कायी भातिया करेति ता सत्य रुहो / गुरु अ प्रबाहाम (इमं दभेध कंठं / प्रायेण जिगलबंधा हरिबंधवा विणा विचारेण करेति,जहा मा लवाजा पोसा वा स पहाहितिभा-मकुण-पिसुआदीहि जत्थबद्धो चारिज्जतिसो चारओ अण्णो पुणचारए उडु पिगले हिं दोहि तिहि वासत्ताहि गि जोएहि मज्यतिसंकीउिलमोडितीणामजी हत्येसु अ पादेसु अगन ए बज्झति चारए अण्णास्य वासो जमलसिलसकौडितमोडिती। इम हत्याच्छिण्णं करेह, एलो वा दो वा हत्था छिज्जति एवं पादा विचारादीणं / कण्ण-णक-ओढ० चारित-दताणं विरुद्धरज्जर्स चारिणं च छिज्जति। इत्थी चसीस / अहिमराचरियाण मुरवो मझे छिज्जेति / असिमा दीहिं बैगच्छी खंधे आईतूण वेभसु-- तए छिज्जतिाजीपंतस्सेव हिधए उप्याति पुरोहितादि जाव जिल्ला / ओलविज्जति कूचे पब्बत-पादि-लडिमादीसु बाउल्लंबिज्जति | रुविश्व जीवन्तो मारेतुं सूलाइतो सूनाए पोइज्जति,अवाणे सूल सोटा मुहेण णिकालिज्जतिसूल भिण्णो मज्झे सूलाए भि Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जतिनसटोणं कप्पेतुं लोण-खारादीहिं सिंचंति वडा अवकपिाजति / पारदारियासीहपुच्छिन्नति,सीहो सीहीए सम साव -लगाओ अच्छति जाव शामिमाणं दोण्हवि कढसा छिण्णणीता भवति / एवं कस्सइ पुत्तमा छेतु अप्पणए मुहे मंति|कडएण वैठितुं पलीविज्जति कडगिउओ। कागणिमसं कागणिमेत्ताई से साई मंसाई कप्तुं खा विजलि / अण्णतरेणं ति जे अण्णे ण माणित सुगि- कुंभिपागादि कुत्सिता माराः कुमाराः। एवं ताव बाहिरपुरिमाण देडकरेति / / ता वि से अतिरपरिसा भवति,तं जहा-माता तिवा,तेसि पि अहाँलहुए तिवाणं वा कल उवकवरो वा को तू णासिओ हारिती भिन्नी वा इम सीओदएणसिंचही जहा मिलदोस वत्तिए जाव अहित परलोयंसि एवं तावबाहिरपरिसाए वा / ले दुकवेति गाव परिसावति टुक्खा तो जाव अपरिविरता भवति ते पुण किणु एवं करेंति? काम वसगा, ले यकामा फरिसादिणी परिसरा राया ते य इस्थिमादिणी, लत उच्यते एवामेव ते इत्थी कामभोगेसु मु + -च्छिता जाव वासाईन् भुजित भोगा पसवितुं वेराणमायतणं कर्माचेवावणि अट्टकामाणिसुबहुकाल द्वितीयाई।उस्मण तिअणेकसी एकेक पावायतर्ण जधादिद्वं हिंसादि आयरति संभारी णाम गुरुगत्तर्ण गहित से जा णामए अएहि पात्रकृतं तरति,सिला वा विच्छिण्णत्तो चिरस्म णिबुडति गोली पुण विप्पंणिबुड्युति एवामेव सधप्पणारं वन्मषहुले, पावे वज्जे वेरे०" गाधा अयसो ति एरोहिं चेव बहुहिडहिं उर्छचण-वेचणा दीहिं साहवास-दो हादीहिं अगम्म गमणेहि य अयसो होति,जेसिंच ताई वंचण-हरण-कण्णछेदण Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारणादिकरणादि लैसिं अप्पिय होति। कालमासे / ...---- --- --------------जिच्चंधकारा अनन्धमप्टान्धीकुर्वन्तीति, अण्णो वि जाम अंधकारी भवतीति, अप्पगासेसुगमघरीवरगादीसुते पुण प्रचंधस्लेव मेहच्छाणकालद्धरत इव तमसा उज्जोतकराभावान्धाच समसा / ते चौद्योतकरा ज्योतिष्का एवीच्यन्ते ववतगह चंद परोप्यरं चछिन्दित्ताणं सरीरावयवेहिंमदवसा० काउकिण्ह अगणिलोहे धम्मामाणे कालिया भागिगाजाला णिन्ति तारिसी तैहि वणो। फासा य उसिणवेदणाणे करवर फासा, से हाणामए के असिपले सिवा दुकावं अधिशासिजलि दुरघियासा। असुभाणया, असुभा दरिस योण सह-गंध-फरिसैण बाा वेदणाओ वि असुभााणी चेवणं. णिहाति वा ,णि हा य सुहितस्स हीति, निहाच विस्साषा इति कृत्वा लेण स्थितं उज्जलं जाब वेदति। एस ताव भरागोल-सिलागो जटिलतो गुरुगपडणत्याकरी / मी अण्णौ रुक्रवदितीसिपलों कीरति से जामए केयि,सकरवे सिया पव्वयागे जाते। एयामेव कालसमए सिग्ध पारएसूबवज्जति तत्तो उबड़े गल्भवकसिएसुसिरिय-मणुएस -कम्मभूमगसंवेजवासा उएसु उपवसतिगततो भुजी गातो रामजाव गाओ दाहिणगामिए जाव दुल्लमक्षोधिए एतम्स सनस्य एस द्वाणे अणारिए।पठमस्स टास्म अधम्मपक्खस्स विभंग आहिते महावरे दोच्चस्स ठाणस्सम पक्रवस्स विभंग एसमाहिज्जति- वृह खलपाईनं वा कसैगतिया मणस्सा Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवति,तं जहाभणारंभा उम्पगिहा धम्मिया धम्माणूगा धम्मिट्टा जाव धम्मण चैववित्तिकपोमणा विहरतिससीलासनतास प्पडियागंदा सुसाधू सतातो पाणातिवाताती पडिविझीरता Gharजी वाते जावसे यावणे सहप्पगारासावज्जा अबोहिता कम्मता परपानपरितावणकरा कज्जलि तलो विपडिविरता जावज्जीबाए से जहाणामए अणारा भगवती ईरियासमिता भासासमिताएसणा समिता आयाण भंडन्मत्त-जिक्खेवणासमिला उच्चार-पासवण-खेल-सिंधाण-जल्लपारिट्रावणियासमिता समिता वयसमिता काय सामतामणातावणुता कायगुता गुस्सागुदिया गुत्तर्वभयारी अकोहा अमION अमाया अनोभा संता पसंता ठवस हा पहिगिडा अपासना या ठिण्णसौता मिळवलेलार्कसपाई इव मुक्छतीया संखो इव णिजIणा सीवी इव अप्पडिहयगतीरामणास विव निरा लंबणा वाउरिव अपठिबद्धा सारखसलिलंव सुद्धहियया पुरवपत व निझवलेवाकुम्मी इव गुर्ति दिया विहगाव विष्णमुक्का स्वगाविसाणं व एजाया भारुड पकाखीव अप्पमत्ता कुरो इव सोहीरा वसभी इव जालस्थामासी हो व दुद्धश्सिा मंदरो इव अप्पकंपा सणारी इव गंभीरा चंदी इब सोमलेस्सा सुशे कुछ दिललेषा उच्चकंचणगं व जातरूवा वसुधरा इस सवफासविसहा मुहल हुलामणो विवने तयसा ज्जंताणस्टिाणं सिंभगर्वसाण कत्थति परिबंध भवति, से य पडिबंधे चउब्धिहे पणत्ते,तन्हा-अंडरतिया पोयए तिबा उग्गहे ति वा गहेति वाजणं जाणं दिसं इच्छंति ताणतण्णं दिस अपडिव द्धा सुइया बहभूया भप्याथा संजमेणं सवसा अपाणं Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिावेमाण विहरति / / तसिंग भगवंताणं इमा एतारूया जातामातापित्ती होत्था, संजहा-चउत्ये भत्ते छठे भत्ते अट्ठमै सेट्समे भत्ते दु घालसमे भत्ते चौद्दसाने भत्ते अद्धमासिए मते मासिए भत्ते दोमासिए तिमासिए चउमासिए पंचमासिए छम्मामिए भत्ते अदुत्तरंच णं उधरव चया जिकिरवत्त चरगा उविरत रूणिक्विन्तचरगा अंतचरगा अंतरंगा पंतचरगा लूहचरगा समुदाणचा संसट्टचरगा असंसहचरणा सातसंसहचरगा दिहलाभिता अदिठ्ठलाभिता पुट्ठलाभिता अपुडुलाभिता भिक्खलाभिता अभिक्रवजाभिता अण्णालचरागा अण्णायलोगचरगा उवणिहिता संरबादतिया परिमितपिंडवालिया सुद्धेसणिया अंता हारा पताहारा अरसाहारा विरसाहारा लूहाहारा सुच्छा हारा अंतजीवी पंतजीवी आयंबिनिया पुरिमडियानिधिगइया अमज्ज-सासिणो जो जियामरसमोई, ठाणाइया पडिमाठाणाइया ठक्कडआसणिया णेसज्जिया वीरासणिया दंडारातिया लाडसाइणो अप्पाउडा अगत्तया अमंडुया आणिहा धुतकैस-मसु-रोम-महा सातपरिकम्मविप्पामुछाचिटुंति तर्ण एते विहारेणं बिहरमाणा वहई वासाई सामण्णापरियागं पाउलि पाउणित्ता बहु बहु आवाहसि उप्पण्णांसि वा अणुप्यासि वा बहन भत्ताई पच्चरवन्ति पच्चक्रवात्ता बाई भत्ताई अणसणाए छेदिति अणसाए छेदिता सहाए कीरतिनगाभाषे मुंडभावे अण्हाणभावे अस्तवणारी अच्छ चए अणीलाहणए भूमिसेजमा मनगसेना का सेमा कसलोए बेभरवासे पर घरपवेसे लखावलद्धे माणा-ऽवमाणUTIो हीलगाओ जिंद णाओ, खिसणाओ मरहणामी तमाओ तालणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीस परीसहोवसमा अहियासिज्जति तमलु आरोहेति,तमहुँ / Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | आशहिताचश्मिीहं उम्सास-निस्साहिं अणतं अणुत्तरं निवाघातं मिरावरणं कसिणं पडिपुण केवमवरणाणादसणं समुप्पाडेसिसमुप्पाडित्ता लती पच्छा सिपंति बुज्झति मुज्जति परिणिव्यायति सव्वदुक्रवाणं अतं करेंसि // एगच्चाए पुण एगो भयंतारो भवति,अवरे पुण पुव्वकामावसेसेणं कालमासे काल किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसुदेवताए उवक्ताशे भवंति, तं जहा-महिथिएसु महज्जुलिएसुमहापरका मेसु महाजसेसुमहब्बलेर महाणुभावेसुमहासोक्वेसु ते ण तत्य देवा भवंति महड्डिया महज्मुतिया जाव महासुक्रवा हारविराइतवच्छा कडातुहित-थंभितभुया गय कुंडलमट्टगंडयन-कण्णा-पीढधारी विचित्तहत्याभरणा विचित्तमाला-मउलि-मउडा कल्लाणगापवरवस्थपरिहिया कल्लाणापरमाणुल्लेवाधरा - -भासुर बोंदी पखवारा दिल्वेणं स्वेण दिघेणं वण्णणं दिव्वेणं गंधणं दिल्वेर्ण फासेण दिव्येण संघाए दिवे संठाोणं दिब्बाए बडीए दित्वाए जुतीए दिळाए पभाए दिव्वाते छायाते दिव्वाए अच्चाएदिवेणं तैएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जीवेमाणा पभासेमाणा गति कलाणा ठितिकल्लाणा मागमेसिम हया यावि भवति एस ठासे झायरिए जाव सबटुकल्पहीणमयो एपातसम्म सु साधू।दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्रबस्स विभंगे एघमाहिते। . - अहावरे दोच्चस्स ट्ठाणस धम्मपकरणास्स विभाग आहिज्जाति / इह रखलु पाईण वा स संलेगलिया मणुस्सा भवति, भणारंमा अपरिमाहा धम्मियाधम्मिट्टा रजाव विहरति.सुसीला सुब्बता उतचापडिविरता जावज्जीवाए सव्यातो पाणालिवातातो - Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिडिविरसा जावज्जीवाए जे आवsो तहगारााउका विरतिप्रकारा,केचतेविरताः१, उच्यते, से जहाणामए केइ पुरिसे अणगाराइरिया समिसा जाव सुहत०, णस्थि तेसिं जाव विप्पमुक्तां,लेसिणं भगवंताणं एले विहारेण विहरताणं जातामाताविती होत्या,यात्रामा वा यया साध्यते। अक्खीवजणवणाणुलेवणाणुभूता | अधवा अर्चयन्ति तामित्यर्ता शरीरम् एक्का जेसिं गज्झा शरीरसागतिकल्लाणा कल्याजगतिः देवत्वं तस्थ वि अणुत्तरोववाति एसु बेमाणिएसुवा इन्द्र-सामानिक, त्रायसिंज्ञा- लोकपाल-परिषदा-Ssत्मरक्ष-प्रकीर्णकेषु न स्वाभियोग्यः किल्लिपिक-कान्दर्षिकेषु / द्वितिकल्लाणे ति उक्लोसियाहिती अजहण्णमणुझोसा था। आरामेसिभ६ ति आगमे सभवगहणे सिझति। एसटाणे आ रिए।एस रखनुदोच्चस्स हाणस्स धम्मपक्वम्म विभंगे आहिले / / अहावरे लचस्स ठाणस्स मीसवास्स भिगे एवमाहिज्जति-इह खत वाकसंगतिया मणुस्साभवंति, संज्हा- अपिपच्छा अप्पाभा अप्पपरिम्हा मिया धामाणुया जाव धम्मेणचैव वित्ति कप्पेमाणा विहरति सुसीला सुव्वमा सुपडियाणं दा साह एगच्चाती पाणाइवायाजी, पडिविरता जावज्जीवाए एगच्चाती अप्पडिपिरता आव जे आवडणे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मता परपाणपरितावणकरा कज्जतिसतोविएगच्चाप्ती पडिविरता एगच्चाती अप्पडिविरता से जधाणामए समणोवासगा भवंति अभिग यजीवा-जीवा उबलद्धपुण्ण-पाषा आसव-संवर-वेयण-णिज्जर-किरिया-5हिगरण-बंध-मोक्रवकुसला असंहज्जा देवा-सुर-नाग Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुवण्ण-जक्रस-रकमयस-किण्णार-किंपुरिस गरुल-गंधव्य-महौरगाइएहिं देवाणीहिं निगांधाओ पावयणामो अणातिकमणिज्जा इणमेव / निगराधे पाषणे जिस्संकिता णिछरिवसा णिवितिगिच्छा लट्ठा गहितहा पुच्छिलट्ठा विणिहिछसट्टा अभिगतहा अट्ठ-मिज पेन्माणुराग रसा अयमाउसो ! मिरगथे पावयणे अढे सेसे अण्डे उस्मितफलिहा अवंजुत्दुबारा चियाघर अंतेउरपवेसा चाउद्दस-ऽटुमुहिट-पुष्णिमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणा समणे निरगंधे फासुएसणिज्जैणं असण-पाण-खाइम-साइमैर्ण वस्थ-पडिग्गह-कंवन-पायपुंठणेणे ॐ सह-सज्जेण पीढफला-सेना-संधारएणं परिलाभेमाणा बहिँ सीत-ब्बत-गुण-वेग्मण-पच्चक्रवाण-पोसहीबवासेहि अहा परिमाहि सेहि वीकम्महि अप्पाणं भावैमाणा विहरति॥ तेणं एतारवेणं विहारेण विहरमाणा बटूई, वासाई समणो बासमपरियागं पाउणंति पाउणिता आवाहंसिउप्यासि वा अणुप्पण्णझि वा बहूई भत्ताई पच्चक्रवायंतिबहूई भत्ताई पच्चक्रवाएत्ता बटूई भताइं अणसणाए छैदेति बहुई भित्ताई, अणसणाए असा आलोइय परिवंता समाहिपक्षा कानमासे कालं किच्चा अण्ण रेलसुदेवलोएसु देवताएउवर्वतारो भवंतितं जहाँ-महिडिएसु महज्जुतिएK पाव महासोक्सेसु सैसंप्तहेव माव एस ठाणे आयरिए नाव एलिसम्म साहू तच्चस्य ठाणस्स सीसगस्सावभंगे एवं आहित // --- अविरतिं पडुच्च बाले आहिज्जति, विरतिं पडुच्च पडिए माहि जति विरताविरतिं पुड्डुच्य वालपंडिते आ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -हिज्जति तत्थर्ण जामा ससती अविरलीएस ठाणे मारंभटाणे अणारिएजाव असव्वुटुक्रणप्पहीणमग एलिमिच्छेअसाहातत्यणं / जा सा सव्वती विरती एस ठाणे अणारंभट्ठांणे अरिए जाव सब्वटुक्खप्पहीणमागे एतिसम्म साहू,तत्थणं जा सासब्बती विरता विरती एस ठाणे आरभणी आरंभट्टाणे एस ठाणे आरिए जाव सव्वदुक्रवप्पहीण मरगे एलिसम्मे साह। अहावरे लच्चस्स हाम्मापक्रबस्स मीसास्स विभगे धिम्मो बहुओ अधम्मो शोवोत्तिकाउं,तेण अधम्मामीसओ -विएस पक्रतो अंतती धम्म पक्रयेचेव णिपउलि 1 को दिढतो, जहाणदीए केयि पुरिसा हाांति केइ पोसाई सीयंलि केइ असुयिण विमुहाई -पक्रवाति गोमाहिसकं च छगण-मुत्तुस्सग्गं करेंति तथा वितं उदगं बहुग्लैण ण विरसीभवति, कलुसीकतं पि खिप्पं पसीदति,जहा सुबहगोण सीतीदएण थौवं उसिणीदगं सीतीकजति,एवं सावगाणं बहुयसंजमेण धोवी असंअमी रखविज्जति ऊंच-सम्मविठ्ठीजीवी -अति अग[--------] तंपियस विस) परीक्यमाणमपिच- ते बहुअतरा जीवाजेसुसावास्स पच्चक्रवार्य भवति ते अइमे,तं जधा --पाईणं वाइसंगलिया मस्सा० अप्पिच्छा अप्पा रंभा अप्पपरिहाधमिया जाव वित्तिं कप्पेसाणा सुसीला एगाती पाणाइवायाओ पडि - - -विरता जावज्जीवाए एगच्चाती अप्पाउविरता,एगिदिएसु अपाडिविरयाजाव ज' भावऽणे तधप्पगारान्ततीवि ( एeो )तत्ती विमे से अधाणामए केइ तुसमणीवासगा भवंति,उपासंति तत्त्वज्ञानार्थमित्युपासका अभिगतजीषा-5 जीयाः / अभिगम-उपलं भ-कुशलादयः Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - शब्दालानाथी: अन्योन्येन त्वमिधानेनामिधीयमाना बोधं मनः प्रसादमुत्पादयन्ति किरियलिवा काम लिवाएगाह्र अधिक्रियल इति -अधिकरण जीवमजीवं च कियाधिकरणेण य कर्म बज्झलिति धकुशलाःाजेण बंधी तीविश्वज्जति सो बंधमोक्रतो / असंहज्जा असंह- - रणिज्जा, जधावात हिं मैरुन सुजधावात पडागाणि सक्कति विप्परिणावेतुं देवेहि वि, किं पुण माणुसैहिं? अणातिकमाणिज्ज त्ति जाधा क स्मइसुसीलस्स गुरु अणतिकमाणले एवं लैसि अरहेसा साधुणो सीलाई वा अणतिकमाणिज्जाई णिस्संकिताई / ले पुण किह अतिकृमिज्जति?, संकादीहि संकटा दीहि दोसेहि अत एवोच्यते णिस्संकिता छि खितादि / लट्टा, जधाकोइ अत्यत्थी सं जातं अपपज्जत्वं अत्यं लटुं तुही भवति एवं ते वि भणषयणलट्ठा इध तुट्ठा। गृहीत प्रवचनार्थाः नये ते भवति [गृहीतार्था] पुच्छितुं पुच्छितुं गहिता पुच्छितहा। विनिश्चितो निर्णीतः / अनुमिज० अष्ट्रियाईपिमावेतुंजाव मिंअति मज्जा बुच्चति,जस्सरोगेण तयं आदि काउंजाव मज्जा भावितासो टुच्चिकिच्छीभवति एवं ते आमज्जा इष भाषिता। - यथा सो परिवायशी रायगिह भिकरवं हिंडंसी जा जा से महिला कच्चति तं तं विज्जाए अभिजाएतुं एकाए गुहाए -छोढं। 'विज्जावातियो हरति ति काउं पडिविराविती। प्लरिसी य भत्ताधादि पशिणेन्ती पंथी लिमाहितियाए पडियरितुं तेहिं पविसितुं जुझंतो मारितो बताओ अमहिलाओ मा अस्स सा तस्स दिशा। साय इछाइभमहिला अभिजोइलिया पति णेच्छइ छिलाभणति-- Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मजलिस परिवायगअट्ठीण घमिलु खीरेण दिप्रति तीसे अपैच्छंतीएलोनिवरि तेहिं तस्स अपैक्खंलस्सयासितुं घसितु खीरेण सहमोठे तुं पाइता, जघा जघा पाइज्जति तधाता तम्मि पुरिसे पैम्म अरुभति / सब्वेसु घडेसु पीतेसु य जहा परिवाए अणुरत्ता आसीतधा - अणुरत्ता || ----- --- - . ... जहा सा तम्मि परिवाए अडिसेसे विण विरज्जति एवं सावओविचेतिएसु साधूसु अ अणुरतो जइ वि किंचि लिंगत्थं वार सत्यं वा उदाहं करेंत पासति तथा वि पुरिसदोसो ति कातु ण वि पगातो विरज्जति / उवमा एकदेसेन दृष्टान्त इति दृष्टान्त इति - कृत्या जथामा तम्मि परियायी स्सा एवं पबयणाणुरागो सो अहमिज-परमाणुरागस्ती ।जनिवि केण विष्परिणामन्नइ पवयणाती-किं तुझे एत्था दिट्ठति ,तथा विभाति मणेतं - अयमाउसो! है आयुष्मन् (जिगंधो पावयणे अहे सैसे अणडे ति लिणा तिसट्टाई पाषाड्य सयाई अण्डे / जस्स विकस्स विधम्म कति तंपिभाति-अयमाउसो ! जाव अड्डे सेसे अण्डे, लेण गेहा उसितमलिहा अवगुतटा - किं कारणं पिहिमाणे कवाडे त्ति णबदृइ उिग्घाडेतुं] उग्घाडे कवाडे वापरले तुं।उक्तंच-"कवाउंणो प्रणोलेजा" - - पविसंती जियंती म लोगो मा णिच्य संचारादि विराहहि ति तेण णिच्चमेव फलिहंउस्साएतुं अगदारं --- को टुप्पमुहे अकवाडं विहाडे अपंगुलदारं अच्छतिाचियज्ञासाघरंत घरे अणिमिताणं जइ वि इथिआओ अछतितत्य गरेति Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जावरसोतित्ति तत्वेसणं सोधेति किस्सइ महिड्डियस्स असेपुरं भवति, तंपिलेण अणुण्णातापविसितु मातिाएष तावत् दर्शन-- सम्पटुक्ता। इदासिीलसम्पत्प्रसिद्धये इदम पदिश्यते-चाउद्दसट्टमुद्दिद्वपुण्णमासिए पलतमासस्स अट्ठमि पक्रवरस उदिहा-- -अमावसा,पुणिमा इतिचन्द्रमा पूर्णमास: स्यात् सेये पूर्णिमा | पडिपुण्णं पोसह ति आहारपोसहादि एक पोसधिओ पारणं अवस्संसाधूण भिकरवंदाऊण पारेति तमोच्यते-समणे जिशार्थ फासुएसज्जि असणं वा एक पडि वासारसे पीढफळगे पहिलाभ माणा विहरतिाइदाणि सखी सावधिम्मो समाणिज्जतिबहसीलब्बत सीलाई सत सिक्खावयाईविताई] अणुव्बताई.विहरं वेरमर्ण णि सहादिविसयेसु जधासत्तीएवैरमणे करैति, अधवा बति तिवारमणं तिताएगढ पिच्चरवाण उत्तरगुणे दिणे पलाण्डेऽनरहे। पोसहं सरीरसक्कार पबभचेर र अयावारो वातिविही, आहारपरिच्चाझौ उववासी अप्पासंभावमाणा अण्णेसिंचसाधुधम्म सावगधम्मचकमाणाएकारस उवासापडिमाऔफासेमात विहरति उदाणिसण्णिकासो कीरति-जम्हा अभिगतजीवान उजीवा उवलपुण्ण आव मोक्खकुसला लम्हा असंहज्जा देवासुरादिसु भणतिक्कमणिज्जा य पवयणाती,जम्मा असंहमा तम्हाणिस्संकितादि जाव भभिगतढा (अपवागति प्रत्याशतिलक्षणं क्रियते- जम्हाणिस्संकिलादि जाय अभिगल्हा ) वागति प्रत्यागसिलक्षणं क्रियते-जम्हा निस्संकितादिलम्हा असंहज्जा,जन्हा असंहज्जा लम्हाणिस्सक्लिादिः एवं Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिम्हा जिस किलादिजाव वागति प्नत्यागसिलक्षणं क्रियाले-जम्हा निस्संकिलादि लम्हा असंहज्जा,जम्हाअसंहज्जा लम्हा णिस्संकिलादि; एवं अम्हा तिस्संकिलादि लम्हा जिकरिखता,एवं एसोनं पदं छहुँताह एक्वेकवारं भणतेहि जाव अम्हा अभिलट्ठा लम्हा आलिमिजा आवरता,तम्हा परेण पुट्ठा वा अपुट्ठा वा वदंति-अयमाउसो णिग्गंधो पावयणे अट्टे सेसे अणडे, जम्हा य एवं प्रतिपद्यन्ते तम्हा उस्सितफलिहा जाव पवेसा, जम्हाएवं लम्हा चाउद्दस-दुमीमु०, [जम्हा चाउद्दस-ऽद्वमीमु.] तम्हा पारणाए सभी जिग्गंधी। लेणं एतारवेणं विहारेणं विसरमाणा बहुणि वासाणि प्राप्नुवन्ति पाउपाल। पाउलिता प्राप्य,इदाण अवस्थिम सनेहणा बुच्चति-आवाहसि H अत्यर्थं बाधा आ बाधा जरा रोगो वा। साधुसमीचे वा आलोइत-पडियंता साधुलिग र स-घेत्तुं संधारसमणा वसंथारंगता स लासंसविप्पमुक्का बहणि भत्ताणिक कालमासे कालं किच्चा अण्णतरसु देवेसु देवमहिड्डिएसु उवक्त्तारोले facer महड्डीया हारावि गति कल्लागा नितिकल्लाणा जाव बावीसं सागरीवमाई, आगमिस्सभहा एागभवमधीया चरितं प्राप्य सिद्धयान्ति, उक्कोसेण वा अड्डमवमा हणाणिगंतु सिज्झति। एसटाणे कल्लाण परंपरएण सुहविवो ति काउंण आटारिए केवलाला तच्चस्स मीसगस्साम्म पक्खस्स आहितगाएर्ष भणिता अधम्मपक्रवा, तप्पडिवक्रवारा धामपक्खा उभय से जोगेण यतीसपक्रवासिसिं सवेसिं उदाणि खेवेणं पडिसमार्ण कीरति-जे ते अधम्म एक्खस्सिता धम्मपक्वस्सिला मीसगपस्सिताय यलेसब्बे विबाला परिताबालपंडिता Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यभवंलिग से त्तिमुत्तेण चेववक्रवाणं-अविरतिं पहुच्च बालेयाविरत पडुत्व पंडितेयाविरताविरतिं पडुच्च बालपंडितेया।तत्या जा सासवतो अविरती एस द्वाणे आरंभट्ठांण, आरभे असंजामो अविरति सि वा एगट्ठा। तत्थजा सासरतो अविरती एसवाणे आरंभटाणे, आरंभी असंजमी अविरति सिलाएगहा तत्थ जा सासवतो अविरती एसदाणे आरंभट्ठाणे (आरंभी असंजमा ---- अविरति ति साएगट्ठा। तस्या रजा सालिरली एस टाणे अणा भट्टासंयमस्थानमित्यर्थ : (तस्य जा सा अविरत-विरती एसटाणे आरंभाटाणे संयमस्थानमित्यर्थः। तथा मासा अविरत-बिरती एस टाणे आरंभा-शारंभट्ठाणे, जेण परिमियं अवजनं ति तेण आरंभदुरणे, णिच्छयसुहति काउंलित्यारोमदेसी य, ते णारिए केवले।एवं ताव सो बहुविधो अधम्मपक्खोधम्मपरयो मासगंपकरयो यतिसु ाणेसु अविरतीए संखिवितुं समोतारितो, यथा-"जीऽभोजनमात्रेयः" एवमेघ संक्षेप पुनरपि संक्षिप्यमारणा दोसुहाणेसु समो तरति यदपदिश्यने-- ---- एवामेव स्मणुगम्ममा A समणुगाहि जमाण deg इमेहिं चेव दीहिं ठाणे हिंसमोयारंति,जहा-- - धम्मे चैव अधम्मे चेव उवसते चेव अणुवसते चेक तत्थ णंजेसे पढमस्स ढाणस्स अधम्म परवरसबिभग एषमाहिए, लस्सणा माई तिमि तेवहाई पाषायसयाई भवतीति मकरवायाईलमहा-किरियावादीणं अकिरियावादी अण्णाणियवादीणं वेणइयवादीण, Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेवि जेव्वाणमाहंसाले विपतिमोक्खमासू,लेविलवंतिसावा.तेविलवेतिसावइत्तारो॥----- ----' एवं समणुगम्ममाण / सम्यग् गमनाधिातवी लानार्थाः" इति कृत्वा सम्यगनुगम्यमानाः, सम्यगनु - चित्यमाना इत्यासमणुगाहिन्नमाण ति अनु पश्चगावे यदा शाहितः कश्चित्तानेवार्थानन्यान साहयति यदा तेऽर्धाः कर्म सम्पद्यते तदा उच्यते तेऽर्थाः समणुगम्यमाणा इमेहिं दोहि ठाणेहिं पुल्बुदिहिं समोतरतिव्रतंजधा-धम्मे य अधम्मे य उवसते य अणुवसंत य, तत्थ जे से पढमस्स अधम्मपक्ष रस विभग एवमाहिते / तस्य प्रादेशकानि कारणानिचा इमाई सिणिण तिसट्ठाई. आदौ ताव दसीला पावालिया, शास्साए इत्यर्थः सिद्धि शास्तुं भृशं वदन्तीति पावादुकाः। समासेण च उसु टाणेसुसमो० किरियावादी अकिरियावादी अाणियवादी[वेणदर -किमर्थमेतानि तिणिलिसट्राणि प्रवत्तानि उच्यते-यथैव वर्थ कर्मक्षपणानस्थिताः,एवं सिद्धिं पायमाना एव से विस्वच्छन्द विकल्पै संसाराभाव क्लेशामाबं वेच्छन्त्यतोऽपदिश्यते ते वि गेल्वाणमासु, से वि पनिमोक्खमासु / तत्र यहां तावदात्मा नास्ति केचिच्चासत्प्रकारेण कर्मसन्ततिं चैच्छन्मिान्ति) ते बन्धाभावात् केवनमेव कर्मसन्तते रुच्छेदानिर्वाणमिच्छन्ति / आह हि-“कर्मचास्ति."[ कर्तुरभावे को बध्यते मुच्यतेला? केवलमुपादानक्षयात प्ल दीपवत् तैनवयुपादानक्षयानिर्वान्ति एवं कर्मोपादानक्षयादनमातानुपपत्तेश्च सन्तत रभावो भवति,सप्तत्यभाव एव च निर्वाणम्। Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहेच- - --- "अयोधनातस्येव."येषामात्मा विद्यते साडख्यादीनां लेवि अपलिमोक्रवं सखी मोक्खो पडिमोक्रवो ।आह प्रकृति विकारविमी क्षो मोक्ष:"--7 कस्य क्षेत्रलस्य विद्यमानस्थ विद्यमानैवच प्रकृतिविकारे ज्ञानान्मोक्षी --- भवति / अपि च "प्राप्तानामुपयोग"[- ] वैशेषिका गामपि विद्यमान एव घडरचको मुच्यते / एवमन्येऽपि स्वच्छन्दविकल्पैःसंसाराभावमिच्छन्तोऽपि न मुच्यन्ते ।आहजलि संसाराती नमुच्चति ण वा मोएंति किं खलु लोगो तेसरण पवज्जति ?, उच्यते मिच्छताणुभाष ति। ते वि लवेति सावगा कूटपण्यमाहवत् / ते विसाव इतारो,आम्रवतं (आश्नवत्र आनुवाामित्यर्थ:यःशुभूषन् श्रावयति सनावइतरोभवति। एवं ताव आदीतीर्थकराः कपिलादयःसावएलर्बति तच्छिच्याश्य पारम्पर्येणमिथ्या दर्शनानुभावादेव ते वि विनति सार्वति सावतारी यावदद्यापि विषयानुकूलं धम्म देशमाणाः उ] हि भवबीज' इसिद्धन्द्धाले. 29] / जह 'गन्तुम शक्नुवन्नुधास' तथा निरवमहमुक्तः तथा बहुएहिं अभिसंपण्णा आह-करा एताणिनिसियाणि लिसट्टाणिमिच्छवादीणि?, उच्यते,येन हिंसामुपदिशन्ति, हतेण मोक्खी भवति, ते लावत् भवत्थुचेव,जे वि मोक्षवादी अहम् पससेति / - - मोक्रवस्स पढमर्गति,यथा-साइरख्यानां यमाशाक्यानमपि दशकशाला: कपिघालत्राप्यहिंसामान्या,नचाहिसा तेषांगरियोधर्म Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधमम् कथम् / साळयाना तावन्यज्ञानादेव मोक्षः। आहहि-एवं तत्ताभासा वैशेषिकाणामपि अभिषेचना पवास-ब्रह्मचर्य-गुरुकुलवास-वान प्रस्थ-दान-यज्ञादि-नक्षत्र-माना-काल-नियता दुस्सातना,तव हिंसैव वैदिका गरीयसी यस्मात्, यज्ञोपदेशाताउतहि मधुवं प्राणिवधो यो"शाक्यानामपि सत्यं गरीयो धर्मसाधनम् कथम् ?,कोऽपि भिक्खुएहि भणिती-सिक्खावतं--- मेव्हा तेण मुसावादवज्जाई गहिआईते घेतुं च भेजति,भंजती वुत्तो-कीस भजसि?, सौ भणति-मुसावादवैरमण मए ण गहितं, तएण सर्व अनियंञ्चेवाएवं तसिं अहिंसा वणधा गुरुई अम्हं तु अहिंसा सीलंगा,कथं कृत्वा, दृष्टकृत्यादिति हेतुः। लेचेव पावादिया अप्पाणुमाणेण दिवतो कीरति : तेसवे पावालिया आदिकरा धम्माणं णाणा पणा जाणाछंदा जाणासीला जाणादिक्षीणाणारुती जाणारंभा - णाणज्झवसाणसंजुसा एग महं मंडलबधंकिच्चा सवे एगयओचिट्ठति // पुरिसे य सागणियार्ण इंगालाणं पाति बहुपडिबुटि पुण्ण अ योमएणं संडासएणं गहाय ते सो पावातिए आइगरे धम्मा Uणापणे जाव णाणाझवसाणमुंजुत्ते एवंवदासी-हमी पावातिटा! आगराधम्माf TI पणा जावा अशवसाण समजुत्ता! इमंता तुम सागणियाण इंगालपाति बहुपडिपुर्ण गहाय मूह तयं मुष्टुत्त पाणा धरेह णो यह संडासगं संसाश्य कुज्जा णो य हु अग्गिांभागियं कुन्जा णो यह माहम्मियवेदावडियंकुजमा यो Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यहुपरधम्भिववेदावडियं कुज्जत उज्जुयाणियापडिवण्णा अमार्यकुब्वमाता पाणिपसारेहा इति वच्चों से पुरिस तसिं पावादियाणत -मणियाणं इंगाला पाति बहपरिपुष्णं अौमतणं संडासतेणं गहाय पाणिंसुणिसिरति,तते णं ते पावादिया आदिरा धम्माणं णाणा पण्णजावणणाझवसाणसजुत्ता पाणिपडिसाहरति ततेणंसे पुरिसे तेसवे पावातिए आदिगरे धम्माणं जाव TITI झवसाणसं -- एवं बयासीन्ह भी पाबादिया। आदिगराधम्मार्णणाणापण्णा जावणाणाज्झवसाणसंजुत्ता कम्हा तुमे पाणिपडिसाह रही, -पाणि नो इज्झेज्जा, दवे किं भविस्यतिी,दुक्रव,टुक्रा ति मण्णामाणा पडिसाहरह एस तुला एस पमाणे एससमोसरणे पत्तेयं तुला --पलेयं पमाणे पत्तयं समीसरणतत्थर्ण जेतेसमणन्माहणा एवमालिक्खंधितिजाव पवेति-सबै पाणा जाव सब्बेसत्ता हतब्बा भज्जावेतता परिघेतला पारतवितव्वा किलामैतळा उद्दवेतला,ते आगंतुछेहदाएते आगंतुभेदाए जायते आगंतुजा-जरा मरण-जोणिजम्मण-संसारपुणभव-गालावास-भवपर्वचकलंकनीमागिणी भतिस्संति, ते बहण दंडणाणं बहणे मंडणाण----- लज्जपतालमार्ण अंबंधणाणं जाव घोलणाणमाइतरणाणपिइमरणार्णमाइमरणा भगिमीमराण भज्जा-मृत्त-शत-सत्र हामरणार्ण दारिहार्ण दोहगाणं अप्पियसंवासाणपियविपणनीगाणंबणंटुक्खदोम्मणस्साणं आभागिणी भविस्संति, अणादीय -चणअणबदमादीहचाउरतससाएकसारं भुज्जी मुज्जी अणपरियहिस्संतितेको सिन्झिस्संतिणी झिसति,जावणी Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / सम्बदुक्रवाणं अतंकरिम्संति, एस तुलाएस पमाणे एस समोसरणे पत्तेयं तुला पसे ये पमाणे पत्तेयंसमोसरणे तित्य जे ते समण माहा एवमाइक्खंति जाव पर वेति-सवे पाणा सबे भूयासवेजीबासले सत्ताण हलवा अज्जावेतब्याण परिघेतब्बा उहवेयव्वा से णो आगंतुछेदाए लेणी आगंतुभेदाए जाव जाइ-जरा-मरण-जौणि जम्मण-संसारपुणभव-गवास-भवपवंच कलंकली भागिणो भविस्संति, तेणी बहूण दंडणा जाव णो बहूण मुंडणार्ण जावणं दुरष दोम्मणस्साणं णो भागिणी भविसति, अUn - दीयं चणं अणषयर्ग दीहमद्धं चाउरंतसंसारकतारं भुज्जो भुज्जो जो भणुपरियतिस्संति, से सिज्झिस्सति जाव सब्बरवा अंत किरिस्सं ति . . ..... ................ ले सो पावा दिया। प्रवदनशीला: प्रा०। आदिकरा धम्माणं असभावपदबाएएलेसितित्थारार्ण तच्छासनप्रति पना बाणाणापण्णा जावणाणारंभा, अधाभावेन के कारणेण धम्मपरिवरटागट्ठा पणावावारण अण्णम Uणाई धमासाधणाई भणियाइं भामणा अहिंसमवाणामाण| मणिच्चए। चेव करणा एफ्ण आबेतुकामेण एगट्ठा मेलेत्तुं भणिता। मंडलबंध कातुं - मगध जमा दौणि वाहाओ आकुंचिताओ अग्गहत्योह मेल्लिताओ पाधा भवंतिलोएउ वट्ट मंडलं तिच्याति,मंडलबाहाइ मंडल बाहा, एवं सेसिं संहलिभाए जघा परिएसणाए लधेध णिवेसिता लेपिचेन्तन्ति कूरो लभति'त्ति उवविद्वाजाव पुस्सिी सागणिया इंगानाणं --- हिलिहिलेन्तार्ण पातिं पच्चति तस्यामिति पावी कसिया लोहमयी सामयी वा सा छुभंतेहि चैव अमोहिं अंगरगह Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिमिणलणेण भगितुल्लता साभवलिते अयोमएणमंडासएण गहाटा जेणेवले पावाइया तेणीव उवागच्छति, वे पावाति एएवं वदासी -हमी पावदिया आदिकराधामाणे इमं सावाठिी पासिं मुहुर मुडुसं वीप्सा एका भणाति-मुहत्तमत्तं धरेह, णो संडास एणोतुं अण्णस्स हस्ये दातला पविहिता,णी अग्शिायभणाविज्जाए आदिच्चमतेहिं अशी भिज्जइ,साधमियवेदावडियं पार्सडियम्स थंति,परपासंडिलस्स वि परिचएण थोइ, उज्जुक डादानुगाउनुगा परिवाडीए ठिती भावुज्जग सिणियगं 2 धम्म परिव रा सत्यालो पेनेत्यर्थः / अमायं कुबमाणा वक्ष्यति, माया अशिष्टां भगादि,णिकायणं परिवणा णिकायपडिवण्णा सब हमाविता हत्यर्थः,सबेहि पंचमहा पात गगी- बंभण-रिसि-भण-गामादीहिं एवं ताव तित्यगरा तस्सीसा चेव महापात्मा हीसवधा स्व समयसिद्धया चस्वतीकिराणांपाएसु इति वच्चा एवं णिकाएतुं तसिं पावातियाण तं पाति सइंगालं संडासेण णिसरति / नागार्जुनीयास्तु-योमएण संडास गहाय इंगाले ऽवणिसरति। लौ ण ते पावातिया आदिकरा धम्माण 'मा उज्झी हामीति मातुं पाणिं परिसा हरति / तते से पुरिसे ते पावातिए एवं वदासी-हे भो पावादिया ! आदिकरा कम्हा पाणि णो पसारेधते भांति - पो डल्झेज्जासी भाति णियवयणकीविदो-पाणिम्मि किं भवति? ते भी लाभांति-दुक्खं भवति।सोपडिभाइ इमं दुक्रय भवति, जति अ दुक्रवं मणमाण पाणी या पसारेध णणु अताणुमाणेण चैव एम तुल ति समभारा,हा -- Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -णक्तली कती णामति / एवं अधा तुल्भं दुक्रर्व णा पिर्य एवं सल्वजीवाणं दुक्रवमणिहूं, पमाणमिति सुब्भव पमाणं, साक्षिणा इत्यर्थः, जह कस्स इ सुहमगिढ़ ? दुक्खं वा पियं? / उक्तं हि:-- -- ------------ - वस्त्रादिभिश्वेदिहनाभिविष्यत् प्रच्छादिताकाथमल भामो ऽयम्। - - --- - त्वमेव साक्षी सहजालरूप, यद्यत्र रागप्रणयो भविष्यत् // 1 // सवेसि जीवाणं एत्थ सुह-टुक्ततुले सम्यग अवसरणामिति तुल्योऽर्थः, कत्थइसुहम् ।पत्तेयं तुला, एकैकं प्रति प्रत्येकम्। प्रत्येकभाप एक्कै कम्स जीवस्य तुला सहप्रियाण दुःखी गणांच,तधेव एकैकपमा समोसारणं च की रति / एष दृष्टान्तः / अयमोप नयः तत्थ जे ते समण-माहणाएतं सुह-दुक्रवतुनं अत्तपरग लि बुनमजा ता भाति सवे पाणा कहं तला उहवेतवा कहं च र्ण भंते ! हंतला 1, उच्यते - उहसिकादि अनुलानात् तेहि सब्वेहिं पाणा इ तिला उवद्द वेतनादि अणुण्याता भवति ।उक्तं हि-बहणं - तस-थावराणं तम्हा उद्देसियं णभुजे / अथैयामैवोद्देशिमादि अनुमन्यमानानां च को दोपः उच्यते, अनिर्मोक्षः अमुच्यमानश्वचातुरते संसार केलारे आगच्छतिवदाए,यथा मामा य गच्छति एवं आन्तवः देसच्छेदो हत्यच्छेदादि,सलच्छेदो सीमादि,जाव कलंकलिमावभागिणी भविसतिाकि चान्यत्-वर्ण दंडणाणं जाव अभिगी भविम्मति,अणादीयं चनजाव अणुपरियट्टिसलि ते सिक्सि स्मति ।