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________________ जीणियाण हारयजोणियाण मनजीणियाणकंदजोणियाण जावबीयजीणियाण आयजीणियाण कायजोणियाणंजाव कूरजीणियाणं उदगजोणियाणं अवाजोगियाण जाव पक्रालच्छिभाजोणिया तसपाणाणं सरीरा जाणावा जावमक्खायं / / ------- सुझं मे आउसंते 03 खलु आहारपरिणा तस्स ग अयमट्ठो इध खलु पाईण वा इ पण्णवादिमाओ पधुच्चा सवाती ति मला ओ विदिसाओ उ अधो अगाहिताओ सब्वाति त्तिसव्वसंखे वेण चत्तारि बीयकाया, बीजमैव काये -बीजप्रकार इत्यर्थः तंजधा-गाजीया, अग्गबीजाणिजेसिं२तिलमादीणं, सालि- कलम-अलसिमादीया वितणा अगबीजा,जेर्सि -या अगलत्ता सपंति परोहति य से अगवीजा | मूलबीजा पाअल्लगमादी पोरु ठच्छामादी खिंधबीजासलइमादीभिदन्त मामा र्जुनीयास्तु"बणस्सतिकातियाण पंचविधा बीजाए वकंती एवमाहिज्जति-संजधा-अग्गा मूल पेल्य०पीरु० करबंध बीजरूहा,छडा वि - ----------- एतिया सम्मुच्छिमा अबीजामायते "1 जधा उट्टावणे वुढे समाणे जाणाविधाणि हरिताणि सम्मुच्छति, पउमिणीओ वा नवए तलाए सम्मु च्छति,पुराणे विकत्थायि पुव्यं ण होतुं पच्छा सम्मुच्छति / उर्फ हिपन िच राजहमाश्च गतेसिंच अधाबीजेणंति यद्यस्यबीज स्वतदेव नसूयते यथा शालिबीजे शाल्यकशे जायतेनकोद्वादयः / अथवाधाऽवकाोन जे जत्थ खेसे जायते,यथा सुसज्जितके दारपल्लवे प्रावृरकाले शानियिते, पाषाणीपरि नोप्यते नवा उप्तोऽपि जायते, अथवा भून्यम्बु-कालाऽऽकाशमयोगो राहाते
SR No.002426
Book TitleSutrakritanga Churni
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages284
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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