Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्तश्लोकवातिकालंकारे
और प्रतिकूल रूप से अनुभवने योग्य लौकिक दुःखों का कर्ता असद्वेद्य कर्म यों वेदनीय कर्म को ये दो उत्तर प्रकृतियां हैं।
यस्योदयाद्देवादिगतिषु शारीरमानससुखप्राप्तिस्तत्सद्वेद्यं, यत्फलं दुःखमनेकविधं तदसद्वेद्यं तदेवोपदर्शयति--
जिस पुण्य कर्म के उदय से देव, मनुष्य आदि गतियों में शरीर संबंधी और मनःसंबंधी सुखों की प्राप्ति होती है वह सातावेदनीय कर्म हैं और जिसका फल संसारी जीवों को अनेक प्रकार के दु:खों का देना है वह असाता वेदनीय कर्म है। उस ही सूत्रोक्त सिद्धान्त को ग्रन्थ कार श्री विद्यानन्दस्वामी अगली वात्तिक द्वारा युक्तिसिद्ध करते हुये दिखला रहे हैं।
द्वेधा तु सदसद्वेचे सातेतरकृतादिमे,
प्रकृती वेदनीयस्य नान्यथा तघवस्थितिः ॥१॥
निज को अनुकूल सुख प्राप्त हो जाना स्वरूप साता और इससे इतर स्व को प्रतिकूल हो रहे दुःख का प्राप्त हो जाना स्वरूप असाता, इनके द्वारा भेद किया गया होने से वेदनीय कर्म की तो सद्वेद्य और असद्वेद्य ये दो प्रकार को प्रकृतियां इस सूत्र में कही गयी हैं। अन्यथा यानी देखे जा रहे दूसरे प्रकारों से उन साता, असाताओं की व्यवस्था नहीं हो सकती है। अर्थात् सुख के कारण मिला देने पर भी किसी को दुःख व्याप रहा है तथा अन्य को दुःख के कारण मिलने पर भी अंतरंग में सुख का अनुभव हो रहा है यों परिदृष्ट कारणों का सुख दुःख देनेमें व्यभिचार हो रहा है, इस कारण अनुमान प्रमाण द्वारा सुख दुःख देने वाले अंतरंग कारण पौद्गलिक कर्मों को सिद्धि हो जाती हैं। यों वार्तिक में सूत्रोक्त सिद्धान्त का युक्तिपूर्ण अनुमानप्रमाण बना दिया है।
अथ चतुर्थोस्योत्तरप्रकृतिबंधस्य भेदोपदर्शनार्थमाह:--
अब क्रम से प्राप्त हो रहे चौथी मूलप्रकृति माने गये मोहनीय कर्म के उत्तर प्रकृति बंध के भेदों का नातिसंक्षेप, नातिविस्तार, यों मध्यमरूपसे प्रदर्शन कराने के लिये सूत्रकार महाराज इस अग्रिम सूत्र को कह रहे हैं। मोहनीय कर्म के यदि अतिसंक्षेप से भेद किये जाय तो दो, तीन, भेदों द्वारा ही प्रकृष्ट बुद्धिवाले विद्वान् समझ जाते हैं और अतीव विस्तार से यदि मोहनीय के भेदों का निरूपण किया जाय तो शब्दों की अपेक्षा करोडों, अरबों, खरबों, भेद हो सकते हैं । कर्म के फल देने की अनुभाग शक्तियों का लक्ष कर द