एस तुला जे पुण अत्तो वमेण सबजीवेहि तुला सह-दुक्रवतुल पतितामा समोसरण पत्तेयं सुना एवं -- Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिमाणा तत्थ जे ते समण-माहणा एवमाइक्रांति सले पाणान हतवालच्याहतााएवं उद्देशिकादिविवज्जिणो ते णो आ- - - गंतुंच्छेदाए तं चैव पडिलोमजाव सब्बटुक्रवाण अतं कररसंति। भणियाणि किरियाणाणि, एत्थ पूर्ण परिसमाण कीरति-इ श्यावहिटावज्जा बारस किरियाणा अधम्म पक्रवेऽ णुवसमे समीलारिन्नति, तेण वुच्चति---- - इच्येतहि' बारसहि किरिया ठाणेहि वढमाUTI जीना सिमि-सु णो बुझिसुणी मुच्चिसु णौ परिणि-ब्वाईसु जाव णो सब्दुकरवाज अंतं करेंसु वा णो करेंति वा णो करिसति वा / एयंसि चैव लेरसमे किरिया ठाणे वट्टमाणा जीवा - | सिन्झिसु बुझिसु मुच्चिंसु परिणिवाईसुजाव सव्वदुक्रवा अंतं करेंसुवाकरति वा करिस्मलिका एवं से भिक्खुआयडी आय हिते आयगुत्त आयजोगे आयपरक्कमै आयरविवए आयाणुकंपए आयनिफेडए आयाणमेव पाडसाहरेज्जासित्तिमिता ---|| किरियडाणं वितियं अज्झयसम्मतं // - - -- ------- उच्च लेसु बारससु किरियहाणेसु वडमाणा जीवा अतीतकाले जो सिझंसुति संपयकाले णो सिझंति, एवं अणागते णी सिण्डिसम्मतिातेरसमे किं पुण? किरियट्ठाणे वहमाणा जीवासिज्मंसु वा 3. ( एवं सो भिक्खूजी पोंडीएवुत्तो किरियाणव ज्जओ अधम्मापक्रख अणुवसमजओ य किरियडागसेवी धम पक्रवाहितीउपसंती आयट्ठीजो अपारकरवतिजती आया Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिवति आत्मवान लोकेऽपित्तीद्यले-"अरक्वंलो अनात्मवान् अक्षवा अप्पएण से अट्टो आयडी अपणो हिलो इह एरत्यय - लोए, चौरादी दोसुविलो एसु अप्पणो अहिता / अप्पगुत्ताणा परपच्चएण लोगपत्तिणिमित। आत्मनैव संगमजोए झुंजलि ण परपच्च यठं / सयमेव परमति केह.पुणभणति- -- ईश्वरात् सम्प्रवर्तेत, निवतेत तोश्वरात् सर्वे भावास्तथा भावाः पुरुषः स्थास्नुर्न विद्यते // 1 // --------- 'सर्वेभावा तथाभावाः 'एलच्च आयपरकममहणेा परिहूर्त भवति एवं प्राकृति-काल- स्वभावामामपि आलपरकमगहजोण पाहसेधी कती भवति। अप्पाणं रक्खंती आयरक्रवती भवति भाताणुरक्रिवतो वा अनु पश्चा झावै किरियहाण सैविणी, लेश - अधामफली दुगदुखेण संपयु(यात्ते कपिज्जमाणे दर्दु जस्सेव कंपो भवति से आसाणुकंपए,परमात्मानं वाऽनुकम्पमान: आत्मना हात्मभानुकम्पले तदनुकम्पते तदनुग्रहात् / आतणिप्फेडए अत्ताण-संसारचामा जिप्फेडेति,अताi Uणादीहिं गुणेहि निष्फे इति आलगिफेडए [अत्ताणमेव पठिमाहरेज्जानिति बेमि, किरियहाणहिँसो पडिमाहरलि, पडि साहरिता अकिरियहाणे ठावे // ॥हितीयभूतस्कन्धेहितीयाध्ययन कियास्थानं समाप्तमाछा. . अज्झयणाभिसंबंधी-तेभिक्खुणा कम्मरणयसमुद्वितेज बासबारस. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाकिारयद्वाणविवज्जएण तैरसमकिरियडाणासविणा आहारगुत्ते का भवितव्याम् विक्ष्यति- आहारगुत्ते साग्नि से सहिए संदामएखासि तिमि"|जो फासुजाहारी सो आहारगुती भवति।तत्र उच्यत- केयि जीता संचिताहारा केथि अचित्ताहार. तिको वा किमानी, एनेभिसंधैण तलिय मज्झयणमायातं आहारपरिणा! फासुगाहारो सो आहारगुत्तो भवति, चत्तानि अणुओऽगदारा, पुवाण - पुलीए सतियं पच्छाणुपुल्लीए पंचम अणाणु पुलीए एगादिमतगच्छगला जाणामगिकणे आहारपरिण] 1 आहारो जिकिरववि रखी परिणाय। आहारणिकरखेवी पंचधा याप्तं ठवणा दविए श्वेसे भावे य हो बोधले। एसो खलु आहारे णिक्रयेवो होइ पंचविहीं / / 169 // दवे सच्चित्तादी खेतेणारस्स जाती होइ। भावाहारी तिविही औए लोसे य परवे / / 170 // ---- णाम ठवणागाहा एसो खलुगा [उत्तरही। ..---- वे सच्चित्तागाधा दब्बाणि आहारतिहबाहारी।सी तिविधी-सचित्तादि३।। सचितो छविधी- पुदविमायादि (पुढवी लो मादी,"अपि कर्दमपिण्डाना." हा आउकाओ सञ्चित्ती भोग्म-तलागादि अंत 'रिकरवी याले उकामी सचिही आहारो इट्टपागादिसु महतैसु अ अगिट्टाणेसु अग्गिम् सगा सम्मुच्छति,ते तचैव सचित Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगिमाहारैलि,सेसा मणमादयो ण तरंति जलमाण सचित अगिमाहारेतुं ।उक्तहि-"एका नास्ति अवक्तव्यश्याउने रना स्याममित्रवत्"। लौ माहारो पुण तेसिं होलि हेमंत सीत विसावलाणसो पुण जी अग्गीली प्रकायाः प्रताप सो सचित्ती ति -- - वा अचित्ती तिवा(सचित्त ले पुण नियमा आहारेंलि जीवा, जेण सीण खुणा तो अमल भी वि आसासति,जधामुच्छितो पाणिएण ।वाउका भी लोमाहारी-सीयलएण वासेण अप्पा इज्जति वणरसती कंद-मूलादी। तसा मंडुक्के जीव ते चैव सप्पा गर्मति,मणूसा वि केइ छुहाइता जीवंतिया चेव मंडुक्कुलिया। एवं अचित्ती मी-सी अविभासितलो। णवरि अग्गी 2 अचित्तो भागितब्बी, अभंते औरणी ओदण कुम्मासे." भणिलो दल्या हारो विविही खेसाहारी जी अस्स गररस आहारी भोगो नगरोधभोगा--(गा)। आहार्यत इत्याहारः विसओ माहारी त्ति वुच्चलि,जधा मधुराहारो खेडाहारी यस्मा द्वाप्यस्नेहीन्धनादि। इदाणि भावा हारी, तैसि चेव सचित्ता-ऽचित्त-मीसगाणं दवाण जेवणाहगी ते बुद्धीए वीसुवीसु काऊणमाहारिन्नमाणा भावाहारो भवति तस्य वि क-कसाय-अंबिल-मधुररसाहि जटिभदिय विसयो ति काऊण प्रायेण पंति। उक्तं हि-राइभत्ते भावती तित्ते वा जाव मधुरेवा। इतरेऽपि चानुष) ण / उक्त हि-"जड्डी जंवा सं वा." [ ]मृदुविवाद बास्या पढयश्नौदनः प्रदास्यते, शीतोट्नो न प्रशस्यते, शीतोट्कं तु प्रशस्यते।एवं तावद्भावा हारो ट्रव्याभय उक्त / इदाणि जो --- Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहारैलि आहारी समाग्नित्य भाव उच्यते-सलो आहारेन्ती उदइयरसभावस्स उदएण आहारति। कतररस उदइ-- यम्स ?, वे अणिज्जस्स कम्मरस उदएण, पंचेव आणुपुब्बी."[उत्तरानिगा• जम्हावुत-"उहिँ ठाणेहिं --+-- -- आहारसपणा समुप्पान्जाति, तं जधा-औमकोडताए धुधावेदणिज्जस्य कम्मस्स उदएण मलीए सट्ठी वओगेण " स्थानांग० स्था०४ - 1जम्हा उदमिकस्य क्षुद्देदनीयस्य कर्मण उदयास आहारति केवलीण वि यो दयिक पारिणा---- -मिको भावी इति / तम्हा सिद्धो भावा हारो / भाता हारो तिविधी ओएलोमे अ परवेवे ।एएर्सि तिह बिएमाए चैषाधाए संवेवबक्रवातं.------- सरीरेणीयाहारी लयाय फासैण लोमआहारी। - पक्रववाहारी पुण कावलिओ होति जायस्वी // सरीरेणीयाहारी-तयाइ फासेण लोमआहाशा' परवेवो जं सरीरस्स पज्जत्तीए पजनसओ वा आहारेति ॥जो औयाहारी एलस्सवक्रवाणं पुरिल्लाए गाधाए पुल्बद्धेर्ण सं०---- औया हारा जीवा सत्वे अपमत्तगा मुणेयवा। ...पज्जलगायली पखव हैति भयितव्वा / मोआहारा जीवास माहारा अपज्जताअप्पुज्जत्तगा उ ओजति सरीरं, ओजाहारासरीमहारा िकतरे? सब्बे आहारगा, Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजे आहारेंति जे आहारगा,ते पुण तत्ततेतूसंपाणमषेवनइह सवीरपज्जत्तीए पज्जत्तगावा पज्जप्पमाणा वा, सरीरपज्जती --- पुण आहारपज्जत्तीए पज्जयममाणस्सेव, सव्वबंध आदविय प्राव सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तो / जइसरीरपज्जत्तगस्सवि ओजाहारी होति किंबुच्चति औजाहारा जीवा सब्वे आहारगा अपज्जता" 1 उच्यते-इंदिय-आणापाणु-भामा-मणीप जत्तीहि अपज्जत्ता कुत्तं भीयाहारवरवाण। इदाणिलोमाहारस्म भण्णालि-"तयाइ फासेण यलोमआहारो"ति एतस्साहापादम्स रिलीय धाए ---- पच्छिमद्धेणवक्खाणं - ------ - पत्ता तुलोमे पक्रोवे होति भयिल ला1 - - कतरीए प्रज्जत्तीए आढवेतुं ?,लत्थ तथा घेप्पलि, फार्मिदि-यमित्याः ,जंउण्हाभितत्तो छार्य गंतूण छायापोग्गलेहिं आससतिसव्वगातलोमकूवाणुपषिदेहि,आससति सीतवातेण,बाउरखेव गादीलातणवाउन्ससलिण्हायंती वा,एवमादि लोमाहारो ति। गधी विलोमाहारो चैव,जेण परवेवाहार ध आहारिज्जती आ-- हाशे तेनचक्षुष्मता अन्यन वाण दीसति सेण लोषाहार लोप इव लोपःअदनिमित्यर्थः, अदीसंताचीरा हरेति तेलोषाहारा - बुच्चति, एमी पुण लोवाहारी णिच्चमेव भवति अभिोगणिबत्ति ती वा अणाभोगणियत्तितोषा। पक्रयेवाहारी पुणभइज्जति। का भयणा, कदाति आहारेइजधा उत्तराकुश अट्टमेण मलकालेण पक्षेवमाहारमा हारति,संवेजावासाठआणं अगियी। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व ग स्याइ फासेणं लिपुत्ताइदाणि परवेगा हाम्स वक्रवाण, तेन च्याले-- एनिदिय-देवाण मेरइयाणं च नाथ पवखेवो। - - सेसाण पक्वेवा मंसारस्थाण जीवाणं // 13 // एगिन्दि-जारगाणं देवाणंचेवणस्टिपरवेवी। - सेमाण पक्खोवीसंसारस्थाण जीवाण संसाणादियवजार्ण ओरालियसरीरिर्णा सिंजिभिदियमथिले पक्रवे वाहारा। ---------- एके वाचार्या एतदेव त्रिविधं आहारम न्यथा बुवते, संत) जधा-पक्रववाहारः औयाहारः लोयाहार इति तत्रयो मिलेन्द्रियेनी पलभ्यते परसवीरे प्रक्षिप्यते सी पक्रवाहारो।यो प्राण-दर्शन-भवका रुपलभ्यते धातो परि -णाम्यतेस ओनाहारायःस्पर्शेनोपलभ्यतेधातौ परिणाय ते स लीवाहारावृत्ती आहारी / अणाहारगाय इदाणिं वत्तळ्या-जे जत्तियं वा कालं अणा हारमा भवन्ति काळ लाव भणति * एचंच दो-व समए लिन्नि वसमए मुहत्तमद्धवा। सादीयमान हणं पुण कालमणा हारगा जीषा / / 1411.--- एक्कं बदोबसमए तिणि साए महत्तमद्धबासिादीयमणिक्षण वा कालमजाहारगा जीया Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ती कालो गाधासिद्ध एव।।इदाणि अणाहागा च्टांति ते दृविधा--------- छमत्था केवली यातत्य छमत्या अणहारगा।-.............. ----- * एवं च दोन समए केवलि परिवज्जिया अणाहारा। मर्थमि दीणि लोए य पूरिए शिति समया उशा एक व दो व समए केवलिपरिवज्जिता अक्षणाहारा मिथम्मि दौणि लोगे य पूरित तिणि समया तु॥ एग व दो व समए ति विगहातीए / केवलीमा हारगा दुविधासिद्ध केवलि अणाहारा भवत्थके वलिअणाहारा / भवत्या केवलि अणा हारा टूविधा, तं मधासोगि० अयोगी सयोगि भवत्यकेवलिमा हारगा समुग्घातगलात पुण थन्मि दौणिमयं पूरेती लोए भवति तइए समए णिराहती पंचमसमए लोग पूरैतिचउत्थसमए,तिसुविअणाहारो॥ अंतोमुहत्तमद्धं सेलेसीए भवे अमाहारा। सादी यमनिह पुण सिद्धायऽण हारगा होंति // 16 // ------ -इदाणिं अजी गिभवत्य केवलि अाहार औ धासिद्धो चैव अंती महत्तासिद्ध के वलि अणहारओ विगाधासिद्धी सादीय अणिधणी सिद्ध अगाधारी।।--- जोएण कम्मएणं आहारेई अतरंजीवी। तेण परं पीसेज जाब सरीरस्स प्रज्जती // 1 // -- - - - Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवधज्जमाणाचेव सबंधेकत्माजीगण आहारैति / तीमीसेण जाव ओरालियसरीरपज्जतीए पज्जत्तो भवतिापच्छा औरालिय- -- - सरीरेण चेव आहारेति / एवं वेउव्वियआहारासरीरेणं पुण नियमा आहारगी चेव,वुत्तो आहारी ।इदाणि परिणाजधा सस्थपरिणाए // --- भाणिता णिकरवेषणिज्जुत्ती सत्ताणुगमे सुतं-- - मै आउसलेण भगवता एवमक्वायं-बह खलु आहारपरिणा णाम अज्ायण,तस्म णं अयमई-इह खलु पाईज वा एक सव्वती सब्बावंतिचणं लोगंसि चत्तारिबीयकाया एवमाहिति तं महा-अपगबीया मूलबीटा पोरसीया बंधबीया, सेसिंचणं अहाबीएणं अहावगासेणं इहएगतिया सत्ता पुढविजीणिया पुटविसंभवा पुढविवक्कमा तज्जीणिया तस्संभवा तब्बतमा कम्मीवगा कम्मणिदाणेर्ण तत्थ वकमा विधजोणियासुपुढवीसुझक्वताए विउटुंतिाते . जीवा तासिं गाणा विधजीणियाणं पुढवीण सिणेहताहा,लि,ते जीवा आहारेंलि पुढविसरी र आउसरी लेउसरी बाउसरीरं वण -स्सलिसरी Uणाविहाणं तस-थावराणं पाणासरी अति कुवंति परिविद्धत्यं तं सरीगंपुवाहारियं तयाहारियं विपरिणत भारविरकडं संतंरा सव्यप्पणलाए आहारं आहारेति // अवरेऽवियां सेसि पुढविजोतियाण रुक्रवाणं सरीरावourn जागंधाणाणारसा जाणाफासा पाणासंठाणसंठिया जाणाविहसरीरमालविउविता से जीवा कमोववण्णगा भवंतिलि Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सवातं॥----- - अहावरं पुरवसायं इहालिया सत्ता रुक्रवजोणिया रुकवसंभवा रुक्खवकमालज्जीणिया तस्संभवा सबकमा क मोवा कम्मनिदाणेणं तस्य क्या पुठवीजाणिएहिं करवेहि रुक्रवत्ताए विउदृलि, ते जीवा तेसिं पुढतीजोणियाणं रुक्रवाणं -- सिणेहमाहारेति,ते जीवा आहारेति पुठवीसरीरं आउ० ते उन्वाउ० वणस्सइसरीरं जाणाविहाणं तमन्थावराणं पाणण सरारं अचित्तं कव्यंलिपशिविद्वत्वं तं सरीरगं पळाहारियलयाहारियं विप्परिणामियं सारुविकर्ड संतं अवर वियण सिं रुक्खजीणियाणं सक्खाणं सरीराणाणावणाणाणा जाणारसा जाणाफासा संठाणसंठिया जाणाविहसरीरपुरगलविउविया जीवा कम्मोववनगा भवतीति मक्खायं // - अहावरं पूरक्वायं इगलिया सत्तारुख जोणियारुक्खसंभवा रुक्रवकता तज्जीलिया सरसंभवा तव्वतमा कम्मोवा कामाणिवाणेणं तस्य वनामा रुकवजो जिएसुरुक्रवक्षाए विउईति,तेजीषा तसिं रुक्खजोणियाण रुक्मणं सिणेहता हारेति, ते जीवा माहारेति पुढविसरी आउ तेउवाउ वार वणस्स इसरीर लस-थावराण पाणाण सरीरं अचित्तं कुवंति, परिविजय तं सरीगं पुवाहारियं स्याहारियं विपरिणयं सारुविकर्ड संचितवंड) अवरे वियण तेसिं रुखजीणियाण रुक्खार्ण स -'राराणा णावण्णा जाव तेजीबा कम्मीववाण भवतीति मक्खायं / / Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "अहावरं पुरकरवायं इहाइया सत्तारुक्रवजीणिया रुक्रवसंभवाकरखवाना तज्जोणिया सरसंमया सलछमा कम्मी--- वगा कम्मानिदाजे तस्थ वकमा कक्वजणिएसु रुवावसु मूलत्ताएकंदत्ताए वंदधताए लयत्ताए साल लाए पवालताए पत्त साए पुप्फताए फल लाए बीयत्ताए विउद॒ति, जीवा सिं रुक्रवजीणियाण सक्खाण सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पु विसरीरं आउ० लेउ बाउ० वणस्साणाविहाणं तस-थावराणं पााण सरीरं अचित कल ति पारविद्धत्थं तंसरीरगंजाव सा रुविकर्डसंतं, अवरे वियजतसिंकदरवजाणियाण मूलाण कंदापरवाज सयाणसालार्ण पधास्तीण (पवाला) जाव--- -बीयाणं सरीरा पाणावण्णा OUTLYगंधा जाव जाणाविहसरीर पुरगल विउविया लेजीवा कम्मोचवण्जगा भवतीति मकवायं। - अहावरं पूरक्खायं इहगतिया सत्ता रुक्खजीनिया रुख संभवा रुक्खचकमा लज्जीणिया तस्स भवा तबकमा कम्मीवाना कामणिदाणे तस्य धक्का सिक्ववकमा तज्जीनिया तस्संभवा तब्बलमा कम्मोधवनगा कम्मणि दात खजोगिएहिं रुस्खेहि अमारीहत्ताए ति उटुंति ते जीवा तेसिं रुक्रवसोनियाणेरुस्खा सिणेहमाहारेति। - - - खायं। हे ते जीता माहारेंलि पुतविसरीरंजाव सारूविकडंसंत,सवरेवियणं तेसिं रुकवजी णियाणं अज्झारोहण सरीराUIUI RUTI SINH अहावरं पुरकरणात, इहेगतियासत्ता अज्झारी जोगिया अज्झारोहसंभवा जावकामनिदाणे सत्यवनमा रुक्वजोणिएस अज्झा रोहेसु अज्झारोहत्साए विउलि.ते जीवा तेसिं रुक्रवजोणियाणे अज्मारोहाण सिहमा हारेंति, जीवा पुदविसरीरंजाब सारूविकडं संत, - अवरे वियण सिं अज्झारोहजोजिया अज्झारोहाग सरीरा जाणावा जाव मक्खायं // Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पविजीणियाण रुक्रवाणं सरीराणाणतण्णा जाणगंधा नाणारसा माणफासा संठाण संठिला नाणा विहसरीरपोग्गलविउविता लेजीवा कामीबवण्णगा भवेतीति मकवार्य | .. अहावर पुरवात इहेगलिया सत्तारुक्रवतीणिया रुक्रवसंभवा झकरवपुक्कामा तज्जी पिया तस्संभवा ते वुकमा कामोवा कामनिदाणे तत्त्य बुक्का पुढवि जोडिएहिं रुक्रवाहे कवरवत्ताए विटुंति ते जीवा तेर्सि पुढवी जोणियाण सक्खाण सिणेहमालि से जीवा आहारेति पूर्ववीसरीरं आउ० ते उ.बाउ० वणफतिसरीरंनाणा विहाण लसथावराण पाणाणं सरीरं अच्चितकुहलि परिविहत्य तं सरीरगं पुत्वाहारिय विप्परिणये सारुविकडं संतं सबप्पाणाएआहारं आहारैतिअवरे बियण तसिं रुकरबजोणियाणं रुक्माण तीति करवायं // सरीरा पाणावण्णा नाणागंधा नाणा रवी नाणारसा नाफासा नाणासंठाण संठिया माणाविहसरीन पोग्गल विउसिता ते जीषा कमीवण्णा भावं, अहावरं पुरकरवायं वहगतिया सत्तारुकरबजोणिया रुक्खसंभवा सकरखवीकमा तज्जीणिया तस्संभबालत्थुक्माकामी वया कामनिदाणेज तत्यानुक्कामा सक्रवजीणि एसु रुक्रवेसुरुक्रवत्ताए विउटुंति तै जीवा तेसिं रुक्रवजोणियाणं रुपवा सिणे हताहारेति ते जीवा आ हारेति प्रतिसरीरं आ 30 ते उ. पणस्सतिसरी माणा विहाण तसथावराण पाणा सरीरं अच्चित्तंकुवं परिविचत्वं तं सरीमा पुवा हारितं विप्परिणय सारुविकडं संतं अवरे बियण तेसिं रुक्खजोणि याण रुक्रवाणं सरीराणाणावणा जाव ते जीवा कम्मो बनण्णा भवतीति मकवार्य। अहावरं पुरक्वायं इहे गलिया। सत्ता रुक्खजीणिया सक्ख संभवा सक्खवुक्कामा तंजीणिया तस्संभवा तेवुकमा कम्मोगा कम्मनियाणेण लत्थवुकमा रुक्रवजीणिएसुरुक्षेसुमूलताए केदत्ताए खंधताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पनासाए पुप्फत्ताए जाव 'अवरेवियण सेसि अज्झारीहजीजियाणं मूला जावबीयाण सरीराणाणावणा जामकरवायं॥- अहावर पुरवस्थाल इमतिया सत्ता ढविजीजिया पुरवि संभव आव जाणा विहजोणियासु पुढवी सुलणसए7 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -----.."अहावरं पुरवरवात इगतिटा सत्ता अज्झारोहजोणि या अज्झारोहसंभवा जाव कम्मणिदाणेणं लत्या वक्कमा अज्झारोह जी जिएसु अज्झारीहत्ताए बिउति,से जीवा लेमिं अज्झारोहजोणिया अज्झारोहाण सिणेहमाहारैति,ते जीवा आहारंति पुढविसरीरं आसरीरं जाव सारूविकडं संतं,अवरेवि य क लेसिं अज्झारोहणोणियाणं अज्झारोहाणं सरीराणाणावना जाव मकरवायं॥------- --- अहावरं पुरकखायं इहेगतिया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा जाव कामनियाणेणं सत्यवतमा अज्झारोहजोणि एसु अज्झारी हेसु मूलत्ताए जावबीयसाए विउटुंति ते जीता तेसिं अज्झारोहजोणियाणं अज्झाशेहाणं सिणेहमाहारेंसि जाव अवरे विय ण से सिं अज्झारोहजोणियाणं मलाणं जाष बीयाण सरीश पावणा जावमक्वायं। अहावरं पुरक्खायं बहे गतिया सत्ता पुढविजोगिया पुटविसंभवा जाव णाणाविहजोगियासु पुचीसु तणत्ताए वि उटुंलि, ते जीवातसिंगाणाविहजीनियाणं पुढवीण सिजे हमाहति जावतेजीबा कस्मीबवण्णा भवतीति मकरवाय॥ एवं पुढविजीणिएसु लणेच तणताए चिउति आव मक्वाय॥ एवंतणजोणिएसतर्गसुतणत्ताए विउईलि,तगजोगियंतणसरीरं च आहारेति जावमक्वार्य एवं तणजीजिएसुतणेसु / मूलताए जाष बीयत्ताए विउदृति से जीवा जाव एवमक्रबायं।एवं ओसहीण वित्तारि आलावगाएवं हरियाणवि सारिआलावगा। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 अहावरं पुरक्वाय इहगलियासत्ता पुढधिजीणिया पुदविर्सनवा जाव कामणिदाणेणं तत्य वकमाणाणाविहजोणियासु पुठलीसु आ यताए वायसाए काटात्ताए कुहणताए कंदुकत्ताएं उब्वेहणियताए णिल्वेहणियत्ताए सछत्साए उत्तगत्ताए वासाणियत्ताए कूरसाए विउठूति, ते जीवा सेसिं जाणाविहजोणियाणं पुढवीण सिणे हमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढमविसरीरं जाव संसं,अवरे वियण सिं पुढविजीणि-- याणं आयाण जाप कूरार्ण सरीराणाणावण्णा जावमक्खातं, एगो चैव आया वगी सैसा तिणि स्थि॥ - - अहावरं पुरवतात इहे गतिया सता उदाजीणिया उदासंभषा जाव कम्मणियाणे तत्थ बक्समा गाणाविहजीगिएसूद उदऐस रुक्रवताए विउति तेजीवा तसिं णा बिहजोणियाण उदगा मिजो हमाहारेलि,तेजीबा आ हारेंति, पदविसरीरं जावसंतं, अवरे वियतेसि उदगजोगिया रुक्तार्ण सरीराणाणावण्णा जाव मक्खाय। जहा पटविजोगिया रुक्खा चत्तारि गमा अज्झाकहाण वितव, ताण ओसहीर्ण हरियाणं चत्तारि आलावगा भागथवाएछो॥ ----- अहावरं पुरक्वायं इगलिया सत्ता उद्गजोणिया उद्गसंभवा जाव कम्मणि दाणेणे तस्थ बक्कमा जाणाबिहजीजिएम उव एसु उदात्ताए अलापलाए आसाए, अवगत्ताए पपासाए सेवालसाए कलंबुगत्ताए हदत्ताए कसे साताएकच्छभाणियत्ताए उपलताए पउमताए कुमुदत्ताए नलिणत्ताए सुभात्ताए सोगंधियत्ताए पॉडरियमहापोंडरियताएसयपत्तत्ताए सहस्स पत्तत्ताए एवं कल्हारकोंक "पयत्ताए अरविंदत्ताए सामनसताए भिसभिसमुणालपुक्खलताए पुरवलच्छिभात्ताए विउ ति, ते जीवा तेर्सि णाणा विहजोणि Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाणं उदगाणसिहमाहारेति, जीवा आहारेति पढविसरीरं जावसंत अवरे वियण लेसिं उदाजीणिया उदगाण जाव पुरवल्ल- " -च्छिभगाणं सरीरा Tणावण्णा जाव मक्खायं एक्को चेव आलावगी॥ - - - ---------अहावरं पुरक्वायं इहेगलिया इहेगसिया) स्ता तसिं चेव पुढविजोणिएहि कस्वहिं रुक्रवजोणिएहिं रुक्रवेहि रुक्रवजी जि एहिं मूलहिं जाव बीएहि रुपनवजोगिएहि अज्झारोहेहिं अज्झारोहजोणि एहि अज्झारू है हिँ अज्स्पारो हजोणिएहि मूळेहि जाव सीएहि पुढविजोणिएहि तणहि सणजोगिएहिं तणेहिं ताजोणिएहि मूलहिं जाव बीएहि एवं ओसहीही विलिणि भा लावगा,एवं हरिएहि वितिणि भालावगा, पुढविजीणि एहि वि आहेहिं काएहिं जाव कूरीहिंउदगोणिएहि रुस्खेहि रुक्रबजोणिहि -रुक्रवहिरुक्खजीणिएहि मलेहिंजाववी एहिं एवं मझाकहहि वि तिणि तणेहि पितिण्ाि आलावा, ओसहीहि पि तिाि , हरिएहिं पि सिण, उदाजीलिएहि उदएहि अवएहि जाव पुक्रवलच्छिभएहि ससपाणलाए विउहति // ले जीवा तेसिं पुढबीजोणियाणं उदाजीणियाणं रुक्खजोणिया अज्झारीहजोणियाणं लगजीजियाण औसहीजीजियाण हरियजोणियार्ण रुचखाणं अज्झाबहाण ताण ओ---- सहीणे हरियाणं मूला जाववीआणं आया कायाण जाव राणं उदगाणं अवगाणे जाव पुक्रवलचिभमाण सिणेहमाहारैति, तजीवा आहारंतिपूढविसरीरं जावसंत, अवरे वियलेसिंक्वजोणियाणं अज्झारोहजोणियाण तणजोणियाण सहि--- Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीणियाण हारयजोणियाण मनजीणियाणकंदजोणियाण जावबीयजीणियाण आयजीणियाण कायजोणियाणंजाव कूरजीणियाणं उदगजोणियाणं अवाजोगियाण जाव पक्रालच्छिभाजोणिया तसपाणाणं सरीरा जाणावा जावमक्खायं / / ------- सुझं मे आउसंते 03 खलु आहारपरिणा तस्स ग अयमट्ठो इध खलु पाईण वा इ पण्णवादिमाओ पधुच्चा सवाती ति मला ओ विदिसाओ उ अधो अगाहिताओ सब्वाति त्तिसव्वसंखे वेण चत्तारि बीयकाया, बीजमैव काये -बीजप्रकार इत्यर्थः तंजधा-गाजीया, अग्गबीजाणिजेसिं२तिलमादीणं, सालि- कलम-अलसिमादीया वितणा अगबीजा,जेर्सि -या अगलत्ता सपंति परोहति य से अगवीजा | मूलबीजा पाअल्लगमादी पोरु ठच्छामादी खिंधबीजासलइमादीभिदन्त मामा र्जुनीयास्तु"बणस्सतिकातियाण पंचविधा बीजाए वकंती एवमाहिज्जति-संजधा-अग्गा मूल पेल्य०पीरु० करबंध बीजरूहा,छडा वि - ----------- एतिया सम्मुच्छिमा अबीजामायते "1 जधा उट्टावणे वुढे समाणे जाणाविधाणि हरिताणि सम्मुच्छति, पउमिणीओ वा नवए तलाए सम्मु च्छति,पुराणे विकत्थायि पुव्यं ण होतुं पच्छा सम्मुच्छति / उर्फ हिपन िच राजहमाश्च गतेसिंच अधाबीजेणंति यद्यस्यबीज स्वतदेव नसूयते यथा शालिबीजे शाल्यकशे जायतेनकोद्वादयः / अथवाधाऽवकाोन जे जत्थ खेसे जायते,यथा सुसज्जितके दारपल्लवे प्रावृरकाले शानियिते, पाषाणीपरि नोप्यते नवा उप्तोऽपि जायते, अथवा भून्यम्बु-कालाऽऽकाशमयोगो राहाते Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अिघावकाहणेजाएजतिया एग सव्य, जहिवणस्सतिफायत्ते वि सति रुक्खा उमणिबद्धंणसैसाउअंपुढविजोणिया पृथिवी योनिर्येषाम् उत्पत्तिः आधारः प्रसूति मिश्त्यिर्थः "युमिनो, योतीलियौनिः, योशिमिशभावमा पद्यन्त इत्यर्थः,कर्मकारीरीवा, जीवो वृक्षमा पुरस्कृतःयाँ च प्रसूतिक्षमा भूमिमन्तरेण न प्रसूयले सौ पुढविजोगियो भवति, जधा जले विणा जलस्नं न जायते, जशा जस्स जोणी सो सत्थेव संभवति पङ्कजवस् बीजाहरवता ।उक्तं चः-- - कुसुमपुरोप्ते वीजे, मथुरायो नाङ्कुरः समुद्भवति / यौवतस्य बीजं तत्रैवोत्पद्यते प्रसवः // 1 // स्था यथा प्रतिश्चन्द्रकस्य दिसुसमुद्भवः स चैकत्र दृश्यते, प्रतिमुखस्य वाऽऽदर्शके प्रतिभागी दृश्यते, एतदुक्तं भवति-याहि या यस्य योनिःसा तवैव सम्भवति / पुढविवक्रमति, कैसिंचि आलावगो चैवएसनास्थि, जसि पि अस्थि सेसि पिउनार्थ एव तस्स महोन,तधार वि विसेसो वुच्चति-जधा तेजोडिओ पडो तंतुमय इत्यर्थः, कारणान्तरितः क्रियमाणो तन्तुबेव भवति, न देशान्त राऽभ्याहियते वा,वृक्ष स्त्वेवम् न चैवं कथम्। इति, उच्यसे-कोइ सामव [f] पुदविकाइयपुरेकरवडो पुढविक्षिाय सरीरं विषजहाय लामचेव देशे सहारी३ अ ण्णेसुवा तत्मानकृन्तपुदविक्कायिएम सकरपत्ताए घिउति तत्थ कार्यातरसंकमे कमो घेप्पति,अण्णो पूण देशांतरातो सकायातो वा Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरकायाती तो आगम्म रुकवताए वक्कमतिा तज्जोणिया लम्समवा लवक्रम तितंचेवाणिरामेति,जधा जाजस्स जीणी सो- + तमिम चेव संभवति Sणत्य, यथा पायाजात सुवर्ण जायते, न सर्वस्मात् पाषाणात् जाटात इति एवं पुढविजोणिओ पूद विसेभवो पुढविवक्कमो यण सव्वातो पुढवीओ जायते कधं पुणभूमीय उस्मरिल्ले पत्थरोवरि बाणो जायते ?,तज्योणियहोण सु सल्तने लं परिहरितवं भवति। कम्मी वा कमजोगा भवति, जोजस्स जोगी भवति सो तस्स उवजोगी बुच्चति, यथा सघवाने व दार उवजी वये सारवण कुलैण इगीले स तीसे एवंगुणजातीयाए दाश्यिाए, दारिकाचेव दारिका,मा वि एतस्स उवयिगा,एवं तेहिं तबिधाई इकताई काई सकरखाउ अणिव्वत्तगाई जैसि सक्खाण णोध उपक्कं भवति तथा भउगमध्ये किचि जे णा झर ल उवइक , सिणेहरस वा तेल्लस्सवाघयस्स वाइमरमाणं अणावक,तधा आढाः प्रमाणो घटः, आढाप्रमाणस्यैवमेयस्य द्रव्यस्येतरस्य वाउवयिगो,पत्र-पुष्क -फळादिलक्षणव्यतिरिक्ताना तेसिं अण्णपुदविकाइयादिशारीरिणा उवयिगो कम्मणिदाण ति णियाणं हेतुः कारणमित्यमर्थान्तरम् वातिक - - एवं -स्य हिव्याधे वातनद्रव्याहार एवलिदाणं,एवं पेत्तिय-सिभियाणं पिपत्तिय-सिंभाजिदाणायथा ननिनिटामो व्याधिः उत्पद्यतेल कर्मजिदानसन्तरेण न झरीरोत्पत्तिः भवलील्यल उच्यते-कम्मणि दाणेण तत्थ बक्कमा, कतर काम र सक्खमाणा गोतं,लस्सीदयेण जाणाविधजोगियासु पुढवी तितासि पि पुढवीणं “सचित्त संवृततिभाश्यैकशः" तथा प्रकाशायोनिः, णाणा विधाण च अण्णेसिं -- Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुढविकाइयादीणं छह कायाणं जोणी विउदृति त्ति विवियोगविशिष्य पृथिवीकार्यवृक्षस्वमभिसम्प्राप्य वर्तन्ते विउति तिजीवा तासिं सिणेहं ते जीवति जे पुढविक्वाईएसु उववणा सासिं लि जातु औटाभूतासूबवण्णा अति द्ध स्थानोणियासुउववण्णा / सिणे ही णाम सरीरसारो आपिवेति, णय एगलैण चेव संवत्युं विति। को दिटुंतो?,जधा अंगत्थो जीयो मामलुगातुन्ह आहारेति र यमातुं किंचि वि पीलं जनयति, स्त्री-पुंसोर्ग परस्परगात्रसंस्पर्शात पुष्टिर्भवति, नचलयोः पीडा भवति।तen "अबस्स याणिबस्स य"-71 जिवाव्यया अंबमणुपविसितूण दूसेति,णय बिस्स पीडा भवति जेण वर्द्धतेणिवः।एमो विवणस्सइकायिको रुझरयो तासिं पुढवीणं -सणेहमाणे जय सिं पीडं जणयति परिवती कदायि पी डेजयति असमाणवण्ण-गन्ध-रस-स्पर्शाता एवं उववज्जमाणा आहारी भवतितो परिवढमाणा, पुणपरिवुड्डाय ले जीला आहारेति पुढविज्ञशरीरं जाव शरीरसन्निकृष्टं आउछायपि अंतनिक्ख भौम वाा - भोम्म भूमीती उभिदिय जाती, पाणितं जंतर्गचेव भूमिथ वहतमवहंत वा, तेमउ छारादि,वाउ भूमिखलूगतो वा आसतोवा, वणस्सति परीप्परं मूलासंसत्ता,जह अंवस्म, तह काउगोकरीस-माणुस पुरिसादि नार्जुनीयास्तु-अवरं चणे असंखद्धं पुदविसरीरं जाव जाणाविधाणं तस-थावराणं तस-थावराण अचित्तं कुबति,जंताव पुव्वविऊडंचेव जीवेणं जीवसहामाहारसाएगोण्डलिपि अदासरीरत्ताए परिणामेति तदा अचेतनीकरोति।कधबारअणेण जीवेण परिगहितलाव अण्णसरीरत्ताए ण परिणमेति,जदा पुण Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चितं भवति,-जेणेबजीवेणसरीगणिवत्तितमासीतदा अण्णो जीलो आहारतिापरिविद्धस्थति प्राक्ततेनजीवन मुक्तम् पुवाहारिय तितं सरीमा जं सोवणस्सइकाइओ पुढविसरी आहारति तं पितेहि जीवेहिं “आहारमया पाण" इति काऊण चेव शिव्यत्तित। अत एत कुठं भवति-पुलाहारतमैवान्यजीरैराहार्यते। तया हारियं तिजे एनिदिया तेलया हए चेव आहारेलि, फासिदिएणेत्यर्थः / जेसि पि मिलिदियमस्थि तैसि पिपुवं फासिदिएण स्पृशिल्वा नापश्चाद् जिवेन्द्रियमप्यास्ति 1, उच्यते-यस्माज्जिा स्पर्धा गजाति, अप्तिना अनास्वादनीयेन स्पृष्टा दह्यते एवमन्यदपि दन्तोष्ठताल्बादि स्पवित्ति, मचलत्र किञ्चिदन्यदा-स्वादयति विपरिणतंति पुढविता इय hi मौजूग सिविधौ प्रकारैः तमेश्च वृक्षत्वं परिणतम् (सारूविक ति समानरूवार साविकडं, वृक्षत्वेन पारमितमित्यर्थः। सव्य पणताएआहारेति नागार्जुनीयास्तु एवं सम्प्रतिपन्ना:-अवरं च णं, कतरं संबद्धतसं बर्द्ध वा,जो पुढविकाइयसरीरहिं तस्यापि - निभोगसंश्लेष इत्यर्थः, तेमि तप्पटलताए सिणेहमाहारयति, असंबद्धं पुजं पास तो पुढविसरीरंवा ते पुणपण्णत्ती आलावमा घि भणति,लेसिं पुराणवण्ण-गुणे गंध-रसेग अवरे वियण,कतरे अबरे ?, ठाणावरे, उववज्जले गहितं अवशिष्ट मूलादिस्याजधा गल्सवकलिएण जावलमंति,तत्थ विदुलहबोधि पंच पिलगाओ इंदियाणिवाणिवत्तेति ताव अववित्त एवमेव निषे-- कादय:,एवं ते विरुक्खजीवा जाव मूलादीणि णिवत्तेति ताव जो अवरं भवति, आदिशरीरमित्यर्थ: मूल-कन्दादिजाववीज ताव अष Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंबुवंति, अन्यानीत्यर्थःणाणावण्ण ति नाना अन्तिरत्वेनवण्ण त्तिपंचविधा, तजधा-किण्हानीलाल रघदिरशिशपादिणाणासरीर सिणाणा विधेभ्यः सरीरेभ्यः पुद्गलाना हारत्वेन गृहीत्वा आत्मशरीराणि विविधं कुर्वन्ति, अधता णाणाविधसरीर-णाणाविधपुनला विकु व्वंतिसि,अल्पारीरा:स्थूलवारीवराश्च तथा सुरूवा दुवा थिरसंघतणा दलबलसंघया इत्यार्थी, प्रकाशावद प्रकाशाच्च रसवीर्यवि- - भातश्च भेदा बहवो विभावयितव्याः। विविधपुग्गला विकुक्षिता ते जीवा इति केषाञ्चिदजीवाः वानसत्याः तत्प्रतिषेधार्शमुच्यते-ते जीवा कामो० कधजीवा, स्पृटाकुञ्चनात् सरोहाद् अङ्करात् स्वापान आहारकाच्चिाकम्मोववण्ण तिवणस्सलिणामस्सकामस्सीद - एण,न त्वीश्वरसृष्टाः अदृप्टेन वा उवकरणद्रव्याणि वेत्यादि / एस ताव पुढविलोपिओ सक्रवो वुत्तो,इदाणि ताम्मचैव पुढविजीणिए रुक्खे अण्णो रुक्रवत्ताए बक्कमति--- -अया तरं पुरस्रवातंग अयेत्यानन्तरे, अथावर पूर्षमारव्यातंपुरवा तं गणधरोसीसाणं अक्रवाति, तित्थारेण अकरतातं पुरवातंति अधवा अधावरे पुणवखाततिरिआ इत्यानन्तर्ये, पुनार्वज्ञोपणे,आइ मर्यादा-ऽभिविध्योः, या प्रकथने, पुना भास्यायते धौषवत् स्वरपर ताव र कार देशे कृत पुनराख्यात भवत्तिातस्यैव सक्रवस्स किश्चिदन्यदायात,धेगस्यिा सत्ता - सकरवौणिया / कतरे ति?, पुदविजीजिएसु सरसुजे एसे आदिजीवा पुढविणीणि एसुसकरवे सुरुक्रवत्ताए पळूला ले सुचव अधिभिन्तसुमूलादित्वेनं तमेव समरवं परिवहयमाणा सक्रवताए विउति।सेम तथैव जाप भवतित्ति मकरवात ।।किंतपुरा अक्रवात Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुमाख्यासम् ,एसतात रुक्खो अविभिट्टो कुत्तो, पदमी पुढविजोणिी रुक्रवी,बितिउरी पुढविजोहियाक्वजोणिओ - -- सकरवी तन्निभयोत्पद्यते, ललिओ रुक्रवजोणिो रुकवी, यदुक्तं भवति-योऽसावधानियोत्पन्नाः / तस्यैव निभयोत्पन्न: तस्यैव निश्नोस जातः अनाच अनवस्था मनोदनीया,तृतीय एव वृक्षप्रकारे सर्वेषामेवातर्भावात् एते तिणि सुत्तदंडगा। - चतुर्थस्तु तृतीयवृक्षमूलादिनिवेवाप्रतिपादकः। एवमव्याकुलेन चेतसा पर्यलोच्य सूब दण्डकाः अन्यत्रापि तव्याः॥ -- एवममयैव भड्या अज्झोक हैण तत्तारि दण्डगा / साधारण नामक एब दण्डकः, तेषुयेऽन्ये उत्पयन्ले लेख विभETभावः, रुकवेहि रुमरखजीणिए , मूलहिं जाव हारते हि वि तिणि / अत्र दितीय-तृतीयावेकवेति कृत्वा चतुर्थसूत्रदण्तुका भावाभमाधूनां चतुर्थोऽबोधेषु दण्डका आनकायिकानां चतुर्थो / आवाकादिषु मूषकाः।इाणि सो च्येव तिसमो मूलादिणा दसविण विसेसैणा विससिज्जइ.