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________________ या हैऊ पत्ता, संजहा-पुढविकाच्या जावलसकाच्या,से जहानामते मन अस्सातंदडेण वाअट्ठीण वा मुट्ठीण वालेलण वा कवालेण षाआती हिज्जमाणास्स वा आव उद्दविजनमाणस्म वा जाव लोमुक्खाणमातमावि वि हिंसकारं दुक्रवं भयं परिसंवेदेमि, इच्चेबं जाणसचे पाणा जावसले सत्ता दंडेणा वा नाव कवालेण या आती उिज्ज माणे वा हम्ममाणे वा तजिज्जमाणे वा तालिज्जमाणे वा जाव उद्दतिजनमाणे बा जावलोमुक्खणणमालमवि विहिसकारं टुक्रवं भयं पतिसंवेदेति,एवं पच्चासचे पाणा जावसवे सत्ता न हलव्वा गाव उद्दवेयब - एसमे धुवे णितिते सासए समेच्च लोग श्वेयणहिपवेदिते.एवं से भिक्खू विरते पाणा तिवाया तो भाव मिच्छा सणसवाती , से भिक्खू णो दंत पक्रवालणे दंते पक्खालेज्जा, जो अंम णो बमण जो धूवणिति पिहिते, से भिक्खू अकिरिए अलूसते अकोधे जाव भ लोमे वसंते परिणिबुडे, एवं खनुभगवता,अक्रवाते संमतविरत पडिहसपच्चक्खातपावकम्मे अकिरिए संखुडे एगंतपंडित भवलि -तिबेमि।।-- // इति वीयसुयक्रबंधस्स पच्चक्रवाण किरिया FIR चउत्थं अज्झयणं सम्मत्त / ---- से किं कुल कि कारवं संजसविरत जाव कामे भवति, सोलि सो हं:-किमिति परिप्रश्ने, किं कुव्वं व्रतं तवी धर्म नियमशील संयम वासंजतविरत जावकामो भवति १,जण मुच्वैज्ज सव्वक्रवाणं किं कारखं ति किमन्यं कारयन्ति ? शिष्याऽऽचार्यसाक न्धो दर्शितः धर्मकथासम्बन्ध इत्यर्थः आचार्योवलीति-तत्थखलू भगवताकाया हेपत्ताजहा अपच्चक्नवाणिस्स संसारस्स
SR No.002426
Book TitleSutrakritanga Churni
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages284
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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