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________________ सुवण्ण-जक्रस-रकमयस-किण्णार-किंपुरिस गरुल-गंधव्य-महौरगाइएहिं देवाणीहिं निगांधाओ पावयणामो अणातिकमणिज्जा इणमेव / निगराधे पाषणे जिस्संकिता णिछरिवसा णिवितिगिच्छा लट्ठा गहितहा पुच्छिलट्ठा विणिहिछसट्टा अभिगतहा अट्ठ-मिज पेन्माणुराग रसा अयमाउसो ! मिरगथे पावयणे अढे सेसे अण्डे उस्मितफलिहा अवंजुत्दुबारा चियाघर अंतेउरपवेसा चाउद्दस-ऽटुमुहिट-पुष्णिमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणा समणे निरगंधे फासुएसणिज्जैणं असण-पाण-खाइम-साइमैर्ण वस्थ-पडिग्गह-कंवन-पायपुंठणेणे ॐ सह-सज्जेण पीढफला-सेना-संधारएणं परिलाभेमाणा बहिँ सीत-ब्बत-गुण-वेग्मण-पच्चक्रवाण-पोसहीबवासेहि अहा परिमाहि सेहि वीकम्महि अप्पाणं भावैमाणा विहरति॥ तेणं एतारवेणं विहारेण विहरमाणा बटूई, वासाई समणो बासमपरियागं पाउणंति पाउणिता आवाहंसिउप्यासि वा अणुप्पण्णझि वा बहूई भत्ताई पच्चक्रवायंतिबहूई भत्ताई पच्चक्रवाएत्ता बटूई भताइं अणसणाए छैदेति बहुई भित्ताई, अणसणाए असा आलोइय परिवंता समाहिपक्षा कानमासे कालं किच्चा अण्ण रेलसुदेवलोएसु देवताएउवर्वतारो भवंतितं जहाँ-महिडिएसु महज्जुतिएK पाव महासोक्सेसु सैसंप्तहेव माव एस ठाणे आयरिए नाव एलिसम्म साहू तच्चस्य ठाणस्स सीसगस्सावभंगे एवं आहित // --- अविरतिं पडुच्च बाले आहिज्जति, विरतिं पडुच्च पडिए माहि जति विरताविरतिं पुड्डुच्य वालपंडिते आ
SR No.002426
Book TitleSutrakritanga Churni
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages284
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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