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युगवीर निबन्धावली
इससे पाठक समझ सकते हैं कि साहित्य-प्रचारमें कितनी शक्ति है । जिन पाठकोंको इस विषयका अधिक अनुभव प्राप्त करना ही उन्हें मंडलके इतिहासका अध्ययन करना चाहिये । इतिहासका अध्ययन उन्हे बतलाएगा कि साहित्य-प्रचारमे कितनी बड़ी शक्ति है और उसके द्वारा समय समयपर कैसे कैसे महान उलटफेर होगए हैं। सिक्समाज तथा उसके धर्मकी प्रारम्भमें क्या दशा थी और फिर कैसे कैसे साहित्यके प्रभावसे उसकी कायापलट होकर वह क्षत्रियत्वमे ढलगया, ये सब बाते भी इतिहासवेत्ताओ से छिपी नही हैं । वास्तवमे समस्त देशों, धर्मों तथा समाजोका उत्थान और पतन साहित्यप्रचारके आधार पर ही अवलम्बित है । जिस देश, धर्म या समाजमें जिस समय जिस विषयके साहित्यका अधिक प्रचार होता है उस देश, धर्म या समाजमें उस समय उसी विषयकी तूती बोलने लगती है । विषयके उत्थानात्मक होनेसे उत्थान और पतनात्मक होनेसे पतन हो जाता है।
जापान देशकी प्रासे प्राय १०० वर्ष पहले कैसी जघन्य स्थिति थी और आज उसका कितना चकित करनेवाला उत्थान होगया है, यह सब उसके उत्थानात्मक साहित्यके प्रसारका ही फल है। भारतवर्षका पतन क्यो हुआ ? और वह क्यो अपनी सारी गुण- गरिमा खो बैठा ? इसीलिये कि उसके साहित्यकी अवस्था अच्छी नही रही, वह अपने सत्साहित्यको स्थिर नही रख सका, अथवा समयके अनुकूल नया साहित्य उत्पन्न नही कर सका। उसका साहित्य प्रेमशून्य होकर पारस्परिक ईर्ष्या, द्वेष, घृरणा और निन्दासे तथा निष्फल क्रियाकाडसे भर गया । उसमें अज्ञानता, अकर्मण्यता. स्वार्थान्धता कायरता, अन्धश्रद्धा, अनैतिकता और विलास-प्रियता छागई और साथही उसने लोकोपकार, लोकसंग्रह, विचार- स्वातंत्र्य और सहोयोगिता जैसे महत्व तत्त्वोको भुला दिया । देशके साहित्यकी ऐसी अवस्था हो जानेसे ही भारतवर्षका पतन हुआ । भिन्न-भिन्न धर्मों तथा समाज के उत्थान
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