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________________ Tणामणिफण्णे अद्दइज्जगाअद्दणिविखवितळ णामई णुषण दव्वद चेव हो भावई ।एसी खलु अद्दस्स उ निक्षेवो चाविहो होति॥ " उदगई सारई छविय खतहासिसई। एयं लई खानु भावेण उहोति रागई / / . एगभविए य बद्धाउए य अभिमुहियणामसीए य एते लिणि पगारा दवहे होति णायला / / -- अद्दपुरे अवसुतौ णामेणंअद्दभोलि अणगारो। -- तत्तोसमुहियमिणं अज्झयणं अद्द इज्ज ति। कामं ट्वालसंगं जिणषयणं सासयं महाभाग। -सज्झयणाणि तहासबक्रखरमाणिवाया या - - लहवियकोई अत्यो उज्जतितमि सम्मि समयम्मिा पुलमानी अणुमतोय होति इसिमसिएसूजहा। णामाई ठवण गाणामहं अधा सिंगबेरस्स आईकमिति नामावस्था क्षत्रमाढवण्ठं चित्तकामादिमुभाईकलिखितम्। आहा नक्षननलिखितम् //
SR No.002426
Book TitleSutrakritanga Churni
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages284
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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