________________ समजाणति / - - ---------- ------ एवं समण- माहोसु विभासा सिविहं लिविहेण सारंभे सपावए णातुं गारल्य' समण-माहणे यसंसारभया - - अहं खलु अणारं भे अपरिग्ग हे भविस्सामि / - ------------ स्याद् बुद्धिः- अणणारंभी अपरिगही य काय शारीरं धारयिष्यसि 9, उच्यते-जै खलु गारत्या सारंभा संसेग-- * 10 हा एले चैव जिस्साते बंभचेरं चरिस्सामो ख 9 वृ० दी / अत्र पाठभेदे दीपिकाकृताक्षरिस्सामो स्थाने ----- | बसिरसामो पाठ आहतोऽस्ति |" हा एलेसिं चेव गिस्साए बेभरवासबसिरसामी घर पु.१.पू.२॥ 2 समण-माणा सारं रख 1 र 2. पुशा वि इति सूत्रनलिघु नोपलभ्यते।चूर्णि-वृत्ति-दीपिका सु व्यत / 4 वाइकुत्बंति इति संरवाए पुन्छ पुरन्दीन वाई इति सखाए रखें 25 °माणे इति भिक्खू री लेज्जा खे२ पुर वृन्दी०॥ 6 पादीण रखें १७विवेयं रख द.खे र पू.६ पूरा लियासमणा दबारंभ प्रलिजणा के इ अणारंभा अपरिहा भावारं प्रति असंयतत्वात् सारंभासपरिगहाचेव,तत्य जे ते बारंभ प्रति सारंभा सपरिगहा भिक्खुगमादीलेचैव णिवस्साए आहारोबहि-सेन्जादि जायमाणा बमचेर घसिस्सामो