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________________ स्वाध्याय-ध्यानादीना मात्रां जामाहीति अण्णतरं दिसंषा[अणुदिसंबरीयमाणे आयरवेज धम्ममाक्खे जायाधुतासै भिक्खूधिम्मकहेमाणी जो अण्णस्स हेतुं पाणवथ लेण सयजना अण्णसिं विश्वरूवार्ण पूया-समार-सह-सव-गधादिकामभौमार्णण Sणत्यधम्म (काम)--- -णिजरनुलाए।इति रखनु हेतु एवं णिक व णिरासंसं धर्म, तस्स भिक्खुस्स अतिय जो सी उडदिदिरसमागलो तीरही तस्स अलिए धम्म सोच्चा त सदृहमाणा उडाए धीरा अस्सिंधम्म सुहिता / ले एवं समोवगता सवीत्मना उवाता वृत्यर्थः बाहिरेण अहिभतरकरणेण य आचार्यसमीपं गत्वा उपत्यसता सर्वतो सबमेव संता (सलोवसंता)1 उण्होदगंबा उसिणं होऊण पिच्छा कमैण सर्वात्मतया गिलुहा - परिणिबुडा। एवं सै भिक्खूधम्मट्टी से बेमि पाईणं वा एक एती आरंभे ऊण जाव परिणिबुडे ति] बेमिति एवं अवधारणे, सै इति स . -भिक्खू एवं गुजजाईझो धम्मेणा वाजस्स अट्ठी धर्म बावैत्तीतिधम्मविनाणियागं णाणादी चरितं वासेजहा सेन्तं (सत्यबुझ्यं ति, से इति निर्देशः,येन प्रकारेण यथा, एत्य अज्झयणे किंचि वृत्तं तं सत्वं बुइत अदुवा पते पोंडरीयंत सवं बुइतं केवलणार्ण,जहां पते तहायुतं / अदुवा अप्पते अण्णउथिया तं पित्त / एवं से भिक्खू ,कतरी १जी लिणि IIIदीणि ठप्पारेति सो कुतो स एव परिणायकम्मे भवति दुविधाए परिणाए पाबाइंकालाई मस्स पारालाई एवमेव तु बाहिरभंतरैसुबत्यूसुरमा-दौसादिलक्खो संगी। गृहंसमृद्धं -- सकुथकवाडादिलक्खणं कलब-तिब-पुब्रादि, एयं पिटुविधाएपिरिणाए] परिणातं1 कोधादि उवसंतोएहि तिहि कामसीहि मिहयासेहि
SR No.002426
Book TitleSutrakritanga Churni
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages284
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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