शरीरवता यथा शरीरमविशिष्ट नदेव पाण्यादिभिर्विशेषे विशिष्यते,वनवता सामगृहबद्धा विषयवद्वा एवं समस्खे ति अविशिष्टो वक्कामो बुत्तो,सौ पुण विसेसिज्नइ भूलताए,मूलं नाम मूलिया, जाहं मूलिया पड्डियाओ, भूम्यन्तर्गत एव सकन्दः, कन्दस्योवरि खन्धो तयाउली सव्यरुवारी राणि सालेसुवि होइबंधातो माला अशा इत्यर्थः | पवाहितो पता, पतंवरेसु फल्मणि पुप्फे हिंसो फलाणि, फलहितो बीमाणि // ---- Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशावरं पुरकखांत इहातिशागरुकरबजोणि एमु सवरवसु अन्झारुहसाए सहजन्मनि अहियं भामर्हसि त्ति अज्झारोहा। .. रुकरबरस उतारि अन्नी सकरवी पई लला- वशिक्खा ति, सो पुण पिप्पलो वा अण्णो वाकोटि रुकवी अण्णम उवरि जाती / एवं तण-ओ सहि-हरिएमु चत्ताश्चित्तार आलाबगा भाणि सध्या ।होस इको चैवासस्तेसिं कायाणं पुढविमूलाहारी त्ति काऊण लेण पुधि - पढविसं सवा भणिता अमिला।इदाणिंआ उसंभवा बुच्चसिएवं ताव एते वणरसति कादया लोगो विसंपडिवज्जति जीवं तिलेणस हपण्णावछिन्नति काऊण पढम भणि ता, सेमा एनिदिया पुढविकाइयादयो चत्वारि दुसद्दहणिज्जति काऊण राच्छा बुच्चति ।वणस्माइकाइयाणेतरं सु ससका झो,सो पुण ओरई भी लिरिक्स जीीि मणुओ देवे ति। तत्थ णेरईया औरईया ए लेण अप्पचक्रव त्ति काऊण ण भांति, ते पुनरनुमाननाडा: लैण भांति, तसिं आहारीवधिः आनुमामिक इति कृत्वा नापदिश्यते,सतुएातासुभी मौजसा प्रक्षेपाहारः / देवा अपि साम्प्रतं प्रायेणानुमानिका एव, लेसु वि ए सलो आहारो ओमसामभिक्खणेण य, सौ पूण आभोगणितितो अणामोगाणिपत्ति तो य, जधापण्णत्तीए अणा भी गेण अणुसमलिगी, आभोगेणं जई० चउत्थरस उको तेतीसाए वाससहस्सेहि अत्थतीचेव चति / इह सुत्तेवण सतिकाइयार्णतरंमणूसासतिरिक्व जोणिए त्तिसञ्चिततरत्ति काउं पढनंबुच्चति।। ----- अहावरं पुरक्वायं णाविहामणस्मा संहा- कम्मभूमाण अकम्मममगाणे अंतरदीव आश्यिाण मिल Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करणं सेमिं चणं अहालीएणं अहादगासेणं इत्यीए पुरिसम्स य कम्मकडाए प्रोणी एत्थो मेहुणवत्तियाएणाम संजोगी समुपज्जइने दुहलो विमि हेलणे हे संविणति सत्य जीया इस्थिताए पुरिसताए "पुंमलाए विउदृति, जीवा मातुओयं पितुसुक्कं सं तदुभयं संसद कलसं किदिबस सप्पटमलाए आहारमाहारेंति, ततो पच्छा जं से माता जाणाविहाओ रसविातीओ आहारमाहारेति ततो एग देसेणं औयमाहारेंति, आणुपुवेण वुड्डा पलियागमणु विण्णा लती कायाती अभिनियमाणा इतिथं पेगता जणयंति पुरिसंपेगता जाण यति णपुंसां पेगता जणयलि.ते जीवा डहरा समION माउकरती सप्पिं आहाति, आणुपुवेणं वुड्डा औयणं कुम्मासं तस-थावरे य पाणे से जीवा आहारेंलि पुटविस्तीरे जाव सारदिकई-संत अवरे वि यणे लेसिं णा णाविहाणं गुस्सा कमभूमगाणं अकम्म माणे अंतरद्दीवगा आरियाणं मिलक्रवर्ण सरीराणाणावा भवंतीति मक्खायं / अधावरं जाणाविधार्ण मणुस्माणं आरियाणां मिलक्खूणं सेसिं अशा बीजं मणुस्सबीजमेव हि मगुस्सस्स प्रादुर्भविध्यत: बीजं भवति, तं तु शुक शोणितं च, तं पुण उमयमपि यदा अविद्धत्यं भवति ।अधीवकासे ति जीणिहिता अविद्वत्था, एस्थभंगी-बीज निरुवाहत जोपी सिवहता बीज विहतं जीणी उवहताला एवं सत्त कोट्ठा इस्थि' सि काउणं अलोदरम्स - अधाव कासी भवति, इस्थिीए पुरिसस्स य स्त्री पुरुषर्सयोग उत्तरा-धरारणिसंयोगवत् संस्पर्शकर्म आह हि-"वक्त वक्तेण --- Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिम्पीड्य निर्मप्य अधनारणी"[ ----] कर्म करोति इति कर्मकराः, कर्म-समर्था वा कम्मकडा,अविद्धत्था इत्यर्थः / विध्वंस्थत -“पञ्चपञ्चाशिका नारी,सप्तसप्तलिकः पुमान् " एव पुण मेहुण• मेहुणभावी मिथुनकर्म वा मैथुनम् मैथुन प्रत्यायिक मेहणवसीओ, अण्णो वि आलिंगणा-ऽवतासणसं जोगी भगकीडा च अस्थि, न त्वसौ गण्यते गोत्पत्तौ / तेहती विमिणेहे, सिणेहो माम अन्योन्यगात्रसंस्पर्श, तथा आहारस्य आहारितस्य रस-शोणित-मांस-मेदोऽस्थि-मज्जा-शुक्रान्ती भवति पुरुषस्य नार्या ओजतः, सयदा पुरुषस्नेहः शुक्रान्ती मार्यो दरमनु प्रविस्टा मार्योजसा सहसंयुज्यते सदा सो मिणी ही क्षीरोदकवत् अण्माण संचिणतिगृहातीत्यर्थः। तत्थजीवे सि तस्मिं लत्यमणुप्पविढे सिणे हे स्वक्रम निर्वर्तित स्वलिडा इस्थित्ताए पु० नपुं०विउतिामा भीर्य मीणियांपितः झाक्रम्ततो पच्छा जं से माता णाणाविधाऔ रसविराइसीस्वीरादिआओ णयविंगईओ जोवि ओदणादि अविगतीआह री भवलि सोऽपि प्राक्तनाद भावाद यदा विगलो भवति सज्ञारीरहवन-परिणमितो भवति तदा आहार्यते ।उक्तं हि-'एमिदियसरीराणि - सी लोयाओय) माहालिएगदेसी ति लस्स फल-वेट सरिणी रसहरणीए यथोल्पलमालेन पुरुषा आपिबन्याप: अणुपुबेण विउटुंति"स साहं कललं भवलि"---..] गर्भ परिपाक गर्भपरिपाक पुण अणुचरितं प्रारयेत्या तितो कायालो अभिणिवट्टमाणा इतिथं पेगता जनयन्ति आत्मा,नकी वेत्याः स्वकर्मविहिलमेव सेवां जन्ममिकथम्? माणुस्स णामस्स कम्मास्स उदो, न केवल - - Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुरीमाता-पिलरी समानुगृहीतः विशेषस्तु माता,मत एतदुक्तं भवलि-इतिथं पेगया जणयंति, एकदा मामकदायिश्चिर्य कदाचित पुरुषं कदाचिद् गर्भगत एटा मरति,तेम म जनिती भवति। ते जीवा डहरातीरं सपि,खीर मातुः स्तन्यं , सप्पिं सासं वाणवणीतं वा,सेम कण्टाम् ।।एवं लाव गतवं स्यिमणुस्सा भणिसाजधा जायलि आहारयंतिाइदाणि सम्मुच्छिममणुस्माणं अवसरो पत्ती,सो अ - उवरिंदरूतसंभवेहि वृच्चिस्सति / इदाणि पंचिंदियतिरिक्ख जोगिया भणति। तत्य विपदम जलयरा--- --------"अहावरं पुरवखाटां णा विहाण जलचराण पंचिंदियतिरिक्वजाणियार्ण, जहा-मच्छाणं जाव मारा, सेसिंच अहाबीएणं अहावगासणं इत्थीए पुरिसस्म य कम्मका लहेवजाव लतो एगदेसेज औयमाहारेति, अणुपुल्वेणं वुड्डा पलियागमणुचिण्णा लली कायाओ अमिमिट्टामाणा अंडं पेगता प्रणयति पोर्य पेगता जणयंति, से अंडे अभिज्जमाणे - इस्यि पेगला जलायति पुरिसं पेगता जणायंति नपुंस् िपगला जणयंति, तेजीवा उहरा समाा आउसिणे हमाहारेंति आणुपुलोणं घुड़ावणस्सति कायं लस-थावरे पपाणलेजीवा आहारेंति पटविसरीरं जावसंत, अवरे विय सेसिं जाणाविहाणं मलचरपंचिं. दियतिरिक्वजोणियाणं मच्छा प्राव संसुमाराणं सरीरा जाणावा जावमक्वायं / / --- अहावरं पुरकरवात णाणाविहाणं चउप्पथथलचरपंचिंदिरातिरिक्खोणिया, लेजहा-एगारखुराणं दुरघुराण Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागडीपदाणं सणाप्फया, सेसिंच महाबीएणं अहातगासेण इटीए पुरिसस्स ये काम आय मेहुणयसिए णाम संजोग समुप्पज्जाल, ते दुहतो सिणेहं संचिति,तस्थ णं जीवा इस्थित्ताए पुरिससाए जाव छिट्टति, ते जीवा माउं ओयं पिउ सुक्छ एवं महा मणुस्साण जाव -इस्थि पेगता जयंति पुरिस पि नपुंसांपि, तेजीवा हरा समाणा मातु खीरं सपिणं आहारेलि आणुपुवेर्ण बुड्डा वणस्सतिकार्य सम शावरे य पाणे जे ते) जीवा आहारेति पुतिसरीरं जाव संत,अवरे विय णं तैसिं णाजाविहाणं चउप्पयधलंच पंचेदियतिरि करव जोणियाण एगरखुराण जाव सण फयाण सरीराणाणावण्णा जाव मक्खायं // ------- --- अहावर पुरकरवात णाविहाणं उरपरिसपाथलयरपंचिदियतिरिक्खोजिया, संजहा-अहीण अ याराणं आसानियाणं महीरगाणले सिंच अहाबीएणमहावगासेन इस्थए पुरिस भाव तंचेव,नाण अंर्ड पेगता जण-- यति पीय पैगता जनटांति, से अंडे उभिज्जमाणे इस्थि पैगता जण यति पुरिस पिणपुंसगं पि, ते जीवाडहरा समाणा वाकायामाहारेंसि भाणपुलेणं बुद्धावणस्ससिकायं लस-थावर पाणे ते जीवा आहारैति पुटविसरीरं जावसंत, अवरे बियण सिंणाणाविहाण उरपरि सप्पलचर पैचिंदियतिरिक्वअहीणं जाव महोगाणं सरीराणावण्णा जाणाधा आवमक्खा // ---------- अहावरं पुरकरवायं जाणाविहागंभुयपरिसप्पथलचरपंचिंदियतिरिक्रषजोणियाणाले जहा-गोहाणं मउ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाf सेहाण सरडा सल्ला सरवाणं खौराण घरकोइलियाण विरसंभनाणं मूसना मंगुसाणं पयलाइयाणं बिरालियाण जौहाणं - - चाउप्पाइयाण, सिंचर्ण अहाबीएणं अहावगासेणे इत्थीए पुरिसरस थ जहा उरपरिसप्पाणं तहा भाणियलं जाव सारूविकर्ड संस,अवरे लियज सिं जाणाविहाज भुयपरिसप्पचिदियथन यरलिरिक्रबार्ण तं०-गोहाणं जावमक्खातं / / - --- अहविरं पुरवरवाल जाणाविहाण खहयरपंबिंदियतिरिक्रवजोणियाणं,तं जहा-चम्मपक्रवीण लोम पक्रवीणं स मुगापक्रवीण विलतपकरवीण तेसिंच गं अहावीएणं अहावयासेण इत्थीएजहा उरपरिसपा,नाणसं तेजीषा डहरा समाजमा उगाउसिणामा हारैति आणावेणवुड्डा वणस्सतिकार्य तस-थावरे य पाणे, ते जीवा आहारैति पुटविसरी भावसंत, अवरे वि यण तेसिं जाणाविहार्ण वहधरपंचिंदियतिरिक्वषोणियाणं चम्मचरखीणं प्राव मरवातंग------ अधावरं जाणाविधार्ण जयराण मच्छा कच्छा मतासीघेणं / अथवा जण जइत्थीए य परिसस्स य कम्म कडाए जीणीए एत्य ज मेहुण सिणेहं / ते जीवा डहरा सामाणा आउसिणेहो ति आउकाओ चेव,अधवा जातमात्रा ओजसा चेव आरक्कायमाहरति णतु पक्खेवणं, तेणेव ते पुस्संति परिवर्दृतीय, अधा रखी राहाराणं रतौ रेणेव वुड्डाणं अणुसमयिका वुड्डी मु हुत्या दिवसदेवसिया,वणस्मालिकाइयाणं सेवान हरियादिलस-थापरे जति ततो मच्छे चैव खायलि।आहहि Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अस्ति मत्स्ास्तिमिर्नाम, अस्ति मत्स्यस्तिमिडिलः। तिमिशिलगिलोऽप्यस्ति / तहिलोऽप्यस्ति राघव दिशा------------- से जीवा पुदविकाइयं कद्दममट्टियं खायंति आउंतिसिला य पिबंति, मरखुधिया मच्छं पाणिउल्लंगसंति, अगी उद गादि वात पि लिहंति,वणस्सलीवुत्तोलसकायो जलचरे चेव, मगरा य चउप्पद-माणुस्से य उगटुंलि, प्राणाविधतसपाण जाव पिच्चईया ---- - --- - ---- --- अधावरे चतुप्पदाणं गारबुराणा एसेसि अंड, णवरिणत्यि आहारे पाणी जीवा रहराति,सा परिषणी ताणि अंडगाणि सएण कारण पेल्लिऊण अच्छति,एवं गातुम्हाए कुसंति,सरीरं च णिवत्तेलि, पुण अंडज कणं चैव भवति पच्छा सरीरंजायते। वागुलमादी चम्मपरवी पोलया / एतेसिं पुण मणुयाणं पंचिंदियतिरिजोणियाण यसलेसिपिविधी आहारो भागितली,तंबंधा-आमोगनिवतितो य अणाभौगणितिती यावृत्ती पंचिंदियतिरिक्व जोणियाणा हारो।इदाणिं विगलिंदियतिरिक्रवाजोणियाहारी बुच्चति-- ----- ...अहावरं पुरकरवा सं इहेगतिया सत्ता णाणाविहजोणिया जाणाविहसंभवा जाणाविहवकमा तज्जोणिया लस्संभवा तब्ब सवकमा) कम्मीवा कम्मणिदाणे णं सत्य वचमा णा विहाणं तस-यावराण पाणाण सरीरमुसचित्तेसुबा अचित्तसु वा अणुसूर्य ताए विउद्देहि, तेजीषा तैसिं गाणाविहाण रस-थावराण पाणाण सिजे हमाहारेलि, तेज़ीवा माहारेति पुटविसरीरं जावसंत, अवरे वियणं Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिसितसन्थावर जोगियाण अणुसयाण सरीराणाणावणा जाव मकरवात // एवं दुरूतसंभवत्ताए। एवं खडगत्तावाद अधीवर पुरकरवा सत्ताणा विह जावकम्म० रखुरु हसाए बकतिoile. अहातरं पुरकरवात इहे गलिया सत्ता णाणाविहओणिया जात कामणिदाणे तत्थ वक्कम प्राणाविहारां थावराणं पााण सरीरे-सु सचित्सेसु वा अचित्ते सु वा तं सरी वात-संसिद्धं वा वातसंगहितं वा वातपरिशतं उड्ढवाते सु उड़े भागी भवति अहेवातेस अहेभागी भवति तिरियंचातेसु सिरियंभाजी भवति तं जहाीसा हिमते महिया करए हरतणुए सुद्धोदए से जीवा तसि UTION विहाण लस पावरा पाला सिहमाहारेंति, तेजीब। आहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि यणं तेर्सि तस यावरजीणियाण ओमाणे जाव सुद्धोदगाणं सरीरा Lणा वण्णा जाव मक्खातं // -- अहावरं पुसक्रवात इहेगतिया सत्ता उदाजोणिया उदास भवा जाव कामणि दाणेणं तस्थ वकमा ससथावर जोलिएमु उदएस्तू उदासाए विउदृति, ते जीवा लेसिं लस थावरजीणिया उदगाण सिणेहमाहारेंति,ते जीया आहारैति पुढषिसरीरं जावसंत अबरे विटा तेसिं लमथावरजोणियाणं उदगाणं सरीरा पाणावा जाव खातं // - अहापरं पुरक्रमात इहेतिया सत्ता उदगोणियाण जाव कम्मणिदाणेणं तत्वकमा उदगजोणिएसु Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदासु उदात्साएविउटुंलि से जीता सेसिं उद्गजोगिटाणं उदगाण सिणेहमाहारैप्ति,ते जीवा आहारेलि पुढविसरीरं जाव संतं, स्सथावरजाणिया भवरे विय सेसिं उदाजीणियाण उदगाण सरीराणाणावणाजाव मक्खात / अहावर पुरवा तं इहेगतिया सत्ता उदगजोणि उदासंभवा -- याण जाव कम्मनियाोणं तत्थ वकमा उदगजीजिएसु उदएसु तसपाणत्ताए विउदंति, जीवा तेसिं उमाजीणियाण उदगाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संत, अवरे वि यण सिं उदगजोणियाणे लसपा सरीराणाणा वाजावरवायं। -- ---------- महावरं पुरकरवातं इहेगलिया सत्ता णाविहजोणिया जाव कम्मणिदाोणं तस्य वनमा UITIविहाण लिस-थावराण पाणा सरीरसुसच्चिलेसु बा अचित्तेसुवाअगणिकायसाए विउई ति, ते जीवा तसिं गाणाविहाणं तस थावराण पाणा सिणेहमाहाति से जीवा आहारैति पुद विसरीर जावसंत, अवरे वियाणं तैसि तस थावरजीणियाण अगणी सरीरा TOINDI जावमक्खातं सैसा तिलि आलावगाजहाउदगाणं॥------------ अहावरं पुरकरवात इहेगतिया सत्ता जाजा विहजोणियाणं जाव कम्मणिदाणे तत्थ बलमा डाणा विहाणं तम थावराणं पााण सरीरेसु सञ्चित्तेसु वा आचत्तेसुवा वाउचायत्ताए विउहृति,जहा भगणी तहा माणिरायाचत्तिारि म। // -- Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहातारं पुरकरवातंगलिया सत्ताणाणाविहजोणिया जाव कम्मणिदाणेण सत्यवकमा प्राणाविहाणं लस थावराणं पााणं सरीरेसुसच्चित्तेसुघा अचित्तेरसुवा पुढवित्ताएसक्करताए वालुयन्ताएइमाऔ गाहाभा अणुगंतव्वाओ--- 'पूतवी य सवरा वालुया यउवले सिलाय लोणूसे। ------ अयतउयलेब सीसगरुप्प सुवण्णे यवरे य // 6 // हरियाले हिंगुलुए मणीसिला सासगंजण पषाले / अब्भपडल-मषानुय बादरकाते मणिविहाणा // 2 // गोमेजते य रुयते अंके फलि हे य लोहियो य / ------------ "मगायमसागले भुयमोयगइंदणीले य शा ----- चंदण रुयमय हसामपुलए सौगंधिए यबोद्धब्बे। -- चंदप्पल बेरुलिए मलकते सूरकं ते य // 4 // एयाओ पदेसुभाणियलाओण गाहासु जाव सूकस्ताए षिउदृति,ते जीवा तसिंणाणाविहाणं तसथापराणं पाणाणं सिणेहमाहारेति। - ते जीवा आहारति पूढविसरीरं जावसंतं, अवरे वियण सिंतसथावरजोणियाणं पुढवीण जाव सूरकताणं सरीराणाणावणा जावम स्वातं.सातिष्णिालावगा जहा उदगाणं. ---- Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 -- अहावरं पुरक्खालसत्यै पाणासवे भूता सव्ये जीवासल्वे सत्ता प्राणाविहजोणिया गाणा विहसंमेवा णाणाविह वक्कमा ति सरीरजोणिया सरीरसंभवा सरीरबलमा सरीराहाराकामोवा कम्मणिदाणा कम्मरातिया कामठिलिया कम्मणाचेव विप्परियास-- मुति।। से एवमाज से एषमा यानिवित्ता आहारगुत्ते सहित समिते सदा जएति बेमि / / / / आहारपरिणालियमन्झयणं सम्मत। --- - अधावरं इधगलिया।कम्मणिदाणेण सत्यवक्षमा जाणा विधा तस-थावराण तसातिरिक्रख जोणिम-मणूसा औानिय ज्ञानी गता,तेऊ घाऊ विलसा चैव, थावरा पुढवी अणुसूर्य ता, अणुसूयंता णामारीमनुसृत्य जायन्ते, तदेव चानुसृत्य जायन्त तिजधा-सचित्तेसुवा जुलाओ लिकरवाओ सयवतो छप्पदा य मकुणा पुण माणु ससरोवजीविणोमानुपहारीराायादेव जायन्ते, शरीरोपभुज्यमानेषु पर्यवादिषु न त्वायत्र, गोरपानामपि शारीरेषु यूकादयो भवंलि गो--- कीडाय / अचिन्तेसु वि एसेसु अव्यावण्णस्तु जूवादयो संभवति,अञ्चित्ती भूते-सु तु कृमिकाः संभवति एवं दिय-तें दिय-च उरिदियाणं पि सरीरसु अणुसिला जायते,जधा-विच्छिा रस उपरि बहवो विंच्छिा संभवति,अचित्तीभूतेसु यकिमिकाट्यो जायते तेउकाए सचित्ता मसगा संभवंति,जेहिं अग्गिपाणादिवस्थाणि अगिसोज्झाणि चैव कीरति लत्थ अग्गी लत्थ बातो वि अस्थि जेबा बाउकायनिस्साए आगास संभवति। 'युत्ता लस-थालरा इदा तत्थ पुढविमनुसृत्य बैंटिया कागदयो संभवंति तेंदिया कुंथु-पिपीलिकाट्योचतुरिदिया पसंगा, परिसास्ते भूमि Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिलेहंतो उट्ठेलि सलमादयः,आउनाए पूतरगादयो, वणस्सतिकाये पणग-भमराट्यो, अचित्तेसुषिएतेसुजायते // तेजीमा लेसिं जाणा विधाण लसावराणं पुरा णाणाविधाणं लस-चावराण सरीरेसुसचित्तेसु अअचिरोमु अ दिया सत्ता दुरुतत्ताए विउदृति, दुरूतं णाममुत्त पुरीमादी सरीरावयवा, तत्थ सञ्चित्तेसु मणुस्माण लाव पोहेसु समिगा गंडोलगा कोट्ठाभी असंभवति संजायन्ते, बाहि पिणिगतेसु घिउ चार- पासवणादिसु किमिमा सम्मुच्छंति, अश्वितेसु वि गोस्वकडेवरेसु य उदरान्तश:कृम्यादयःसामुच्छति तितिरिक्वजोणियाणं पि सचित्ते उदरान्तश: उज्येमु किप्निया संभवति, उदरातो विगितेसु उज्झेसु गणेमु य किमिगा सम्मुच्छति।भणिता दुरूलसंभगा / इटाणि खुरगा वुच्चति-- -.-. ----- अधावरं इधैसतिया राणाविध जावकम्म खुरु हात्ताए बक्कमति,रबरुडगा जाम जीवंताणचैव गो-महिसादीणं चम्मस्स अंती सामुच्छंति, पच्छा लेखायंती खायंतो चम्म भेत्तूण उडेति, पच्छा सेण वणमुहेण लोहितं गीहरतिा अचित्तेसु वि एते गवादिस रीरसुसम्मुच्छति अभिणवमडेसुाथायराण विरुक्रवाण मंतो सम्मुच्छंति, अचित्ताण विघुणालि जीवा, तैसि पाणाविधाइदाजि तिरि क्सजोणियाण अधिकारचेव वाणा एनिदियाचेव वृच्छति।तत्थ विपुल आउलाई आ अाबरं इहे गलिया सत्ता सात वचमा णावि_सु तमथावरेसु एगादेसो कीरति तं सरी कतरं सरीयां १जत 'भाउकाईयसरीरमा भतिस्मति वातसविलु तिवाउणीणिओ आउकाईओ। उहं हि-"अभे पाते तो लेस्मा वातेण गल्भा सम्मुच्छति।" - Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सवालमंशहिता मचितुति, सामुच्छिता गुणसत्ता आउछाइयत्ताएपरिणमन्तीत्यर्थः। ऊ भजाति उर्द्धमागी,यौहिभूम्यन्तरे आउलाओ समुच्यात बादरहरतणुगादी, से उड्डवातेहिं पुढवीहिती उक्वित्तो जो भागासे सम्मुच्छितो अधोभागी वाते हि पाडज्जति धाराहि करगताए या पुणो परिणती पडेति। तिरियभागि सि जदा तिरियं भवंतिरिच्छं णेति जो पाईति, ससमुच्छितो गुरुत्वाद्वात पुण जनयति / तविधामानि तु, तंजा-ओसी हिमं जाव सुद्धोदए, सेसं तह चेव आलावा का सब्वे हि काएहितो दुरधिगमा पुढवित्ति काऊण लेण पच्छा वुच्चिस्सइ / - अहायर इहेगतिया अगणिजोणिया OTणाविहाण लस-यावराण सचित्तेसु अ अचित्तेसुअ, सचित्तेसु ताव हत्थीणं जुज्झताण देत रखडखडासु अशी समुच्छति महिसाण य जुझंताज सिंगसु अग्गी सम्मुच्छति अचेताण अडिगाण वि।एवं बेंदि या वितधा अडिएसु जधा संभवति माणितवं थावराणं अचैतणा पत्थराणं आगासे आवडतागं अगीसम्मुच्छति, अचेतणाणं उत्तरा-धरारणिजोएण अगीसम्मुच्छति तबिधाणाणितु-वले आलेलारि आलावा // --------- अधावराण णाविधा तस-थावराण बाजीणीर्ण णाणा विधाण लस-थावसणं,ण विणा बाउकाएण लेउ आए सम्म च्छतित्ति काऊण जत्थचव सञ्चित अचित्ते बा अाणिकाओ सामुच्छति एवं चत्तारि आलावा माणितला // इदाणि पुढवी -Uावि धाणं तसथावराण सच्चित्तम अचिसेसुबा, सप्पाणं मत्थए मनी जायति हत्थीण विमुत्तिया मस्यएस,सप्पाण यमच्छाण य Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदर-सु, गु रसाण विमुत्तसकराओ,अचित्ता रिगो कलैबर-छगणगादीणि लोलत्ताए परिणति |थाव राणं सचित्तेसुबंसपवास मीतियाओ जायंति, अचित्ताण वि लवणा शारादिसुकद्वमादि लोग साए परिणमति, अगणीविच्छानिगालादी लोणीहोति।एवं चत्तारि - आलाधगा / इदाजिससमासी-- ------ इधगतिया सत्ता प्राणाविधानिया TITIविध संभवा जे पढविकाया पुढविजोगिया जधा सण्ड पुढवीए सक्करे पत्थरा सम्मुच्छंति, प्रधानका-ऽयस्कान्तादयःआ उजोणिया, सरीरमेव वा जीणि-पुढवी पुढतीए एवं सेमाण वि,शरीर ण्येवाहारयन्ति ।कामुणा गईओ गच्छति रूणिरयादी ।कम्मुणा हिती उछोस-मज्झिमा कम्मुणा विपरिया विपज्जासो जधा-मणुस्मोणे. रईओ होति,मणुस्सवेत्ताणेरईयरवेतं गच्छति, काले-गैरईश कालं गच्छति, मणुस्सगतिभावा देवातिभावं गच्छति आमाणध अगुस स्साऽऽहारे नरकादिः विपर्यासः,तस्मात् गुप्तः गवसणा गहणे० धासेससा 8 सामिते दि 3 सदा नित्यकालं यावदायुः शेषं निर्वाणं वा गच्छतिगतो अणुरामो विदातिया-जाणणा जातम्मि शिहिलवे ॥सवेसि पिणया० // ---- ---- - / / इति आहारपरिणा सम्ता ।।छा, एवमाहारगुप्तस्य सतः पापं कर्म नबध्यते, नि] अप्रत्यारख्यातस्य इत्यर्थः सेनाध्ययनं अपच्चक्खाजकिरिया / रप्रक्रमः णामणिपणे अपच्चक्रवाणकिरियापहाणं Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णाम ठवणा दविए अइच्छ पडिसेहएयमावैयाएसी पच्चक्खाणरस छतिहो होइ णिवी / / 179 / / ...-.--- जानठवना गाधादिब्बपच्चरवाजलि दवेकवा पच्चक्रवाणं दलभूलीना पच्चक्रवत्तिोलबद्रव्यस्थ द्रव्ययोः द्रव्यागांवा पच्च क्विाणजोजसचिसं अक्तिं वादव पच्चक्रवति तंदब्बतं साधणसावयाण यासाधणसञ्चित्तादि सव्वदनाणि जावज्जीवाए पच्चक्रवाताहासावगो विय कोइ जावज्जीवाए आउकायज सव्वं सञ्चित्तं कंद-मूल-फलाति पच्चरवाति, कौइसचितं आऊ कार्य वज्जेइ.अक्सि मज्ज-मसादि जावज्जीवाएपच्चरवातइकोइ विलीओ विसबाती जावज्जीबाए पच्चरवाति, यदि दिगंवा कोइ समाती पच्चक्रवति कोइ महाविपतिवज्जानं आगारंकरेइसावगा विकेवि जावजीवाए मज-मसाति वन्नति दवेण तच्चरवाणं जधा-रजोहरणेण हत्यगले पच्चक्रवति,दव हेतुंवा पच्चक्रवाइ, जया घम्मिल्लस्मादब्बभूती वा जो अणु व्युत्ती राजतंदवपच्चरवाजा अतिच्छ समण अत्तिच्छ बंभण ति पडिसेध एवाजधाको इकेणइजाइती किंचि भणति - ण देEि त्तिामातापच्चक्रवाणं दुविध:-- मूलगुण उत्तगुजे पच्चरवाणे इह अधीकारी। होज हुतपच्चइय अप्पच्चकवाज किरियाम्गदरना // अप्पच्चक्रवाणकिारया समताछ। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलगुण उत्तरगुणे * गाहा / मूले सदा देसंच, उत्तरगुण सव्वं देसंच विमासा तं पच्याकरताणं / इदाणिं किरिया,साजधा किरियार भावपच्चक्रवाणाधिकारी,भावकिरियाएं पयोगकिरियाए समुदाण किरियाए य,तस्स रकरवट्ठा भाव प्रत्याख्यातं तदिह वर्ण्यते। कहं ? होज्जह तप्पच्चइयं अप्रत्याव्यानित्वं अप्पच्चरवा जकिरियासुबहमाणस्स, अप्रत्याख्यानिनभ्य क्रिया कर्मेत्यनान्तरमिति कृत्वा अवश्यमेवबन्धी भवति, ततः संसारो दुःश्वानिचेत्यर्थः, अप्पत्याख्यानं वर्जयित्वा प्रत्यारव्याने प्रयतितव्याम्॥णामणिप्पण्णी गती।सुत्तालावेसुत्तं उच्चारत :- ........ सुयं मे आ3संतेणं भावता एवमक्खालं-इह खलु पच्चक्रवा किरियाणाममयणे, तम्सणं अय ते-आता पच्चक्खाणी यावि भवति आता अकिरियाकुसले यावि भवति आता मिच्छासंठिएयाविभवति आता एर्गतदंडे यावि भवति आता एतबाले याविभवति आला एगंतसुत्ते यावि भवति आता अवियारमणवयसकायवक्के यावि भवति आला अप्पडिहयपच्चक्खायपाष - कामे यावि भवति, एस खलु भगवता अक्रवाते असंजले अविरते अप्पडिह पचाकरवायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एलिडे एतिबाले एगंतसुते,से बाले अवियारमणवयसकायवक्के सुविणमवि ण पस्सलि, पावे य से कम्मै कज्जति।। - ----- सुझं मे आउसतेणं भगवता इह खलुगएतस्याध्ययनस्यायमर्थ:-तत्र प्रत्याख्यायिनः आत्मनः प चक्रवाणं भवति तदधिकृत्योच्यते, आता पच्चक्रवाणी यावि,भवतिआत्म ग्रहणं आत्मन एव प्रत्याख्यानं भवलि,न घटादीना कितपस्या Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनः,यस्थाप्नत्याव्यानकिया, नियत इति वाक्यशेषः, जस्स ताव सत्वे सावज्जजोगा पच्चक्रवातालस्थ सर्वसावघयोगप्पत्याख्यानक्रिया क्रियते, यस्यापिदेशप्रत्याख्यान लस्यापि ये नपत्याख्याता: सावजजोगा लत्प्रसत्ययिका कर्मानवो भवति, प्रल्या व्या तेभ्यो न भवति | सो अपच्चक्रवाणी,जे अकिरियाकूसले धर्मार्थ-कामार्थ-मोक्षार्थ वा क्रियमाण कर्म किया भवति सहिपरीता तू अशोभना क्रिया अक्रिया भवति, अक्रिया सूकूशल: अक्रियाकमाल आह हि- अनथषुत्तक ल्य " r . ...... अथवा न किया कुशलः अनि याकुशलः, अजानक इत्यर्थः, घटात्मवासः, अकुशलान्दस्य मान्यप्रतिषेधः | आता मिच्छासंठिसे यावि भवति मिथ्या प्रतिपत्ति, सिध्याध्य वसाय: मिच्छासंस्थितिरित्यर्थः, तत्त्वे अतत्वाभिनिवेशः सामिच्छासंहिती, एवं धर्म-साधु-सत्य-पात्रादिस्वपि योज्य एवं तावद्दीनं | प्रति मिथ्या संस्थितिरुक्का, आचारं प्रति अचोरी अचीरत्तण भावति,मायी उन्नुसण भावति जधा उदाधिमारी, असिंतमुली वा। एग दंडे तिनकस्यचिदपि दण्डं न पातयति, पितुरपि कती सस्य म मरिसेति / एरोत बाले ति जिच्यमेव इड्डेसुविसएसु अण्डेिसु असंपक्केसु दोहिं राग-दो सेहिं ति आगलिप्नइ बालः, कार्या-कार्या नभिज्ञात्वावा मूढो वालः इत्यानर्थान्तरम् ।एर्गत सुते ति यथाऽऽस्वापसुप्तः श ब्दादीनां विषयाणां सन्ति कृरानाभप्युपलता न भवति एवं सी हिता-अहितकार्यानभिज्ञत्वाद् हिमादिमुकर्मसु प्रवर्तते / एकान्त महर्ण पण्डित-बालपण्डित निवृत्यर्वम् / आता सविचार विचरण विचारः, वित्तरन्ति यस्य काय-वाई:-मनांसि स भवति सविचारः, मण Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वयसकायवक्के लत्रमनीविचार इदं चिन्त्यं इदं मनसा प्रकृत्यमावाविचारस्तु इदं वाच्यमिदं न वाच्यम् कायविचारोऽपि इत्यं--- मयानकर्त्तव्य इत्थंचकर्तव्यमितिसविधारमणसवयसकाय ञ्चल कुशमकुशलं वामनसा चिन्तयति,वाचान भूते कायेन स्थाणुरिव निश्चेतस्तिष्ठतितस्यापि तावत् कर्म बध्यते, किमक पुणसविचारमणवयसकायवक्कस्स। आह-पुनक्यि महणम पुनरुतम्, उच्यते, एककालं कदाचिवा युगपद्यौशिल्वात् एवं सूक्तं भवति / उक्तं च-“काए बहुअज्झप्पं सरीमाया”[ ] आता अप्पडिहतपच्याकरवालपावकम्मे याविभवति, पडिहतंपच्चक्रवातं पडिसैधितं निवारितमित्यर्थः, ण परिहत पच्चक्रवातपाव कम्मी अपडिहतपच्चक्रवातपावकम्मी / आह-पुनरुक्तम् मागुतं आता अपच्चक्रवाणी टावि भवति"इदानीमवि इति पच्चक्रवातहणा पुनरुक्तम् उच्यते-तत्राप्रत्याख्यानी उक्तः, न तूतं किमस्याका प्रत्यारध्यानम्, बहतु प्रत्याख्यातस्यैतत्कार्याणि चापदिश्यन्ते अपडिहतादि सच्चा प्रत्याख्यानीन प्रत्याख्याति तदुच्यते, किञ्चित् हिमादि पापकर्म सदस्या प्रत्याख्यातं अपरिहत पच्चक्रवातम् / एस खलु एषः इति यऊ अपच्चक्रवाणी ण तु देस-सवपच्चरवाणी वास एवच असजती अविरती य,को असं जत-अविरतीयको असेजती अविरतो अअप्पडिहतपच्चक्रवातपावकम्मोस एवच एकंवदंरो,एवं जाव नएसबाले त्ति बाले अविचारमणवायसकायवठ्ने त्ति अधिकरणे सु। अपरिहतपच्चक्रवाते सुविणमविण पस्सतित्ति, कैसिं स्वप्नान्तिकं कर्मचयं न Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गच्छतीति, अस्माकं तु स्वशान्तिकं कर्म अविरतिप्रत्ययाबध्यते,सौ अ पुण असं जी अविरत जाव अविचार वो अप्येकं स्वामपि निपश्यतिरावानपधादिकर्म कातनधाविय से पावकम्मे कज्जतिबधात इत्यर्थः / स्थापना पक्ष:---.......... - तस्थ चोदए पण्णव एवं बदासि-असंलए मने पावले असंतियाए क्लीए पावियाए असतएणं कारण पावएणं अहणंतस्स अमणक्रवस्स अविचारमण-वयस-का यकस्स सुविवि अपस्सतो पवि कामे जोकज्जति,कसणसं हे १,चौदग एवं चवीति-अण्ण यरेण मणे पावरण मणवत्तिए पावेकम्मे / / कज्जति,अण्णयरीए पतीए पावियाए बतिवत्तिए पावे कम्मे कज्जइअण्णयरेणं कारणं पावलेणं कायवत्तिए पावे कामे कज्जति,हणेलस्स समक्सस्स सक्यिारमण-वयस-कायवकस्स सुविणमपि पासओ एरंगुणजातीयस्स पावे कम्मे कन्जति / पुणरवि चीदा एवं बवीति तत्थणजे ते एवमाहंसू-असंतएजमणेण पावएणं असंतियाए वतीए पावियाएअसतएणं कारणं पावलेज अहणेतरस अमणक्रवस्स अवि यारमणवरास-कायवकस्स मुविणमवि अपासली पाये काम कज्जति तथणजे ते एवमासु मिच्छा ते एषामा हेसु सस्थपण्णवए चोयम एवं वदासी-तसम्म जमए पूवत, अंसलएर्णमणेण पावदेणं असतियाए वतीयाए पावियाए असंतएकाएणं पावएणं अहवस्स अमणक्सस्स अवियारमण-वरास-कायवकस्स सुविणमविअपस्सती पावेकामे कज्जतिले सम्म कस्स ण त है?,आचार्य आह . तस्य खल भगवता छज्जीवणिकायहेपण्णत्ता,तंज हा-पदविकाइया जाव लसकावूया, इच्चे तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं आत]: ..." Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्पडिहतपच्चरवात पावकरले जिच्च पसदवियौपातचित्त दंडे, संजहा-पाणालिवाए जाव परिगहे कोहे जाव मिच्छादसणसल्लाआचार्य आहे-तत्थ रखनु भगवता वधए दिवसे पण्णासे से जधाणामए वधए सिया गाहावतिरस वा गाहावति पुत्तरस वा रणो वा रायपुरिसस्स वाव णिदाए पविसिस्मामिखणं लणं वहे स्मामि पहारेमाणे से किं नु हु नाम से वधए गाहावतिस्स वा गाहावलिपुत्तरस वा रणौ वा रायपु रिसस्सवा वर्ण निदाए पविसिस्सामि खणं लद्धणं वहेस्सामि प्रहारेमाणे दिया वाराओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते पिच्च पसदविभीवातचितडै भवति?,एवं वियागरेमाणे समियाए विया गरे चोलए-हंता भवति ॥अचार्य आहम-जहा से वधए लस्स वा गाहावतिस्स तस्स बा गाहा वतिपुत्तस्स तस्स वा रणो तस्स वा रायपुरिसस्स रवर्ण णिदाए पविसिस्मामि रवणं लक्षणं वाहेस्सामि तिपहारेमाणे दिया वाराओ वा सुत्ते वा मरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते णिचं पसढविओवातचित्तदंडे, एषामेव बालेवि-- * सव्वेसि पाणाणं जावसत्ताण दिया वा राओ वा सुत्ते वा मागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासठित णिच्च पसरविओवातचित्तदंडे,सं० पाणालिवाते नाव मिच्छादसण-सल्ले एवं खलु भावता अक्खाए असंजले अविरते अपरिहयपच्चरवायपावकम्मे सफिरिते असंखुडे एतदंडे एगंतबाले एतिसुते याविभवति से बाले अवियारमण-वटाण-काय व के सूविणमपिणपस्सति पावे य से कामे कन्नति / / जहा से वहले तस्स वा हावलिस्म जाव तस्सवा रायपुस्सिस्स पत्तेयं पत्तैर्य चित्तसमादाए दिया था रामो वा मुत्ते वा Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जागारमाणेवा अमित्तमते मिच्छासंठिते निच्च पसदविओवातचित्तदंडे भवति, एवामेव वाले सोसिं पाणार्ण जाव सोसिसत्ताणं - -- पत्तयं पलटां चित्तसमादाए दिया वा रामओवासुस वा जागरमाणे वा अमितभूते मिच्छासंठिते निच्च पसढविओवातचित्तदंडे भवति // -- लत्य चोदए पण्णवर्ग एवं वदंतं वदामि काम सङ्गिः मनी-वाक् -काययोगे राभवहेतुभिः कर्म लध्यते इति युक्तमेतत् यत् पुनरुच्यते-असंतएणमीण पावएणं असंतएर्ण असता अविद्यमामैन अमनस्कत्वाद विकलेन्द्रियाणा,संझिना--- तू अप्रयज्यमानेन मनसा, एगिदियाण बाचा पास्थि जेसिपि अस्थि तेर्सि पिअप्रथज्यमाभा वाचा कायःसर्वेफामप्यस्ति, त्रिभिरपि यो अविचारजाव बक्क सुविणमपि अपस्सती हिंसादिपावे कम्मे णो कुज्जति / दृत्तान्तः आकाशम् यथाऽऽकाशमममस्कत्वान्नि थेष्टत्वाच्च कर्मणा न बध्याले एवं तस्यापि सन्धी नयुक(क) कस्य णं तं हेतुरकस्माद्धेती रिटार्थः / अथ कस्मावती: कर्म न बध्यती, उच्यते -अयोगित्वात् / इहहि अण्णलरेण मणेणं पावर अण्णतरमहणालीव-मन्द-मध्यमानां मनसा पाहणं वेदितव्यम्लेषांत मानसा हिंसा दीनि वस्तूनि मनःप्रत्ययिक मनसा,एवं वइए कार्यण अण्णातरेण हणंतस्स अमरक स्यच निरूद्धविचारमनः प्रयुक्तमनी-बाकायकर्मिण वृत्यर्थः, अप्टोवं स्वप्ने राश्यता एवं गुणाजातीयस्य गुणाभिनिवेश कियते, अथवा बंधं पति गुण एघासौ भवति टोन बटाते कर्म, युक्तीतत तत्य इच्चोवमा हसु एवमाख्यान्ति,असतएण मणेणं एवं वईए काए अहणतस्स अमणकरपस्स अवित्तारआय वक्कम्स सुविणमपि Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपासली पाये कम्मे कज्जति,ओले एयमा सुमिच्छाले एयमाहाचोदक पक्षः-एवं वदल चोदा पाणावरी एवं बदासी-जमया पुणुतं स्यात् किमुक्त?