________________ बिद्ध कुंतेण वासुंबेण वा उपप्रकाशावस्थितं कुमारकं वा बालमित्युक्तम्। एक गिलाणसिक्वु रस छिन्नमत्तम्स दुल्भिदरवादिम जाततेये - पतु पिंडी यमिति पलितं सुगंधं सुर्ह श्वाइस्सं ति सती बुद्धी तस्यां कल्पति बुद्धार्ण ति मित्यात्मनि गुरुषु च बहुवचनमबुद्ध स्स वि लाव कपाति किमु ये तच्छिस्या 9 / अथ बुद्धस्या पत्यानि औधवानि तेसि णं कति पारणाए भोजनाये त्युक्तं भवलि (स विस्थासु अचित्त कर्मचर्य नगच्छति, अविज्ञानी पचित ईर्यापथिक स्वास्तिक चेत्यम्माकं कर्म चयं न गच्छति२८॥एवं तावच्छीलमूली धर्म क्तः। अथैदानी दानमूलः "सिणाला तुदुवे सहस्से,जे भोयए णियए भिक्रयुगाणं। - - -- लण्णखधं सम हाजिलिसा,भवंति आरोप महंत सत्ता // 29 // अजोजसवं वह संजयाणं, पावं तु पाणाण पसज्झ काउं। अबौहिए दोन्ह वितं असाधु वयति जे यावि पश्सुिणं ति // 30 // - "उडमधे य अंतिरियं दिमासु , विषणाय लिग तस-थावरसु। .. भूताभिसंकाए दाछमाणे वदे करेज्जा व कुतो विहऽत्थी 11 // 31 // पुरिसे त्ति विष्णु ति ण एवमत्थि, अणारिए से पुरिसे यहाहु। को संभवो पिण्णगडताए?वाया बि एसा बुश्या असत्या // 32 //