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________________ -दोच्चै महाभूते सेऊलच्चेमहभूले पाऊ महमूत आगासे पंचामे महल्भूत इच्चैते पंच महसूया अणिम्मिया अणिम्मिया (अणिम्माविता - -- अक' वृन्दी०॥) अकडा पार (शौ कत्तिमा) कित्तिमा (6मा यो कयगा अणा खेप वृन्दी० 1 माणी कडगा अणा खं रापपुर।)अणादिया - अणिधणा अवंझा अपुरीहिता सकतता (संतता सामता / तो 1 पू.१ पृ-२ -दी-) सामतााआयचट्ठा पुण पुगेएवमाहु-सती पस्थिविणासी, असतो गास्थि संभवी, एतापरतावं रब 25 लाव जीवकाए, एताव (एता खालाव अस्थिमाए एताव लाव सब्बलोए, एतं मुहं लोगस्स कारणयाए, भावअंतसो (अविर्यतसीख पुरापुर) तणमायमति से किणकिणावेमाणे हणं घायमाणे पयं पयावेमाणे अवि अंससा --अवि यससीख र पुर) पुरिसमवि विकिणिसा घायइत्ता एeerवि जाणेध गास्थित्या दामी। -------- वे जी एवं विप्पडिवेदेति, तंजहा-किरिया इबाजाव अणिरए इवा एवं ते विख्वस्वैहि कामसमारंभहि विरुवरनवाई कामभोगाई समारभति (रंभति वं भायणाए। एवमेव ते अारिया विप्पडिवण्णा तं सहह माणा तं पत्तियमारा जाव इति तेणी हवाए -- पाराए अंतरा काममोठीसुविसण्णा, दोच्चे परिसज्जाए पंचमहभूतिए ति आहित ||10|| ------------- पू.-२. अधावरे दौच्चे पुरिसजाए। इह खलु पाईणं वा एक सतगतिया (एक इति चतुःसयाद्योलको अक्षराङ्क: 1) -- सिंगतियानी ( इति पञ्चमद्वया द्योलकोऽक्षराङ्कः / / ) माव से एवमायाणह भयं सारौ ! प्रहा मैसै धम्म मुअक्वात कलरे धम्मे / / प्रय एतच्चिाम्हान्तर्गतसूत्रपाठस्थाने खर आदर्शे जाव इत्येव पाठीवर्तते ।पुरपूर आदर्शयो जाव अनिरए लि; इतिपाठी वर्तते।। ---- 16 // एतचिन्हान्तर्गल पाठस्थाने खरपुपुर प्रतिघु जाव विसपण त्येव पाठी वर्सते ||
SR No.002426
Book TitleSutrakritanga Churni
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages284
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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