Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

View full book text
Previous | Next

Page 418
________________ नवमोध्यायः ३९३) यों कहे कि शरीरकी उष्मासे वायुकाय आदिके जीव नहीं मरें अतः रागद्वेष नहीं होते हुये भी अहिंसाके लिये वस्त्र ले लिया जाता है तब तो दिगंबरोंकी ओरसे कहा जा सकता है कि- " वस्त्ररहित साधुओंके हिंसकपनेका प्रसंग आ जावेगा, अरहन्त आदिक मुक्तिको नहीं प्राप्त कर सकेंगे क्योंकि इनके वस्त्र नहीं हैं। हिंसादोष लगता रहेगा वस्त्रवाले गृहस्थही मोक्षको जा सकेंगे और वस्त्रग्रहण कर चुकनेपर भी जन्तुओंका उपघात होना दोष तदवस्य रहेगा क्योंकि वस्त्रसे नहीं ढके जा सके हाथ, पांव, मुख आदि प्रदेशोंसे निकल रही ऊष्मासे जीवहिंसा अवश्यंभाविनी है। जैसे वीजनेकी वायुसे अनेक जीव मरते हैं। उसी प्रकार वस्त्रके संकोचने, फैलाने आदिसे उपजी वायु करके अनेक जीवोंको पीडा उपजेगी ऐसी दशामें प्राणिसंयम नहीं पल सकता है। मांगना, सीवना, धोना, सुखाना, धरना, लेना, चोरभय, रागद्वेष आदि द्वारा. मनके संक्षोभको करनेवाले वस्त्रका ग्रहण करना साधुओंके लिये सर्वथा निषिद्ध है, संयमका उपघातक है। साध यदि लज्जा या शीतके निवारणके लिये वस्त्र रखता है तो कामपीडा, मुखदुर्गन्ध, मार्गश्रम आदिके निवारणार्थ कामिनी, ताम्बूल, घोडा आदिको भी रख लेवे । मनचली तन्वी युवतियोंके मनमें क्षोभ न हो जाय इस कारण यदि स्वकीय अंग, उपाङ्ग ढकनेके लिये वस्त्रका ग्रहण मानोगे तब तो साधुको अपने नेत्र फोड डालने चाहिये । या नेत्रोंसे कपडा बांध लेना चाहिये। क्योंकि रागवर्धक अन्य पदार्थोंको देखने में नेत्र निमित्त कारण हो रहे हैं । बात यह है कि वस्त्र रखनेसे इन्द्रियसंयम भी नहीं पलता है । कम्बल या कौशेय वस्त्र तो मूलमें स्वयं अपवित्र भी हैं। वैष्णव, श्वेताम्बर, मोहमदीय, लोगोंने कम्बलको पवित्र मान रक्खा है । वह सर्वथा निन्द्य है। युक्ति और विज्ञानसे भी सिद्ध हो जाता है कि मांस, रक्त, चर्म, हड्डी, ऊन इनमें सतत त्रस जीवोंका उत्पाद होता रहता है, अतः कम्बल, पात्र, डण्डा, कौशेय आदिको महान् परिग्रह समझा जाय । छठे. सातवें, या इससे ऊपरले गुणस्थानोंवाले साधु कदाचित् भी कोई परिग्रह नहीं रखते हैं। कमण्डलु, पिच्छिका, शास्त्र तो संयमके उपकरण है । तपश्चर्या के साधन हैं, परिग्रह नहीं हैं। अतः मोहरहित साधु इनको अहिंसा, स्वाध्याय, ध्यानकी सिद्धिके लिए रख लेता है। पण्डित सदासुख जी कासलीवालने भगवती आराधनाके "आचेलक्कुद्देसिय', आदि गाथाकी भाषाटीका करते हुये लिखा है कि इसकी संस्कृत टीकाके कर्ता श्वेतांबर है । कम्बल, पात्र आदि रखनेकी पुष्टि की है, इसका शास्त्रनिमग्नविद्वान् विचार

Loading...

Page Navigation
1 ... 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498