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________________ चण-संगंय-संयुसा मै,एते खलु ममणायमी अहमविएलेसि। --------- __------ से मेधावी पुवमेव अप्पणा एवं समभिजाणेजा-इह रखनु ममे अण्णयरे दुक्रवे रोगात के समुप्पज्जेज्जा अनिष्ठे जाव दुरवे णो मुहै;से ता भयंताशे णायऔर रेइमं ममऽण्णय टुक्रवं रोगालंक परियादियध आणिषु ष णी सुहंमा हिं टुक्खामि वा सो तामि वा जाव परितप्यामि था,इमालो मै अण्णयरातो दुक्खाती रोगातकाओं परिमोएहे अणिवासी जाव गरी सुहाती - एका मेव री लवपुर्ब भवइ-तैसि वा विभयंताराणं मम ाययाण अण्णायरे दुक्खे रोगात के समुप्पज्जेमा आगडे - अवो सुहे से हताअहमे तीसं भयंताराणं णाययाणं इमं अण्णायरंदुक्ख रोगातक परियोदियामि अणि जावणी सुहमा मे दु--- क्विंलुवा जावमा म परिसप्पनुवा, इमामीणं अण्णयरामो दुखाती रोगालंकामौ परिमौएमि अणिडाभी जायणी सुहाओ। |--- --- एवामेव जो लद्धपुत्वं भवइ -अण्णस्स दुक्खं अण्णो नौ परियादियति, अण्णण कई अण्णौ णी परिसंवैदेति, पत्तयं जाति पत्तेयं मरति पत्तेयं चयति पतेयं उपवर्जति (1000) पत्तैयं झंझा पत्तय सणा पत्तेयं मण्णा एव १२विन्न वेदणा, इलि खलु जातिसंजीणी ताणाए 13 वाणी सरणाएवापुरिसो वा एाता पुल्विं गतिसंजोए विप्पजहतिषणातिसंजोया वाएगाता(ता, विं पुरिसं विप्पजहंति, अण्ण अखलु जातिसंजोमा अण्णी अहमंसि,ये किग पुण वयं अण्णमोहिं जातिसंजोरीहिं मुच्यामो
SR No.002426
Book TitleSutrakritanga Churni
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages284
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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