________________ शी नास्ति मनधि: धूरं उरल्म इहमारियाणं, उद्दिदुभत्तं च पकप्पक्ता / लं लोण-तेलेण उपक्खडेता, सपिप्पलीयं पकरेंति मंसं // 37 // ----- भुषमाणा सिसितं पभूतं,ण उवलिप्यामी वयं गएणं / दूच्चैवमाहमु अणज्ज बुद्धा अगारिया बाल रसेसु गिद्धा // 3 // --------- "जे यावि भवति तह पगारं, सेवंतितेपावमजा जमाणा -वाण खाणा एतं कसला वदंती, वली दि एसा बुइता असज्मा ||39 / / -------------------- शाल्वेसि पाणाण ट्ययाए, सावन्नदोस पश्विज्यंता। -------- तस्संकिणी इसिणो णायपुत्ता उद्दिडभन्तं परिवजांति / 40 // ---- "भूताभिसंकाए दगुछ माणा,सले सूपाणेसुणिहाय दंड। --- तान्हा ण भुजंति लधप्पगारं एसा Sणुधम्मो इह संजता // 4 // जियममि मा समाधी अरिसं सुठिच्चा मणि हे चारेज्जा / ---- बुद्धे मुणी सीलगुणीववेते इत्वस्थतं पाउणली सिलोगं // 12 // - - धूरं उरभ ति महाकायो उपचितमांसभ्य / इह लोके शाक्यचय मारिया शाक्या उदिमितुंभिक्षुस, प्र प्रकल्पयन्तः कण साधेतिलोण-सेल-पिप्पलादीनि वेषणाणि गृहीत f श्यभरादीनिचान्यानि,समेवमादी