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युगवीर-निबन्धावली पद्धतिको उठाइये, 'कोई गुप्त दैवी शक्ति हमें सहायता देगी' इस खयालको दिलसे भुलाइये, अकर्मण्य और आलसी मनुष्योको कमनिष्ठ और पुरुषार्थी बनाइये, पारस्परिक ईर्ष्या,द्वेष, घृणा निन्दा और प्रदेखसका भावको हटाकर आपसमें प्रेमका सचार कीजिये, निष्फल क्रियाकाडो और नुमायशी (दिखावेके ) कामोमे होनेवाले शक्तिके ह्रासको रोकिये, द्रव्य और समयका सदुपयोग करना बतलाइये, विलासप्रियताकी दलदलमे फंसने और अन्धश्रद्धाके गड्ढेमे गिरनेसे बचाइये, अनेक प्रकारके कल-कारखाने खोलिए, उद्योगशालाएँ और प्रयोगशालाएँ जारी कीजिये, शिल्प व्यापार और विज्ञान-उन्नतिकी ओर लोगोको पूरे तौरसे लगाइये, मिलकर काम करना, एक दूसरेको सहायता देना तथा देश और समाजके हित को अपना हित समझना मिखलाइये, बाल, वृद्ध तथा अनमेल विवाहोका मूलोच्छेद होसके ऐसा यत्न कीजिए,सच्चरित्रता और सत्यका व्यवहार फैलाइये, विचार-स्वातन्त्र्यको खूब उत्तेजन दीजिए, योग्य आहार-विहार द्वारा बलाढ्य बनना सिखलाइये, वीरता, धीरता निर्भीकता, समुदारता, गुणग्राहकता, सहनशीलता और दृढप्रतिज्ञता आदि गुणोका सचार कीजिये, एकता और विद्यामे कितनी शक्ति है इसका अनुभव कराइये, धर्मनीति, राजनीति और समाजनीतिका रहस्य तथा भेद समझाइये,समुद्र-यात्राका भय हटाइये, विदेशोमे जानेका सकोच और हिचकिचाहट दूर कीजिये, अनेक भाषाप्रोका ज्ञान कराइये, तरह तरहकी विद्याएँ सिखाइये और शिक्षाका इतना प्रचार कर दीजिये कि देश या समाजमे कोई भी स्त्री, पुरुष बालक और बालिका अशिक्षित न रहने पावे । इन सब बातोके सिवाय जो जो रीति-रिवाज, प्राचार-व्यवहार अथवा सिद्धान्त उन्नति और उत्थानमे बाधक हो, जिनमें कोई वास्तविक तत्त्व न हो और जो समय समय पर किसी कारणविशेषसे देश या समाजमे प्रचलित हो गए हो उन सबकी खुले शब्दोंमें आलोचना कीजिए और उनके गुण-दोष सर्वसाधारण पर