- अंसतएण मणण पावएणं गाव पावै कामी कज्जति तत्सम्यग न मिध्ये त्यर्थः / कस्म सं हेतुं कस्माद्धेतीरित्यार्थ तत्प छन्जीवनीकाया हेतुं,नवायितव्याः (व्यापादयितव्याः) इतिहेतुरपदेश प्रमाणम् , तं जधा-पुदविकाया जाव तसा, इच्चे तेहि - छहिं जीवनिकाहिँ न कदाचिदपि तस्य आविधिकचित्तमुत्पते, अनुत्पद्यमानेच अविधिकचित्ते तस्य प्रत्यारव्या मिनः तेसु आता --अपडिहतपच्चक्रवातपापकम्मी अपडिहतअपच्चक्रवात पावकर्मत्वादेवचास्य णिच्चं पसढ जावदंडे, णिच्वंसव का भूश शठ प्रशठम् सततं निरन्तरमित्यर्थः, विविधी अतिपाता अतिशब्दस्य लोपं कृत्वा वियोपाते इति भवति, तेन व्यापात चित्त दडे। तंजा-पाणातिवात, वर्तमानस्येतिवाक्याशेषः ला पाणा"छकाया पुढवादि"-----] / एवं मुसावादेऽवि, अपडि हलपच्चक्रवातपापकर्मस्वास्एवं शिवं पसद अलियभासणचित्त दहे. अदिणादाणे विणिचं पसढपरस्वहरणचित्तदंडे देवादिनहुणासेवापसढचित्तदंडे, न किंचिदिव्यादि मैथुन परिहरतीत्यर्थाः, सर्वपरिग्रह माहजपसढचित्तदडे न किञ्चिन्न परिगृ-- लातीत्यरी: कोहण कस्स रुस्सइ अपी व मातापित्री पुत्रस्य वा, एवं सैसे सुविभासा, तिच्छादसर्ण प्रति लम्हातचेव --- मिच्छत्त पसढाचतदेहे समरौचक-वैदिक-लोकाराति-लोकश्रुत्यादिमिःमानितान्तरात्मा न शक्यते तस्मादसदहा-- Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मौचराितुमास्यादेषा बुद्धिः-अकुर्वतः प्राणातिपातक तत्प्रत्यायिक कर्मषध्यत इति प्रतिज्ञा स एव च पूर्वक्ति अपडिहतपच्च खातपावकर्मत्वादिति हेतुनिदर्शनम्। तस्थ रखनु बधए दिटुंते पणतन्ते -सेजधाम वधएगाहावतिम्स वा जावरायपुरिसम्स वा कोइ ताव पितितिरोधे वि पुतं वा मारेति, कोइ पुतविरोधे पितरं मारेति, कोइ वे दिन मारेइ,अण्णं किंच्चि अक्कोस-वध-द डावणादि दुकरवं उप्यातयति, एवं राजा रायपुरिमाण वि विभासा, स तु अपकृते वा अनपकृते वा वधरवां निदाए ति-अप्पणो णि वर्णमत्य माम्प्रतमक्षशिाकोऽहं कर्षणैन तावत् करोति पुविवाह या रोगतिशिच्छ वेत्यादि पश्चाद्वर्षयित्यामि माणे नई लिया वतस्स छिड़ लभ,तस्य रवणी,एवं चत्तारि भंगा / नागार्जुनीया:- अपणो अरषजताए तरस वा पुस्सिरस वा हिनं अलभम -णे णो वहेलितं जदा मे रवणो भविम्सति तरस वा पुरिसस्स छिद्रं लमिस्मामि तदा मे स पुरिसे अवस्स वधेतवे भविस्सति एवं मणं पहारेमाणे " ति एवं मानः MEnरयत् सङ्कल्पयन्नित्यर्थः दिया वाराओ वा सुते वा जागरमाणे वा सुक्तं कथं पात् इति चन्ननुसुप्तोऽपिस्वकिल क्यन् मेवामिवं घातयति,सयाहा अपैति,तंबाऽमि न पश्यन् त भानुधावति ।किया न्यत्-प्रत्याख्याने च आचाराद् अनाचारतश्च प्रत्याव्यातः। उक्तः संक्षेपाचवाये वणिजः दृष्टान्त:, मित्र एवामित्रभूतः अम्बिी भवतीत्यर्थः, मिवस्यन्तितः सेमिच्छासंठिए यद्यपि किञ्चिदुस्थाना -Sसनप्रदानादिविनय विक्षामहेतुं पूर्वोपचाराहाक--- Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्यचित् प्रयुक्त स्थापितुष्टङ्गळा दातदुम्रत्वादसो' असङ्गाधोपचारात् सम्सद्भावोपचार इति कृत्वा मिष्टासन्धितीचेव भवति, -विच्छ पसद अधा वीरणस्तम्बःसओ अण्णाण गरमूलो दुक्रवं उल्लेदेतुं एवं तस्स विसोवधिपरिणामी वैशा एवं उबेटेर्नु, मारेझणवि उसमति, अधा रामकित्तबीरियं पितितधवेरियं मारे 30 वि अणुवसंतरी रस्त वारा निरवत्तियं पुढवि कासी।. आह हि--- क्रिमान। --- - - - - -- अपराधसमेन कर्मणान पुमान् प्रीतिमुपैति शक्तिमान् / अधिकां कुरु वैरयातना द्विषतां जातमशेषमुरे // 1 // एष दृष्टान्ता-अयो-एयामेव बाने विस्वेसि पाणं जावमत्तानं अविरतत्वात भमिलभूते मिच्छसंहिते पिच दिओचात अप्रत्यारब नित्वात् प्राणालिपात-तत्यतिकैन कर्मणा जस्स दिया वारातीवा जाव जगारमाणे वा बध्यते ।यथा तस्य राजादियासकस्य अनुपशमिते वैरे घातकल्वं न निवर्तते एवम स्थापि प्रत्यारख्यानिनःसर्व प्राणिभ्यो वैरंभ निवर्तले, अनिव्वत्तेच वैरे प्राणवधा प्रत्यायिकेन कर्मणाऽ-- जसं बध्यत एवेति / उक्तः उपसंहारः निगमनस्यावसर:-'प्रतिज्ञा हेत्वोःपुनर्वचने निगमनं' इतिकृत्वोच्यते-तस्मादपडितपच्चरवायपाप कर्मत्यात् पश्याः अकुर्वतोऽपि प्राणातिपात-तत्प्रत्ययिक कर्म बध्यत इति पञ्चावयवमुक्तम् / एवं सुसावादादीमुवियोजयितव्यं जाब मिच्छासनसले बोकेऽत्य पंचावयवम् / एस खलु भगवता अक्रवातो असंजते अविरते अपरिहत जाव पावकामे, एवं Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + पण्णवण वधादिईले उपसंहलेचीदक आह-जधासै वधके तम्स वा गाधावलिस्स जाव पुरिसरस पत्तेयं पत्तेर्य वीप्सा, एक्केझं प्रति प्रत्येकाम कोऽर्थः१-येनत्तस्यापकृतं तस्मिन्नेव तस्य वधकचित्त मुत्पद्यते नान्यत्र, अन्य॑ ह्यसौ वधक प्राप्त मपि तत्सम्बन्धिनं पुत्रमपि न मारयति,सहि तस्मिन्नेव कृतागसि वैरिणि तदधकचित्तं मनमा समादाय गृहीत्वा इत्या,अमुलबैर दिया वारातो वा जाब जामरमाणो वा अमित मिच्छासहित जावाचित दंडेएवामेव बाल एवमवधारणे, एवमसौ बालासवे सिं पाणाणं,किमिति वाक्यहोघः, पत्तेयं पत्तेयं चित्तं समादाय,कतरं चितं समादाय,बधकचित्तमित्यर्थादिया वा जापारमाणे वा अमित्त मूते मिच्छास णिच्चं जाव दडे भवति। सो चैवचौदओ एवं पऽच्छिण पच्छाभगति-णोति ।म्याद बुद्धिःन्कथं न भवति पच्छासोचैव चोदो भणति-- जो इगड्डे समढे, चोयक-इह खलुबहवे पाणा जे इमेणं सरीरसमुस्सतेणं णो दिवावाजो सुया वा नाभिमता वा विज्ञाता वा जोसि को पलेयं पत्तेयं चिससमादाए दिया वारातो वासुते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मि च्छादसणस्ने आचार्य आह-तत्व खलु भगवता वेदिढ़ता पण्णत्ता, तम्सपिणदिद्भुते य असण्णिदिवसे यासे किंतं सणिदिट्टते' जे इमे सािपंचिंदिया पज्जतमा एतमिण छज्जीवाणकाए पुडुच्च सं-पुढविकार्य जाव सकार्य से एातिको पुदविकाएणं Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किच्चंकरेइ वि कारवैवि, सम्सणं एवं मवति एवं खलु अहंपुटविकाएक किच्चं करीप्ति विकारवेमि किणीचैवणं से एवंभवति-मण वा इमेण वासै यतणं पुठविकाएणं किच्चकर विकारवेइ विसे ण तातो पढविकायातो असंयूजय अविरय अप्पडिहयपच्चरवायपावकम्मै यावि भवति एवं जाब तसकाले ति भाणियवं, से सेशतिओ छज्जीवणिकाएहि किच्चं करे वि, तस्स एवं भवति-एवं खलु छहिं जीवणिकाएहि मिच्चं करेमि विकारवैमि वि,गौचेवणं से एवं भवा-इमेहि-वा इमेहि घासे य लेहि सहिं जीवणिकाएहि जाव कारसि वि, मै यतेहिं हिं जीवणिकाएहिं असंजय अविश्य अप्पडिहयपच्च सायपावकम्मे सं०-पारणातिवाते जाव मिच्छादसणसले. एस खलु भगवता भरवाए असंजते अविरत अप्पडिहयपच्चयायपायकम्मे सुविणभवि अपस्मती पावे यसेकमी कज्जति सेत्तं सष्णिदिटुंता से किसं असणादिटुंते 12 इम असामजी पाणा -पुटविकाड्या प्राण वणस्सलिकाइयाछटा वेतिया तसा पाणा जैसिंणी लक्का ति वासना शिवा पणा तिवामणेप्तिवा वई सि वासयंवा करणाए असहि वारसए करंसं वा समणुजाणित्तएते विणं वाले सवेशि पाणणं जाव सत्लेसिससाणं दिया वा रातो वासुत्ते वा जागरमाणे वा अमितता मिच्छासंठिला पिच्चं पसदविती वातचित दंडा सं-पागातिवात जाब मिच्छादसणसवे, इच्चेव जाणणी चेवमणो णो चेव बई पाणाणं जाव सत्तार्ण दवणलाए Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोयणता जूरणताएतिप्पणलाएपिट्टणलाए परिलप्पणसाएस दुक्रवण-सोयणजाव परिसपाण-बह-बंधण-पश्ििफलेसाती अप्पडिविरता भवति।। इति रखनु से असण्णिणी विसत्ता अहोणिसं पाणातिवाते उवक्षतिजति जाव अहोणिसं परिगहे उवक्रवातिमलि गावमिच्छादसणसल्ले उनकवाविज्जति,सव्वजोणिया विरबलुसत्ता सणिणो होच्चा असण्णिणो होति असणिणो होच्चा सणिणी होलि, होजसण्णी अदुवा असणीस्थ से अविविच्चिया अविधणिया असामुच्छिया अणणुलाविया असणि कायातोवासणिकाए संकमंति सणिकायातो वा असण्णिकार्य संकामति सणिकाया तो वा सष्णिकायं संकमंतिअसण्णिकायात काअसणिकायं संकमंति,जे एते सण्णीवा असण्णी वा सव्वे से मिच्छाचारा णिच्चं पसदविओवातचित्तदंडात-पाणातिवाते जाव मिच्छादसणसल्ले एवं रबलु भगवता अपनाते असंजते अविरते अपाडिहयप्पच्चक्रणायपावकम्मे सकिरिते असंवुडे एगं / बबाल एतिसुते से बाले अवियारमा वायसन्कायवक्के सुविणामविण पासइ पावेय से कम्ने कज्जलि // इधरवलु इरीणन्समुस्सएमण शरीरं चक्षुरादीना इन्द्रियाणां मनसश्चाधिष्ठान इमेमेलि मदीयेन, पण्णवर्ग वा भणति -त्वदीयनचक्षुषा, सदीयेन चक्षुषान दिट्ठा पुब्बासूक्ष्मता ति] त्वात्मकृष्टा अपि, सूस्थूरमूर्त यस्तु विप्रकृष्ट व्वान्न दृश्यंत, तस्मान्तौ दृष्टा,प्रोत्रेण न श्रुता,मनसा मसुता,एभिरेव त्रिभिःचक्षुनोत्रमनीभिर्यधाविषयं दृष्ट-भुत-सुपि Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T-विज्ञासान भवन्ति,जम्हायले तण ण दिवा वासुता वा विरुणायावाअणवकारिणी अनुपयुज्यमानाध्य इत्यतः तस्यतेसुणी पत्तेयं - दिया वा जावजागश्मा वा अमित्त भाव दंडे, कय भविष्टान्ति इति पडिसेहो अणुवत्तइ चेवा एवं चोदएण कुत्ते पण्णवती भणाति-ज विलस्स अप्पच्चरवाणियस्स अ वसं उप्पाजतितधा विसोलेर अविरति प्रत्ययादमुक्तवैरोभवति -- सत्य रवलुभगवता दुविधा दिट्ठला पण्णत्तातं अधा सम्निादलुले या असज्ञिादिद्वैसे य,संज्ञा अ शाम्तीति संजी,नसणी असणी,मंती दृष्टान्तः क्रियते सण्णिादिवत्त राजे इमे सणिपंचिंदिया पंचहि विपज्जतीहिं पज्जलगा एलसि धज्जीवणिकाए पशुच्च वुच्चति, कायग्गहणं एते छज्जीवनिकाया आरभ्यन्तेयांप्रतीत्यापि वैरिणो वैरं प्रसूयते अविरतम्सास्य, से एगतिमो ति चोदओ बुच्चति,तुमं वा अण्णं वाकोई इहपुटषिकायेण पुटविल सर्वा एव पृथिवी अविशिष्टा, सद्विशेषास्सु लोलुसिलोपन-लवणादयः कृत्यं तेन देसि तस्माद् तब्वेति तेमेति सिलंबा लेलं वा विवइ,लवणेण वंजणं लवणयति, तस्मिमिति चमणादि करोति, तस्मादिति मूपिण्डात्_घरादि करोति तदिति तदेव मृद्रव्यं भक्षयति,एवं तावत् स्वयं करोति।अण्ण वा कारवावति, केहि चेकचतुहि पगारह लेन तस्मिस्तस्माद्वा तष्ट्रेति ।गी चैवणं तस्स एवं भवति इमेण वलि संजधा-कण्हमतियाए -- Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1वा. जासेजाआवडिति आसण्णेवा दूरेवा कण्हावाजाव पणरामत्तिया,ताए सघाकिच्चलिपण-अमुक्खणण-सोयादी करोति जति विय से एवजाए कज्जतधावि से समाणवण वर्णत्वे साल अण्णेण वा गुणान्तरेण तुल्यगुणाए,णी एवं भवति अमुगाय वा, स्थानादीनि करित्यामि, जत्थ से समावडति तत्थ चिट्ठ णिसीयर्णवाउच्चारादिवासिरण वा,सएवं ती पढविकायातोसव्वाती चेव अपडिहतपच्चरवालपावकम्मे यावि भवति।से एग आउण्हाणापियण-सेयण-भंडीव शरणधुवणादी, इवि विसेसो भवति स्थादूदकादिषु तथापि समाम्बादाविशेषो भवति लेिकाएण विपयण-विपाचा-प्रकाशादि स्यात् धातुबादिको माहिमच्छाणादिविशेषस्तथापि महिषीगणेसु अक्सेिसो,एवं अग्गिकम्मियादीणं खदिराङ्गारादिषु विसेमोवि समाणासुखटिशाळेमु अविसे सोएवं वाउकाएण विविधृवण-वीयादिमुधुवण-भावामणादिसुावणस्सलिकाएणं कदादिसमाणाविभासा तसकारणं बि-सिंदियादिसमाणा-समाणे विमामाातदुपयोगस्तु ज्ञान-वाहन -आज्ञापन-मांसाशुपयोगादिसे एगतिओ छहि जीयलिकाणी किच्छ करति वा भारवेति वा, छहिं जीवणिकाएहिं ति संयोगसुतं संयोगे लिग-च-पंच-छसंयोगा विभासिलवाातत्य संयोग दवगिणिरिसणं-जधा कोइ घणदव विज्सवमाणो धूलिं वत्थामति पाणियं पि भाणी ति पतिदर्व देति वातं पि विवाभणादीहि यणम्सति-समय-साहु-लिमादी हलसावि तेसुचेव काएमुं संसिता सुलिगारमुतिंग)-उवयिगादियो Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / गोधवापुच्छ येसूण ताए सपेलि णि पुणाई.से एवं भवति इमेण वा इमेण वत्ति, दुगसंयोगेण वाभाव छक्कायसंयोगेण वा, णिच्चं - | (किर्च) करेति वि कारवेति विग कताइउवरमति से य तेहिं भाव असंजत भाव कम्म तं जधा- पातिवाते। एवं मसाबाते - विण तस्स एवं भवति- इदं मया वक्तव्यमन्तं दृदं नो वत्तव्यमिति से य ततो मुमा वाताओ सिविहं लिविहेण असंजते / अदि पादाणे इदं मया घेतलं इस गोतबं अमुजस्म ण / मेधुणं इमे मे वि इमण परिगाहे इमं घेतलं इसण। कोधे इमस्स सस्मित व्वं इस्स , एवं जाव परपरिवात विभासा मिच्छादसणे वसंवा तत्त्वमिति शोषमतत्त्वमिति स्याविचारणा | भवति ।अभि-- पहे तु मिच्छार्टसणे यते नाभिगृहीतं तत् तस्य तत्त्वं प्रतिभाति ।सेसेसु अणभिागहिए ण तम्स एतं भवति - इमं तत्वप्तिम अस्त्वमिति एस खलु अक्रवाते असंजते यस्याकुर्वतोऽपि हिंसादीणि पापानि अविरतत्वात कमानिसमाभवत्येवेति सिध्वंसोसितमणि त्ति दिढतो॥ से किं तं असणिढिते, असपिणाढते सजिनामसंजिनां मनः सहयतया सदभावादस्य तीवतीलाध्यवसायकृती विशेषत सुप्त मत-मूर्छितेतरवदिति विज्ञेयः से इमे असण्णिमो संजधा-पुढविकाए अधाछडा वालिया तमा पाणा, सुबेदिया जाव सम्मुच्छि मचिनियतिरिक्रवजोगिया सम्मुच्छिमामणुम्मा य, जेमिमाथि तक्का वा जाव वईतिया, तेषां हि मन:सद्रव्याताया अभावात् प्रम सानामिव पद्धविज्ञान न भवति, तदभावेश्चैयां तो दीनि न सम्मवन्ति, तो मीमांसा विमर्श इत्थानान्तरम् यथा संलिनः स्थाणु-पुरुष Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशेषामिना मन्द प्रकाशो स्थाणु-पुरुषोचिते देशे सर्कयन्ति-किमयं स्थाणुः पुरुषःप इति एवमशिनां ऊर्ध्वमाबालोचनाता न भवति चा स्थाणुः पुरुषो वेति।संज्ञाम संज्ञा पूर्वहाटेऽर्थे उत्तरकालमालोचना स एवायमर्थ इति प्रत्यभिज्ञानं प्रज्ञानं प्रज्ञा,भृशां ज्ञा प्रज्ञा,अव्यभिचार गीत्यालः / मनन मनः मतिरित्यर्थ ,सा चावग्न हादिः वयतीति कवाक् / जिल्बेन्द्रिय-गलविनास्तित्वाद् यद्यपि वाग विद्यते ट्वीन्द्रिया दीनां माना तथाप्येषां पाप हिमादि करोमि कारयामि वेत्यध्यवसायो नास्ति, अनध्ययसायपूर्षिका च वाग अवागेव मन्तव्या,सद सतोरविकोपात्। यदृच्छी पलब्धेमनात-सुप्त-मत्तालापवत् धुणाक्षरवडा स्वयं पापकरणाय अण्णेहि वा कारवेत्तए, यद्यपि न कारयन्तिम कुर्वन्ति स्वयंतह विण बाला सब्वेसि पि पाणाण अविरतत्वात् दिया घा रातो वा जाप अमित्तभूता मिच्छा-णिच्वं पसद जाव दंडाति,पाणातिवात जधालधामुसातादेवि-जधामूभी अबक, विधूवत्वाच्च कम्सुणो ण मुसाबाता विरतो भवति एते विज्ञा सत्ता अव्यक्तचिकिविकाशल्द करेमा णा मुसावाताती न घिरता भवति, अप्येवं संलिना वाच्या-ऽवाच्यविशेषोऽस्ति,तेषां तु तदाऽभावात् सर्वमव मिच्छा भवति। अदत्तमपितेषाम् इदमस्मदीयं बटुंचीपाराक्यमिति विचारणा ऽसम्भवात् अदत्तादान सर्वस्तेयं भवति। यद्यपि किञ्चिन् काठहारकादि ममीकुर्वन्ति तथापि तत्तेषां केन दत्तप्तित्यदत्तादानं भवति। मैथुनमपि मक्षिकादीनि नपुंसकवेदं वेद | यन्ति / आहार्येषु च द्रव्येषु परिग्रहाको धोऽप्येषामस्ति, न सुतीयः, भावमायामोसो त्ति विभासा / मिच्छत्तं अणभिहितं ।इच्वेचं Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाणणी च्येव मणो णी च्चेवमणो णी च्चेव वधी पापं कर्तुं कारयितुं वा सब्वेसिं पाणार्णव, कतरेसिं (सत्वेसिं)सत्तार्ण असणीणी .. दुक्रवणलाए सिक्रवावणाए,परिवाषर्ण मारणं वा टुक्तवर्ण वा स्विजन-धनविप्रयोगात्थ शोकाजीरण जूरणं स्वजन-विभवानाम प्राप्तौ प्राप्तविप्रयोगेनावीण्यपि काय-वाड्-मनीयोगान् तापयति तिप्पावणा सर्वतस्ता पयति परितापयति, बहिरन्तयेत्यर्थः। असणी सणिमादि मच्छो मच्छं मणूसो वा रखज्जमाणस्स जं टुक्रा लतोसो दुक्खावणातो अपिडिविरते विछेतो वि दुक्रवतीवि - टुक्रववेति टुक्रवावेति वातवान्धवानाच तस्मिन् नष्टे मृत वा शोको भवतीत्यती शोचावनादविरला / यूरेति जैसि बन्धुतिप्रयोगं करोति वा तवक्षिता जीवंतिणति तो सरेंति। त्रिभिस्तापयन्ति तानेव भक्षमाणाः, परितापंयन्ति च तडान्धवांध्या असणिो वित सणिणी इव ते दुक्रवावेंति जाव परिसावेंति, जवि मणी स्थिती विमणवजनहिं दोहि लावेंति, भोगोवितेसिंपुच्छाले भवति / इत्येवं तेर्सि मण्णी -असणी था टुक्रक्षण जाव परितावणातो अपडिविरता,वधः ताडगंमारणं वा सिंग-खुरादीहिं वधं विसंताण सब्बि क्यिाओएलेहिं चेव वध-बंधणदीहि परिकिले से ति जिम्हा य एवं तम्हा ते हिंली दुकवावाहितो अपडिविरता भवंति इति खलु ते अस पिलो विमणिं टुक्रवाति किसंग पुण सिण्णी] सणिस्सी अहणिसं जिच्यकालं पाणातिवाते उववाविनंति उवक्वावि ज्जति म अवाज्नतिाकैराध्यायन्ते बन्ध-मोक्षविहिस्तीर्घकानिच्चं मुसावादे उवणावमिज्जा,दसणसणे उबउक्तं - Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असणि-सणिदृत्रान्तद्वयमा किमतेमसाध्यते?,सणिणो असणिणीय अहर्णता अमलाय अविरत तथाचोभाषितंच जे मगेण णिलत निक्षेपाधिकरण जिकिरवविणी संजीयण -णिसरणं ति अधिकरण णितित अवसई च,सलेण परंपरभवगतीवि | अणुबज्झति, जातज्ज्ञापनार्थमिदं सूत्र-सव्वजोलिया विस्खलु सत्ता कामं सर्वे योनिग्रहणादिह णवप्रयोगयोगा कायव्या,इह खलु शब्दविशेषग्रहणात कायग्रहणं मन्तव्यम, कायाधिकारश्चामुवर्तित एवेति / तस्य पंच काया तसका यवज्जा णियमा असण्णी,तमा वि | बैंदिया तेंदिया चतुरिदिया तिरि- मणुस्सा य सम्मुच्छिमा असणी,जेसम्मुच्छिाहिंतो उववज्जति गैरइय- देवेसु ले विजाव अपज्जत्तमा साप असण्णीचेव,सणी होच्चा असणी होसि असण्णी होच्या सण्णी, जधाभाविया अभविगा यनिसर्गत: सिद्धान एवं कश्चित्सेजी वा नत्क्षया जीवःनिसर्गसिद्धातभयित्वज्ञानावरणीयकोदयादसंमित्वम् लबायोपशतात् संसित्वम् पूर्व यच्चार्चितहों:"इति तेन - संजिनः पूर्वम्, तत्प्रतिपक्षातु पुनः प्रतिधेधः क्रियते, न संजी, तत्र संलिनां व्याख्याने उतरेषु निवृत्ता कथा: तेन संलिनःआदायभिधी यन्तीयत्रापि त्रसथावरा तवापिसुरा-ऽसुरवठ्यपदेशादेवंक्रमो भवति,जधाजमारमाणो पुरिसो स्वपिति निद्रोदयात् निद्राक्षयाच्च | पुन प्रतिबुध्यते प्रतिवद्धश्च पुनःम्पपिति, एवं संशित्वं जीवानां नैमित्तिक ननिसर्गिकमिति खोडव्यम्। यस्माच्यौला कायामा ननिसर्गोऽ स्तिसंहित्यमसंज्ञित्वंवा लम्माव रुद्धम् अविरुद्ध चलस्मिन् गतिप्रयागतिलक्षणं यतायतोऽपविश्यते-होज्न Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -TAN अदवा असणीतित्यसै अवधिया(अविविच्चिया)"विचिर पृथग्भावे अविविच्याविविच्य,लानावरणीयादि कर्म [ पृथक्ल स्वेत्यर्थः, विवितेऽपि अविशोधितं भवति यदुत्मृस्ट ऊठनीरखावत् जा ोरी मावसे सैण चेव क्रम्मेण उव्यष्ट्रिय पदणुवेदणेसु तिरिक्रवजीजिएसु उववज्जति देवा वि प्रायेण सुहहाणेसुचेव उववजलि |उठं हि-कविल्यमारोग्यमतीव मेधा "E- 1 अविधूपिया अधाधूलीय पोडलगं परिहवेऊण वत्थं पुणो धौवेति कंबली वा पीले उ. पुणो पफोडिन्नति, एवं सो विधुते पुणो - तच्छेचं विशोधयेत्। असमुच्छियत्ति, छिदिर द्वैधीकरणे " असमुच्छिन्नरिणात्। अहवा" सृजतिसो' अनुत्सृष्टमिटाकलप्रवत् / अण्णुता विया ति तेहिं हिंसा दीहिँ आसवहारहितं प्रा(पावं) उवचितं ताइकाऊ णाणुलपाति-हा! टुह कयं ति। अहवासव्वाणि पाहिलाणि, अक्ववेतुं पुढविकाइयणिब्बतmणि कामाणि जे य तसा असणी साणी वा तनिवर्तकानि च नामा दीनि कर्माणि साई पि अतिविधिया भाव अणणुतविया, तैःस्वकर्मकृतैः कर्मभिः अनुविद्धाः सणिकायालो वा णेरड्य-देव-गमवक्कं लियतिरिय-मणु स्मतविभत्ता तुसिणी],सेसा असणी, सिणि कायं संकमति छ भगा ले साणी बा असणी घा,जधाएगे गाम-नगराई ------ वा अन्योन्यसान्ते गल्या प्रत्यागललक्षणानुवर्तिनः असंसिनःसंझिमो वा दृप्रान्त वयेमो पसंहृता / तेषां सर्वेषामर्पणमधुना सवे ते मिच्छाचारा, अप्रत्यारव्यातत्वात् कथम् ?,सर्व कटुकविपार्क सुचरितमपि पुदलस्य मिथ्याप्टेः इदानी चरितार्थस्थापि Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निगमना तुनराम नाणं क्रियते अपच्चक्खालित्वात् सव्यजीवसु-णिच्चं पसद जावदंडेसावद्वारेषु। तानि चैतानि तं जधा-- पाणातिवात जाव मिच्छादंसणासले , एवं खलु भगवता अक्रवात, चोटगं पण्णवी एवंभणति-यदुक्तवानसि आदौ-अहणतस्स अमण स्वस्स पावे कम्मे जो कज्जति तदेतत् एवं खलु एवमवधारणे यथैतदादायुक्तं पधक दृष्टान्तेन सणि असण्णिदिई तेहि य दोहिं एव. मसावयप्रत्याख्यानी असंजते अविरतेजाव सुविणामविण पासति पावे यसेकम्मे कज्जति, एवमुपपादित अप्रत्यारव्यानी अविरत इत्यर्थः सचाविरतीहिमाद्या,तेण पाणाइवातेणं जाव परिगहे कोथै जाव लोभे ति कसाया महिला, पेज्जे दोसेति कषायापेक्षावैव राग-द्वेधे गृहीती,कनह जाव रति अरति ति गोकसाया गहिता, ते य एतेसु चैव पवेसु पाणबधादिसुसमोसारे सव्वा, मिथ्यादर्शनाऽविरति-प्रसाद कपाय-योगाः पञ्च बन्धहितवी एसेसुपदेसुविभासितला। उक्तम प्रत्याख्यानम् तेन तु प्रत्यारव्यानेन अप्रत्याख्याभवतः क्रिया भवति कर्मबन्ध इत्यर्थः सविपाकस्तु शारीरमानसाउछुकाओ वैदणाओ, तेजधा-उज्जला लिउला जाव दुरघियासाजे पुण संजतविरत परिह सपच्चरवातपावकारमा भवति तस्स किरिया भवति, कर्मबन्ध इत्यर्थः,लहावा नरकारिषु नी पपद्यते ।एवं सौ चौदी पच्चखाण -फिरियाफजविवार्गसणसाभलीलत्योजाव संजआतभी पण्णवर्ग वंदित्सा एवं प्रच्छति----- -- चोदकः से किकुद कि कारणावं कह संजत 'विश्तप्पतिपच्चरवा तपाबकम्मे भवति? आचार्य आह-तत्थ खलु भगवता छज्जीवणिकायाम-मागुरुमरा सामुच्छिम्मा भस्म Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या हैऊ पत्ता, संजहा-पुढविकाच्या जावलसकाच्या,से जहानामते मन अस्सातंदडेण वाअट्ठीण वा मुट्ठीण वालेलण वा कवालेण षाआती हिज्जमाणास्स वा आव उद्दविजनमाणस्म वा जाव लोमुक्खाणमातमावि वि हिंसकारं दुक्रवं भयं परिसंवेदेमि, इच्चेबं जाणसचे पाणा जावसले सत्ता दंडेणा वा नाव कवालेण या आती उिज्ज माणे वा हम्ममाणे वा तजिज्जमाणे वा तालिज्जमाणे वा जाव उद्दतिजनमाणे बा जावलोमुक्खणणमालमवि विहिसकारं टुक्रवं भयं पतिसंवेदेति,एवं पच्चासचे पाणा जावसवे सत्ता न हलव्वा गाव उद्दवेयब - एसमे धुवे णितिते सासए समेच्च लोग श्वेयणहिपवेदिते.एवं से भिक्खू विरते पाणा तिवाया तो भाव मिच्छा सणसवाती , से भिक्खू णो दंत पक्रवालणे दंते पक्खालेज्जा, जो अंम णो बमण जो धूवणिति पिहिते, से भिक्खू अकिरिए अलूसते अकोधे जाव भ लोमे वसंते परिणिबुडे, एवं खनुभगवता,अक्रवाते संमतविरत पडिहसपच्चक्खातपावकम्मे अकिरिए संखुडे एगंतपंडित भवलि -तिबेमि।।-- // इति वीयसुयक्रबंधस्स पच्चक्रवाण किरिया FIR चउत्थं अज्झयणं सम्मत्त / ---- से किं कुल कि कारवं संजसविरत जाव कामे भवति, सोलि सो हं:-किमिति परिप्रश्ने, किं कुव्वं व्रतं तवी धर्म नियमशील संयम वासंजतविरत जावकामो भवति १,जण मुच्वैज्ज सव्वक्रवाणं किं कारखं ति किमन्यं कारयन्ति ? शिष्याऽऽचार्यसाक न्धो दर्शितः धर्मकथासम्बन्ध इत्यर्थः आचार्योवलीति-तत्थखलू भगवताकाया हेपत्ताजहा अपच्चक्नवाणिस्स संसारस्स Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हे छज्जीवणिकाया तच्चेव हेतू मोक्रवायासत्यनिवृत्तस्य पुनःआता सुमुहदुक्रयतुलणणातुंभिक्खूविरतो पाणालितासातो जावस लालो तहेव प्राणातिपाताचा मिथ्यादर्शमावसानाः संसार हेसवोऽविपरीता मोक्षहेलवो भवन्ति ।उक्त हि-यथा प्रकारा यावन्तः" ] तत उच्यते-एवं-सै मिरवू विरते पाणातिवातातो आवसलातो सेभिक्खू अकिरिए जाव संवुडे | जपुच्छितं ते सुहम्मा / कय संजतो भ वति तदेवमारव्यातम् - एवं खलु भावला अक्रवाते संजते जाव संवुडे, एसपंहिते यावि भवति सि बेमि // ---- ---- / / अपच्चक्खाणकिरिया सम्ममाछ" -- - एवं पडिहयपच्चक्खायपावकम्मरस आयाशे भवति, एलेन आयरसूतं अज्झयणं पडि -पक्रवेणं अणायारसुती पदवयम् आचारी शिक्विवितल्लोसुतंचाएक्सिक चक्काजखेवो जाम-ठवायारो दब्बे भावे य होति णायली। .... एमेव य सुत्तस्स विक्रिदेवो चउविहो होति। जान o mधा / आधारे शिकवे यो चतुछओ, गाहा-आयारस्स[दशवै निगा० ---- जया खुड्डियाचारए।सुत्तस्स जधा विषयसुते॥ ---- आचारसुतं माणियं वज्जेतव्या सदा अणाचारा। अबहस्सुतस्स होज्जा विराहणा एस्थ जसियां / / ---- --'यारसुतंभाणयं० गाहा ।आचारो यत्र वर्ण्यते श्रुते तदिवं आचारभुतम् तस्य आचारभुतस्थानकारेण प्रतिरोधः क्रियते न आचार Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शूलं अन्नाचारभुतम् अनाचार इहवर्ण्यते इत्यती मनाचरश्रुतम्। अनाचाराश्य वर्जयतः आचारएयभवति,मार्गविपश्चित् पथिक-- दृप्रान्तमामात यया-मार्गविपश्चित पथिक उन्मा वर्जयेतानापथगामी भवति, नचीन्मार्गदोधैर्युज्यते एवमनाचा वर्जयन् आ. चारवान् भवतिनचामाचारदोधैर्युज्यतीतेनु अनाचारे अबहुस्सुतो जाणति बैग कारणेण अचारसुतं भगति / बजे तव्या सदा अणाचारा अबहुस्सुतस्सा [उत्तरद्धं]॥ - ----- एतस्स उ पहिसेधो इहमज्मयणम्मि होसिायची। -------- ती अणायारसुयं ति य होई णाम तु एसश्स | तिरस उपडिसेधे [गाधा] किलररस एतस्स?, जो अज्झत्याच्चियस्स त्ति तेण अणाचारसुतं णामेण होति अज्झयण यो पुण पा-- -विओ इध अणाचाशे वालणज्जतिगतोणामणिमण्णो।मुलालावगणिफण्णो------- ---------बंभचेरंच आक्षय आसपणे दमवधि। अस्सि धम्मे अणाचारंणाचरेज्ज कयावि। बंभचेरंआदाय गृहीत्वा / आचारोतिबाचरणं लिवा संवरोत्ति वा संजमोतिषाबंभचेरं तिवाएगडामासुपण्णे आसु प्रज्ञायस्य स भवति आसुप्रज्ञा केवली तीर्थकर एक, तस्य वक्तव्ये व्यापारः तीर्थप्रवर्तनफलं यत् प्रोकं [तत्त्वा० का ---] 1 अन्ये लुकेव लिनी धर्मोपदेवा प्रतिभजनीया: वमं वयिं तिडमांच वक्ष्यमाण वाचकउक्त वा कतरांवाचन अधिमे अणाचाराचरेज्जा Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्मिन् लावके धर्मेऽनाचारः अकर्तव्यमित्याः, अनाचारवतींच वाच्यमबाचा नबूयात कदाचिदिति अहनि रात्रौ च सर्वावस्थासु, नतु यशा लौकिकानां ननर्मयुक्तं वचनं हिनस्ति" ॥१॥सव “सत्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्ग: "तित्त्वा०९-१] इति कृत्वा सत्यादर्शनाचार एव तावदादावुच्यते-- अणादीयं परिणते अणवदशो लिवा पुणो। -- सासतमसासते यावि इति दिष्टुिं ण धारये / / एतेहिं दोहिं ठाणेहि, ववहारी णविज्जती। एतहि दोहिं ठाणेहिं. अणाचारं वि जाणाहि॥ अजादीयं परिका मास्य आदिवियत इत्यमादि,अणवदामिति अपर्यवमानंचास्ति, तदनित्यमिलि परतनी ब्रूते,"सकारणवन्नित्यम् . ] इति काणादाः / साङ्मयानामपि अहेतु सहित्यम् "तदेवमनाद्यपर्यवसानंच शाश्वतंचैकेषाम् शाक्याः पुनस्त विपरीतांबूते-सर्वमादिम अनवदर्गर घरवदशाश्वतमित्यर्थातदेवं परतन्नाः केचिच्छाश्वतवा दिन इत्यत: सासतमसासते यावि इति दिविण धारये, इत्येवं दृष्टिं दर्शनं न धारयेत् हृदि। मनसि दोषः केतुमालावेत चैतत् एतेहिं दोहि ठाणेहि विविधो विशिष्टरी वा अवहारो व्यवहारःअनुपदेशः अमार्गः, अनीतिः अव्यवहार इत्यनान्तरम् / कथमकान्तेनैव शाश्वतवादिनीव्यवहारिण? ते तुहि सर्वे सर्वे सर्वत्र सर्वथा सर्वकालं च नित्यानित्येके नुवते, तेघों संमाराभावात् तदभावे नागेव मोक्षाभाषः; अशाश्वतवादिनामपिस'धा सर्वत्र सर्वकालं चानित्यमिति अधर्ता क्षणमिङ्गित्वात् संमाराभावः, सदभावे च प्रारीवमीक्षाभावः,बन्धमीक्षश्चार्य प्रयासः, Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किश्यान्यत-"सुहन्दुक्खसंपयोगी एशंतुच्छलम्मि यो" -------],यस्यचैतौ शाश्वताशाश्वलग्नाहावेकान्तेन व्यवहारमवतरत इत्यत। एतेहिं दोहिं ठाणेहि अणाचार विमाणाहि सन्यानिविराधनेत्यर्थः,सदभावेच लागेव ज्ञान-चास्त्रियोरप्याभावःस्था / कथं प्रतिपत्तव्यम् ? कटी वाव्यवहारो भवति, उच्यते-सदसत्कार्यत्वात् तत्प्रतिषेधः, अङ्गलीराकहप्रान्त: यथा सुवर्ण सुवर्णस्वेनावस्थितप्लेव कारणान्तरसा अडलीयकल्वेनोल्पाते, तविनाशे च सुवर्णस्यानिवृत्तिः अस्त्येवं जीयौ जीब वैतापस्थित एव नामकर्म प्रत्ययानारकादि भावनोत्पद्यते नारकादिविरामाच्च मनुष्यत्वेनोत्पद्यते,जीवद्रव्यं तु नारककाले म नुस्यकाले चावस्थिताम् घट-पटादिप्यघ्यायोज्यम् स्यात्-आकाशादिपूत्पाद - विगो न विद्यते, स्त्राप्युयम आकाशदी,"तिण्हं परपच्चयतो"---------]|अनाह-गनु शाक्या दृष्टिरेवमव्याक्ततचना, उच्यते, तेषां हि पुनलो नित्या-ऽनित्यत्व प्रति भवनीया, अस्माकं तुनिया-ऽमित्याः Mभा(सर्वभा) वा इति वाच्यमेतत् - उत्पाद विराम-धौव्यपर्यायवयसङ्गहमाल श्रीवर्द्धमानस्य शासनं [शासनं भुवि] पद॥ एवं सर्वभावा नामन्यमानाः उच्रामानाव्यवहारमवतरन्ति, व्यवहारादनपेतंच मन्यमानमुच्यामानं वान आचारं विजहेज्नार अशमन्यो दर्शनाचार: Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौच्छिजिस्संलि सस्थारो,सळी पाणा अणेलिसा। गंठिआ भविस्मंति, सासयं ति वणी वदे॥ - एसेहिं दीहिं ठाणेहिं बवहारी ण विज्जई। ---- एऐहिदी हि ठाणेहिं, अणा या विजा पाहि / / दौच्छिजिरसंनिसत्थानियस्य किलापवर्गोऽस्ति न चास्तिनवसल्वोत्पादकतस्यानन्तत्वात् कालस्य सस्थारो वितावनीच्छिज्जि - सति तीर्थकरा इत्यर्थः, कि पुण जे अण्णासिस्सयपरिवारा मौकरखं गच्छति / आहहि-त्वद्देशनामतीतः कालः किमहं त्वन्ततावगुणाम्। मनूतं "देविंदचक्कावट्टित्तणाई." गाधा / अपोलिसत्ति अमन शा भक्षीणक्लेशपृथग्जनेन। गतिआभविस्मति, मान्टि न शक्ता भत्तुंगठियसत्वा इति वाक्याध्याहार स्थाब्रवीति-भव्येसु सिद्धेषु अभव्याः स्थास्यन्ति यतः संसारोम परिहास्य ति, तथापि नमोक्षाभाव इति मदोपा, अवश्यंच संमारमोक्षाविति द्वन्द्व सिद्ध्या भवितव्यम् सुख-दुःखवत् शीतोष्णक्च्येत्यादि / अथमा भूत् संमार इतितेन अपवर्ग एव नास्तीति मन्तव्यं, ना तथा वि सासयं ति वि] जो वदे, मा भूत् संसाराभाव इति दोषः अधचभणति सतरवचोदी-सवे भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति तधा वि भवसिलिय विराहओ लोगो भविस्मतित्ति, अधण सव्वे सिम्झिस्म ति तथा विभवसिद्धियाविरहिओ लोगो भविम्मति ति अधण सम्वेसिन्झिस्मंतिणो णाम भवसिद्धिः,एवं मासतितिचा असा. सति तिवाणीवदे।----- Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसाहं दोहिं ठाणे िववहारो० वूमी-दोणि हाणागि वीच्छिज्जिरसंति, भविया, अधण वोच्छिजिस्संति णा गाम भविआ,अधवा सैसा ... सवे गंठिया भविस्मति तथा वि एसेहिं दोहिं ठाणेहिं ववहारादीत्यतश्च दर्शनं च भवति, एतेहिं दोहिं ठाणेहि अणाया विजाणाहिकतरं अनाचारम् दनानाचारम् / स्यात् कथं मन्तव्यं वक्तव्यां वा जयन्तीति से जहाणामते सल्लागाससेढी" एवं मन्तव्यम् परेण वा पूढेण वक्त व्यम् . - / उक्ती दर्शनाचारआचारस्येति / इदानी चरित्रं प्रति श्रद्धानमुच्यते---- जे केव खड्या पाणा अदुवा संलि महालया। सरिस तैसिंवेरं ति असरिस लीय णो वदे। एतेहिंदीहिँ ठाणेहिं बवहारो ण विज्नई। एतेहि दोहिं ठाणेहिं, अणायारं विजाणाहि॥ : . ------ जे केइ खुड्डशा पाणागइन्द्रियाणिप्रति खड्गासवे एगिटिया वैइंदिया, कमवृद्धिजाव पञ्चन्द्रियाः, अथशरीरं प्रति कुन्थुमादी घुडगा, हस्थिमादी महालयासंति विद्यन्ते सर्वलोकप्रत्यक्षाः। आलयः शरीरम, महानालयो येषां ते महालयाः।ताश्व निर्धासु यदि कश्चित् पृच्छेत् आर्जवत्वाद् दुर्विदग्धी वा-सरिसं तेसिं वेरं काम, से मारेमाणस्स किं मरिसो कम्मबंधी भवति सि ? तत्य को व वहारो उच्यती- एतहिदीहि गणेहि कधं न विद्यते 9, जतिभाति-सरिसी कामबंधी तो महालया पश्चित्ता,इतरथा तेथून तिका ऊण अधाम मीन लोगरवभीरू य ते पारिहरति खुलए य कुंथुमादी एसिदिए वहंतीण लोए गरहिमइ,सो इथिलेइ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नखड़लएवामहल्लए वासनस्थ समी पाणातिवासोत्तिगिसकिती धातति एतेहिं दोहिंठाणेहिं ववहारसमंवतामहालयघातानुज्ञा,विषमंबुवता खुलवातानुज्ञा भवलिलेन धर्म सङ्कसेतत्कश्च जानानो धर्मसङ्कटमनुप्रविज्ञो अब पंगाणिक्षमाश्नमणशिष्यभट्टिया (भद्दिया) चार्या एवं युवते अवनिम्तुषमेव वाक्यमतो अवचनीयबाद इति स तु तैरेव पुनर्विज्ञचितः- यथा शाक्यानां नित्यानित्यायैवेत्यक्च नीयःपुङ्गलः, अस्माकं तु हिट अवतव्यम् कथं नवकव्यम् , तुल्या वाद्याले बन्धइति तृतीयमवकव्याम् ।।