________________ उवमाय पुंडरीए लस्सैवय उवचएण निजत्ती। - अधिगारो पुण भणिो जिणावदेसेण सिद्धि सि // 658 // - सुरमणुयतिरियनिरऔवंगे मणुया पडू चास्तिम्मि। अविय महाजणनेयत्ति चक्लवदिमि अधिशारी॥१५९॥-------- ------ अवियहभारियकम्मा नियमा उक्कस्सनिरयठिलिगामी। ----- तेऽविहु जिणोवदेसेण तेणैव भावेण सिझंसि // 160 // - - जलमालकद्दमालं बहुविह तल्लिगहण च पुक्खारिणि / - जंघाहि व बाहाहि व नावाहि व तं दुरखा है // 16 // "पउमंउल्लंघेत्तुं औयरमाणस्स होइबाक्ती / किं नस्थि से उवाओ जेणुळघेज अविवन्नी / / 16 / / विज्जाव देखकम्म अहवा भागासिया विठवणया।' --पउमटलंधेत्तुं एस वृणी मिक्खाओ // 163 / / - सुद्धप्पओगविज्जा सिद्धा उ जिणस्स जागा विज्जा। भवियजणपोंडरीया उ जाए सिद्धिगतिमुर्वेति // 16 //