Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
२३८)
सकते हैं ? कुछ भी नहीं । हमारे तुम्हारे व्याप्तिज्ञान में त्रिलोक त्रिकालवर्ती नियत साध्य और साधन कुछ भी प्रतिबिंब नहीं डाल पाते हैं जब कि भूत, भविष्य काल के वे वर्तमान में हैं ही नहीं, ऐसो दशा में उनका प्रतिबिंब ज्ञान में नहीं पड सकता है अतः प्रतिबिम्बस्वरूप आकार की अपेक्षा आत्मा के सभी गुण निराकार हैं हाँ आत्मा की लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई, स्वरूप आकृति या ज्ञान द्वारा विकल्पना की अपेक्षा भले ही किसी गुणको साकार मान लिया जाय कोई क्षति नही हैं । अतः प्रतिबिम्व या आकार धारे विना ही ज्ञानवृत्तियां स्वावरण क्षयोपशम स्वरूप योग्यता करके नियत विषयों को जान लेती हैं । जगत् में किसी विवक्षित पुरुष के स्त्री, बच्चे, वस्त्र, गृह, भूषण, पुस्तकें, पत्र, घोडे, गाडी, रुपये आदि पदार्थ नियत हैं पुरुषार्थ या अन्य कारणों से भी अनेक अनुकूल, प्रतिकूल, पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं । किस किस में आकार पड जाने को मानते फिरोगे । सातावेदनीय के उदय और लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय के क्षयोपशम अनुसार जितने पदार्थ जिस जीव को प्राप्त हो रहे हैं वे सव पदार्थ उसके नियत हैं । असातावेदनीय और अन्तराय कर्म के उदय से अनिष्ट पदार्थ भी नियतरूपेण जीवको प्राप्त हो रहे हैं, इसी प्रकार ज्ञानावरण के क्षयोपशम अनुसार ज्ञान भी नियत पदार्थों को विषय कर लेता हैं आकार पड जानकी आवश्यकता नहीं है ।
अथ बुद्धिप्रतिबिंबितमेव नियतमर्थं पुरुषश्चेतयते नान्यथा प्रतिनियमाभाव प्रसंगादिति मतं, तहि बुद्धिरपि कुतः प्रतियतार्थप्रतिबिम्बं बिर्भात न पुनः सकलार्थप्रतिबिम्बमिति नियमहेतुर्वाच्यः प्रतिनियताहंकाराभिमतमेवार्थं बुद्धिः प्रतिबिम्बयतीति चेत्, किमनया परंपरया प्रतिबिम्बमन्तरेणैवाहंकारप्रतिनियमितमर्थं बुद्धिर्व्यवस्यति मनःसंकल्पितमिवाहंकारः । करणालोचितमिव च मनन मिति, स्वसामग्रीप्रति नियमादेव सर्वत्र प्रतिनियमसिद्धेरलं प्रतिबिम्बकल्पनया । तथा च न चित्तवृत्तीनां सारूप्यं नाम यन्मात्रं संप्रज्ञात योगः स्यादिति परेषां ध्यानासंभवः । नापि ध्येयं तस्य सूत्रे - पादानात् । ध्याना सिद्धौ तदसिद्धेश्च स्याद्वादिनां तु ध्यानं ध्येये विशिष्टे सूत्रितमेव, चिन्तानिरोधस्यैकदेशतः कार्त्स्यतो वा ध्यानस्यैकाग्रविषयत्वेन विशेषणात् । तथाहि
अब इसके अनन्तर कपिल मतानुयायियों का यदि यों मन्तव्य होवे कि बुद्धि में प्रतिबिम्बित हो रहे नियत पदार्थ को आत्मा चेतना करता है अन्यथा यानी बुद्धि में प्रतिबिम्ब पड़े विना आत्मा किसी भी पदार्थ का चैतन्य नही कर सकता है,