दाणा अन्यमत्या - -आचारं प्रति पृच्छा-----अहाकम्मचभजति,अण्णमण्णसकामा उपलिले ति जाणज्जा,अणुवालले तिषा पूणी॥ 8v -------- - एतैहि दोहि ठाणेहि,बवहारोग विज्जती। “एतेहिं दीहिं ठाणेहि अणायारं विजाणारा अधाकम्मंचनाधायका याधाय प्रकरणामित्यर्थः अन्योऽन्य इति बीप्सा, अन्य इति असंयतातस्मादन्यः संयत इति संयतः तस्यान्यस्य अधाय कर्म कर्तुः कर्मलेपैन कि निप्यसे मो लिप्यत इति प्रश्नः। उच्यते---- एलेहिंदीहिं ठाणेहिं कथं ववहारोऽनाचारश्य९, उच्यते-यदि मचीति अस्थि कामोवलेवो लि एकान्सेन लेन द्रव्य-क्षेत्रामात भावा व्यकिान्तासाधक परित्यज्ञास्यात् अत उतलि,ति अति देतीवि बन्झति मानता"तिहिं गणेहि जीवा अप्पाउ अत्ताए कम्म बधंति"----- तेणं किंमम अप्पवधाए चेव आधा कम्मेण चिन?,येन Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाताबध्यते अल्पायूळंच कर्मोपचीयते किञ्च-अकृताभ्यागतदीप चैवं कश्चिदपि पश्यन्तवं मन्येत,तेन उवलित्तेत्ति न वक्तव्याम् अधिभणति-वि अण्णणे अंगारे कवृति एवं नान्यस्यकर्मणो अन्योयुज्यते लेन लुब्धक मृगदृष्टान्तेन दातव्यमैवचैत्यव दीप जो ऐति सो पावं कम्मं कालु का अीवोव घालं करेइ इति परिचती,जेऽवि पाणेवधैतिते विपश्चिता | सदेव धर्म संकडमितिकृत्वाऽन्योऽन्यस्य कर्मणा उवलितो अणुवलिलो वेत्युच्यमान व्यावहारं नावतरतिपालेणा-९॥ किच्चात्यत्-जीयाहाणं पसंसंति लद्वतो विजे सिधेन्ति अयमन्सो दर्शनं प्रति वागावशालटा-- जामिदं उरालमाहारंकाममंचलमेन या सवत्य वीरियं अस्थि, स्थिसम्बत्थवीरियादिना एलेहिं दोहि ठाणेहि ववहाशेण विज्जती। एहिं दोहि ठाणेहि अगाया विजाणाहि दया जमिदं उराकामितिगयदिलि अनिर्दिष्टस्य निर्देशः, इमितिसर्वजोकप्रत्यक्षम आहारकमपिकेशाञ्चित् प्रत्यक्षमेव, विनियमपि प्रत्यक्षमेव तपसकर्मणे प्रत्यक्षतानीमा प्रत्यक्षे,एकसिमचौदारिके साधित शेषाध्यपि साधितानि भकिष्यन्तिाशिष्या पृच्छति एतदोदारिक अमीरं कार्य कार्मक शरीरान्जिस्याने तत् किम नयोरेकत्वम् एता हो अन्यत्वम् / कुतः संज्ञायः इति चेत् उभयथा दृष्टस्ता कार्यकारणयोः इह तन्तु-पटयोरयुगपसिद्धिर्दिश, तन्तवएव कारणान्तरतः नि Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिन्नदेशं पटनियति मादझे स्वादर्शादृश्यसंयोगासहवाच्छाया उपलब्धेसति कार्यकारणयो सम्बन्ध मिन्न देशातादृष्य इत्य -सोनःसंशया-किं कार्मकारीरमौदारिक भिन्न देशमाश्मले प्रतिविम्बवत् 1 ताभिन्न देशं तन्तुपस्वती इति,तल उच्यते-एकाप्रय स्वान्न प्रतिबिम्बवभिन्न देश,तन्तु समुद्र नौ स्यादाउर्फ हि-जले लिप्ठति -- ]आह-अस्तु सावत्तन्तु-पटवदभिन्न देशः कार्य-कारणसम्बन्ध कार्मक औदारिककायो,ल किनेकत्वमनयोरुतात्यत्वन ? इति, उच्यते, सदसत्कार्थ स्वाद घरवदेत् स्यात् ।उहंच णस्थिपुढवी विसिहोघडो"क्षि[- ]एवं नकामकशरीरं प्रत्यारख्यायौदाकिं भवतीति -एकत्वं सिद्धमनयोः, सूक्ष्म-स्यूरमूर्तिमत्वात् चाक्षुधवाद निरुपभोग-सोपभोगत्वाच्चसुप्लु अन्यत्वमित्येवं सट्सत्कार्सकोदारिकयो-कत्वान्यत्वं प्रतिमेजना,वैलियाहारकयोरपिातैमसमपि कम्मकालो णिप्फज्जति तत्थ विभजला इच्छेवं एकान्लेन एकत्वमान्यत्वं वा वृवतो वागताचारी भवति, सेण एतेहिदिोहि ठगणेई. पच्छिम सिलौएण वितिनिया पुच्छा -सजत्थ वीरिअं अस्थि, यथा कार्य कारमयोर्वक्तव्या- वक्तव्यतीला एवं कर्तृ-कर्तव्ययोरपिाकिमतत् सर्व सर्व कार्ये किं कर्तुः सामर्थ्यमस्ति उतनास्ति? इति पृच्छा, उ च्यते-शिक्षापूर्वमशिक्षापूर्वकं चकेषु कर्तुः सामर्थ्यमस्ति कैषुच नास्ति स्त्र शिक्षापूर्वकं घटादिस्वस्ति सामर्थ्य अशिक्षापूर्वक Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गमना-दाम-भोजनाद्यासुकियासुनचैव सामर्थ्यानास्ति उिक्त हि“छहिठाणेहिं जीवरस णस्थिउहाणे इवामाना लोग वा अलोगवा एवमवचनीयवादा प्रामक इति कृत्वा साम्प्रतम पवादः क्रियतेन सर्वत्रावचनीयवादी भवति,तं अधा पास्थि लोद अलीए वाणेवं साणं गिवसते। अस्थि लोए अजीए वा, एवं सणं निवेसते॥१२-- - "स्थि जीवी अजीबोवा, सर्णणिवेसए।-------- अस्थि जीवो अजीतो ना, एवं साणं निवैसए / 3 / पास्थि लीए अलोए वा प्रत्यक्षत एक दृश्यही जीता-जीवसमुदायो लोकः, स कथं नाम्सीति संज्ञाङ्कविनिवेशा इति व्यवहारो वावक्तव्यः, यच्चास्ति लोक इहि लोगविरुद्ध चैव,प्रतिषेधश्चक्कय प्रतिषेधकोऽस्ति अप्रतिवेध्यो लोको नास्ति,सहि लोकान्तातो ?, यदि जोमान्सर्गतो यथा भवामस्ति फिमेलोको म भविस्यक्तिी उत लोकबाह तो वा मनु लोकस्यास्तित्व सिद्धं यस्य भवान् बहिर्वःतान-वचन-वाच्यविशेषाञ्च न कश्चित् प्रतिधेधयति कलोमास्तित्वम् / अलोकस्यापि सुखद रख-इपितोदा रशीसोठण)-जीवितमरण-छायाऽऽसत्वच्चैति बन्दासद्धिातम्मानब संझा मनसि निवेशयेत् किन्तु अस्थि लोए अलोए वा अवापिग्मजनीय अस्ति मड़ावे, आदिवो नोकः अस्थि वा अमदाषादिट्ठो तस्थि महावि लोकविरुद्धमिसिकृत्वा भजनावादो मी आताजीवा-उजीवसमुदायो लोक इति लोक कृत्वोच्टाते-नाम्ति जीवा-उजीवा:मारकायाःजीवाः, अजीवाधर्मा-Sकाश-पुनलाः Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्त्राधिमजना असगावे आदवे लथाप्टाश्वासो नचःखमीझता नैर्घण्यं च जीवनिति कृत्वा मापदिश्यते, अवधारणेनोच्यते अस्थि जीवो अजीतो सानाशा | जीवद्रव्यासिद्धौ लक्षणावसरो यत उच्यते पास्थि धामे अधमे वा, गोवं सां निवेसए। अस्थि धम्मे अधम्मेवा, एवं सण शिवेसए॥१४॥ त्यि वधे व मोरवे वा, णेवं सणं णिवैसए। अत्ति बंधे व मोरवे वा, एवं सणि वेसए // 15 // “पस्थि धम्मोगासदेव नै धुण्यम् न चाभ्युपगमो भवति, धर्म तोहि अभ्युदय-नैःश्रेयसयोः सिद्धिरिति कृत्वाऽभ्युपगम्यते -धार्मिकस्यासचेन्नास्ति कस्तारनुसती,सेन तीर्थोच्छेदः,अधार्मिकेषु हिमादिषु कर्मसु प्रतते मा(नास्त्यधर्म इति कृत्वाऽतो दोमट, नवनव्यं नास्ति धर्मः अधोवा, वक्तव्यं तु अस्थिधम्मे अधम्मे वा धर्मा-धर्मानन्तरं बन्धनमोक्षौ भवतः अधर्मश्च का"रणं बन्धस्य,धर्मस्तु समाधिर्मो वीतरागधर्मश्च तत्र स्वाधिर्म:स्वर्गायावीतरागधर्मस्तु मोक्षाया, से सु प्रायेण वित्तृलिका लोका-यतायाधर्मा-ऽधौ बन्ध-शौक्षौ चनेच्छन्ति,एकैकत्रानाश्वासः अन्युपामनिर्दय दोषाश्य वाच्याः, धर्मा-ऽधर्मबन्ध-मोक्षास्तित्व वादास्तु ल एव विपरीतास्तु गुणा भवन्ति याशा उतो बन्धः तद्विकल्पस्तु पुण्यं पापंच,अतो बना-मोक्षामन्तरम् - Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माल्टिा पुण्णेवपावेवाणेवं सणं णिवेसते। “अल्टिा पुणे व पावे वा एवं सणं णिवेमते॥१६॥ -------- स्थि आसवे संवरे वा, णेवं साणं णिवेसए। अति आसवे संवरे वा एवं स शिवेसए // ------- - डास्थि पुण्णे व पापे वागतस्य पुण्णं णवविधा पुण्णं सुहादि, अधवा पोगनकम्मं चसुभं गोत्रादि,अना पाया जास्थि, पुण्ण लि कातुं पुण्णं तणाई लोगोण सेविस्माइलपुणस्साऽऽसवा हेतुं. पुण्य-पापयोरागमहेतुः प्रभवः प्रसूति राश्रवमित्यमन्तिरमितिक वाले पुण्य-पावानन्तरं आसवोसंवक्रिया वा वाणा गस्थि किरिय ति अकिरि आवादियो भवन्ति / केचित्तु नवते-सर्वमुत्पद्यते घरवत्मयच्योत्पद्यते तत्सर्व क्रियावद्धटवदेवत्यत: भकिरियाणस्थिाउत उभयमतापनोदार्शम जस्थिकिारया अकिरिया वारणेबसण्णाणिवेसए--- अस्थि किरिया अकिरिया वा एवं सणं निवेसएगाटा नस्थि किरिया अकिरिया वा अस्थि किरिया अकिरिया वागवत्र जीव-पुजलाववस्थितौ च क्रियावन्तौ धर्मा-धर्मा-ऽऽकाशामि क्रियातिपाभिाहत आवासझेदास्तु Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जस्टिा कोधेवमाणे वा, णेवं सणं णि वेसते। अस्थिकोधे व माणे वा, ए सणं णिवैसते / / 69 पास्थि माया व लोभे वा, णेवंसणं णिवेसए। अस्थिमाया व लोमे वा, एवं सणं णिवेसए पर॥ -पास्थि पेज्जेवदीसेवाणेवसणं जिसए।----- अस्शिपेज्जे व दोसेवा, एवं मण्णं गिनेस एगारहा पास्थि कोधेवमाणे वागदृश्यन्ते हियथास्वं क्रोधादिकषायाभिभूता वध-वैरप्रकृता तत्सर्थ कापायान भविष्यन्ति ९अलोणस्थिमाया वलोमेला अयमन्सकपा यसरेप एव।। णस्थि पेज्जे व दोसे वानप्रीति:प्रेमं वा पेन्नं, लहिपरीतं दोषः॥२०राएतेहिंचेव कसा एहि पेजदोसहिवासंसारो चाठरंतो णिवतिजाति,सेण स्थि चाउरते समाने,वंस निवेमए। अस्थि चाउरते संसारेएवं सनसनसाशा पास्थि देवो व देवी वाणेवं सनं निवेसएा अस्थि देवो व देवी वा एवं सन्न मिवेसए पर। यि चाउरतो संसारोणवत्तारि अहा जस्सम भवति चाउरंतःसत्य तिरिक्वजोणियमणुस्सा पच्चक्रवत्तिकाउंण पुच्छति, णास्थि यमणुयोरइयजुवलयंजधामेमाणं पोरड्यपज्जंता,रइथपज्जला अणुमाणगेज्झा लेणबुच्चंति ------- ----- Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्थिदेवी व देवीवाग अल्शि देवयो व देवी वागारशारशादेवाणंतरं सिद्धा-- स्थिसिद्धान सिद्धी वाणेवं सण णिवेसए / मस्थि सिद्धा व सिद्धीबा एवं सांणिसए॥२४ स्थि सिद्धी पियं ठाणं,णेवं सणं णिवेसए। अस्थि सिद्धी णियं ठाणं, एवं साणं लिवोस ए 25 / / - सि सिद्धावसिद्धी वात केचिद् ब्रुवते मोक्षोपायो ण ितेण बूच्चतिजस्थिसिद्धा व सिद्धी बाजइ कोइ भोज्जा सकपच्छाओ "जले जीवाथले जीव' त्ति काउं जीवबहत्ता अहिंसाभावाच्च गस्थि सिद्धीणियं ठाणं तित्प्रतिषेध मुच्यते-अति सिद्धीजीव बहुत्वेऽपि,कथम् / इति चेत् तदुच्यते-'मलमन्ये जधालाषा गारठाराप जस्थि साधू असाधूवा,पोसण णिवेसए। अस्थिसाहू अमाहवाएवंसक णिसए१२६॥ शशिकल्लाण पावेवाणेवसणं जिवेसए। अस्थि कल्लाण पावे बाएवं सणं जिवेसारण जास्थि साधू असाधू वागणेब्वाणासाधगा आहंसादि हेतू साधयन्तीति साधूलत केचिद् अवले- विणा विजीवबहल्वे नैव शाले मोक्षः साधयितुम् कम्मादी, यलचलं मना, अविनयवन्ति चलानि चेन्द्रियाणि,तानियनसुखं निमाहीतुम् अनिगृहोतेषु च कथं मोक्षःस्यात् |उक्तं हि चञ्चलं हिमनः पार्थ! Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घादेवं लम्मानास्तिमाधुऊसाध्वमाताच्चतत्प्रतिपक्षमूलस्य प्रारीवासापोरभाव इति लच्चले-आत्य साधू असाध्याकधं-- साधू भवति?, उच्यते-णाणी कामसक्रतो,विस्याण अणणुभवणं अिधवा माधुरैव साधुः संयत इत्यर्थः, तिवनीलो अमाधूराणहिट क्लासियोराफल साम्प्राप्तिः कल्याणम् शाक्यानुवते- सर्वमनिमित्तमानालाकवचनात् कल्याणमैव न विद्यते वचित् / पावं कधणस्थि? सर्वनीश्वरविकार इलिकृत्वा, कुतः पापं मेच्छति पारलौकिके ?, शाक्यास्तुकल्याणमेवैकमेच्छन्ति तेषां त एवाना श्वासादयो दोषा अभिधेयाः। वयं तुअस्थि कल्लाणे पावे वाकचं कल्लाणं 1, कल्लाणफलविवागदर्शमात् प्रत्यक्षतो हिकल्याणकल विपाका दृश्यन्ते रोगिता -रोगित-सुहितदुःखितादिषु सुहविवागन्दुधविवामाई एत्थ गिदरिसणं ॥२६॥२॥ठको दृष्टिं प्रत्यमावा र आचारश्च अयमन्यो हट्यमाचाररूपापकानि कर्माणि करोति वेदयति चेति अत्रैकान्ते नएस कल्लाणे पावओ वा विववहारो ज विज्मई। "जं वैरं तंण जाति समणा बालपंडितापार९॥ असेसं अक्रवयं वावि,सन्तदक्षेतिवापणी। -------- वज्झा पाणा ण वझंति, इति वायं गणिस्सिरे // 30 // दिस्संति समियाचारा, भिस्तुणी माधुजीविणी। एते मिच्छोवजीवति इतिदिष्टुिंण धारए इदा Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्लाणे गावठसि / पुरिसे मण्णामाणे ववहारो ति विज्जति, तत्र वावक्षरणे कधं कल्लाणकारी णं भवत्येकान्तम?, उच्यते, सालं चेत्यादि / चेत्यादिकल्लार्ण, एतेसिं सेसा ति य एतेण कारणेण पावं नाव सुहमसंपराइय बंधओ सो आउअ-मोहणिज्जलज्जाओ छकम्मपाडीओ बंधमाणो णावरणिज्ज-अंतरागाइं बंधति, लाओ य उमुभाओ प्रायेणसुहं बंधति सहा वि एकान्तेन कल्याणकारीम भवति |अथवेदनां प्रति भणुत्तरोववालिया वि किंचि असुमं णाणावरणिज्ज वेदेति,जे सिंण सणाणावरणिज्जं वीणं ,एवं दरिसणावरणिजनपि अंतशइर्य पिमणुम्सेसु वि नित्यगरी विसी-उण्हादी णि अस्साताणि वैदेति, रेण जति सो रवीणाकसायत्तोण पावं बंधत्ति ताव वेदेति Herm अस्मातंच, सेण एगलकल्लागेा वतव्यो एगलपावो वा बंधं प्रति ।प्राणु अधे मतमा उवामी एगलपावो मिच्छादिट्ठी परमकण्हलेस्सी उक्लोससंकिनिहाणि परिणामा, उच्यते-जदिविसीबंधं प्रति एतपानी तथा वि कदाचित् सातावेदो हजाउ चागा लो सुभकामोदयो वा,णियमा पंचिंदिओउत्तमसंघ यणो य, एवं एसपाती तिमव्यवहारमवतरति,यस्माच्चैव सरमकान्त निर्देशावहारी णविमति, ववहारावेदच माणमाणमुच्यमानं वा वैरं प्रस्ते, कर्मण एषय वैराया।उतं हि-'पावे वज्जे वेरे'। दृस्ट हि लोकविरुद्ध मुच्यमानं वैशया उक्त हि-ज्ञाता यथा, अतोऽन्यथा लाधवैरम् / तथा चोक्तम्-जीहे ! जाण पमाणं जे मे [- ] एवं तु सूक्ष्म तेयाम / कुदृष्टया माणा अपि तावन्न आनन्ते शाक्याट्यः किन गृहस्थाश्य बाला:,मूला अमान का इत्यर्थः यद्यपि तेम्ब Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाम-परशास्त्रविशारदा लोकेन पण्डिता इत्यापदिश्यन्ते तथापि सेन पण्डिता इति बाला एव प्रत्यवसेयाः। अयमन्यः अवाच्यसहः एकेने वश्लोके नाभिधीयते- -.-.. -------"असं अक्रवयं वा विलाअोघं कृत्स्नं सम्पूर्ण सर्वमित्यनन्तरम् , लेन सर्वमुक्ते अशोषमुक्तमेव भवति। सर्वो - मानो आयातः' इति भवाच्यमेतदेकान्तेन, कथम् ?, जीवा-उजीब समुदयो हि मामः सकवं सर्व आयास्यति। अशेषो वा ओदनी त्वया मया भुक्तः' इत्यव्यवहारः, तत्र हि शिक्षादयः,शिक्थैकदेशावयवा औदनः गन्धश्च विद्यत एच,यद्यपि अोघा मिथ्या वा भूत्वा अण्णस्थवा पक्वित्ता ताधिगंधी अस्त, म चापद्रव्यो गन्धो भवति / एवं चैव मइ भगति-देहि देहि भुज भुभ वा अन्ज वि अक्श्वयो कुशे अच्छति, व्या नाहकलकामी अक्षयला विद्यते, लेण ण सवमयं वत्तव्वं / मनु संसारः कथम् ?, उक्तं हि-तीसब्बकाल्दुरखो, उच्यते-पण्णवणामगोऽयं, जेणवुच्चति तो मव्यकाल टुक्रवो' इधरधा सुहं पि अस्थि दुवं पिाननूहं सादं च वेदणिमे, तथा वेदृणिज्नं सात च,ता चनव पदार्था, तत्र पण्णवर्ण पुडुच्च तथि ओ पत्थी-सुहोट्यं किं पुर्व मिज्जवि पावं पच्छामिजाति,एगगतेणं सर्वदुःखमुच्य मानं ववहारं मावतरति, वझा पाom ण वन्य ति सर्वलोके विरुद्धमेतत् वज्मा पाणा नि माणसा विण मम्मत किनु वाचन वहुन् कन्मुणा वा कर्तुम् ?, अध अस्तु न तावका वक्ति वयामाणिन;, अध अवज्झा कथं नवाच्यम् ?, नन्वेतदपिलोकविरुखव, कध अहिंसक स्वयं मच वक्ष्यति अवध्या प्राणाः' इति? उच्यते,सत्यमेततास्वयं क्रियते तदन्यस्थाप्यपदिश्यते, किन्तु यदि Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कश्चित सिंह-गमाजी रादीन क्षुधजन्तून जिंघासुर्षयात मो साधी किमतान भुगजनन घातयामि उस मुञ्चामीति तत्रम वक्तव्यं मुञ्च - मुञ्चति, ते हि मुक्ता अनेकानां धाताय भविष्यन्ति, एवं चौर-मच्छबन्ध-वधादयो न वक्तव्या मुञ्च द्यायतयेति वा। आहचा-'प्रसत्येको - 71 अव्यापार एष साधी: सेन व्यवहारपक्षेनावतरति यस्मा च्च व्यवहारपक्षातिकान्ता एवं प्रकाशवाकलस्माद इति वाचं णजिसिरे, एवं लाव लोगोखं भासि असेस अक्खयं ति वा तंतधाण वत्तव्वं ॥उच्यते किञ्चिदन्यथा,जधा किनीदि संति णिहभप्याणानस्वास्सीकेन विधानेन निभृत: आत्मा येषां ते भवन्ति निभृतात्मान: युगंतरपहिजो परिपूत पाणियपामिणो मोयिणd uTo विवितेकान्त सेविणी यायिन इत्येवनादिन मैकृत्यं भिक्खामत्त वित्तिणी साधुजीविणो तिण कस्स उवाधेण -जीवंति कक्क-कुहग-कुसया (कुरुयावामिणी,एवं वृत्तं ते मिच्छापडिवति ति,एवंदिष्टुंगधारेन / परेण पुट्टोण एवं भणेज्जा एते वरागा बाल तवस्मिणी सर्व मिच्छाकरेंति लोकविरुद्धं च तं भगतस्स ते लोए गादरुट्ठीभूता पच्छा लोगोमा भणिहिति ति एते पदीक्सस्थिया गुणवैषिणः, अविस्मति य उवसमति, ते विय जाव मेवेमा ताव उववजलितोकधं एगलेणं एवंञ्चा सवमेतं शिरस्थागं किलिस्संति णिच्चपुट्ठो वाभणति-अणागादमिच्छदिट्ठीसू,एते वि किञ्चिदधेलोगफनिगणिबत्तेन्ति / अय मणो अण्णरस्थियागहल्याणं दाणं प्रत्यव्यवहार:---- Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दक्विणाए पतिलंभी, अस्थिणस्थित्तिव ण विसागरेज मेधावी, संतिमार्गच वूहए // 32 // -- - - इच्चेल इच्चेलोडिंतु गणहि, मिणदिवहिं संजते। -- धार हारयते तु अप्पार्ण, आमोकरवा ए परिव्ययेज्जासि ॥३शा ति बोम॥ ---- सूत्रां अणायारसुसं पंचममज्झयण सम्मत्तं / / ... दकिवणाए पलिलंभी। दानं देती दीयते वा दक्षिणा, दक्षिा प्रतिलम्भो दक्षिणायाः प्रतिनम्मः, अधला दक्षिणाया लभितो दक्षिणालम:,सया वालभित:स प्रतिलभ: प्रतिमानवत् जामानिती वा भवति एवं प्रतिकारः प्रत्युपकारः प्रत्यकारा प्रतिपूजादिध्वायोज्यमास किंपात्री वाऽपात्रे वा पतिलाभिते तती पडिलामितेततो पाउनाभी अस्थि माथि पुच्छिन्नलिभणलि-एकान्ते नास्ति तत्थ दोसा,जारिस वावचनीयं तारसेणेव फलेण होललं,तेण आधम्मियस्स कम्स वृद्धं दाणं दिणं ते विणाम इटेण फलेण होतब, पात्रे वा अंर्तपतं दिण तेणावि अंतफलेण होतब्,एवमनेकान्तः,पत्ते तु इट्टामगिटुं वा सद्धाए अणुपरोधी दिन्जमा महफल भवति, अपते तु इट्टामणिदुं वादत्तंवधाय, तथा विण वारिज्जति अंतराइयदोसो त्ति काण,तथाऽनुज्ञायते देहिति मज्जारपोसादिट्ठलेण मा अधिारण भविस्मति,तेण असंजतोगिहत्यार्ण अण्णउत्थियादिहित्तिा किंच-एत्य पुण्णं वा पुण्णं ति ण वियागरेज मेधावी। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जइच्न भणति-पितं जस्स मए दातव्वं कधंवार किंवाऽस्य फलम इति तदाऽस्यकथाते-योदातार्य देय एवमेतान्यव्या कृतवस्तूनि यथा येषु स्थाने वक्तव्याति तथो कानि, वाव्यान्यप्यन्य स्थानेषु यथा च वक्तव्यानि तथाप्युक्तम् एतेनलक्षणेना न्यात्त्य पितधा वक्तव्या--वक्तव्यानिचवितेयानि,अतोऽति प्रसक्तलक्षणमिति कृत्वोच्यते, एवं सर्वश्रेष तद्विकल्पं करिष्यति लेनोद्धारः लेनोद्धारःक्रियते-एकान्तेनैव- - - संलिमांच वहए,शमनं शान्तिः,ममार्ग:जैणकधितेण उवसमंतिसताजिशासनवृद्धिश्च भवति तथा कथयति सो पण संतिमागोधाम कधंतहि पावावेंतेहिं संगिण्हतेहिं उवगिण्हतेहि वहितो भवतिउक्त च-पावचनीधर्मकथीएत्थास्थि भयाणा, एशंतन चै सधा लधा कधेललं कालखंच जधा जटा संतिमगो हिज्जति तिराइंगणाई,जाणिअणादीयं परिणादी णि ववहारं णावतरति, जा इत्थ नोए वा अलोए वा बबहारं उवचरति, तेसु ससुसंजयतेरियमाणेमु अप्पाणं,कधं अप्पाणं वार यति अवच्चाई भणति एवं धारिलो अप्पा कियंतकालं , आमोक्रवाए जावा मुच्च सबटुक्रबेसु असमाहा शारीरकत्सत्वे, परिसता वयेज्जासिमीक्खाय परिव्वयेज्मासि ति बैमि ----- ---- | अमाचारभुताख्यं पंचममध्ययन समताछ। --- 'अनाचारभुत मुसमायया केन वनिता अनाचारा: आचाराचा सेवितासभिावतो तटुच्यते-अधा अद्दएण,एस अड्पयनर्मबंधी। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tणामणिफण्णे अद्दइज्जगाअद्दणिविखवितळ णामई णुषण दव्वद चेव हो भावई ।एसी खलु अद्दस्स उ निक्षेवो चाविहो होति॥ " उदगई सारई छविय खतहासिसई। एयं लई खानु भावेण उहोति रागई / / . एगभविए य बद्धाउए य अभिमुहियणामसीए य एते लिणि पगारा दवहे होति णायला / / -- अद्दपुरे अवसुतौ णामेणंअद्दभोलि अणगारो। -- तत्तोसमुहियमिणं अज्झयणं अद्द इज्ज ति। कामं ट्वालसंगं जिणषयणं सासयं महाभाग। -सज्झयणाणि तहासबक्रखरमाणिवाया या - - लहवियकोई अत्यो उज्जतितमि सम्मि समयम्मिा पुलमानी अणुमतोय होति इसिमसिएसूजहा। णामाई ठवण गाणामहं अधा सिंगबेरस्स आईकमिति नामावस्था क्षत्रमाढवण्ठं चित्तकामादिमुभाईकलिखितम्। आहा नक्षननलिखितम् // Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदगाई सारईगाधाउदकाई यथा-उदका, गात्रामा बाहिरतयाए सुक्कं लयाए य ममन्तरे जं पंडरगं,संसारो पण्णाण णियसे अज्ज विप्लत्याई एष उल्लोल्लो अच्छति / वित्तितया यथाऽयं पुरुषः स्निग्धत्वचो गज्जइसे मविश्वलाई अगाई आह हि-"त्वचि भोगाः सुखं मांसे"----] सिलेसह जधी कोइखेभो तितित्तो समाणी पच्छा सिलेसैण मरिवज्जति पच्छाणिज्जति गनति लिए वादिङ्गव्या नव्याजधा-उदगं सिलेसो य एते दो वि सयं चिय अहा अण्णं पिआदीकुर्वन्ति | सारद-छवियहा पुण केवल सय मेवाऽऽभावई साई लोगो भणति-आसन्तानो देवदत्तः, स्नेहवामित्यर्थः। णेहतुप्पितग तरस रेणुउपरुचितं व तलि हमई ।इ हतुभाईकनाम्ना पुरुषेणाधिकारः। तत्राप्यनियिणा मेवेतिकृत्वा तत्प्रयोजनमुक्कमेव भवति / द्रव्य-भाषाट्रिकविनोषास्तु पुनरुच्यन्तासत्यभो तिविधी--- --एमविए यबद्धा3ए य. गाधा / अदाऽऽ3-OTIोतवेदेंलो तितो समुडिताधा[पच्छदं] यद्यपि श बेरादीनामाईकसंज्ञा तथापि तेभ्यो नाध्यमिदं समुत्पन्न तस्मात् ताधिकारमाजीञ्चेवमो अहाभिधाणी साधूतणावाधिकारः। एत्य अहकठप्पत्ती भणितब्वा जम्हा लत्तो समुट्टितमि साय इमा-- मगधामणवत खितिपतिहि णाम गमी, सहिं मावओ परिवसतिासंसार भयुब्बिगो धम्मघौसाणअंतिए पवइतो सहभारिआए।सो विहरति माधूहिँसह इत्री वि अज्जियाहिं महालाई कताइ एगनगरे Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोसरिताहात सामिक्ख हिंडमाणी दिहाासौतेहिं अज्झौववण्णोतिण संघाडिगो उच्चति-एमातम कारणा पडि भनाजाति --------------------- -चिंतित-अज्न एणण उवैश्वितव्वं तिण भण्णहि-अहं च मज्जेव) कर्तवमए। सो एवमणिउंगली पर्वतियापस्सियातेण महत्तरियाए मिट्ठोस उल्लावीपच्छामलहरिताए सामणिया-अन्ज अण्णविसयं वच्चाहिाताए भण्णाति-अहं भौलिया कहिआमिर मी पूरिसी,मोउर अण्णदेस पि बच्चेज्जा, अहंभसं पच्चरवामिगतीए एवं तिभाति (भणित)। इतरेणावि तस्स अप्रतणकधि जाति-जधा वर्म समीसरणं ठुझडं, तस्थमिल्हिहाभी, दूसरधा पा सकतिासोऽधति दिवसं गणेती।इतरीए वि ते दिवसे आसण्ण' -त्ति काऊणं वेहाणर्स कतीतहिं आयरियाणं णिवेदितं-जधापब्बइता कानगलातरस्सा सोसूण अद्धिती जाता-अहो!कहुंभ कज्ज,महच्चएणं तवस्सिती कालगयातेण विभतं पच्चक्खातामा कालगयातिण विभत पच्चक्खातासाझालगयासमानी देवलो एसुसवण्णा, लाओ देवलोगाओ चुता संती मेच्छविसए अद्दावसे महगस्स रणो धारणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तताए -वक्तसालीसे णबाई मासाण दारो जाती, लसणाम कीरति अझइतरी विकालं काफण देवलोएसुउववण्णो,लोचुतोवसं लपुरेणगरे मिाकुले दारिया जाया इसरो वि जुबणस्थी आओ। अण्णता कताई सो अझो शया सेणियस्स रण्णी दूतं वि-- सज्नेति, तेण कुमारेण पुच्छिज्जति-माहं बच्चशिक्षण बुच्चाति-आशाश्यविसर्य श्रेणियस्सरणोसगासं,सो तुम Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पितितांसी होति तिणबुच्चाइन्सरस अस्थिकोइ पुत्तोणाशी तेण बुच्चइ-अस्थिाकुमारी विचिंतेइ-लेण सहमित्तता होता सो लम्स पाहउँ विमान्नेलि-एतं अभयस्स उवगैतब्बीसीदृतीतं गोहित रायगिहनगर भागती,सेणिय रस रणी सव्वं अप्या हणिय अवालिया इतरं दिवस अभयस्सदुको अभयकुमारस्सतं पाहुई उवणेति भणिो य-अधा अद्दकुमारो अंजलिंमझातेण पाहुउं पाहिच्छित, वृत्ती य सक्कारिओ अभभो वि परिणामिताएबुद्धीए परिणाम कृण सो भवसिद्धीओ जोमए' सद्धिं पीति करेइएवं संकप्पेऊण लेण पडिमा कारिजइल मंजूसाए छोई अच्छति ।सो दृतो अण्णता SSथिअ पूच्छइ / तेण लस्स मजूसा अप्पिला,भाओ य-जधाकुमारी भणइ-एवं मंजूस रहस्से उम्घाडेज्जासि, मा महायणमझे जधाणकोइ पैच्छेइ. पहवाहतुं पैसुतासोदओ परं प्रागरं पडिगो, अहस्स रणौ सेणिय पेसविर्त पाहडं ठेवणेति अद्देण सकारेतूणपडिविसज्जिओ कुमारम्स मूर्त जमओ अभयपेसविल पाहुडं उवणेति, अपाहणियं च अक्रवातितिण वि सक्कारेऊण पडिविसज्जिती।इतरो विर्तगहेऊण -उवरि भूमि दूरुहितारणविरहियं करेसा मंजूसं उग्धाइलिसी पेच्छेति उसमसामिस्स सममहि (समाडिं) पडिम। तस्स ईहा-हपोह मागणावेसर्ण करेन्तस्स 'कहिं मए एयारिसरूव दिई 'ति चिन्तमाण इस जातीसरर्ण उप्पण्ण-अहो ममअभएण णाहकिच्चं क्यारहस्सि गतंच काऊण परिभोग उचितंण पार जति साहे रणोकधित-जधाकुमारस्सजपामिति आरियविसयाले Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाहुडं आणीतलप्पमितजहोचिसं परिभोगनपरि जलिरायाएशितिल-गट्टी कुमारो भवति, बज्झनुतस्स अण्णेहिं आइक्विजइतेण ------------------------ चिन्तित-जकिधझामि तो नटुंकज भवति,सबधा विजहोचितं भोग जातिारणासुतं-परि जति।तस्सगासे पंचण्हं कुमारामच्च सताणं पंच य पुत्तसताई अण्णविदिण्णाई भणिईज कुमारो णस्सप्ति तो सब्बे विणासेमि। ते तं कुमारं आदरेणं रक्कलि कुमारेणोका यो चिंतितो-आसवाहजियाए णिमाच्छामि एवं विस्सासेण पलातो आसं विसन्नेऊणो देवताएय भणितं-सउवसागोइतरे वि --पंचमताअडवीए चोरियं करिता अच्छति / इतरो विणाओ एक्कारसमिसावगपडिमं पडिवज्जित्ता आगतो वसंतपुरंगरंत / आया. -वेतरसपडिहेरंकतं देवताएतस्स आतावेंतस्स दारिकाओ अद्धरमाम ते रमंति।ताए मेद्विधूतीए मोपती घेप्पतिाएवमी साह मातावेंलो मच्चतिताएदारियाए भणति अहोमम पती आलभितो देवताए अद्धलेरसहिरणकोडीओ पाडियाोशयाउद्वितोऽतुं, मप्याराष्टुिंति देवताए भणितं-एतं तीसे दारियाए।पितुणासंगोवित ।सो वि पवातोसा सहिधूता अण्णेहि वरिज्जतिरतीए माता-पितुं भणइ कतिवारा कण्णा दिज्जति तेहि भण्णइ-एकस्म दिण्णा जस्सेतं घणं, मुंज, तुम जाणसिकहिं सोस्थि ,णवरं पाएमाणामि जाणाप्तिा ताहे साताहिं भिकरवा दिवाविजाति-जलि पतिं जाणसि तो गेहेन्मासिाइतरो बारसण्ह वारसाणं आगलो,सोतीए पाएहिं जातो तस्स पच्छलो विसन्जितापतोथिलिय ताहि प्रत्तो जालो वारसण्डं वरिसाणं सोतहिं आपृच्छति। Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -सातहिं पकलियासोदारओ भणलिनकिंमतसिपी पिताले पाइनुकामो तोसुहं जीविस्सामि सोऊण पुत्तेण वैढिसुमारखोरतण विचिंतित --जत्तिएहिलंतूहि वेदेतिततिगाणि वरिमाणि अच्छच्छामिालेण बारसहिं वेतितो साधबारस वरिसाणि अच्छितोगपूष्णेहि पव्वइतो ताए अडवीए वोलेति जीए ताइं पंचसताईलेहिं गहिलो पच्चभिण्णातीयाच विसयाइंपलड्ताईसोजाति तित्थगरमूलांसो गय गिहणारं पघिसंसओ गोसालेण समंवातो, बुद्धेन समं वादो,धिज्जातिएाहं परिवाएहिं सावहिासवे पडिहंतुंमामिपादमूल -जाति तस्स वच्चंतस्स हस्थी बारितो.सोहत्यी अद्दा पेच्छिऊण एवं चिंति-अगस्स लेयपभावेण मुंचानि।तस्य य तैयप्प भावेण बंधणाणि छिण्णाणि हत्थी जट्टोअद्दोभणति ण दुक्करं पारणपासमोयणंगा गली णामणिप्फण्णोामुत्तालावाणिफण्णे सुत्तमुच्चारेतब्बं - पुंशकडं अद्द! इमं सुणेहिएालचारी समणे पुराऽऽसी। से भिक्खुणो उवणेत्ता अणेगे माइक्रवतेण्डिं पुढो वित्थरेणं // 6 // साऽऽ जीविया पट्टवियाऽथिरेणं,समागतो गणतो भिक्रवमझे। आइश्वमाणो बहुजण्णामस्थ, म संधयाती अवरेण पुव्वं या एतमेवं अदुवा वि एण्डिं दोवऽण्णमण नसमेंसि जम्हा। Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नापुरकडं अद्द! इमंगाततस्तमाकं राजपुत्रं प्रत्येकबुद्धं भगवत्पादमूलं गच्छमार्णगोसाल आह-पुरेकडं अहाइमंसुणेहि,सबैशपि तीर्थकरैः पुरेकर्ड, आईक! इति आद्रकस्यामनाणम्,हे आईकराजपुत्र!, इमं यद्वक्ष्यामस्तच्छृणु-एतिचारीसमणे पुरा-ऽऽसी,सोऽयंवर्द्धमा नयत्सकानां भवान् गच्छति ममत्सझादो पूर्वमेकान्सचारी आसीला तदेकान्तं द्रव्ये भावेच,ट्रव्यैकान्तमारामोद्यान-सुण्णधिरादीणि एलेसुएगतेसुचरति एतचारी पुरा आसित्ति,एसमए सद्धिं लमिाउलमिन्सुहन्दुक्खाई. अणुभवितब्वाइं तत्थ भावणा-ठाण-मोणा इसणादीहिं मउम्मोहिं तव-चरणेहिं णित्मच्छितो समाणो टुक्करं एरिमाचरियाजावज्जीवाए धारेतब्वति कार्ड मामवहायवहवो -भिक्षुणो भवद्विधांनाणादमात्राहा- मुंडेति, पिडेति य, मुंडेता पिठेत्ताय तेहिं बहहिं परंसतेभ्यः एण्डिं साम्प्रतं आइकरवइ पुब्बा "वरण्हं आदावण-भिक्रबुचरियादिकार्याकिलेसे णियसचित्तो पुटोति पृष्वक् पृथक् पौन-पुण्येन जो जघा उवसमति लस्स तम परिक हतो अपरितंतोशाम-गराई आहितिावित्थरेणेति अनेकैः पर्यायैर्वरः किल एष सर्वइति लोकात पत्तियन्तो पत्तियतो पच्चत -गली एवं पूआनारव-परियारहेतुंकषेति हिंडलि य गामाणुगाम इति ॥शा अस्मात्कारणात् साऽऽजीविया पट्टवियान इधरधाहिएगाणियं विहरतंण को पूतेहाण वा अभिगच्छति अधिरधम्मा अधिरोधिमस्थिरः -इलिचेत् ,यदा सो एालचारी भूत्वा समेति गृहारष्टान आशमगती वावृक्षमूलाशिल:गृहं सरणमित्यर्थः,त्यावा यह किं पुनः Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुजनाय बहुजन्यम् गृहप्रवेशनतागणः समूहः गणमध्टो आश्व्याति नैकैकस्यामिक्षुमध्ये सदेवमणुझाऽसुराएपरिसाए परिघुडी जिनाय हिसंजन्यमाचं चार्य कथयतिन सूक्ष्ममाण संधायतिसंधयाति) तिनसंधिति अवरंणाम जेमितं साम्प्रतीयं वृत्तम्-रत्नशिलापट्टासिंहासनं छत्रं चामरम् / अधवा अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टिदिव्यो ध्वनिश्चामरमामन च / भामण्डलं दुन्दुभिरातपत्रं, सत्यालिहायर्याणिजिनेश्वराणान दिया अनेन देवेन्द्रदुर्लभेनापि विभूतिकृतेन यत् पूर्व कृतं एतिचारित्वं तदन्योन्यव्याघातान्न सन्ति / / 2 / किञ्च: एशंतमेवं अनुवाविएण्टिंग यदिएकान्तचारित्वं शमिनमेतदेवात्यन्त कर्तव्यामभविष्यत् उतमन्यसे इदं महापरिवारकृत साधुलदिदमादावेवाचरणीयमासीत् लो किंवारस समधियाई वरिमाइं किलेसितो?तिद् यस्मादिदं साम्प्रतीयं वृत्तं पौराणम्चदो वि अण्णोणं णसमेंतिनतुल्ये भवत इत्यः , तस्मादमौ पूर्वापरल्याप्तवादीकारी च नाभिगमनीयम्तेगा एवं गोशालेनोक्तो भगवानाईका प्रत्येकबुद्धः तद्धाक्यमलायेव महम्येष आहच Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुबिंब पच्छाव अणगसंवाएासमवं पडिसंधयाति गाशा समेच लोग तमन्थावराण ,खोमंकरे समणे माहणे वा। आइक्वमाणी विसहस्समझेएम्तयंसारपती सहच्चे। शाम कधैलस्स उत्थि दोसो, खतस्सदंतस्स बितिदियस्सा भासाय दासे य विवज्रम, गुणे यमासाय जिसेवारस ाशा महब्बते पंच अणुब्बते च, लहव पंथासव संवरे य / विरतिंइहस्सामणियम्मिपण्णेलवावसक्कीमारणे तिबेमिाह Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी गौशालासहि मायाम् वर्द्धमानः पुब्बिंधा पच्छावा, पुब्बिं छामस्थकाले पच्छति णाणे समुप्पण्णे अणागतं आवजयाएर से णाणे समुपपणे प्रणामतं आवज्जीवाएतेसुतीसुवि कालेसु भगवान् एतमेव पहिसंधाबाय] तीति वक्तव्य मान्थान - लोन्यात मुखमुग्योच्चारणाद् वृत्तबन्धानुवृत्तेश्च पडि]संघयाति // 3 // स्यात् किमर्थ कथयहिएसोच्च जोगंगसम्या_सावेत्यर्थः, तसाणावराणं जीवाणं खेममयंकरति, अवधमित्यर्थ: अण्णे वि जीवे अण्णेसिं च जीया णं रखे कातुकामो कथति-समणे ति बा माहणे ति वा एरामट्ठास एवं आइक्खमाणो वि, अपि पदार्थादिषुमनसहमस्य जन -महानयोः अनसहसाणां वा मध्ये एकमावा एकत्वम् मोर्धातो: मारि इत्येवं कृते सृबात कश्चिदित्येवं विगृह्य साश्यतीति भवति एकत्वं गमयाताकथं नाम भव्या:एकत्वं भजेयुरी प्रवज्यामित्यर्थः, राग-द्वेषविप्रमुक्तत्वं हि एकत्स वत्थुणो,आत्मपनमाप च हसिमेव मारयतीति, राग-द्वेषपहीणत्वात् ,"अणमझे वि वसंतो" लयाञ्चोक्कम - मामलोघावनिर्मित्या स्यात् तदेतदेकचावस्थितस्य कृतार्थस्य च किं परोपदेशेन तदुच्यते-कर्मक्षया चन आह हि-यल लच्छुभं तीर्थकरत्वनाम ].