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युगवीर निकाली
प्रशंसाके गीड़ पाए जाते हैं। यदि उस समय झपे ग्रन्थोका प्रचार करनेवालोंके हृदयोंमें इस विरोधसे निर्बला जाती और वे अपने कर्तव्यको छोड़ बैठते तो आज छपे ग्रन्थोंकी कृपासे जैन समाजको जो असीम लाभ पहुँच रहा है उससे वह वचित रह जाता और उसका भविष्य बहुत कुछ अधकारमय हो जाता । इसलिये विरोधके कारण घबराकर कभी अपने हृदयमें कमजोरी न लाना चाहिये मौर न फल प्राप्ति के लिये जल्दी करके हताश ही होजाना चाहिये। बल्कि बडे धेर्य और गाम्भीर्यके साथ बराबर उद्योग करते रहना चाहिये धौर नये - पुराने सभी मार्गोसे, जिस-जस प्रकार बने, अपने सुधार विषयक साहित्यका सर्वत्र प्रचार करना चाहिये ।
सच्चे हृदयसे काम करनेवालो और सच्चे प्रान्दोलनकारियोको सफलता होगी और फिर होगी। उन्हे अनेक काम करनेवाले, सहायता देनेवाले और उनके कार्योंको फैलानेवाले मिलेंगे । इसलिए घबरानेकी कोई बात नही है। जो लोग देश या समाजके सच्चे हितेषी होते हैं वे सब कुछ कष्ट उठाकर भी उसका हित साधन किया करते हैं । इस तरहपर सब कुछ सहन करते हुए यदि आप सुधारविषयक साहित्यका प्रचार करके अपने देश या समाजके साहित्यको सुधारनेमे समर्थ हो जायेंगे तो फिर देश या समाजके सुधरनेमे कुछ भी देर नही लगेगी । उसका सुधार अनिवार्य हो जायगा। यही सुधारका मूल मंत्र है । परन्तु इतना खयाल रहे कि साहित्य जितना ही उन्नत, सबल और प्रौढ होगा उतना ही उसका प्रभाव भी अधिक पड़ेगा और वह अधिक काल तक ठहर भी सकेगा। इसलिए जहाँ तक बने, खूब प्रबल और पुष्ट साहित्य फैलाना चाहिए।