तीर्थकरस्वाभाव्याच्येतिाउठं हि तदस्वामाव्यादेव त धच्चे लि अर्चानाम लेश्या,साय सुक्कलेस्मा चेय,नराग-दोमाभिभूत व संकिनिने Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिसाओ चारणामति अधवा अच्यत्ति सरीरं, सीहासणे आविट्ठोविधम्मकहेंतीण पुप्फ-वत्थ-गंधादीहिं अलंकारेहं तधा - -अर्च एव निर्मूप इत्यर्थःगाष्ठा निदोषत्वाच्च - ---धम्म कर्धेतम्सउणस्थि दोसौरक्षान्तिग्रहणं यतिविको विदूलियडबुद्धीचो दलिनवा कथ्यमानं परियच्छति तत्थविणरुस्सलिादतो चित्ति कसायदंलो मितिदिमी लिइदियदलो, पृथाच्यारणा इंदिय इंदियदसतिसेमो दरिमिलो ककमकग-णिदुर-सावजा यभामादोसा,हित-मित-देश-कालादि भामागुणा आहहि दिलु मितं असंदिवं." स्यादसौ भाषादोष-गुणासो भावान् किमारव्याप्तिी, उच्यते-- महत्वते पंच अगुब्बरते यणासाधणं महब्बतीसावगार्ण अणुब्बते महब्बतवितरीताएव प्राणवधादयः पञ्चानवा भवन्तिासंवर इति इंदियागी विमति ति महावृतवत हि इन्द्रियसंवृत्तस्य मतो वितिर्भवति, अधवा असेजमा विरलाइहे ति इह, प्रवचने लोके बाश्रमणभावःप्रामणीयम्। प्रज्ञानां घण्णे आध्यान्नपि इिति वास्योपालवं कर्म ततोऽयसकृति लवावमक्की,नवाधिकैन कर्मणा माणसैण वायुज्यत इत्यर्थः ममणो भगवा नेव एवं ब्रवीमि स्वयमपि भगवं पंचमहत्वलगुतो इंदियसंवुडो यि] विरतोय। "अण्णसिं पि समेव यिो, धम्म देसेति माहेति // पक्षा Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यस्मात्नवीपिवयमपि व्रतमन्तः इन्द्रियसंवृता विरताश्य, यदि चन्मन्यसेशीतोदकपायिल्वादबीयादिकन्दमोजनार -उद्दिभोजनात स्त्रीवितयोपसेवनाच्या किमस्मा कमसाधुत्वम् , स्नेदं कारणं शृणु-अस्माकमानीवकामामयंकृतान्त:,की इति चैद् उच्यते सीलोद सेवउ वीयकायं, आहायकम्मंसहइत्थियाती। एतिचारिस्मिह भम्ह धम्मे तवस्मिणो णभिसमेलिपा // सीतीदांवालधबीयकायं,आधिपय कामसह इस्थियाओ। एया जाणं पडि सेवमाणा, अगारिणी अस्समणा भवंति // 8 // सियाय वीओदगा इत्थियाओ,परिसवमाणासमणाभवति। "अगारिणो बीसमणा भवतु सेवेति विलहप्पगारंगा // जे यावि मीमोदगमेव भिक्खू, भिक्रब विहंजायतिजीवितवी। लेणालिमंजीगतविप्पहायाबायोगाकतकराभवंति णा सीतोदकं सेव कुनामीतं असत्यावहतं सीतमेव मलाबीजं जस्सकाए स भवति [वीकाए],सब्वोचव वणम्सती गहितो आत्म न्याधायकृतं आषाकर्म, इथियाओया अम्हे एलाइंपडिसैनामो लिलण असंनतेति तत्थ सुणुकारणातवघामपरिताविला 'सीतोदकण अप्पाइजामो,मन्दमूलादीणि आधाकम्मच शरीरमाधारणदुमेव पडिमेवामो, नचान्यकृतेन कर्मणाऽन्यो बध्यते, Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -प्राणानुमहाच्च आधाकर्मानुज्ञा,एवं कृतादीन्यपि,अस्माधाय कीतानि कल्पन्ते,इत्थियामी वि याऽऽसैविज्जति मनमोयत्समाधिमू-- त्पादयन्ति, सेव्यमानास्तुउच्चार-प्रश्नवणानिसर्गदृष्टान्तमामर्थ्यान्मनःसमाधिमुल्पादयन्ति, सतो ध्यानायशेषाः क्रियाविशेषाः स्व -स्थचित्तैः मुखमामेव्यन्ते, परानुसहाच्च सेव्याः आहहि-"सुखानि दत्वा लभते सुश्वानि." -जंपि य एतेहि सीतादमादीहिं इन्थीपज्जवमाणेहि काम उवचिजप्ति ति यदि मन्यसे तंपिएसचारीसु एगले उज्जाणादिसु चरति एतचा - इभई आजीवकधाम्मे जम्हा णं आतावण-मोणस्थाणा-ऽऽसण-अनसना-ऽम्मानकादीहि द्यौराणि एलहिंचव एगंतवादीहि -गुणैहि खविण्जति,जतियधयं मीलोदगादिदो मोवचित कम्मण सकेमी स्ववितुंसा भोगभिवमहम्मसमजित कम्मंकधं खवेस्मामोतेण अप्पेण बलमैसेज" ]सीलोदगादिसवा अणुस्मितातदेवमादिदोसैसुभदोष अदोषदर्शिवादेहि अपाच्छाणाएवं गोमालेमोक्ते आद्रक आह-सीतोदगंधात बीअगाइह मीलोदगं बीजकार्य अधष्कम्म उत्थियामो याऽऽसेवमाणा विद्ययं समणा हो मो' यदुत्वशा न समानवृत्तस्वाद अगारिणो समणाभवतित्वमतेन ते विहि सीतीदगादिजिसेवेने ति, तेम प्रकारेण सहा ते वितहप्पगारंवृत्तं कुर्वन्तीत्यन्यथां वाका प्रत्यासा? -अथ मन्यमै समान वृत्ते वयमेत श्रमणान गृहम्याः पश्चिमात्र न थोअयितव्या-जैयादि सीलोदगमेष भिक्मत का कोइणामत्याओपरिहरति Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लौकश्वमीतो बालोवृद्धोवामधर्मयोग्योवास्नीवनमपि सीदीदगमोजी नाम भिक्खू भिक्षाच इह सावके सिद्धान्ते जीवतावाननिमित जीविडता एवम्प्राकाराः / गालीण संजोगी प्रातिसंजोगी पूर्वापरसम्बन्धादि, अपि पदार्थादिषु, णालिसंजोगामिरमा तिटुप्पज्जहणि जामुमुक्षयोऽपि सत्तः कार्य सरीरं कायोपका एवं भवन्ति / अनन्तं कुर्वन्तीलि अनन्तकराः, कर्मणां संसारस्य भवस्य दुखा नावेत्यर्थःगानाएवमुक्तो आईकेन गोशालो आधे अण्णं उत्तरं म तरति दातुंलाधे अण्ण्ठथिए बितिज्जए गेहतिडक्यलो वा कडल्याडीए एकबुच्छादीएग एयं वाई तु तुमं पाटकव्वं, पावाइणो गरहसि सव्व एव / पानाइजीवि पुढो किड्ढयंता,मयं सयं विहिरदिट्ठिा करेंति पाउंगा। अण्णमणस्स तुगरहमाणा अक्रवतिउसमणा माहणारा / सतोय अस्थी अमतो य णत्थी, गरहामोदिढि ण गरहामी किंचि दिया ण किंचिस्वेणमभिधारयामो, सं दिदिमगंतुकरेमो पाउं। मागे इमे किहिले आरिएहि, अणुत्तरे सप्पुरिसैहि अंजाइश उड्डे अधय सिरियं दिसासु,लमा यथावर जय पाणा | भूयाहिसंकाये दुगुछमाणा, गौ गरहतीवुसिम किंचि लोएँ।१४ा Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं बाई ति] तुमंगएता एतत्प्रकाशं प्राडा प्रकाशने, प्रकाशं कुर्वन्तीत्यर्थापिं ? मणति-सीतोदकिं बीज] कार्य आधाकम्माई इस्थियाओय सेवमाणा असमणा भवंति कायोवगा,कायोवगत्वाच्च मान्तकरा भवन्ति तैन शक्या:सर्वे सीतोदकबीपकाय-आधाकम्भाई सेवंलि अममवि प्रेक्ष्य-गो-पायर्गाणाम ,साइशयास्तु प्राप्तानामुपभोगः' इनिषचनाम् / एवं पाच नादः कुर्वन् प्रवदनशीला पावादकाः लान गरहसि आत्मोत्सेकेनन चोल्सेकः शिवाया आईक आह-ननुपावादिनोऽपि पटो, ले विहि पानादिया पुढीति आलीयं पक्ष कीर्तयन्ती वर्णयन्तः स्वां स्वां दृष्टिं कुर्वन्ति करेंति प्रादः प्रकाशयन्ति ॥धाते अ . ण्णमण्णस्स तुगते इति पागुपविदिष्टाः नावादकाः, अन्यश्चान्यश्च अण्णामण्णं, अण्णमणस्म विविधं विशिष्ट वा गरहमाणा कुदृष्टिम् , आचरन्ति सस्याध्याहार, आश्वयमन्ति परझायदोघांश्च माविष्कुर्वते नमणाय ब्राह्मणाश्या किमाख्यान्तिीमती य अत्थी असती य,स्वामीयप्रवचनमिल्यर्थः, तस्माल स्वतःश्रेयोऽस्ति निर्वाणमित्यर्थः, परमात् परतः,अन्य समात प्रवचनादित्यर्यकनास्तीलि नास्ति निःमेयसं वा निर्वाणमित्यर्थः एवं ते सर्वे अहमिलि व्यवस्थिताः स्वपक्षसिद्धिमिच्छ -न्ति परपक्षस्य चासिद्धिनाउक्तं च-“अहि जस्सज ववसितं." -----]लियमपि स्वपक्ष मेवावलम्ब्यापरीशास्यां दृष्टिं गरहामागतानतु किंचि गरहामी यथा त्वं पापदृष्टिः मिथ्यावृष्टिमूढो मूर्ख अजानकी वैलि२॥---- Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [णिकिचि रूबेगा किञ्चिद् रूपैन रूपमिति, यथा लोको लोक कस्मिंश्चिदपराध आक्रोशाति-काण:कुम्मा कोठी वेति, जात्या ठोति-चाण्डाल कर्मकरी बैलि, मैवं किञ्चिद्रूपेण- छबि दण्टिक दुष्ट परिवाजक! इर्द से दुर्दृष्टं शासनम् तेन मूर्खझपिलेन किं दृष्टं येनाका क्षेत्रमा पटं चकरीमीत्यसंधि करोति कुम्भकारोऽ कुर्वन का कुम्भकारः, कुर्वन कुम्भकारो -भवलि,एन बूमी,वीतरागीपदेवाद येषामेघा दृष्टिः अकािमा निपश्य लेखां घटं साधियामीति मृत्पिण्ड-दण्डानुपादाम कि -यैवन युज्यते निलेपस्य च शौचक्रियया किं क्रियते, कपंचास्य केवलझानं नोत्पद्यते शुद्धस्यी,यतः शाक्या अपि नो स्वतः प्रत्यक्षमित्यर्थः, हेमपायकण्ठ ज्ञाझ्याक शाक्यपुत्रः कथमिदंले दृष्टं सुखमस्ति चेन्नच सुरवी लधा स्कन्धाः,मच किल मितांनी -किंचायते,येषामेषा दृष्टिम्मुखमस्ति चैन च मुखी,ल एव दोघा अभिमुखंधारयामः अभिधारयामःवाचं बेमीत्यर्थः,किन्तु स दिदि स्या दृष्टि कारेमोकुर्मः पादः प्रकावामित्यर्थततद्यथा-जीवं प्रति सङ्कलोऽन्यो मूर्तोऽस्त्यात्मेति,यस्य पुनर्वादिनःमास्त्यात्मा तस्य जालिमारणादीनिन विद्यन्तै,दान-दमा-ऽध्ययनक्रियाश्च म युक्तामातु चूमः-शाक्या अन्य वा माम्बिादिना है मूळः / यद्यात्मा नास्ति तेमाल शुद्धोदन पुत्रो वृद्धो नाम्सि, बकृ-वचन-वाच्या विशेषात फि कैन कम्मै वोपदिष्टम् 1 इति, ननु मतोन्मत्तलाप, चमन्यत्रापि प्रवादिच्वायोज्यम् इत्येव दृष्टिं गदहामी,मलुकिञ्चिद् वादिना मन्मुखं मोऽधिकम् - Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारतेमुखी कुदृष्टि मियादृष्टिलिाएवं स्वदृप्रो प्राङक्रियमाणायां लिणि लिसटाई दिदुिमताई पलविज्ांति,मिच्छतंति काउं तेसुदिट्ठीन कायवाास्यात्-किं तत् प्रादुरक्रियते?, मग इनै किट्टिते आरिएहि मायग्दर्शनादिमार्ग:कीर्तितः सारख्यातःणाणारियादीटिं "मग्रभ्योसरोऽन्यो गार्गो विद्यते / शोभानपुरुषसर्वतत्वात् लथाकारित्याच्या अंजू कडुल्नुओ,न पूर्वपरव्याहतः शाक्यम्येव,यथा लाममुत्पन्नम् आकंच राजपुत्रं मृतं म ज्ञात्यान शास्यादेकं किं मिष्ठरं स्पष्ट माभिधीयते- त्वमूठो वा कुदृष्टि 'इति,तच्यते-माभूित लस्यमान दुःश्वस्थात् किंवा निष्ठुरमुच्यमानस्य मनोदुःरधाच्छारीरमिमपि स्याद् हृदयरोगादिलेण उड्डूं अधैर्यतापण्णवादिमाओ गहिताओजे यावरा समापाणा भूताभिसंकाये,संकाभये अण्णाणे चाहतुभये। बुसिमं बुसियनुत्तो, ण किंचि गरहति जिन्दति वा सलीए नि लोक्ये पासंडलो के वाराएवं निलठित वादे आजीविकगुरुराहयद्यमावेवं गुमवीतरागी ऽनुलरमापिदेशकः, अनुत्तरमार्मोपदेशकत्वात्मत्पुरुषः सर्वतश्च अन्च किं यथा वयं आगलादिसुण वसलि ससूजणे आगसारे आरामणारे,समणे उभीते ण उवेति वासी दक्खा हुसंती बहवे मणूसा, ऊणातिरित्ताय लवानवा याशा--------- मेधाविणो सिक्खियबद्धमतासूत्तेहि अत्येहि विणिच्छयण्णू। पुच्छिसुमागे अणगार एगे, इलि संकमाणो ण उवेति तत्थ गधा Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णाकामकिच्चा णय बालकिच्चा, रायाभियोयेणकुओभएणी - घियागरेली प्रसिणं नचाधि, सकामकिच्चेणिहारियाण दशा गंला व लस्था अटुवा आला, विशागरेज्जा समिया सुपण्णे। अणारिया दसणलो परित्ता, इलि संकमाणोण उवैति तत्था // 18 // आगंतारे आरामागारेगआगत्य आगल्य यस्मिन् मरास्तिष्ठन्ति तदिदं समाप्रपेत्यादि, आरामै अगार - आरामागारमा सानो सो च्वेव जी भलिथगरी भीती उवेति वास / कस्य भीतः , उच्यते-दवा हदम्या माम अनेकशामवि शारदाः साहव्यादयः किञ्चिदणाणेण बेचिदतिरिका वा अस्थि समाधिअस्थिमा, पनपव्यकायावाचि"लपाळप इति वीप्सा,भृशं लपालवानिया,अधा दवट्याहि तुरिसतुरित वागच्छ गच्छ वााऊ हि- देवदेवम्स" TTआधिप्नपिय एवं वडवाहिकरहि किसेवं लवलवेसितएव दक्षाः पुनरुच्यते-- मेधाविणो ना मेधाविना महणधारणासमः शिक्षिताः अणेगाणि व्याकरण माइक्या-विशेषिक-बौद्धान्जीवक-न्यायाहीनि शास्त्राणि बुद्धि उत्पत्तिकाद्यानसत्रविनिश्चयज्ञाःति निरवधानि सूत्राणि जानते पठन्तिच गाद्यन्यूनकानि सानि स्वपरोपेतानि, अर्थशानेकप्तमारं आनत भाषन्ते च विशारदाः जानकाएकाले बैवं जानका बहुजनसन्निपातेषु समादिषुवमन्तं पुच्छिंसु मा णे अणारा यो] शाक्या-डऽनीषकाद्याः पृष्टवन्त:,पुच्छिंस Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -त्तिणूण कत्थइ सी बहुजण समागम समादिमावासे आवासिलोसंती तेहिं पुच्छितलो अनिर्वहन्ती तङ्गयामामं पुच्छिस्संतिम -निव्वहंतीय महामणमझे लज्जाविली होसुं, परिभूतो अअजाणी त्तिइति एवं संकमाणे पीहेमाणे इत्याःण उवैति तत्थ मुण्णघर-जिष्णुज्जाल-मिहेसु पंडितरण सुरभिगंधेसु आवासैति। आह च -“पाएण रवीणदव्वार"[ ] इत्यादि। समयत्वात्न वीतरागी न च सर्वल इसिधा किच्चान्यत्- कस्थति दूरं पिगंतुकथयति,काणि य गाम-गराणि चेव ग च्छति, कागि यो लेउं पि कधैलि, नक्ष वीतरागस्य वैधन्यं युज्यले,सहि पर्जन्य इव सर्वत्र समकारी, आहच-“विद्या-विनयस -म्पन्न बाहाणी" उच्यते- - णाकामकिच्चान"कमुच्छायाम करणीयंकृत्य अकामकृत्ये करोति अकामाकिच्चलन लावदकार कथयतिशबानघत्मन्यमानी नापि परानुरोधात् न गौरवादवा, म च बाल किच्चं तिन वलात्कारात् स्व-दीर्घले विबन्धानु लीन्यात, बलकिच्चलि वक्तव्ये बकारस्य दीर्घत्वे कृते बालकिच्चा भवति।जधाबनंगाणा विराथाभियोयेण कुतस्ताददं भयं जिलमयस्य स्यात् / कथं व्याकरोति, तदुच्यते-एभिरकामकृत्यादिभिर्विप्रमुक्त विविध विशिष्टमन्येभ्यो बालादिभ्यो वा करेलिवियाकरतिापुच्छति तामितिमापुट्ठोमपुट्ठीवा,प्रेण अपुट्टो करणाईपि अस्थि, अधाचिरसंसिट्टी सि मे गोतमा आ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यालिठाणाणि या अथवीषि किं वीतरागरम धम्मदेसणाए? कधं वागंतुकलिी, तत्थ विझणियामी,कत्ययि गंतुकति-मझिम गंतुलप्पढमलाए गणधरासंबोधिता, तत्यांतु कधैति,तं बंदणवत्तियादीहिं आगताणं देवाणं पाएणं लिचेवतेनोच्यते ------- गंता व तत्थागपसिणं प्रश्नाप्रज्ञावान पण्णे जत्थ आणति धुर्ष पडिवज्जिासंतित गंतुं कलि,जे -वि सोळं एंति सैसिंपिठाणहितौ चेव कधयति, ण जाणतिजजुत्तं जत्थण कोइ पडिवज्जतितत्य णवच्चति अमूढलक्षत्वात -ठाणत्यो विण कति जत्थाणकोपडिवज्जति भिणसिरजतिसो एवं वीतरागी सव्वाणू कधो यतीकीस अणारिए देसे धयति तत उच्यते-अणारियादेसासग-जवणादी,दृष्टिदर्शनम्, परिता इति परित्तदर्शना दीर्धदर्शनानदीर्घसंसार दिदिनिस्तदपायदर्शिनी वा, इहलोकमेवैकं पश्यन्ति,कोणतिपरजोगी शिमोदरपरायणान एते धर्म पति पश्यन्ति इति शङ्खमान -इत्यर्थगवड्गशब्दो मानार्थ एव तदुभयै मन्तब्याआहि "शड्डे सहर्षमतुलं" [ जेवियभारियदेशेषु मणारियदेसेण अपरिता गामा गश यतस्थ विण बच्चण वा सिंकधयति तदेवं भगवं न देसेलारिसए वि अणारियतुल्ले 'ण इत्थं धर्म कोइ पडिबज्जबू'ति,नतुभयात् भगवतां सदेवा-सुशए परिसाए वादे अपराधिताणं लिणि वादिसिंचेव हसिंचेव भवविधाः परत्तासंइतित्यारापिस बलवन्त्युत्तरं दातुमाकं सहि लच्छिध्या अनल्धात्मनिष्ठाः प्रसममिद्धाः Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिप्ठन्तुलाव एटा एवातुक्त आकण गोशालः पुनराह-अस्तुलाव जत्थ जल्य पाडवज्जति धम्म तत्थतत्थगमर्णकधणंच, -वाणयतुल्ली सी णासी पण्ण पहा वणिए उद्दयट्ठा आयस्स हेतुं पगरेलि संगी ततीवमे सनणणायपुत्त उच्चैव महीतिमती वियका // 19 // एवंण कुज्जा विपुणे पुराणंचेच्चाऽमति तातियमाऽऽहएवी एलावला बंभचैरं ति बुत्ते तस्सोदयट्ठी समणसि बीमिरा समारभवणिया भूतगारंपरिगहं चैव मनायमीणा ते णाति संजीगमभिगहाया मातम्स हेतुं पगति संग रह वित मिणो मेहुणसंपगादा, भोयण्टा वणियावयति। वयं तुकामेनु कमज्योववण्णा, अणारिया पेमरसेसुगिद्धा वारसा आरंभतं चैव परिगहंच,अवियोसिया णिस्सिय भातदंडा। लेसिचसे उदए जं क्यासी,चठरतणंताय दुहाय हारा जगंलणालिय ओदए से वयंति से दो वि अणी दयामि। से उदये सातिमणंतपत्ते,तमुदयं साहति णालितातीरहण Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसकं सलमत्ताणुकंपीयामे ठित कामविमोक्रवणला। समायदं डेहिं समायर्रताअबोहीएते पतिरूवमयं // 25 // पाणं अधान पण ति समिति प गणिम-धरिमादाउद्दी लामी, उद्यास्स अट्टाए / आयरस हेतु एतीत्यायोलाभ इत्यर्थः।"पशंस"पज्ज सक्तिर्वासहा अत्यलोमझो तस्य वणियामधेतूण वच्चंति एवंणाम तुम्भ वितित्थगरी सत्य लाभो तस्य वच्चति कति धा, प्रत्यतीब्रवीमि ततीवमे,इसि एवं इच्चेवमै होतिमतीसक्कामली मीमांसावाशा -दृत्युको गोदानेन राजसूनुराह- अक्सीयं एगदेसीपमा-जधानाभाधीवभिभी बवहरति एवं भगवलमट्टी बंच सनम -चकरैज्ञातस्म के गुणा भवति तदुच्यते वंण कुज्जाजतोताव कम्मरव वजडा उद्वितस्स गण वज्झति लेण संगम सिरेलि,प्रेण विधुज्जइ पुराणपावं तेण तवं करेबाचेच्चा छज्जेतुं असोमणमति अमति,अण्णहेतुं वा पूजा-परियारहेतुंबाण कलिगतीवि परान बायतीति बातीस्याद्-धर्मकथायां का प्रस्तावासंमतस्य तपसोवायद बाबीपि णवंज कुज्जा विधुणे पुराणप.तदुच्यते _ण मिक्खति गाणं गुणेलिगामेल कुणलि किच्चाई] णाणी गण वेधति गिाणविणीभी हवति लम्ह] / दिशानिगा 318 पृ-किंच-सोय खलुणाण परिणतो,तेण संवृती,संवर एव संवरस्तथावि अन्भतरोधम्मक--- Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- -- - धावसाणो पंचविधी राज्झायौ,इच्चै धम्माकधाए विसंवातवाणं उतारोऽस्ति तैनीच्यते-णणकुज्जा विधुए एतावलाखभचेर एतदेव लद्ब्रह्मणः पदं ब्रह्मपदं वा ब्रह्मततं था, किम? इति चेत् नोति चारित दुविधं लवचरणं,संप्रमोशी तो चेव, उद्दइओलाभभी संगमम्स तवस वा ।उक्त हि-उद्दशा परवेवं उद्दएण वा जम्स अट्टी सभवति ममणो भावानेव, एवं ब्रवीमि उदाहरणेकदेश ब्रवीमि, नतु सर्वसाधर्म्यमस्ति भगवतो वणिज्जेहि रुगाकपी समानमतेहि वणियासमारभति कृय-विक्रय-भउ-सह वाहण-पयण-पयावादीहि आरंभता समारभति छक्कायभूलगामम् (पशिगहो टुपद-चतुष्पद-धण-धण्ण-हिर-सुरगणादि, एवं ममायमीणा रक्वेता -विणढेच सोअंता उवणिज्जताय सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसंतुएसंवृत्ताःास एवंकामसमाचागे यालिसेंजोगी, सं अभिागहाय हैसि अप्पणी य अट्ठाए,आयहेतुं ति आतलमिझो लाभट्टाए एलेणा इमंजोगाऽऽत्स्सऽद्वार लिवुल होति ।भव कति प्रकति सहि मग 21 // किञ्यान्यत् लैहि वणिजा ----- वितरिणोगवित हिर-सुबणवित्तं तं एसति [वित्तेसियो] मिथुनमावी मैथुनमा सेपमादा समस्तं गावाः सम्प्रगाढासमुज्यत इति भोजनं अदानादिनजन्ति झिा संक्षेपार्था ते वणियाविलं किमर्थ मे माणा दिशो ब्रजन्तिा, उच्यते -मैथुनार्थ भोजनार्थ वेति / माह हि-“शिमोदरकृत पार्थ !"... Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ माविरताः स्त्रीकामेभ्यो जिनजिवन्द्रियाश्याबयंतुनुर्विशेषणे,विरक्ताः अन्यतीर्थेभ्यः किं पुनगृहिन्यारी - त एवं स्थिकामे सुवित्तादि भौयणे रसेसुम अज्झौबवण्णावणिया। अधारसेसु तथा सेसेसुविविसएसुमहातिसुअिधवा रस इति सुश्वस्य आरव्या, आहहि आस्वादेशीष्ट्राभावे च'[ ] तथा चाह विषया विनिवर्तन्ते, निराहारस्य देहिनः।" [- ]परसवर्ण, रसेसु गृद्धति सुखेसु गिद्धा इत्यर्थः 22 / / इतश्च सामान्यवृत्त भवलां वणिजा,कथम् ? आरंभतं चैवपरित आरंभोकश-सकरभरादीनां पचन-पाचन-च्छेदनादीनां च हिमाद्वाराणा परिग्गही ममीकार धनाधान्यदिसंरक्षणच | परिग्रहार्थमेव चारम्भः क्रियते,लमा गम्भ परिग्नहं च अवियोसियाणाम अले सिरिणिस्मित तम्मि आरंभे पशिगहेना, पूवापरसंबंधे वजिस्सिता,आत्मन इति जीवान दण्डयलि बंधवध-परिलावणोडवणा दीहि बहावोत्पादनासा आत्मानं दण्डथति संसार / किवायत्-तैसिंच से उदए तेसी (मि) वणियाण सो उदइभो तिमो लामो चरितमणत संसाराय भवहिणतु इह धम्मकधार लामो पुण चउरल संसारविप्पमोक्वायरशा किश्यान्यत् जेल चलियन स तैसि वणियाण उद्दभीण एरोलिओ होइ कथा छैट्झो होति कदाबू लाभो। अतिविला भिमोती विगि-चोरादिसामण्णतणेण य अंबज्जइदिज्जइतेण य अणच्चंतियं वदति त्तिानुजइएते दोवि पमारा Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अोलिए। अधिवा विपदाचार्याादी वि पगारा अणुद्दएचैव,नलाम इत्यर्थगतविपरीतस्तु णिजउदयी,यतउच्यते से उद्दए सेणिज्जरा -उदयो, यत उच्यते से उसए से णिज्मनोलमिःमोक्षगमस्थ सादि अणंतत्वं अणेसप्ताप्ते अणेलपत्ते तं उद्दयं, लाभकइत्यर्थः,साहति आ-- ख्याति सिलाहति वा प्रसंसतीत्यर्थः / णातीति ज्ञातिकुलीयात्रायतीतिवालासचैकः एकान्तिकल्लादात्यन्तिकत्वाच्च परमला भक इति गारणातदेवं वजिया भावन्तं सुमहजितिशोधैर्विशिष्ट सन्तं यत् तैः समानीकरोषि ते पुनरयुक्तम्।कतरै विशोषयन्ति? णाणुजे सभासम्भादिभिः पञ्चभिर्विदोघे शरव्याताः। इन्ने चान्ये विशेषाः। तद्यथा "अहिंसक०। अहिंसको भगवान् ते हिंसकाःाम-- बसत्ताणुकंपी च भगवे ते णिरणुकंपाट्सविध धम्म द्विती भगवंते तु बाणिन्ना किमत्यं धम्मे स्थितः 9 इलिचेल कामविमोक्ख ण्डा ने पुनः कर्मविमोक्षार्थ अभ्युस्थिताना तूत्थिता गलदेवं अणेगगुणसह-झोपेतं आतडेहि ति आत्मानं दण्उयन्ति जीवोवपाति. वातासाचतेतिस आचरतासमं चरता,तुल्यं कुर्वन्ता इत्यर्थः,समानयंतो वा समानं कुर्वन्ता इत्यर्थः एतद्धि तव अधोर-- तानं चेतिसरातमेवं प्ततिहत्य निर्वचनीकृत्वाचाऽऽजीवक गुरूं गोशालं भगवन्तमेव प्रति ययौ तिथाईकेन गोशालमवधी - रितं मत्वा द्वाभ्यां कारणाभ्यां तुष्टाः शाक्यपुत्रीया भिक्षवाकथम् / इतिचेत्यदेव अस्मार्क प्रत्यक्षतोऽनेन निगृहीतः, यच्चा-- 'स्माकमिदानी लाध्यकहपरिवारो राजपुत्रोऽङ्कमायास्यतीति अतः गुणशिलमुद्यानं भगवत्समीपं प्रयातस्य संबहुला Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -मूत्वा वुद्धसिद्धान्तं नाहयिध्यानलि पुरस्तात् स्थित्वाऽऽहन्भोभो भव्यमहासस्य मादकराजपुत्रााम्बागतं ते कुतः आगम्यसै? -वघयासिर' इति सः भगवत्समीपं यामि' इत्युक्ते भिक्षुकास्ते तमूच-इदमपि तावदस्मसिद्धान्तं श्रुणु,नुवाच सम्प्रति पद्यस्व, पाण्डवेदनीयो यस्मसिद्धान्ता सूक्ष्मश्च चित्तमूलत्या धर्तस्य तदेवच नियन्तव्यम् किं कायेन काष्ठभूतन वृथा तापि तेनर, आह हि-मनपूवंगमागालथायोक्तम्-"चिले तायितव्ये." लियातीता-- चिततायित" इत्येवं चित्तमलो धर्मः। अधर्मोऽपिचित्तमल एव स्यात् कथमधर्मश्चित्तमूनार, उच्यते पिण्णागपिंडीमवि विडुसले, केई पयेजा पुरिसे इमे तिा अलाउये वावि कुमारए त्ति, सलिपाती पाणिवहेण अह रहा अहवावि वेण मिलकरब सूने, पिण्णबुद्धीए णरं पयेज्जा कुमारगंवा विमलावूयं ति, लिप्पति पाणवधैण अम्हं गारशा परिसं व वेष्ण कुमारकं वा सूलम्मि केई पए जालतेये। पिण्णायपिंडं सलिमारुहेत्ता बुदाण तं कप्पलि पारणाए।।रा पिण्णागपिंडीगन्नति कीति आसन्नवेरो वेरिमोजो बानस्वाईण मुयसि,सोले वेरिए मारतुं चेडरूबाइपि मारेमि -ति ववसितो,मुवति यके वैरिया जे गली विविर्गितंति महिनियाणं, मा एते बदमाणामतुणो हीहितितत्व समावतीए Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खलपिंडी पलं कए पोलेण ओहाडिता मन्दप्रकाही गृहक देशे वासी लेण तित्ववैराभिभूतेण'एस दारओ'त्ति काऊण सूतिकतो वा -ससी वा तिसून वा एवं विद्धं चिंतेति-कदायिएस अमनमविद्धो जीवैज्ज तथैव सूलपोत अगिम्मि पयति; एवमेव अलाउमंअदीर्घ अपाओगंवा पल्लंकए वाभूमीए पा पाऔग वा मन्द प्रकाशे एस सैसिं वैरियाणं कुमारी ति बालओ ति एवं अलाउअ वा विकुमारी तिपयत्ति सूले वेढुं अवेर्बु वा; म प्रदुष्टचितत्वाद लिप्यति पाणिवघेण अहणं तो विसतं अम्हं ति अहं सिद्धले 26 // एवं तावदकुशान चित्त प्रामाण्यादकुर्वपि प्लाणातिपाठ प्लाणायातमनेन संयुज्यते, अयमन्य कुशाल चित्त प्रामाण्यात कुर्वनापि ताणातिपात तत्फलं मसंयुज्यते, यत्राय पाठ:-- अधवाविवेण मिलक्रव सूलेगमथ इति आनन्तर्ये,ता निभाधादिषु / मित्नक्रति अणारिया,अधवा आरिए विजे मिलक्मयुक म्माणि करतिसएवं मेच्छे पिभूत्वा क्षुधातः पिण्णागपिंडीयमिति कृत्वा पुरुषमपि बालेन वैछु अगाणिकम्ये पयेज्ज साइत कामी, सुमागां वा वि अनाअबुद्धीए पउलेतुं रखाइम्सामि ति पयेज्जा ,ण लिपाति पाणवघेण अम्ह 27 ॥एवं तावदस्माके अपचेसनकृत -प्राणातिपाते नास्ति, यद्यपि च भवानन्यो वा कश्चिमन्यते अनपाये ऽ पायदशी-यथा भवन्ती मामा शिशन इति तत्रापि अनभि सन्धित्वादेवारमार्क त्रिकरणशुद्धं मांस भक्षयता मास्ति दोषः, कथम्?, इह हि ---- पुरिस व वेडणकाज को अजाणतो परिसं. Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिद्ध कुंतेण वासुंबेण वा उपप्रकाशावस्थितं कुमारकं वा बालमित्युक्तम्। एक गिलाणसिक्वु रस छिन्नमत्तम्स दुल्भिदरवादिम जाततेये - पतु पिंडी यमिति पलितं सुगंधं सुर्ह श्वाइस्सं ति सती बुद्धी तस्यां कल्पति बुद्धार्ण ति मित्यात्मनि गुरुषु च बहुवचनमबुद्ध स्स वि लाव कपाति किमु ये तच्छिस्या 9 / अथ बुद्धस्या पत्यानि औधवानि तेसि णं कति पारणाए भोजनाये त्युक्तं भवलि (स विस्थासु अचित्त कर्मचर्य नगच्छति, अविज्ञानी पचित ईर्यापथिक स्वास्तिक चेत्यम्माकं कर्म चयं न गच्छति२८॥एवं तावच्छीलमूली धर्म क्तः। अथैदानी दानमूलः "सिणाला तुदुवे सहस्से,जे भोयए णियए भिक्रयुगाणं। - - -- लण्णखधं सम हाजिलिसा,भवंति आरोप महंत सत्ता // 29 // अजोजसवं वह संजयाणं, पावं तु पाणाण पसज्झ काउं। अबौहिए दोन्ह वितं असाधु वयति जे यावि पश्सुिणं ति // 30 // - "उडमधे य अंतिरियं दिमासु , विषणाय लिग तस-थावरसु। .. भूताभिसंकाए दाछमाणे वदे करेज्जा व कुतो विहऽत्थी 11 // 31 // पुरिसे त्ति विष्णु ति ण एवमत्थि, अणारिए से पुरिसे यहाहु। को संभवो पिण्णगडताए?वाया बि एसा बुश्या असत्या // 32 // Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायामियोगेण जयावहेजा, णो तारिसं वायमुदाहरेना अढाणमेतं वयणं गुणाणं से दिविश्वए बूयमुरालमेतं // 33 // लवे लघढे उरहो! एव तुझे जीवाणुभागे सुविचिंलिए व। पुवं समुदं अवरं च पुढेओलोइए पाणितले ठिते वा॥३४॥ जीवाणुभाग अणुचिंतयता अधारिया अण्ण विधी एसोधी। ण वियागरे उपदोपजीबी एसोऽणुधुम्मो वह संजताणं // 3 // मिणातगाणं तुबेसहस्से , जे भौयए णितिए भिक्खयाणं / ---- "असंभए लोहितपाणि से ऊ,णियच्छति गरिहमिहेव लोए॥३क्षा सिगालगाणं तुणस्नातासुतदवासु पल गुणेसुयुक्ता एतसिं एवं गुण जायियाण अभिगततया घातस्य दोणि सहस्से भिक्खु-- याणं भोजावेति समांस-गुउदाडिमेनटेन मनाते पुण्णखंध, संस्कारो माम पञ्च स्कन्धाः सत्रिविधः-पुण्याभपुण्या सविना इति / ते से आरोय॑ ते हि प्रक्षी कल्माया चतुःप्रकाराः आरोप्या देवाःले भवन्ति-आमाशोपका : विज्ञानोपका अकिञ्यणिका: जोसणिणी णो असणिणो दाताः सर्वोत्तमा देवगतिं गच्छन्तीत्यर्थः। महंत इति प्राधान्ये महादा, अथवाऽऽकस्या मात्रणं क्रियते, हे महासत्व! इत्यर्थः शशा तदेवमिहन भागवता बुद्धेन दानमूलो शीलभूनच धर्मः प्रणीतः तदेहि समच्छ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौद्धसिद्धान्तं प्रतिपयस्वेलिाएवं बौद्ध भिक्षुकैम्त भाद्रकोऽनादरयाऽव्याकुलया दृष्ट्या सान_दृष्टयोक्तवान् भी शक्य!यवृत -जी पिण्णागं पुरिमबुद्धीए सूले विधति, पचलिया जाललेये, अलाउभं बा कुमार बुद्धीए किर लिप्पति पाणवणसिकशालचितो अ कुशलचितो, अण्णी पुण पाणवध पि करेंतो पर्यतो पाणे कुशलेर चित्तेन मुच्चति पागातिवाती तो ,स्त्र बम:- - अजोगाइहनयोग्यमयोग्यम् / रूपमिति स्वभावत्युच्यते।यथा कश्चित् केनच्चिद् शेधितः प्रत्यु पकारचिकीर्षुग्न्यात भावमाविकुर्वन भूकटिं करोति रूक्षा रदशं वा दृष्टिं निपातयति। हि-झडम्स खरा दिट्ठी गाऱ्या एवं स्वभावे रूपशब्दं निवेश्य उच्यते अयोग्यम्पं कूरस्वभावमित्यर्थी:, शिरम्सुण्डमुण्डनं कृत्वा प्रजजिसीऽ हमिति निझामुरुपां चेष्टां युज्यतामाह हि वयं सकर्मणोऽर्धस्य"[---- सैनोच्यते - अयोग्यमेतत् प्रतिरूपस्य अहिंसार्थमुस्थि तस्य इह इति इहास्माकं प्रवचने अहिंसार्थक हस्तादि संयताना पावंतुसुर्विज्ञोषणे,हिंसैव सर्वपापेभ्यः पापीयमीT HION: पृथिव्यादयः प्रमट्टोति कौर्याद बलादाकस्यातुम्भे वि य प्रवृमिलाः द्विारम्सुण्डमुण्डनं कृत्वा कवायवासम: सीवेधधारिणः संयवा वयमिति सम्पतिपन्नाः, तेण तुम्भ वि अयोग्यसपंपापं हिमादिवला: लुम्मे मंपडिवन्नहामणुमादि प्रमय असमीक्ष्य कथं वयं प्रालिनो मारयामः मारापयामो वा तदुच्यते- सा मसाव अकुशालेण चित्तेण पिण्णागपिंडी योडीमा पुरिसोत्ति माउं अलाउयं अण्णंवा तो सालिक Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलं कुमारझोऽ यमिलि प्राणालिपातेनासान दोषान्न युज्यते इति बमः, यत्तु पिण्णागबुद्धीए पुरिसं पिविद्धमाणो मारेमाणो वा कुमार गं वा अलाउअबद्धीए ण लिपति पाणवण अहं सिद्धान्त इति वाक्यहोम / अबोधिए दोम वि,अबोधिः अलान लेम यदि अज्ञानाम च्यते पाणवधात् ते नाज्ञानं श्रेयमिति कृत्वा, किं पुनरुच्यते-अविद्याप्नत्यया: संस्कारा:९, मर्वसम्यादृष्टि प्रसङ्गश्चैव प्रसज्यते, विरता - विरतिविदोषणश्येवं सति, अन्यथा वा का प्रत्याशा?, निर्दयता वा विकृता कध, इधरहा वि ताव लोगो टुक्रवेणअहिंसत्वं कार्यत, . तुमे यभधमारेन्सी कुदालचितेन अहिंसओ भवति,सदेव प्रकारं वो वचः असाधु अशोभनम् दोण्ह वित्ति तुझे यजे य पडिसुणति असावं ग य हतुं पि अणुलप्पति ते परिचत्ता, हं वीसत्था होहंलि / आह च-कैचित् शून्य नष्टा साथदिच अज्ञानमदोषाय - तिन वैदिकानामपि परमात्मा के श्रेयबुद्ध्या छक्काएघातयता नदोषोऽस्ति,संसारमोचमानांच कीडं घातयामीलि किंभणधर, लुमंपिएवं शेचतिमधा असंचिंतेतो कम्मबंधी गस्थिर, इत्या मः-- ------- उमा यति / चत्तारि ति दिसाो गहिताओ पण्णवां पडच्या विविध बिशिष्टं वा ज्ञात्वा विज्ञायालीनमर्थ मयतीति लिङ्गम् (मत्तीतित्रामास्वमाः), लिप्ठन्तीति स्थाबालेसु सस-शावरेसुा किञ्च लिङ्गमेशाम 1 उच्यते-उवयोगो लिंग लक्षणनित्यः ,आह हि-निमित्तं हेतुरपदेश ------------] यथा अग्लाचौरायं सांसिद्धि 'कलिकुम एवमानना नसान स्याषराणां च सांसिद्धिकजिझं येन ज्ञायते आत्मनाऽऽत्मेति, स चोपयोगः, स्पर्शादिस्तिन्द्रियेषु सुख-दुः Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्योपलब्धिरित्या; तच्च सर्वप्राणभृतां समानं लिङ्काम-सुखं प्रियमप्रियं दुःखम् / तदेवं अत्ताणुमाणेण भूतामिसंकाए दुर्गछमाणे, कती भूलाई संकलि तस-थावराई ? दुक्रवातो, तेच दुक्रवं सत्यो दुगंछति, तस्मादुविजन इत्यर्थाः। एवं आणमाणे वदेज्ज मारतो मुच्चति दोसो णस्थि, करेज वा णिम्सको प्रमादम् अण्णाणेण दोसो गस्थि; कुल एतद् वयं च कुञ्चकुम्चा वाइह प्रवचनेऽस्ति९ 31 // किञ्च पुरिसे ति विष्णु ति जं वा भणसि पुरिसोऽयमितिकृत्वा पिण्णागपिंडी अलाउअं वाकुमारगं लि काउं अकुशलचित्तो विधमाणो अदोसो। विज्ञान विष्णु ति, एतं प्रधा हिंसक त्वे चितिज्जमाणं युज्नति, अणारिओ वा सो पुरिसो भण्णाति, अला उभं पाकु मारबुद्धीए विपिणतु अज्ञानेन मस्य द्रोहः सम्प्रडासे, एवमलामेन चैव पुरिस Hिomपिंड शुद्धीए कुमार्ग वा अलाउअबुद्धीए विवाते न्ती किंवण बहिस्सातिर / किंच-को संभवो पिण्यागताए,संभवणं संभूतं वा संभवः कः पुरुषे सधेसने पिण्णागवद्धिमुत्पादयि यति निकृष्टसुतस्य च नोहर्तन-परिवर्तनाद्याः क्रिया भवन्ति तैन सम्भवोऽस्ति पिपिण्ड पुरुषस्य तत उच्यते,मैल्देवम् सतएवं गि णामपिण्डे पुरुषस्य काष्ठे वा वरमाच्छादिते उपपत्तिरस्ति अत एव किप्तसावेवमेतद्भयं जानमानो मिस्सकं करोति-किमयं पुरुतःस्यात् पिण्णारापिण्डी काष्ठ वेति स्यादिति , अथ सम्भवे विद्यमाने नि-सा पहारी पठयते निर्मीमांस इत्यर्थः; एवमेव योऽप्यमो कुशालचितेन पुरुषं पिण्णागपिण्डी क्रुझ्या द्यालयसि लस्याप्युभयसन्माद युक्तो विमा:- किमयं पुरुषःस्यात् उस पिण्णागपिंडी,एवं कुमारेऽपि Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आलाधुर्कस्यात् कुमारः स्यात् ?इति; जम्हा य एवं संभयो दिवो लम्हा एतप्पगारा णस्थि कुमारेतरस दोसोत्ति खाया वि'वुइति ति-- बुत्ता असत्या अभिना, अधवा सत्य इति संयमः असत्य इति संयमवादीत्यर्थः,निश्चय स्य निरनुकम्पा सदोहेत्यादि,किं मम पूण कम्मुणा शाकिञ्चान्यत वायाभियोगेणगउच्यते इलि घाचा, वाया एव अभियोगी अभिमुरयो योगः अभियोगः,अभिवाश्योग; एवमुक्तं भवति / हवेज्जति हवसि संयम इति वाक्यशेषकः पिण्डार्थः / सवर्णा यदा वाचाभियोगेण यदाहवति संयम,जधा भणध मारेली अदोसो ति, ण तारिसं वायमुदा हरेज्जा सहीहमित्यर्थः अडाणीत कुशाला वदंति यथा कण्टकाम स्थलं वा सलिल स्थास्थानं एवं तुभ पि इमंवयणं अज्ञान दोषोऽस्तीति, अहिंसकादीनां गुणानामस्थानं अनवकाशि] भाजनमिति / म वित्थरेण दिक्विलो मोक्रवत्थं गृद्धि निमृत्य शिरस्तुण्डमुण्उने कृत्वा खूयाल उरालमिति औराले एसन म्यून हिंसकत्वात् अदिविस्वतस्स वि, किं पुण विविवलम्स 1; एवं असञ्चिन्तितकर्म बन्धी न भवतीति अलाने श्रेयसं सर्वसम्यग्दृष्टि प्रसह वेति, वैदिकाः संसारमोच का व निर्दोषा:एवं भवन्मतेन 33 // शाक्यं हनयित्वाऽऽ द्रको निर्मुरवीभूत्वा प्रपञ्चमाह-- लद्दे सधऽ अहो एव तुझेालब्धः प्राप्तौ यद्यलान यस्ततः किं ज्ञानाधिामः क्रियते?,कुली एस सुकहिं अखोल अटो नद्धो मेण अजाणता मब्वतो मुच्छति बालमत्तोमल - ममत्तादयः / अट्टो दैन्य-विस्मयादिषुादैन्ये सावत्-जध Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | कोयिकंचि दिसामूढेठपाहेण अर्डसं दृढ भणनि-अही इम वराओ किलिलो किलिरसति,एवं तुज्झे उम्मपगपडिपण्णा मोहं किलिस्मधु, सासूयेलि / विस्मये-अयं शोभनो अहो / सिद्धान्तो यत्राचिन्तितं कर्मचयं न गच्छति कार्याकारी समला एव अहो ! अयं जीवाणुभागो सुविचिलिओ, कश्चैहां अनुभाग: तनुमुवप्नियाता दुःखो देगिलाच (किमुहं भवति ९,एवं जीवाणुभागो सुचिन्तिी भवति- गुटुल सर्षसत्वानामात्मोपमानेन किंचि दुक्रव मुप्पादेति,अहो भक्तो ज्ञानं गुरोश्च भवतां चन्द्र गुप्तिकेव श्रीः एवं समुई [अवरं च] पुडा ,विसाला इत्यर्थः / अहो झाब्दः सर्ववानुवर्तते, अहो / वचस्सेन गुरुणा करतल वामन के सर्वलोकोऽवलोकितः ज्ञात इत्यर्थः 34 // [...... | -... जीवाणुभागं अणुचित यसो०।...] किमुक्तमुच्यते इतिचेत् येनातानं श्रेयं इति / स्यात् एष भवतां किं चिन्तितःकर्मबन्धो भवति भाहोस्विचिन्तिती मोक्षो वा इति,अत उच्यते-अधारीया अण्णविधीए सोधी,मोक्ष इत्यर्थः स्यात्-कलशेऽन्यो विधिर्येन्ऽर्यो शोधिमिच्छ सतत उच्यते- नापि संचिन्तित कर्मवध्यत इति सिद्धान्तः, कि तर्हि 1, अस्मार्क प्रमत्तस्य कर्मबध्यते अनमत्तस्य मुच्यतेच, अनमत्तः शुक्ष्यत इत्यर्थः,एवं शोधिराहराचार्याः ।ण वियागारे ण वाकरति,“उद अपवारणेउद्यते स्म छां, अप्रकाश अदर्शनं अनुपल खात्यानन्तरम्, पदं चेरित छन्नपदेन उपजीवित जनपदोपजीबी,की, अमाणस्स बंधो गस्थितमा विआगरे पदोप -जीली पठ्यतेत्त-विजागरे खणणपदोपजीबीणहिंसायाम्" मेव पदणणपदसतोण वागरेज्ज,जधाअजाणलस्स कम्म Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न होती अजीवाण बंधी स्थिते,एवं श्रोतृणां निर्दघाट्यो दोषाः स्याकिं व्याकरेतव्यम् 1 कधंची अत उच्यते-अधा छणणं नहीतिजीवाणं, अलानकले तुबंधो गस्थि उच्यमानेन प्रसादं करिष्यति, तेण छणणं अनुलातं भवति। तदेव पिण्डार्थ:-अधा प्रणय दोपजीवी | छष्णपदोपजी - विणो बाकरेंतीति वाक्यदोषः ताणावियागरेन / अयं इदानी आसेऽिर्थः -जीवाणुभा अणुचिन्तयंलो वियागरेऽउण्णपदो पजीवी, - एकारात्_परस्य भिकारस्य लोपेकृत छण्णपदो पजीवी भवति, अचिंतिते कर्मसन्धो नास्ति च साधु वियागरे अछण्णपदोपजीवी / एमाऽणु धम्मा, अनु पश्चाङ्गाये, अनुधर्मस्तीर्थकराचीर्णोऽटामुपचर्यते इति अनुधर्मस्तीकिरामुधर्मणः साधु।इहेति,इह प्रवचनै सनताण एवं सील नघटने भवताम् // 35 // जो विअ तुम भशीलमताणं देति सौ विभप्यैवं बध्यते गमुच्यते, ज भासि - -- सिणालगाणं तु दुवे सहस्से० मिणालगाणं तुवे सहस्से / मिणातगा सुद्धा द्वादशधूताणाचारिणी भिक्षवः,सहत महणं जे विदो विसहस्से झुंजावेति सौ वि लाव ग मुच्चति,कि पुण जो एक्कघा दो वा गिलिए सि पिच्चं दिणे असेजते संप्रललोहितार्द्रपाणि सद्यधातीत्युक्तं भवति ।मही - निन्दा इत्यर्थः / ज्ञानाद्या आःि, आर्याणा धर्म: अमजति लोके भिक्षुकाणां च गरहितो धर्मः अपामाणाणं, इह हिंसानुज्ञाना, अपात्रदायक सिकातुं गरहिलो व सावधं छक्कायवधेण,अनलाणं अपात्रोतुच दिज्जमाणं कर्मबन्धाय भवति। ततश्च सुस्मे अपाना --णि अदक्षिणेया इत्यर्थ, प्रैण मसं वाय [भणध य] गस्थि एत्य दोसो, अहधा शीलं तुझं सितं दाणे पि ण जुज्जति // 36, इतश्च Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शी नास्ति मनधि: धूरं उरल्म इहमारियाणं, उद्दिदुभत्तं च पकप्पक्ता / लं लोण-तेलेण उपक्खडेता, सपिप्पलीयं पकरेंति मंसं // 37 // ----- भुषमाणा सिसितं पभूतं,ण उवलिप्यामी वयं गएणं / दूच्चैवमाहमु अणज्ज बुद्धा अगारिया बाल रसेसु गिद्धा // 3 // --------- "जे यावि भवति तह पगारं, सेवंतितेपावमजा जमाणा -वाण खाणा एतं कसला वदंती, वली दि एसा बुइता असज्मा ||39 / / -------------------- शाल्वेसि पाणाण ट्ययाए, सावन्नदोस पश्विज्यंता। -------- तस्संकिणी इसिणो णायपुत्ता उद्दिडभन्तं परिवजांति / 40 // ---- "भूताभिसंकाए दगुछ माणा,सले सूपाणेसुणिहाय दंड। --- तान्हा ण भुजंति लधप्पगारं एसा Sणुधम्मो इह संजता // 4 // जियममि मा समाधी अरिसं सुठिच्चा मणि हे चारेज्जा / ---- बुद्धे मुणी सीलगुणीववेते इत्वस्थतं पाउणली सिलोगं // 12 // - - धूरं उरभ ति महाकायो उपचितमांसभ्य / इह लोके शाक्यचय मारिया शाक्या उदिमितुंभिक्षुस, प्र प्रकल्पयन्तः कण साधेतिलोण-सेल-पिप्पलादीनि वेषणाणि गृहीत f श्यभरादीनिचान्यानि,समेवमादी Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यहि वेसणोडं भिमबूढाए करेंति इशा सं भुजमाणाoपिशितमिलि मांसम् / प्रभूतं आकण्ठाय अतुप्रकारं षा / अप्येवं दिण दिणे गोवलि प्पामो वयं। करमात् 1 , त्रिकरण (I) शुद्धत्वात् / इच्चेवं अस्माकं आहेसु बुद्धाः, ते नः प्रमाणस्तिस्तत्प्रामाण्याद् भक्षयामः / तदुच्यते- इच्येवमाहंतु अणप्रबुद्धो वा अण्णे व केइ एवमक्खातवन्तः साम्प्रतं आइक्वंति चामांसदोघमिलि ,सर्वे से अणारिया बाज मूदा रसेसु, रसवात्तो वा सुखे भवति, मुडेनु विसएसु, सुहे शिद्धा 38 // यावि भुजेतिकाजे य लुद्धा वा अवुद्धा धा पुत्रमासोपन माग्न अदोघं ति मातुं भुनेति च, चाष्ट्रादुपविशन्ति च माम्मदोषमिति, मेघति से पावमजाणमाणा, लिमादी उपार्जयन्तीत्यर्थः।जधषले ते मांसासिणं गिरणुकपंजीबेसु बुद्धसंलकं पावं सेवन्ति तहोषमजानमानाः,अधिवा जे लेणं मसरघाणेण पावं वज्झलि संच तुम पावं अजाण माणो जया एस्थ वधाणुमाणा गत घणं चिक्षणं पाषं वज्झति लैण खाणं ण एवं शाला वदति तमिर्मसादे सुद्धे मांसभक्षणोपदेसए ण एवं वस्य मणो कुति, मुक्तिमित्यर्थः (ममभक्षणे वा अथवा मणं ण एवं सुद्धं कुशला आणका"मनज्ञाने" मणं पिकुव्वति ज्ञातपुत्रीया; वती वि एसा मसमदोसंपति चुइसा असच्या, किनु कम्मुणा कर्तुः 37 // स्याद्- उहिष्ट भक्कम 9 उच्यते सले सिनपाणा: पृथिव्या दया ते मणिवायणिविनवप्पडो मार सहावजण सावज्ज पचन-पाचना-ऽनुमोदनानि, यो वाऽन्येन प्रकारेण दवण-वाहन Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारणादण्डं साना दोसं परिवज्जयंता तस्संकिणी वा, "शङ्क लाने अज्ञामे मायेच" लाने तावत अयं जाममानः उद्दियाकृतदोषं तं न गृह्णीयात् 1 / अज्ञाने- संकिनी करिखनी वितिकिछ समावणो संकमाणो 1भए- माहाकम्मं जो भते ! भुनमाणे किं बंधति 9 कि -पाति 9 उच्यते- अटुकामपगडीओ सिटिलबंधणबद्धाओ क्षणित[----] एवंविधा संका जैसि से भवति तस्संकिणी इसिणो णातपुत्ता णातस्स पुत्ता णातपुत्ता // 40 // ते - - भूताभिसंकाए दगुंछमाण जम्हा भूते भवति भाविस्सति तम्हाभूते ति। - संका भये झाने अज्ञानेच पूर्वोका, इह सुभए द्रष्टव्या, तो मरयमेव,मारेमाणी हि वह परम च संकले बिन्यत इत्यर्थः / इह - सावत् पलिवरस्य संक्रते बंध-वध-रोह -दंडणाणं च परलोए णगादिभयरस / उक्तं च-मोरवलु जीव उद्दवैति एस रबलु परभवे तेहिं वा अण्णेहि वा मोवेहिउद्दविरति" इहलोके तु भयगा / सव्लेसु पाणेसु सि पाणा एगि दियादयो मायुःणणादियो बालिवालयसि मिक्षिप्यते, एवं समगुणा से,तम्हा ण भुजहिलरमा द्वाऽचानुमत्यकारणात इह-परजीकापाय दर्शनाच्च न भुजति तथप्पगार अन्यदपि जं साधु ठविश्य से कृतम् (सार-(एसा SYPEPो,जधालोए अणुशयाणा IFFI | उक्तं च-यद्यदाचरते श्रेष्ठ"[- ] तथा-“देशे देशो दारुण वा सिधे वा"r ---- Jएवमिहापि अनु पश्चा झावैति कृत्वा तीर्थकर-गणधरैहि वर्जितमुद्दे मित, 'तमु लच्छिया:अपिपरिहरन्ति / अधवा अणु सक्ष्म इत्यर्थ:.सक्षमी धर्मो भगवता प्रजील:स्तोमायतिचारण बाध्यते शिरीष Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्यमिव सदनुतापेन संयता:साधवः // 4aa ------------- -- --...... णि धम्माण जिथ स्म धम्म एव टोमां धर्मलेण भवलि निराधर्माण अथव। णि गंगथी भगवानेव,उक्त हि-गेथा असीतअभये अणभूतेण गिणतुल्लो जेसिं ते भवंति पिरोयधर्माणः, तत्सहधर्माण इत्यर्थः।इमा इति प्र त्यक्षीकारणे।समा अधिः समाधिः,मन; - समाधानमित्यर्थः, अधवा माणस्स हि इहेव समाधी भवति, इन्द्राभावात् , परमसमाधी य मोक्षः, ये पुनः पचन -पाचनरता आरभ्यप्रवृत्ताश्व लेघाममेकाशीभावः, कुतः समाधिः ९।उक्तं हि -स्नानाद्या देहसंस्काराः"L --- समणे भाव महावीरे इति रबलु से भगवं महावीरे समता प्राप्नोति मोक्षमित्यर्थः / इतराः इत्यर्थता, लोकं च नाप्नोति, लोक कथने" श्लोको नाम प्राधाकथं श्लाध्यते१, बहेव ताव उराला कित्ति-वण्ण-सद्द-सिलोगा परिषुति इति रखनु समणे 3, परसम्मि सिद्धे बुझे / लचा वा-"ण वि अस्थि माणु-मार्ण"[ -], परत्र च श्लोकं प्राप्नोति, लाघा मित्यर्थः / यस्तु अबुद्धोऽशीलगुणी पपे तःपचन-पाचनादारमतवृत्त: साता बहुज- स्नानाविशरीरसंस्कार-गामादि परिग्रहं या प्रियाऽनियमान समाधियुक्तः इहैव निन्द्यो भव लिशयथा-सम्म-क्षेत्रगृहादीना. ]तथा 5s : यथा परे सङ्कथिका सिद्ध व्हा. 5 श्लो० 27] भावमुद्धस्तु तच्छित्या श्व श्वाध्या भवन्ति, नैवास्ति राज राजस्य सत्सु" ]4|| स एषं तान शाक्या सप्रपञ्च प्रहृत्य भगष Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नान्तमेव पति पतिपि] मानः ऊर्ध्वज्वलशिपिंग्जालिभिः परिवायाँपदिश्यले-मी भी आद्रक राजपुत्रामा ताबद् गच्छ इदं लावदस्माकं - वेदसिद्ध श्रृणु यत् यथा -आदिसर्गे कित-- - ... -विष्णो नाभ्यां समुत्पन्नं पाहां वे के सराकुलम् / -------तस्मिन् ब्रह्मा समुहानम्तेन मृष्टमिदं जगत् // 6 // स मुखतो ब्राह्मणानसृजत् ,ततः शूद्रास्त्रियापरिचारकान् // क्षत्रियास्तु एकमेव वर्ण परिचस्कान में रन्ति,लल एवच श्योऽवाप्नुवन्ति, लल एवच श्योऽवाप्नुवन्ति यस्माच्यैवं तस्माद् ब्रह्मोतरं जगत्सदेवं त्रयाणामपि वर्णानां ब्राह्मणा एव पूज्यतमाः|माह च- ब्राह्मण एव जायते." तेचदव्य-क्षेत्र-काल-भावीपधान शुद्धेन दामेन पूजनीयानलब द्रव्यो पधाना खेन गो-हिरण्य-सुवर्ण-धणादीति दैयानि। क्षेत्र शुद्धमपि स्वगृहाभ्यागतस्यानाविस्कृतक्रियस्य सुखासनासीनस्य, अधया क्षेत्र - शुद्धं पुष्करादिषु क्षेत्रेषु दीयते क्षेत्रमिदं विख्यातम् काल शुद्धमपिर्दा-पूर्णिमा-Sमावास्यासु,लक्षा अयमैषुच सर्वेषु घडाशीति / लथाचाह ------- अनुपौष्य त्रिरात्राणि, तीर्थाण्यनधिगम्य च / -- --- अवस्वा काञ्चन गाश्व, दरिदस्तेन जायती // 6 // भावोपधान शुद्धमपि लोकप्रत्युपकारादिभ्य अनुदिश्य यदीयते तद् भावीपधामा द्धम्। अधियाभावस्तु पात्रामित्यर्थ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पात्रशुद्धमेबहि शुद्धिमुत्पादयति / आह च-'अहाराहनि दात व्यं.' ------] लत्र पात्रशुद्धिमधिकृत्योच्यते- -- - सिणाताणे त दवे सहस्से,जे मोयए णितिए माहणाणं / --- ते पुण्ण र सुमहाजिणित्ता , भतिदेवा इति घेदवा दो / / 43 // ... सिणाप्तगाणं तुवे सहस्से, जे भोयए णितिए कुलालगाणं / ---- से गच्छति लोलुअसंपगाढे, तिळाणुभावा णगाभिसेवी // 14 // ----- --- दयावरं सम्म सेमाणे वधावरं धम्म पसंसमाणे - एपिजे भोययती कमी, अफिणिधो णिध जातिस अंतकाले॥४॥ ---- -.--- "- दहता दुहतो विधामम्मि समुड़ितामो, अम्मिं मुठिच्चा तह एस्सकालं / आचारसीले बुद्धएहणाणे संपराए य विसेसमाथि // 46 // सणात गाणं तदुवे सहस्सेस्मालका: शुद्धालान,यजनादिषुपरकर्मनिरताः / अधवा स्नातका इति वेदपारका प्रवक्तारः। आहचा " समाप्ताहणे दाने०" [...----] 1 यदाऽऽत्मानं पात्रीकृत्य केवलं परानुग्नहार्थमेव परिगृह्णन्ति तदा दातारमात्मानं चलारयन्ति ।तंत्पारमाणं वे सहस्सै, तेच एगदिणेण वा बहुएहिं वा-दिणेहिं दीणि सहस्सा पूरतिाये भोजयन्तीति बन्धानुलोम्यात_ जे भोजये, निलियेत्ति दिणे विणे, शैक्वंतियं वाणितियं एो अणेगे वा भोजावैतिसदक्षिणे, वाजपेय पौडीका दीं वा यतं यजते।तत्फल Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रसिद्धये त्वपदिश्यते- पुण्णरबंधं सुनहऽन्जिणित्ता,ते इति लेतागुपदिष्टाः द्रव्योपधाः शुद्धैर्दानै : स्नातकबाह्मणपूजयितारः, पुमातीति पुण्यम स्कन्धाहणात सुमहापुण्योपचय सम्यगुपार्जयित्वा, परत्र बोन्द्र-प्रजापति-तिष्णुलक्षादिपु देवा भवन्तीति प्रदर्शनाः / यथा लावत परसम ये कियावद् गुणवत् समवायि कारणमिति द्रव्यलक्षणम्,समयेऽपि इच्ोतीहि छहिं जीवणिकाएहिं वेदानांवादी वेदवादो, वेद एव हि परं प्रमाणम् / आह हि-“वेदा:प्रमाणम् [ ]एवं त्रयीवर्तमानृत्य राज्यं गत्वा राज्याभिषेक प्राप्य इ प्टेभ्यः स्नातकेभ्यः ब्राह्मणेभ्यः गोहिरण्यादीनि दामान्य जझं प्रयच्छस्व आहे च-"यान यान कामान् वाहाणेभ्यो ददातितांस्तान कानान् पलानोपभुढे" - ] यीश्च भूहिरण्यदक्षिणां यजम्य, आह च-इत्ता विउने जाणे*-----लदेवं यमवाफ्यति तत् कथम_१, यदा होतानि यथोद्दिष्टानिधर्मसाधनानि अभ्युदयिक धर्ममुद्दिश्य करोति तदा स्वर्गमवाप्नोति यदा स्वपवामुिपदिश्य धर्मसाधनेषु वर्तते तदा अपामाप्नोति / तदेवं स्वाऽपवर्मफलं वेदानां धर्म प्रतिपद्यस्व, कि लैजैः संयमपुरम्म -रैस्तपोभिःअपार्श्वकैशची* :1 // 43 // ताने जात्यादिमदोद्धतां संसारमोचक तुलधर्मा भगवानाईक उवाच - राद चूत-प्रातिश द्धा - घटकनिराश शीलमन्तरेणापि स्नातका बाहाणा भवन्ति की व्याध कोपाख्यानात् / आहहि-सप्त व्याधी दशाणेतु" Jटा च-मयः पततिमांसेन"E-- किञ्चायत-"वर्णमाके "E ] Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशा पञ्चभिरिमै कारणैः साहाणत्वं न धरते, तद्यथावत् - "जीवा जातिस्तथा देहः एवंच श्लोकाः किञ्चान्यत्-विद्याचरणसम्पन्ने" ---- तथा ची हुः-"ना आसिर्दुभ्यते राजन् / " [- ] / यच्च तोऽभिगोतं 'यथा यजनादिप्रवृत्ता ब्राह्मा भवन्ति' इलि कसाहिंसकत्वात् यतस्या आहहि-घड शतानि नियुज्यते”--नच. हिमान भोज्यमानस्य स्वर्णोऽपवर्गो वा भवति, तोदाहरणं सौनामेव--- -- सिमालगाणं सुदुबै सहस्सै०। स्मातका गा मारण्या वा बिराल -मूलिकादि सादिनः कोलाहारा पा स्युः वा स्युःले स्नातकस्वे शाति क्षुदासः परिमाण लावद् वे सहसे णिलिए णिच्चे दिणे दिणे एक्कदिणेण वा दो सहस्माणि अधिगाणिवाा कुल्सितं शैलिलीयते वाकुलालः] मारिया से गज्छति लोलुभसंप्रगाढे एवं हिस पायो लोलुकः स्वाभातिक शीतोष्णादिभिः परस्परोदीरितैः संक्किटासुरोदीरितेश्च दुःसै भूमिगता अभूमिगता वा लोलुप्य ने लोलाविते मा भृशं गाद मागाढं तीखमा एवं शीलाद्या स्वाभाविका: परकृताचा तीतानुभावा, येषु अनु पश्चाझाले अहिं अण्णे सत्ता दुःश्वहिताविता ते पच्छा दुःखमनुभवन्तीत्यनुभाव-पारकः उक्तः (पठयतेच-तीनामितावा,तिब्बं अभितावेति जे तिति भालाधीन का अभिलावा जेमु णरएसु ले तिब्वामितावा पारका लीवप्तित्येकोऽर्थः,मेवित्तिजधा सो कुललभोजी पगं गच्छति एवं 'जाणका ले वराले मारेमाणा ये चान्ये पापके तृण-काष्ठ-गोमयाग्निाला संस्वेदसिताःमहीसिताच्येक कृप्यादिषु च कर्मसु वर्तम Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना बहन जीवान_जीवामधातयन्ति ते चविषयोपभोगदृष्टान्त सामाद्विसामेव प्रज्ञापयन्ति वन्ति च - ------------- "आततायिनमायातं अपि वेदान्ता रणे। - अहत्ता ब्राहा हाभिाव हत्वा पापात्प्रमुच्यते // 1 // ---] / - - लथा चशयं हत्वा प्राणायाम जपेन् , विहसलिकामं वा कुर्यात् यत्किञ्चिद्वादद्यात लथा अनस्थीकाना शकटभा मारयि त्या वाहाणं भोजयेत् / एवं ते हिंसक धर्म देशतो जधा कुरना कुलनपोसमा राणरए वच्चंति एवं ले वि द्विजा हिंसकत्वात् कुलज एवाइव) नरक वच्चति जे वि तेसिं देति ते विकुरल पोसगाह सह तेहिं पायां वच्चंति॥४४॥ ते एवम् - दयावर धाम से माणा / दया परा ज ---- - -- -- - - टावरक -स्स सो भवति दया परः, दयाधि] मो टा या वा वरा जस्स म भवति ट्यावर,तं होछति यःकिल आततायिनमाया न घालयति सो जगं गच्छति वधावरी धम्मो,बधा परः वधादिति पञ्चमी, वधादि परोधर्मः, कथम् ,आह हि-“हत्वा स्वमिहीयते"[---- तथा चाह-“अपि तस्य कुले जायासहो"ण उत्तमेवं वधावधं पसंसमाणा एपि जो भोजयति कुशील, प्रगाहकस्य ग्रहणकृतं भवति यत्रा यं पाठः- दयावरं धम्म गुंछ माणा, पधावधं पसंसमाणा एपि अधवा दाता परिगृहाते, दायावर धाममं द्वगु छमाणा,वधावध धम्म पसंस "माणा,एवं प्रकारो दाता ए पि भोज (न) भोजयति कुसी, किं पुण जो बहुए? कुत्सितशील कुशीना हिमाद्याभव द्वारप्रवृत्तो हिमक Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिर्मोपदेवाका अणिधो णि णाम अघी उलिस अधिकारी, दुरुत्तरं नरकमितिवाक्यौघामंतकाल इति मरणकालापाताने वंबावृतिना प्रतिहत्य भगवानालको भमवन्त मैव प्रति प्रातिप्ठताअर्थमं विदं त्रिदण्डकुण्डीय जाव पवित्त महत्थगता परिवा जका परिवार्य उभयपक्षा विरुद्धाभिराशीभिर्दण्डमाणा एषमूचुः भो भो आईक राजपुत्रा इदं लावदस्मार्क सिद्धान्तं शृणुतद्यथातिमः खल्विदमागे मासीत्" अव्यक्तमित्यर्थः तस्मादव्य कामहदहड्तार-तन्मात्रेन्द्रिय-भूताना प्रादुर्भावा आह हि: -- --- - -- प्रकृतेमहांस्ततोऽहडारस्तम्मा गणश्च घोडाका तस्मादपि षोडशकाल पञ्चभ्यः पञ्च भूतानि // 1 // इत्येतच्चतुर्विशकं क्षेत्रामपञ्चविंशतितमः पुरुषः सिन किञ्चिदुतायते विनश्यति बा, किन्तु केवलप्मभिव्यज्यते तमसि प्रदीपेन घटस्यथा, भूमिदेदो गिदादा मूनोदगादीन्यभिव्यज्यनेन्त एवं प्रभवासंहारकाले च यद्यस्मादुत्पन्न तत् तत्रैव तीयते इत्यतः सत्कार्यम् भवतामपिच व्यार्थतयामित्याः सर्वभावाः इत्यतः सत्कार्यपरिग्रह एवं यथाऽस्माकमा स्वरूपं चैत्ल्यं पुरुषस्य - नैःश्रोयसिके मोक्षे इत्यर्थः,नत्वयुदयिके इष्टविषयप्रीतिप्रादुर्भावात्मके अनैकान्तिके चामच्चायं नियमनक्षणोधर्मः-दिहतोवि -धम्मम्मि सामुहिता मोग स्त्र पञ्च यमाः आमादयः भवतामपि चञ्चमहाव्रतानि पञ्चयामो धर्मः, नियमोऽपि पञ्चप्रकार एवेन्द्रिय 'नियमसि सठिच्च त्ति यथा भक्तोऽस्मिन् स्वधर्मे यम-नियम-लक्षणेएवं स्ववस्थिताः एवं वयमपिस्थे धर्मे यम-नियमलक्षणे Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थिता, न फल्गुकल्क कुहकाजीवनार्थ लोकप्रत्यया बाा एस्सकालं ति जावज्जीवाएराएवं तावदावयोरविशेषाकिञ्चन्झाचारशी -रतलाचारयथा भवतां युगमानान्तरष्टित्वं एवमस्माकमपि, यथाचवो रजोहरण प्रमाननार्थ एवमस्माकमपि केसारिका, यथा बचो वावममिति एवमस्माकमपि मौनं नात्युच्चै भघिणं वा, अधवा हीन भद्र-मृदुस्वभावता अक्रौर्य ममत्सरो या बुत बुतं, तान मुपदेश आचार शीलं टास्य ज्ञानस्य तदिदमाचारशील,अधवा लाननिति भवताम पिचैतन्याद ज्ञामानष्टं वादशाहं गणिपिटकं केवलं -चाइहापि षष्टितनां केवलज्ञानं च अविपर्ययादिशुद्धं केवलज्ञाममुत्पद्यते ज्ञानम् मधवाचैतन्यमित्यर्थः तच्च पूर्वमुक्कं भवतामपि चैतन्याद् -अनन्य आत्माातदेव सर्वमविशिष्टणसंपराए यि] विसे समथिचशब्दासमुच्चयार्थः, किं समुच्चिनीति? पूर्वोतकारणामिदिहती वि -धम्माभिसामुहितामो,यथाएतध्वविदोषःएवं संपराइती वि,सम्परीत्यस्मिन्निति सम्परायःसच संचारः भवतामपि संसरत्यात्माम स्माकमपि कारणामा संसति ।आह हि-संसरति घध्यम विना सञ्चन सर्वथैवाविशेष किस्मात् परमात्मनःसंसारित्वात् / / ४६ठक्त हि अबसरख पुरिसं महंत,सणात अक्वतंतव्वतंचा सब्वेस पाजेसु विसबलोसे,चंदोबसपाहि मातरबा४ एषंण मिलि मंसरसी,जमाहणाखत्तिय वेस पेसा। कीडायपरमवी च सिरीसिवाय,मराय,सत्वे तहदेवळोगा - Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब्बत्तवं पुरिस महंतंग अव्यक्त रूपं यस्यम भक्त्यव्यक्तरपासचतन्मात्राणि बुद्धिर्मनोऽहङ्कार इति पुरम,अधवा से शरीरम् , पुरं तस्मिन् पुरे शयत इति पुरुधः महान्त इति सर्वगतः, सर्वयावा प्रकृत्या गतःगसनातनः पुरातन इत्यर्थः आहहि --"अजो नित्यः शाश्वतो योनक्षीयते घटवत्" इत्यतः कृतः- नैनं छिन्दन्ति शरबाणि"[---]]"वा गति-प्रजन-कात्यहान खादनेषु" -] अक्षयोऽपि, कश्चिदव्ययति परमाणुवल , परमाणुळयति विगच्छत्तीत्य आहहि-"अच्छे योऽयमभेद्योऽयं"[- ]से सबपाणेसु ससर्वगतोऽसौ सर्वप्नापर करणात्मानः अथवा आयुरिन्द्रिय-शरीर-बुद्धि प्रा जरासे इति सस्याऽऽतानी निर्देशः सर्वल इतिसतीसुदिक्षु सर्वकालं च नित्य इत्यर्थः आह हि-"सर्व सर्वत्र सर्वकालंच नित्य इत्येको विशिष्यते सर्वकारणात्मनामन्यः[ीयथाचन्द्रमासर्वग्रह-नक्षत्र-ताराभ्योवर्ण-प्रमाण संस्थान-लक्ष्म लक्ष्मी-भा-कान्ति-सौम्यतादिभिर्विवोधर्विशिस्यते एवममावपि परमात्मा कारणामत्यो विशिष्यते ।साड्या प्रक्रियावादान अधवा वैदिकानामयं सिद्धान्तः-अव्वत्तरूवं मुरिसं महतं तेषामैकएव परमात्मा,शेषास्तुतत्पमावानआहहि-य स्मात् परं नायरमस्ति किञ्चित् स एव चसमासनोऽक्षयो भव्यायश्च पूर्ववता सब्जेसु पाणेस्तुकतरे ते उच्यते न्यथाहि महमनविप्रमुकत्वादभूरितेजमाऽऽदित्याविन्याद रश्मयः सर्वतो निस्सरन्ते निःसृत्य च समेव पुनः प्रविशन्ति न च तस्याऽऽवाधा कुर्वन्ति Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं सर्वात्मनस्तस्मात् त्रिकालावस्थिता: कूटस्थानिस्सरन्ति, निसृत्य चतानि स्वकर्मविहितानिशरीराणि निर्वतयित्वासुख-दुःखादि चानुभूय पुनः पुनस्तमैव परमात्मानं पविशन्ति / एतच्या सूत्रसाड्यवैदिक्योस्तुल्यं व्याख्यानता अनेके परमात्मानी,वैदिकानातुए एव, माङ्मय-वैदिकयोः प्रक्रियावादातदुत्तरं तुगदिसर्वगत आत्मा अमाशयानाम - एवं नमिन्जतिन संसरंतिम "मृभ प्राणत्यागे"असर्वगतस्याह प्राण त्यागी युज्यते,यथा-देवदत्ता स्वगृह त्य वा अन्यत्रगच्छति मचैव सर्वगतस्थ शरीरादिप्राणत्यागो युज्यते, असर्वगलस्यैव समारो घटले देवदत्तवदेवासवगत्यस्यैव,मिर्वगत स्थानुन किञ्चिदप्राप्त यवच्छती त्यता संसानोन घटते किच्च-गभगे रवत्तिय वेस पेसा, तत्र ब्रह्मणोऽपत्यानिवृहम्मानम्मा स्त्वावा ब्राह्माणाः,क्षतात्त्रायन्तीतिक्षत्रिया, कुलादिभिर्विशन्ति लोकमिति वैश्या प्रश्यातीन्तीति श्या:इत्यसोचातुर्वर्ण्यम सर्व गलवादात्ममामा कयमी यावन्तीहिप्राणशरीरेणाऽऽत्मीयस्याऽऽत्मनः प्रदेशाःस्पृष्यस्तावन्तोऽन्येषामप्यात्मना प्रदेशाम्पृष्टाः, स्त्र कथायमीयते यथा तुल्ये चात्मनि (चास्मानि) शरीर तनुशेषाणामित्यपसिद्धान्तः मल्लदासीवत् ।यथा मल्लदासी सर्वे मल्लाना सामान्या एवं बााजशरीरमपि सर्वेषां क्षत्रिय-विट्-छद्राणांसामान्यप्तितिायया ब्राह्मणशीरं तथा क्षत्रियविद्-दशनीराण्यपि सर्वात्मनां समानीत्य मघरले किचकीडायि]पक्वीया सिरीसिबायोसातत्वे सति अयं कीडोऽयंमकीडइतिन Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटते तदेवं बाह्माणबारीरवत् समानः सर्व एवं पक्खीषा अपकरवीवा,सन्तिीति सपीगरः,अथवादेवलौ षुभवादवलौकिका अ-- -मरा इत्यर्थःएलदेव चौसरं एकात्मकवादिवैदिकांना[किंच-एकात्मकत्वेच सतिपितृ-पुत्रादिरिति त्राता मघटतेलसर्वप्रामाण्यात साइयज्ञानप्रामाण्यात बह्माऽपि चकिज सर्वलः तेन चोकम-“यस्मात् परं नम्परममित किञ्चित् तत् कथं केवलज्ञानसा दृष्टमनृतं भविष्यति इति, उच्यते-मैव केवलिनो भवन्ति कथम, अन्तवादत्विातले सूत्रं त्वष्टमिति उच्यते, मनत मेव 'न मेप्रति ण संसरति' वैदिकानामपि एकात्मकत्वे च ये केवल तानेम लोकमज्ञात्वा महावहादिभिम्ती प्रवर्तयन्ति तेषां किय वाक्यं प्रमाण स्याद् इति मिथ सूत्रम् नोकं अजाणिसिघ कवलेणं,कहलिजे धम्मानबाणाणा जामेंति अपयाण परंच डासंसारघारम्मि अणोरपारेर लोकं विमाणलिध केवळेणं,पुणेण जामेण समाहिजुत्ता। धम्म समतं कहति जे ति तारेति अप्पाण परंचलिणाou लौ कं अजाणितिध केवलेणंगलोको नाम द्रव्य-क्षेत्र-कान-भावाना यथावस्थितिः, नोकमज्ञात्वातेम येनधर्म कथय न्ति अजाणामाणाणासेंति अप्पाण परंचणट्ठा, प्रधा अन्धो देशकोऽध्वानं अप्पाणं परचणासेति एवं ते विराजे पुन लोकं विमाणंतिध केवलेणं केवनलानेन पुज्येति पुण्ण गुणेळ लानेन धम्म समसंचकधति मे ति,समस्ती Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम सर्वचनीयदोपैर्विमुक्तः,जधादेसिओ जाणी अदिसामूढो गरो खेमं अकुडिम मां अवतारे ऊण अधिच्छंदेसंसम्मवा यति,एवं ते वि केवळणाणेण भवन्ती तित्यारा अप्पाणं परंचसंसारसमुहमहातारातो तारेलियाका सर्वशलल्वेसत्या मिनि जे गरहित ठाणमिहाऽऽवमंति, जे याविनोएचरणोववेया। उदाहडं तं तु समं सतीए.अहाउस विपरियारसमेव // 5 // संघच्यरेणावि य एगमेगं, पारेण (बाण) मारेलु महागजंतु। समाज जीवाण दयदुताए वासं वयं चिहि पकप्पटामो // 2 जे गरहितं ठाणमिहा ऽऽनमंतिनगरहित नियं जातितः कुलमयतत्र जातितश्चाण्डाला: कर्मलश्याण्डालत्येऽपि मति ये सौकरिमाश्चान्यानं वृतं कर्मेल्यनान्तरमा आवसन्ति उवजीवन्तिाचरणं वृत्त मर्यादेल्य अनन्तमचरणेणं उववेति। तदपि योजातितो कृततश्य, जातितो मिथ्यादृष्टिलोकसम्मलो वाह्मणः परिवाज्यं ताजित: एसद्भयमपि भवमते नैवउदाहडंति उदाहरणं भवति, मधापत्ति एतदापद्यते सर्वमरत्वे सति सर्वाल्मनासमतेलि,समतासमंसुल्यमित्यर्थः, सुल्याहलद्रव्यवत् / सतीएत्ति बुद्दीए, एवं प्राकाराए सर्वगल आतोति, सतीएति वा मतीएत्ति वापराई / अघाउसे विप्परियासमेत,अथ इत्यानन्तये, सर्वगतत्वेसति सर्वात्मना निकृतोत्कृष्टयोः समता इत्यर्थः, आउमात्ति हे आयुष्मन्त, विवियोगे,विपरीतो आमो विपर्यासः, विपरीत इत्यर्थः। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामशासवगतल्लम्_१ न चेदानी निकृष्टोत्कृष्टानां साम्यं भविष्यन्ति ,अधवा संविद अधिगमो ज्ञान भाव इत्यनार्यान्तरमिति कृत्वा विपरीत | भावमेव सर्वगतमाह इत्यर्थः ।अथवा विवज्जास इति मत्तोन्मत्त प्रलापवदित्युक्तं भवलिलावचौतत् स्यात् सर्वगल स्वे सलि सर्वात्मनां | निकृष्टोत्कृष्टानां तुल्यता-अतुल्यतेच सर्वगतमित्यन्यथा वा का प्रत्याशा? एतदेवोत्तरीकात्मवादिममिति ॥५६॥एवं संझ्वाम निोंव्य भगवन्तमेव प्रति लिष्ठन्तमार्क केचिदलिदीर्घ इमनु- गरव-रोमाणी जटामुकुट दीप्ताशिरसी धनुष्याणाया हस्तितापमा-व्याः परिवाज परिवार्ययुः-भी भी क्षत्रियठुमार आईक! तिष्ठ लावदीप सरम इमामस्माकं सिद्धान्तोदितां पुष्करचर्या शृणु, शृस्वा रोचयिष्यसि यास्यसि वासित इघदवस्थिते राजपुत्रे पञ्चशतपुरुष परिवारो हस्तितापसानां वृद्धतमस्तमुवाच वयं हि द्वादशानात् अभ्युदयार्थिनः मुमुतवी हरिततापसा वा इति वाच्यामहाजनेन ते चवयं परमकारुणिका: सत्त्वेषु,वनैहि वसतां मूल-स्कन्धोवघात आहारार्थः सुमहादोष इति मत्वाले------ -- संबच्छरेणावि य एमे। संवसन्ति सस्मिन्निति संवत्सरः एकैवमिति वीप्सा, एकेके मासे एकेक बाणेण सरेण विसनि सेणचा मान धाति,मारेतुं महाग लिगलिगर्जति वा गजः, महाकार्य महाराज मतं मज्जमाणगंधा, सैसाणं की जीवाणं से सस्थिविन्ना, | वणस्सति कायमूल-पत्र-पुष्प-फल-प्रवाला-कराया वाम्पत्याः स्थावराः, जङ्गमाश्च मृगायाः दयानिमित्तं मासमास्वायम्बां वृत्ति Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - परिकल्पयामास्वंडीरयंडिं मालुसमे मागे सुकवल्लूरं पउले ॐणं रखायामो,एवमेगेण जीवधातेण सुबहुजीवे रक्स्वामी, पुण तणतातसा | बहणि कन्दफलांणि घासेंसि ते हिणे दिणे गामघातं मरेंति, न चाइमरी धर्मा भवतीत्यत: अल्पेन दायेन बहु रक्षामः वणिजवत्, पितदर्थं किञ्चित् पापं भवति तदपि आतागोववाम-जाप-वृहाचयः क्षपयाम:। विश्वामित्रोणाव्युत-शक्यं कर्तुं जीवता कर्म पाप [ ..]Tणणु च तुम्हे चंकमणादि काउम्सग्गेण सोधधा, भयं चास्माकं स्मृतिविहितएव हस्तिसापस धर्म:,समेमं प्रति पयस्थ, आगच्छ ।शालानेवं बुवामान आईक आह संवच्छरेणाविय एगमगं, पागं हर्णता अणियत्त दोसा। - से साण जीवाण अर्धे लगा, सिया य थोवं गिहिणो वि सम्हा॥५३॥ संवच्छरोणानिया वे यएामं,पाणं हणता सप्तणवती तु / ---------आताहिते से पुरिसे अणारिए ण तारिमा केवलिणी भवंति५४॥ ------------- बुद्धस्स आणा ए इमं समाधि अस्सिं सुठिच्या विविधणं ताती। तरितं समुई व महामवीचं, आदाण धम्ममुदाहरजासि ॥५शा तिबेमि। - - इति अदृइज्ज समलं // 6 // ...................... .............. ---मंवच्छरेणाविनाएकतरे प्राणिनं हस्तिनम सा हिंसा, सत्तो अणियत्सा अजियत्तदोमा जिझिदियदोस्तोय। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | किञ्चात्यत् -जासा जिघांसा सा रौदला,का हस्तिनि परमगामाणा मंसनोलुअत एव हते तु हिंसा एका चेव णगपज्जत्ती किंवा से साण जीवानं जे च भणध- सेमाण जीवाण दयहलाए ति ले ग भवति,सो हासी विदो उकिर्ड तो वणरससिकाए हरले गुच्छ-गुम्म-- लतादीए पेल्लेति णातिमहंते व सकरखे भंजलि, कंथु-पिपीलिकादीए जाव तचिदिए पेल्लेलि,जे य मंसं पयंता सुंठए चुल्लीसु वा अगि मथेण वधए। उक्तं च - लण-कढ़-गोमयसिता संसदसिदा महिस्सिता चेव" ]एवं सेमाण जीवाण लग पाणालिबाते / सियाय थोवं, शादेव सर्वमपि ले सध हशिनण जे 20 अण्णे य पहुंती मारेति पागे य उज्झंति समेतं थोतमुच्यते, लिहिणा वि ते बजीले जे मारेति, की, ते लोकं सर्व जीवेहि ओतं प्रोत, सो य गिही लिरियनोए वसति, उडलोए अधलोए य ण माप्ति एवं जाव जैबुद्दीवे भरो भगधाए सणगरे,से छब्बिसे खेलेवा, एवं सो बिनाम धार्मिक 52 / / किञ्य - संबच्छरे० प्राणं हस्तिनम् / श्रमण लानि अहिमादीनि सामि किलास्य हस्सिलापसस्य भमणतानि सन्तीति नमणती / तुर्विज्ञशेषणे / किश्य मारयतिथ कस्यैद हा म्यं म स्यात्_१ आाहिले अात्मनः अहितो य एवं परवले आयरतिच,सो नट्टी अण्ण पिणासति,जधा मी दिसामूढो अण्णे य देसिए णासैति। अणारिओ दसणालो चरित्ता ओ वि प्रागैव ज्ञानतःण लारिस धम्म हिंसक केवलिणी भजलि करेंतिवा|किं बूत?, Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्मा घली,लेमलदपदिष्ट हस्तिनापसनलमा, लटुच्यते-ण सारिसा केवलियो भवेति करेंलिवा,जेहिंसगं धर्मपण्णवेतिले सोति का, ओण णलिण्णा अण्णतेसुव सोणट्ठो अण्णं पिणासेसि जवा हाणिकताणिएवं युवद्भिः संसारमोचक-वैदिकादीनां पक्षसिद्धिः प्रमादिता भवतीत्यन्यथा वा का प्रत्याशा ? इहिमपा एवं सांस्तापमान प्रतिहत्य भगवत्समवसरणमेव प्रति प्रतिष्ठप्लो सत्या -यआरणो हस्ती हावाहोआलाखमै बद्धो साणी संप्रणसई सुणेति,अधा-एमो अद्दभो रायरिसिपुत्तो जियलाणि मेजिण तिस्थरममीवं पइटो, परसिथिए पाहाणऊण,लोएण अभिाव्यमाणो युप्फ्रजनि हत्यालेण अच्चिजमाणो वविन्नमाणो जिरवेक्यो हलपच्यास्थिपकरसो वच्चति अहोधण्णो स पुण्णी यात पाति अहं पिएसस्स पभावेण माती बंधणालो मुच्चेज्न प्रोतो) णं वंदेज्ज णमसेज,वित्ता णमंसित्ता णियगवणं पाविक मेहे णागस्स बाहं लोट्टएहिं यबहहिं कलमेहिं हस्थीहि य र बहहिं उज्रएड्डि जाव सच्छंदमुह विहरेज एवं चिंलिलमेलेव तडतडस्स वंधणाइंछिणाईछिष्णवेधणो कुत्सितहत्योभावन्तमाकधितण संपस्थितोपच्छा लोएण भीलेण कलकनी की 'हो ही अहोर मट्रिक रामपुत्रो इमिणा हरियाणा मारिज्जालि सि काणा इच्चे-वं भाणिकुण भयसंभतो सन्तती समंता विष्पलाइतो ततोततेणं सो वणहत्थी भत्तिसंभमोणताहत्यो णिच्चन काणकबोलो विणयत्तिमो धरणिललिमिलादेतो आईकराजपुत्रस्य पण्देमु गिवडितो।मनसाचेव इनमब्रवीत-भद्रं ते भो आईक - Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राधरिशियथाऽभिल्लवितान् मनोरथान प्राप्नुहि बन्धनाविप्रमुक्त इति एवं मनमा झवायथेष्ट वम प्राप्तवानासं सुमहान्तं - प्रभावं दृष्ट्वा लोकस्यातीव लपस्सुसविस्मया भक्तिर्वभूवाएवं एलाए एव वेिलाए। सेणिोराया भट्टारकपाट्समीपं वैदिउँ पत्थि लोजणकन कलं सोऊणं कितपति पुच्छति / साहितत्यहि य से महामत्तेहिय मिच्चेहि य पउरीहिय कधितं,जधा-सोसल्यलक्रत संपण्णो हत्थी चारि पाणिअंच अपभिलनमाणो आड़कम्य रायरिसिम्म तवष्यभावेण बंधणाई छिदिऊण अर्थरायरिसिं बंदि - पलासीपच्छा सो मणिराया तं सोऊण अविम्हयं अद्दयरायत्त वैदिऊण मंसित्ता एवं वदासी अटो भगवं दुकशणि त पासि महानुभावानिच कथम् - लपसातप्यते पापंतप्तंच प्रविलीयते। देवळीकविमानानि, राज्यान्याप्सरसा खियः॥६॥ विन्यस्तानिहिपण्यानि,ये मूल्यं तपोमयम्। अथ सान्दृष्टिक तपफळ लतः (9) 2 -ौणिमी ब्रवीति-माणु भवत एव दुकराणा तपसा प्रभावादसो तनहस्ती आयमानि तुलबन्धनानि सबैरपि तीक्ष्णै? छेद्यानि ठित्वा यथोष्टं वनं प्रयास इत्यहीदकर आर्टक उवाच - अहो सेणिय Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “ण दुक्करंवारण प्रासमोअणं गयरस मत्तस्सवणाम राया जधातु चत्तावलि तेणतंलुणासुदुक्कर मे परिहातिमोयणं॥६॥" इति। एवमुक्तवा भगवत्समीपं नाप्याऽऽकाताणि पंचसिस्ससताणि भगवतः शिष्यतया प्रददौ / भगवानपिच तान प्रवाज्यलस्यैवतान् शिष्याननुज्ञातवान् / / खस्य आणाए इमं समाधिंगकता सबुद्धोष मनु मावानेववर्द्धमान आह / अन्य वि सो तम्ब भट्टारगंण पेच्छति तोक, सम्म आणाए वदृति, उच्यते ननूपदिष्टानि महाध्ययनानि अणागतंचेव तेग भट्टारकेणणात अधा-आईकोमाम सत्समीपं एंतो अण्णउत्थितेहिं एवं वुच्चिहितिवृत्ती य समाणो एताणि एरिसाणि उत्तराणि दाहिलि तितेण भगवताभासितगणधरहित सूत्र सीकतं ।उक्तं च-"अणागतीभासियं णिकायेति --]'अतिकृतं एवमिण (किंचि अथवा प्रत्येकबुद्धोसी,लेणपुर एते अह्या आगमिता, सैण तैसि अण्णउत्यिमाणं तमुत्तर देशाइच्वनेसा भगवती पुञ्चतित्थाराणं च समाधीवुत्तोपत्तोतिविधी दमादि सत्यविसेसेण दसणसमाघिण्ण अधिगारोनुचति,जेज तिच्छदिवीनु पडिहलेसु सम्मत धिरं होति,मति य सम्मत्तेणाण-चरित्ताइपि होताअस्सिंसमाधी विविधापि मुष्ठुस्थित्वा वा विविध विमणसा वयसा कायसाामासा तावत्-णमिच्छदिट्ठीएस Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्णालि लिपिलिस द्वाणि पावायसराणि,एलेसिपंचण्डंगहणेण सव्वेसिंपिाहणंमतं भवलि तेसते असमावस्थित मण्ण -लिवायाए विपरिहणतिाकायेण वि सेसि अत्भुट्ठाणाति वा 'अहो! असामार्गावस्थिता यूयम्' इति हस्तपरिवर्तनादिभिः क्षेपैस्तन्नि रासं करोति। एवं अण्णाईविसाव्य-वैशेषिक-बौद्धादीति निविधेण करणेण शरहतिाइच्चैलागि तिणि तिमहाणि कुप्यावय-जियस्तामिम मियादेसाप्राममुहं सस्तिा,मिच्छादसणममुहमोहमिति अले मिच्छादसणोहं, सम्मिन् मियादर्शनममुभयो भवतीतिबारणे कार्यवदुपचागद महाभवः,महाश्या सौ भोधश्च महाभवौधः, महते वा भवौघाय महाभवौधा,यथामिथ्या दर्शनोपंतरितासम्मले हाति एवं अण्णाधं भवकारणं लि काऊणं तं तरिसा अचरिलोघसंवरणावारूढी लरिअमादाणवं ति, आदीयत इत्यादानम् , एतान्येव ज्ञान-दर्शन-चारित्राणि आदानम्, मुमुक्षीकाम उदीरेज्मा कथयेत्यादिठि चि]-"अहिते- ण ठवेति परंग -----]लिथा चोकम-गुणसृष्टितम्स बय[---------] इतिवृतीमिति अज्जमुधम्मो जंबु भाभी भणति-इति उदाहरेज्मासिन्ति मुधो, परोपदेशाच्चैवं ब्रवीमि इति आईकन।। --------------आईकीयं समाप्तम्छा माम्पतं ालंदन,सम्म संबंधो- अहे आयारसुसं बुसं, इ सावामुक्तं, यत्राोप-परिहारैः प्रावल्या वय॑न्ते। अधवा - Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +प्रायेण मायारे सुझगडे याहेडासाधुसुताईवुत्ताई,धतु सावगधम्ममधिगारो, कथन मातथरस साधुमून पाणातिवातं पच्चवसायमाणो - सहमंणाणुजाणति। अधवा छठे अण्णउस्थिएप्लुि मह वासो, इह तु सतिस्थिएहि स्त्रस्यापिसूत्रेण-आदाणर्य धम्म उदाहरेज्जा,सो य धम्मो दुविधो साधुधम्मो अशिहिधम्मो अ,साधुधम्मो पंचम-उड्डेसु बुसी, इधतु सावधामो इत्युक्तः सम्बन्धः। णामणिफण्णे गाऊँदइज्जं णालइज्जणालंदा। अगोरनश्यिाश्चेति, आहच गतं न गम्यते लावदगतं नैव गम्यते।---- गलागतविमिमुक्तं गम्यमानं तुगम्यते // 1 // तमेवाय अकारो वर्तमानमेवार्थ प्रतिषेधयति ।[माकारः क्रियानिधेधकः,]यथा-मागच्छ,मा कुर्वीत आह च-"माकाई कर्मानुचिन्ने परां मागात तिघ्नुलं, अन्योर्ध्वजातिधर्मात् स्वात्मानंवधत, शात्रवानिष्कारस्तु विदेश प्रतिषेधयति,सचत्रिष्वपि मालेषु, यथा-नो अहनेवं कृतवान् नोकरीमि] भो करिष्यामि, तदुपयोग नी सदाऽऽमीत्। इदानी नकार स्विकालविधयी- नाहमेवं कृतवान् न करोमिन करिष्यामि आहहि मास्तिस्तृप्यति माष्ठानां." -----उको नकारः।। इदानी अलंगबाब्दस्य व्याख्या। यत्र गाधाः-- जाम अलंग्वलण अलंदबअलंचव होलि भावअलं।--- एसी अलसहस्य उचठबिही होइणिवेषी रक्षा---- Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णामालंठवगा अलं पाप्ति-भूषण-वारणायब गाधा पज्जत्तीभावे खलु पदमी बितियो भवे अलंकारे। ----... लओ विय पडिमेहे अलसही होइणायव्वीरूस पज्जतीभावे खिलौ पढमो बिलियो भवे अलंकारे / पर्याप्तौ लावत्-अलं देवदते यज्ञदत्ताय, अलं केवलज्ञानं सर्वमावोपलब्धौ, अलंच तज्ञानं उपलब्धो तिभावनेच! उक्तंच: ट्रव्यास्तिकान(हायारूदः, पर्यायोतकार्मुकः। - युक्तिसन्नाहनान्तादी,कुवादीन्यो भयत्यलम् // 6 // विभूषणेऽपि अलङ्कारैरलता श्रीवर्द्धमामेन, अलंकृत नभश्चन्द्रमामा उक्तं च भवतस्त्वनमेघसस्तवो" ] वारणे - इपि-मलं मलं तवेटिं, अलं पाणासिपालेन यत इहामुत्र चापाया।उक्तंच: अल कुतीय रिह पर्युपासितैरनं वितर्काकुलकाहलेमतेः / अलं च मे कामगुणनिधीवत भयडराये हे परनचाहा +अत्र प्रतिषेधानं शब्देनाधिकारमायामाधान पहिमेघणगारस्मा इन्थीसद्देणदेव अनसी। रायगिहे जारमि य मान्दा होति बाहिरिकामा / पडिमेध णगारस्मा इत्थीसद्देण[व] अलमहो। सीलिङ्गामेतता रायगिहे जगरमिण अतं तष्णिवासिणं देसि विभवां मुरवायां Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -श्चि इत्यतो णालदा, बहिनगरस्य बाहिरिका जालन्दायां मवं णालंदइज्ज अन्न गाधा-.. लंदाए समीवे मनोरहे भासि इंदभूणा / ---- अज्झयण उदगस्स तु लेणं नालंदइज्जति 04 // णालेदाए समीवेना - -पासावच्चिजी पुच्छिताइओ अज्जगोतम उदगो। सावग पुच्छा धम्म सोतुं कहियम्मिउवसंतोपा०५॥ सालदइज्जणिज्नुत्तीसम्मत्ताासूया उस्स विइओसुयक्रबंधी सम्मत्तौसम्मतच सूयगडभिहाण विइयानगगानन्यतः श्लोक रहशाचा पासावच्चिज्जे पश्यतीति पार्थः तीर्थकरः, पासस्स अवच्चं पासावच्चं,नासौ पार्श्वस्वामिना प्रवाजितः किन्तु पारम्पर्येण पावपित्यस्थापत्यं पासावच्चिजन्स भगवंगोलनापासावच्चिज्जी पुच्छिताइओ अजगोमेलन उदओ जिधा-तुममा वा विरुद्धं पच्चक्रवाणं पुच्छा गतो, ओवामं चोरगहणविमोक्रवणता। तथाच हरवलु गाहावती वा गाहावलिपुत्तोषाधम्मसवपत्तियाए पज्जुवासेजा जावस वेव से जीवे जस्म पुष्विं दंडे अणिदिखत्ते उदाणिं अणिफिरवत्ते,एवं पश्यिागा विपरियाणा वि, मधदीहाउअ अपा उअ समाउअति एवमायाई ओवामाई मोतुं वसंतीमुत्ताणुगमे सुत्तमुच्चारेतवं तेणंकालेणं तेणं समएण रायगिहे णाम सागरे होत्था, रिद्धिस्थिति तममिद्धेवण्णतो [पामादीयं] जायपरिवोतस्स णं रायमिहस्स जारस बहिया उत्तरपूरस्थिमे दिमीभाए एत्य ण णालंदा णाम बाहिरिया होत्या अगमवण-- Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयसणिविट्ठाजाव पडिरवार --------तेणं कालेणं तेणं समएणं अतीतामागतवर्तमान स्त्रिविधाकाला लेनेति चतृतीयाकरणकारकम्ते न यहादातीतेन कालेन राजगृहस्य समायोगोऽभूतासमयाहणंतु कालैकदेशे, यस्मिन् समये गोतमोपुच्छिनौतीस व्यावहारिकः, नैश्चयिकोऽपि तदन्तर्गत एव,जधा कज्जमाणो कडी एवं पुच्छिज्जमाणे विबुद्धे अन्न समयो गृहीतः,सेसानुणोपुच्छासमया, एस्थ णय म्यपणा कायवाारानो गृहं राजगृहम् पासादीयातस्य रामगृहस्य बहिया णालंदा अद्धत्तेरस कुलकोडीऔगा ताणं गालदाए बाहिरियाए नेए णामंगाहावती होत्था अड्डे दित्ते वित्त विस्थिण्ण-विपुलभवण-सयणा -स-जाण- वाहणाइणे बहुधण-बहुजातरूप-रमते आझोग-पोगसंपउत्तेविच्छतिपउरमत्त पाणे बहुदासीन्दास-गोगहिस-- गarmभूत बहजण स्म अपरिभूत यादि होत्था सेणं लेए गाहावती समोवासए आविहोत्था अभिगतजीवाजीधे जाव भावेमाणे विहरतिा तत्थलेए जाम गाहावतीग लेए णाम संज्ञा, गृहस्य पति- गृहपतिः, होसे होत्या. आठयः आदितो वा आट्यः। दीप्तिमान् दीप्त: वित्तो नाम तुष्टः पर्याप्तधनवान् विस्थिण्ण-विउलभवण-सयणान्ऽऽस-जिाण वाहणाइण्णे, विस्तीर्णा नि माया मनोविस्तरतश्च,मानि तानि भवन-] शायना-डासनानि, विउलानि बहुनि, "पुनमन्त्ये" विद्रोघेण पुननि विपुल्पनि, कानि Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तामिर, चामामि वाहनानि “यथा समयमनुदेश समानाम् इति कृत्वालैर्विम्तीणै: भिवनमे शयना-ऽसमैविपुलै म्ययान-- वाहने आकीर्णः, आकीर्ण उपभोग्यतः सम्प्राप्त इत्याधिनं कृताऽकृतामधवा धनग्रहणेन वैड्यादीनि रत्नानि परिगृह्यन्ते, धन धान्य इति चकलाशाल्यादीनि धान्यानि बहुजातरूप-श्यतंकण्ठयनेता आयुज्यत इति आयोगः,वृद्धिका प्रयोग इत्यर्थः अधवाआ--- योगस्यैव प्रयोग:आयोगप्रयोगः, इन्हो वा समासा, ताभ्यां सम्पायुक्ता विविध विशिष्ट वा गडित विच्छडितदीयमाने भुज्यमान वा मुक्तोषं च बहुदासी दास कण्त्यमेतत् बिटुजन इतिउत्तमा-उधम-मध्यमो जना,तम्य प्राप्तिकुलेश्वर्य-वृत्तैः अपरिभूतो मान्यः, पूज्य इत्यर्थनामेण लेए समगोवासए होत्याजाव विहरतिा--- लस्सणं लेवस्सगाहावतिस्स जालंदाए बाहिरियाएवहिता उत्तरपुरस्थिमेदिसीमाएएस्थणी सदबियाणाम उदासाला होस्था, अगरबभसयसणि विट्ठा पासादीया जाव पडिस्वाालीसे णं सेसवियाए उंगसालाएउत्तरपुर स्थि दिसीमाद एत्थणं हथिजायामेजावणमंडे होत्था,किण्हे कृष्णमो वणसेउस्मातसिच णंगिहपदेसंसि भगवं गोलमे विहमति, +भगवंचणं अधारामंसि लस्सणं नेयस्सगाहावलिम्स णालंदाए बाहिरियाए बहिता उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागेन्एत्थर्ण लेयस्स गाहा Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वतिस्स हशिणायामे सामं वणसंडे होत्या, किण्हे किण्हलायोप्रायेण हिवृक्षाणां मध्यामेवासि पत्ताणिकिण्हाणि मवन्ति, तेसिकि -हाणं खाया किण्हछाया,फलितत्तणोण य आदित्यरहिमतारणात् कृष्णो भवति, बाल्यादतिकान्तानि पर्णानिशीललामिभवन्ति, -यौवने तान्येव किसलयमतिकान्तानि रक्तलांच ईपद्धरितालाभानिपाण्डुनि हरितामीत्यपदिश्यन्ते, हरिताना छाया हरितच्छाया, एतएव कृष्ण-नील हरिला वर्ण यथाम्बस्व स्वेवणे अत्यामुत्करा भवन्ति, स्निाधाय लेण णिशो | धणकडितडिच्छाए त्ति अन्यो -शारखा-प्रशारखानुप्रवेशा घणकडितडिछाए / रम्ने महामेघ इति जलमारणाने प्रावृधः निलम्बा समूहः सातत्यनान्तरम्। मूलान्येषांबहूनि दुरावगाटानि चसन्तीति मूलमन्ता, एवं शेपाण्यपिणिझुडुरगयद्यपि पाण्डुर जीर्णत्वादचाक्षय॑ तथाप्यच्छत्वाद् निरुपभोगत्वाच्च वृक्षाणां कालेनैव पाण्डुरा भवन्तीति प्रसंसाएवं जाव पामादीटा तस्सणं बहुदेसमज्झमाए लेवस्साहाचति ---- - स्स सेसदविया णाम तस्स णवर्ग घरं, तस्थजं सेसंगृहोपयोज्यं काष्ठटका-लोहादि लेन कृता,केचिद युवी-गृहोपयोज्या द्रव्या गच्छेतेनकृताउदकशाला उदकपणा होमुंहोत्थातसिचणं गिहपदेसंसि, तत्थोबरग-उवटाणिग-पाणियघराणि पदेसा,तस्थडण्ण तरे पदेसे भगवंगोतमेविहरति / कपंडितो ? लधं विहरति उच्यते-जचमणादिलक्षणी विहारो गृहीतः किन्तु उड्व जाणुअघोसिरे झाणको डोवाले, विसेसेण वा कर्मरतो हरतीति विहरति / मधंसावो एक प्रपा ?, उच्यते-प्रागभावकत्वात् कृता, साम्प्रतं निरुपभोगिल्बाद Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिसागारिकी,अत एव भगवान गौतम अन्त्रावास्थितामगाव चणअधे आगमंसिआगत्य यस्मिान् रमन्ते इत्यारामा,अधे -आरामस्य गृह अघोअधेतत्य भगवान बर्द्धमानमामी द्विती,ससाय साधवी लत्थ तत्य देउलेसु सभामुड़िता। अधणंउदए वचिज नियंठ मेतज्जे गौतेणे जेणेवभाव गोतमलेणेव उवापाच्छति, --उतागच्छत्तिा भावं गोतम एवं वदासी आउसंतो गोयमा अस्थिरखलुमे के पदेसे पुच्छियचे,तंच में आउसो! अहासुतं महाद -रिसितमेव विद्यारहि सचाया भाषं गोतामे उदयं पेढालपुत्त एवं वदासी-अवि याइआइसो! सोच्क्षा सिम्मजाणिस्तामो अध उदए पेढाजपुत्ते पासावच्चिज्जे निगाथे 'निन्थिः किल सयं भगवं वर्द्धमानस्वामी भवतिन मवलिर' इति टुक्रवं हि भगवान अयंलास्यत इतिगौतमसामीप्य आगत्य भगवं गोतम एवमाह-अस्थि खलुमे आउसी प्रदिश्यते इलि प्रदेश, प्रवचनस्य प्रम इत्यर्थः तथा ममापि व्याकरोहिाएवं पूढे उदएणं पेढालपुतणं स वायं शोमानवाक् सवाया,अशोभनात "अलियमुवघातजणणं"E----------] इत्यादि, अघवा निर्वहणसामर्थ्यात् शोभना वाकासोच्चा णिसम्मत्ति किंचि सुब्बते ण -णि सम्मले, किंचि सुब्बतेविणिसम्मत विन्ट, बिलिय-चउत्था भंगामुणातिदेवं बूहि-याद मुस्खा लास्थामस्ततो वक्ष्यामः,न चिद लास्यामो भगवन्तं पृच्छामहे शर्थः भगवता गौतमेनोके -- Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -------- सवायं उदए पे ढालपुसे भगवं गोलम एचं वदासी-आउसे गोलमा | कुम्मार उत्तिया काम सनणा धिा .. -भाग पचय पवयमाणा हावति सामनी वारसा उवसंपण्णं एवं पच्चश्वालि- UTS पास्य अभिजोएणं गाहावनिचोरगहण -विमोक्रवणताए तसेहिं पाणेहि धिय दंडं, एव ण्डं पच्चरवंताणं दुप्पच्चक्यात भवाति,एव पहं पच्चरवावेमाणाण टु पच्चक्रवा वियं भवति, एवं ते परं पच्चक्लवमाणा अहिचरति सयं पति, कस्स हेउं ?, संसा रिया स्वनु पाणा सावरा वि पणा त सत्ताए पच्चायंलि तमा वि पाणा सावरत्ताए पच्चाति, थावरझायाला विमुच्चमाणा लसकार्यसि उववज्जति, तसकाटातो. विप्पमुच्चनाणा यावरफायसि उववज्जतिले सिंच णं थावरकार्यसि उववणार्ण ठाणमयं घण्णं एवण्ह पच्चक्रवंलाणं सुपच्चक्रवातं भवत एव पच्चरवावेमाणासुपच्चक्रवावियं भव एवं ते परंपच्चरखावमाणा णालियरेंति सयं पतिर्णपण्णस्थ अभिजोए f mहावहि-चोराहणाविमो करवण ताए लस भूतहिं पाणेहिं णिहाय देई, एवमेव सति भासापरक्ष विज्जमाणे जे ते को धा वा लोभा वा |परंपच्चरवाति अर्यपिणो देस किंणोणटाउले भवतिर भवियाई आउसो गोरामा तल्भ पिए रोटाइ॥---- - ----- - सवायं भगवं गोरामे (उदयं पेढाल पुतं एवं वदासी-पी रबलु आउसी उदगा ! अम्हे एयं रोयइ,जे ते समणा वा माहणा वा एवमाइक्रवति जाय परवेंलि को रखलु ले समणा वा पिगंधा वा भासं भामेति, अणुगामियो रखनु ते भासं भासंति, अभाइक्वंति खलु ते Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -समणेसमणोवासएगाजहिं बिअण्णेहि पाहि भूतहिंजीवहिं सत्तेहिं संजमंतिताण विते अमावालि कस्सणं तं हेउरी, संसारिया-- . खलु पातमा चि पाणा थावस्ताए पच्चायति, थावरा वि पाणा ससत्ताए पच्चायंलि, लसझायालोविमुच्चमाणा शायरकासि उववजलि,थावर कायासो विपणमुच्चमाणा तसका यंसि उववजलि, सेसिंच णं तसकार्यसि उववण्णाणं ठाणमेयं अद्यण्णां / / ---- ____ सतायं उदए पेठाल पुत्ते एवं वदासी, सवायं तिममिथ्याहिमानात् पूयाविमत्या, केवलं तस्योपलम्मात्, अस्थि रखलु गोलमा! कम्मारउलिया णाम कर्म करोलीसि कर्मकार: संवा शिल्पी वा कर्मयकारस्थ पुत्राः कर्मकारपुत्राः, कर्मकारपुत्राणामपत्यानिकर्मकारीय पुत्राः,समणे उवासन्तीति समाणो बासगा,तुमागं ति युष्मा किं प्रवचनं सत्वोदितो ना बचनं प्रवचनम्गाधावतिसमणोवासए एवं पच्चक्रवावैलिस्यिात्-कथं मया श्रुतम्तावल्कसाधुसमी गतेन वा, वसता से वामत्समीपागतागले तुस्सईत्ति, कथं वा ते प्रत्याख्यानमित्युक्तं एवमाह-पाऽणत्य अभिजोएणं, अन्यत्रेति परिवर्म नार्थः, अभियुज्यत इत्यभियोगः,तं जधा-रायाभियोगण गणाभि. बलाभि रायाभि जटा वरुणो णाणतुओशयाभियोगात् सङ्काम कृतवान् अण्णो वा कोयि रायवित्तीत जीवी सड्झामे परान् हन्यते एवं गणाभियोगे विमलगणादी,जधारायाभियोगो ला हिमव्यापा मादिजीवितान्तकरान निवारयत्नादारीरस्थधर्मों भवतीत्यलस्तत्रापिरोयाभियोगवद सुव्यम् आकार एवच एतावान् भवति,जे 'पच्चक्रवा ओ चेवरायाभि योगादि गारं करोति जघा सहिमादिअभिभूतो पलायंतो तसे पेल्लेति। स्यात्-कथं लमपाणेमु Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - णिविखवावलस्स आयरियस्स एगिदियवधाणुण्णा ण भवति उच्यते-चोरगहण [वि] मोक्रवणताए ति उदाहरणं- एगम्मि गरे रणा तुद्वेण अंसेपुरश्य रत्तिसच्छेदपयारो दिण्णी, गागरहि वि रायाणुवत्तीए वारिसे वारिसे लदिवस महिलाचारोऽ गुणालो या पत्तेच लहिणे रणा घोसावित-जो पुरिमी अतीति तस्सदंडो सारीरो। नेव णिति / बढेसु बारेमुताओ रायाणिो णगरमहिलाओ यसच्छेट्सुई रत्तिं अ भिरमन्ति। तत्थ कदायि एस्स दणियस्सछ पुत्ता सायणे ववहरमाणाअतीवझयक्झिये वढमाणे अत्यलो भीय जधिच्छितं पणिय विकमाणा नाव द्विता जावसूरो अस्थती। महिलाको यहिँ3िऊण पवत्ताओ। ते यभीता तम्मि चैध भवणे णिलुका / वत्ते महिलाचारे सूचके - हिं रणी कहिला, बझा आणत्तापिता य तेसिं सबप्पालीहिसा विण्णवेति-दंड देश अतीच बरिज्ज -माणी भणति-एवं ने जेटुपुत्तं मुआनिमोभणसि-सबे मुअधा वृतरो भणलि-जेहपुतले मुआमि, इतरेण मुआमि-तिकट्टत मोतुं सेसा विरसमा मस्स दातेलि ।एवं साधू वि भावा भणाति-अनुजीवणिकाएमु क्रि णिकिरवव देडं / सो णेच्छति, इत्यतः चो रागहणमोक्रयणवृताए माधुणा सेसा काया अणुण्णाला ण भवति / स्यात् -कथं चौरास्ते स्वगृहे तिष्ठन्त:१ उच्यते-राज्ञान ले पातनुशातस्तस्या रात्रौ नगरेवास इत्यतः। अधवा सेट्ठियुत्ता रण्णा कन्हिय आयोए णि ए जिउला, तेहि अकिंचितस्य अवहित लत्रापि संचेव जाइज्जमाणो राया चिराणुगतो ति काण एवं विसज्जेति / उदए आह लसेहिं बैंदियादीहिं गिधय त्ति कारस्य हस्वत्ये कृते निधाय भवति, निक्षिप्त्यर्थः। एवं तेसिंसाधूर्ण पच्च Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खिलाणं सलगलिभाविस्वात्त्रसामांदपच्चक्रवातंभवति, तथाच-म मालिसाकश्चिज्जीवोऽस्ति,वामानामसनकाल मात, लिथा प्रत्यचक्षाणाना भावकामप्यसर्वकालत्वादेवत्रसाणं यच्चक्खाल भवति एवं ले परं पच्चक्रवावेमाण सि, पर इति साधुनी तावत् परःश्रावकः, अतिचरंति सयं पति, अतीत्यचरन्ति अतीत्यर्तन्त इत्यर्थः कसरं, पतिण्णच यथा वयंवसेभ्यो विरता इत्यर्थः / यदि हि अत्यन्तवसाः स्युः तसका ये मोसुअण्णस्थ, अण्णास्थ aa उववज्जेज्ज इत्यर्थः,भावका मालिघरेयुः स्वां प्रतिज्ञाम जम्हा य ते साधुणो जाणं ति णस्थि कोथि अच्चंतप्तसाति,सो हिय पच्चकाटोन्ता धिज्जादिता भवलिभावकाः मृघालादादित्वाचालित्तरन्ति स्वामृपावादवेरमण प्रतिक्षाम् श्रावकस्यापि साधू पच्चक्खेतओ परी,तेण परेण अप्पणी पच्चरखावमाणा असर्वकालत्वातन्त्रसानातिचरन्ति स्वा प्रति झा,यथा वयं सेभ्यो विरता इति,अप्पाणं साधु च पच्चकरवायलयं विसंवादयन्ति ।कस्स णंत हेतुं तिकस्माद्धेतोरित्युक्तं भवति।सिंसारि या] संसारित्वात् सर्वजीवानामिति हेतुः वन्चितिविशेषणे। किं विशिष्टि 1, न कश्चित् संसारी जीतोऽस्ति जो हिलासुस्ता गतिसुन संसरति थावरा विनिप्रकाराः] त्रिप्रकारेवेवसेतूपपद्यन्त त्रामा अपित्रिप्रकाश त्रिनकारत्वेव स्थावरेखूपपद्यन्ते यावरा पा - विष्यमुच्चमाणा वैयिथावरायावरताये काल किच्चा लसकासिउववज्जेज्ज तलोमावगस्तं तसवाणं घण्णं भवति,जलो सावरोणं स्थाय-- राणं जपच्चरवायं तिलसाधिके तसत्तातो कालं किच्चा धावरसायंसि उवधज्जेज्ज लतीसाबगस्सतं यावरहाणं अघण्णं भवति,अती Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साषशेण तसाणं पटाक्रवातंति, घासनीय हात्यं वा दो च्ोतएला संसारिजीलदाणाई-तसडाण पावराणं च।तंच लसट्टाण सावगस्स स्थूलत्वात् प्रातिपातस्य लीलाध्यवसायोत्पादकत्वालोकगरहितत्वाच्य अघणं स्थावर हाणं तुमस्तैरेव कारणेसह तेजी वायुभ्यां हाहासान्तो नागरकवधानिवृत्त वत्- यथा कश्चिद् बूयात् मया नागरकोन हन्तव्य इति,सच यदा लं नागरकं शामगतं हन्यात् तदालत् किं प्रत्यारख्यामं न भानं भवति, जो तसे पच्चक्खालि एणमारेतव्यत्ति सो जता ते थावरगले ति तदा कि तं पच्चक्रवाण ण भगं भवति ,स्थाच्येत् कथं सुप्रत्याख्यापितं भवति साधोः कथं च सुप्रत्याख्यातं भवति भावकस्य उदओ आह-लल उच्यते,तेर्सि -साधूणं पच्चरवायंताण एवं पच्चक्रवावेमाणाणं सुपच्चक्खातं होज्या सावगाण वि लेहिं साधूहि पच्चा ताणं एवं सुपच्चक्रवात --------- होजा एवं ते परं पच्चक्रवावैमाणा, परवान्दो हिउभराशाहि, पच्चाइकरत रस हि पच्चरवावमाणे परी, पच्चरवावेतस्स वि पच्चा वश्वमओ परो इत्युषाच, यथापिपरशदः मातिचरन्ति स्वा स्वां प्लसिलामणS vणस्थ अभिजोएणं ति। सोहगाहावति त्ति यावन्न व सानि लावद् गृहपतीत्युच्यते,गृहीतानुप्रतस्तु श्रावक उपासको वा। लस भूतेहिं पाणे हि ति मजुसूत्रादारभ्यसर्व एव उपरिमा ण्या मेश्वयिकाः, ते तुवर्तमानमेवार्थ प्रतिपद्यन्ते म त्वतीला-नागते इत्यतो मैश्वयिक नरामधिकृत्योच्यते-नसल्वं भून येशांत त्रसभूताः, वर्तमानमित्यर्थः, न त्वनागतं घृत घटान्तमामात् ते भवन्ति नसभूताः, तेहि तसभूतेहिं पच्चरवंत--- Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस साधुस्स अलियषणवेश्मर्णण भगं भवति, पच्चाकरवावेतरस य सावास्स स्थूलपणालिवातीरमणं ण भगं भवति। को - दृष्टान्त:, क्षीरविशति प्रत्याख्यान दधिपामवत्-यथा क्षीरविशति प्रत्यारण्यायिनः सस्तरमपि दधि पिबतः प्रत्याख्यान न भज्यते एवं वासभूता नया सस्वा न हन्तव्या इतिस्थातरानपि हिंसलोऽपिन त्याच्यानातिचारो भवति एवं तसभूते पच्चाइदिख उं सावगस्सा वरेसुनसत्वं नास्ति' इति कृत्वा स्थायरान हिसतोऽपि न साणालिपातातिचारो भवति / एवं सतिभासा परक्क से विज्जमाणे ,भा मापन मे जामा वाग्विषयविशेष: स्यात् को विशेषः ननु असाभिधानभूताब्देन साहीतहित्ययं विशेषो विजमाणे / कोहि णाम अविसेसीले पच्चरवाइ?, कीधे,माणो पिको धाणुगतीचेव,माग्निवत् लोभेण सावन जाता संसा अहं असणादी दाहिन्ति / दिशौ णाम उपदेशः दृष्टिा उपदेशः अपि पदार्थादिषु ठम्मागदेमणा य भवति, णय तं पच्चखाणं सुज्झति।मोक्रवंायणशीली णे या उओ। अवियाई जाव रोचा गौतमो भगवानाह----- - गो रखनु आऊसौ! पेठानस्यैतत् कथं न रोचते, ठम्माविर्सम वस्) को णाम सवेलणो जाणमाणो उज्नुयं से आमण्णगमणं च पंथं मोजूण लजिवीतेण पंथैण वच्चेजार, को वा आणतो पिचिर्स भीअ मोतूण सविसं मुंबेजा। समणा चेव माह णा तत्पुरुषः समासः, अधवा माहणा नावका: एवमाइक्वंति नाव पण्णावेति- गो रखलुसमणे, समाह तुल्या सारणाअसम इत्येवा ख्याान्ति अणुगामियं खनु जाए अणुगच्छन्ति संसारं सा अणुगामिया भवति। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमूतील्लावन अभ्याख्यान भवति, निजलो वा संयता-संयतवत् ,सोअर्सयतं सं यतं हातीतिसी अभ्याख्या तो भवति,संयतं वा असंजत भणति सो वि अभयरवाली भवति।उक्तं हि-"जेणंभले! परं असते अप्पगं पिअमाइक्रवंति" ] जैण पच्चरवा विधि जालि अम्हे पच्चक्रवाणविधिं जाणलि अम्हे पच्चक्रवाणविधिजाणा' ले समण ति समत्तिले आयरिया सिम्साणं साणं उबादिसंहि-जधासावण एवं पच्चकवावेमाह / जैहि विअण्णेहिं पाणेहिं जावसत्तेहिं संजलि ते वि।स्यात्-कतर ऽस्यान्य प्राणाः१ एगिदिए.पंचिदिए / तत्थ वणस्सतिकायणि दरिसणं-जधाकण वणस्सलिकायसमारंभ स्म पच्चवश्वाल, आईछेदयेत्याः, तत्य नाम लेण वास्मतिभूतस्स पच्चारयात, कि कारण १,सो वि संसारी कदापि पुटविकाएसु उथवजाति तेणर्त पुटविकाइयं वधे लेण तुझंचएणं पच्चारवाणं भाग भवति / अथ भूतशब्दमन्तरेणापिवणस्सतित्ति समारंभ च्चक्रवाणं सुज्झति,कस्त्रसेस्वपरितोषः। अधवा जेहि वि अण्णेहि पच्या इकरवति ते वि ले अभाइपरवति कथं तर्हि अत्र प्रत्या-ख्ये या गहान्ते, न तु पच्चक्वंतओ पच्चक्रवात ओ बा कथं ते अभाइपियत्ता भवंति जेण लेसु भूताब्दः प्रयुज्यते, भूताब्दो हि यातां गति गत्वा औपन्य ना तदर्थे बा औपम्ये तावत्-सो देवलोकभूते ऽन्तेपुरवलीत तुमीतीमती परिणिती। औप म्येलासमारले, किं कारण ?, हि अण्णो कोयिसकायोजधा देवजोक देवड़ी,तत्र THURUN (वर,एवं Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नसावनस्थि कोइ असभी जेणतसा तसमूता दुच्चेज्जा लादयेऽपिनघटते, कयाम् ?, जात्यानेदात् यथाउदक अमिन्तायामुदकजातो अशी तं शीरीभवति, शीतवा अशीतीभवति, किमेवं त्रससासत्वेनाविगत एव सन्मीभवति,उसीभूतश्च पनस्त्रसी भवति च्च तस्मादमृतशब्दो होट एव, होटश्याभ्याख्याममित्यतो येऽपि प्रत्यारव्यया लेऽपि अमाइक्रवंति कर,जो हि साधु साधुभूतं भणे जा लेग सो अभिकरणाती,कधं णाम सो साधु साधुभूती प.पुण अमाधू साधुभूल भर्णतो तं साधुमस्माइन्वति कस्सणं तं हेतु -कम्माढेलो अलावा होतिजेण लस-थावराणां पाणार्ग अणेण संकमणअविरुद्धं,सत्यप्यविशेधे तसेसूबवण्णाथावराणं - - तमाण अधण्णं अधातनीयमित्यर्थः, अर्थतः प्राप्तं तसाणं थावरेसबवण्णाणं ठाणमेले घण्ण, सदपि अनहाए माणं, अट्टाए जाण / शीष कण्ठयम जंच भगसिणगरमो मएण घातलो सितं गामंपिगलं यो घातेति तेण पाखाण भयभिवति,एवं तमाम तलको सिमाम सोय याव स्ताए गले पातेली ससवरेण पुट्ठो,जलिपुणलसभूतो भाणेज तो मुच्चेजा,लवयुक्तम् कध, -णिच्छयणए पहच्च पारहितो मारतो तीर्शकाकवला एवं सोमए तसोणघातेलल्यो ति तस्यामेव जालौ वर्तमानो नात्या,यावरगती पुण चे लसो भवतीत्यती सट्टाणं मध उदओ ----------- सवायं उदए पेढानपुत्ते भगवं गोलम एवं बदासी-कयरे रयलु भाउसंतोगोतमा तुभ वध तसपाणा समामा-- Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - उमण्णहारासायं भगवं गोलमे उदयं पेढालपुर एवं पदासी-आउसंती उदगा! जे तुम्मेवदह तसभूता पाणा सा पाणा लेवयं वदा मी तसा पाणा तसा पाणा, जे वयं घयामो तमापाणा प्रमा पाणा ते सुटी वदह तसभूता पाणा सभूता पाण। एते संलि दुवै ठाणा सल्ला पाहा, कि माउसी! इमे भै सूवणीततराए भवति लसभूता पाणा तसभूता पाणा,इमे मे दूवणी सतराए भवति- तसा पाणा तसा पागा, तो एमाउसो पडिको सह ए अभिणदह, अपि भे देसे णौ णे याउले भवति | भगवंच णे उदाहु-संगलिआ मणुम्मा भवति, तेसिंच ग एवं वृत्तपुत्वं भवति- गो रखलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता भगाराती अगारियं पलत्तए,वय प्रणं अणुपुषेणं गुत्तस्स लिसि सामो,ले एवं संरवंसावेंसिव ले एवं संवं ठवयं तिले एक संखं ठावयंतिSUणस्थ अभिजीएणं गाहावलिचीरगहणविमोक्ष पत्ताए तसेहिं पासेहिं णिहाय दंड, तंपि तेसिं अधाकुसल मेव भवति॥ -----सवायं उदए / रोसेण पडिमिधिसेण वा,ओभावणला वा म केवलं, किंतु कुसल गवेषित्वात् कतरे तुझे बद्ध सपाणा ट्रक ठो सवायं भगमं गोदने उदयं पेढानपुत्त एवं वदासी-जे तु वदह लसमता पाणार तेवयंवदामो तमा पाणार, एते तमा विद्वान्से, लमा य नसभूता य यशप्येकभूतवान्दोऽधिकस्तथा प्यभेदः) भवतो न भवतीत्यतो तुल्या एकाश्रयत्वात् एटा। मुखसुश्वोच्चारणात सपनी ततशऽप्येवं उपनीलतरा तसा पागा अथवा अर्थमुपमयतीत्युपनीतं भवति-किं सुश्वतरं Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --सभूताभिधानेन अस्थो वणि जाति?, गम्यत इत्यर्थः,तभाभिधान मुखत उवणिजति भूतसद्दी पुण औपम्ये तदर्थं च वर्तते। तदर्थे लावत-जम्हा भूत भवलि भविस्मलि तम्हा भूत, अधिवा सीतीभूत परिणिबुडे भातम्हा उमिणे उसिणभूत जाते आदि होस एवं दिपा भूतशब्दी वर्तते, अप्येवं सम्मोहं जनयति न तु निण्णयं / कथं न En; औपम्येऽपि-सो देवलो गमते हि कश्यित त्रस तुल्योऽन्यः कायोऽस्ति जे सम्मभूता वच्चोज, परिवोषात लादी एव घटते, - सादोऽपि च भूतवान्दमन्तरेणापि स एवार्थः कुइयति परि-समन्तात् , कुशा आह्वाने "मिदंध आक्रोशातल्यर्थः।मयनशीलो नेयाओ ,मोक्ष मयतीत्यर्थः अभिमुख नंदध प्रशांसत हत्यार्थाः ।अयं पिभे देखे दर्शन दृष्टिादेशः उपदेशी मार्गः, स्वसिद्धान्तरसपनाष्टमित्यर्थः / किञ्चान्यत्जं तुम्भे भणहतसभूएहि पाणेहि णिकिवाय दर्ड लि त समयविरुद्धं, कई १-भगवं च उदाह संति एगलिया पुरिसा भवंति गम्भमत लिया संरखेज्जवासा उया आयरिया,वृत्त पुल्य लि अतीत झालो गहितो, एगरगहोण नमाणो विगहिलो अगागलो ति / अतीतगहणं सु अगादि सिद्धमार्गस्थापनार्थम् / " गुपू रक्षणे" तस्य गोत्रं भवति / उक्तं हि-"ण विहे मन्तपदेण गोतं" संयामित्यर्थः। अणुपुले ति अनुवृतानुक्रमः,अथवा थोवयोव संजममाणो आव एगारसमाउवासगपतिमा, एवं | अणु पुल्लीए "माणूस रखेत जाति -] अधवा अण्ह पगडी" -.--..] अधवा सषणे जाणे य -विण्णाणे"--- संत सावेंलि,किं 1, कोयि एवं अणुब्बत कैयि दोषिणलिणि जाव पंच,एवं उत्तरगुणे-सुविभासा। Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागार्जुनीयास्तु-एवं अप्पाणं संकसावें लि, कष गौ" तरिमानौत गृहिधाम सम्यग् आत्मानं कसावेंलि संक सावेंलि,म प्रधाजतीत्यर्थः, साणि पुण बताण एवं गोण्हति ण णथं अभिजीएणं जाव अधाकुसलमेव, जया साधू णं सब्बतो विति', एवं तसि पिजधा इत्युपमाने, यकारस्य व्यञ्जनलोपे कृते अकारेऽवशिष्टे भवति अहाकुशालमेव भवति / किं ज्ञापकम् ?, ततो पच्छा तरस अधालहए स शाम पवेतब्बे सिया / जैसु पुण मी पच्चावरवाणं करेलि ते तस-यावरा वा स्यात् / कटी तसो यावरी वा भणलि९, उच्यते-- - लसावि पुच्चति तसा तस संभारकडे कामुणा णामं च अत्भुवागलं भवति,लसाउटां च णं पलिकरवीण भवति लसकाहितीया [ले ततो भाउयं विप्पणहति] ते ततो आउयं विप्पजहिला थावरत्ताए पच्चायति ।थातरा विषुच्चंति स्थावरा] थावरसंभारकडे कामुणाणार्म च णं भभुवयं भवति थावराठयंचणं पनिकरवीणंभवति, थावरकायद्वितीया ती ततो भाउयंग विप्पजलि ते सतो आउगंपिप्पणहिता भुजो पारनोइयत्ताए पच्चायलि, ते पाणा वि बुच्चलि ले तसा विषुच्चति ते महाकाया,तेचिर द्वितीया ----- - ससा विवुच्चति तसा तस सि संला,सा च दुविधा-गौणी पारिभाषिकी च विभाषितव्या, व्यं तु न पारिभा पिकी इन्होपकवता गौणी भास्करवत्,तत् कथम्? तमसंभारकडेण तसा णाम,णामसंभारो णाम सल्वात सेधूपपयारो,किनक्तं Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवति? जति वि तेहियावराणामकर्म बद्ध तंच लहं तथा वि थावरेसुण उववजलि।उक्त हि-यगुरासं टाटासन्न वसन्तीति -सा गोणी सेना, प्रति पुण तसा वच्चेज्जा लेण तसभूतणा णाममा वुच्चेजान तोच्यते, तेण लसाचेदा अभुगतं तिलो लोतरे चलसाचेव अभ्युपगम्यन्त मतसभूत। / उदग आह-केचिरंतसाबुच्चंति, जाव लसाउभं अपलिकतीण, उक्कोसेणं - जाव तेत्तीसंसारोवमाTि ITIमार्जुनीयास्तु आउअंचण पलिविश्वीणं भवतिसतसकायद्वितीया लेहलतो भाउअंविधाजहिता -विण्हे थावराण अण्णतरेसु उववज्जतिाथावरा विवुच्चंति संभारकडेण ति विज्जमाणे उदी इत्यर्थःणामंचणतधेव ----