Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 457
________________ ४३२) तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे नित्यके लक्षणमें सत् विशेषण दिया गया है। और घट, पट, आदिमें अतिव्याप्ति न होय अतः अकारणवत् विशेष्य है । अब यदि सत्पदार्थ माने गये बन्धके हो जानेका कोई कारण नहीं माना जावेगा विना ही कारण बन्ध होता रहेगा तो अहेतुक सद्भूत बन्धको नित्य होते रहने की अनिष्ट आपत्ति आ जावेगी । और ऐसा होनेसे बन्धका कभी विनाश नहीं हो पावेगा । तब तो किन्हीं भी जीवोंका मोक्ष होना असंभव हो जावेंगा। किन्तु कालान्तर स्थायी मोक्ष तत्त्व हैं। अतः कारणोंके नष्ट हो जानेपर पुन बन्धका नहीं होना प्रमाण प्रसिद्ध है। मुक्तस्य स्थानवत्त्वात् पात इति चेन्न, अनास्रवत्वात् सात्रवस्य यानपात्रादे: पातदर्शनात, गौरवाभावाच्च तस्य न पात स्तालफलादेः सतिगौरवे वृन्तसंयोगाभावात् पतनप्रसिद्धः। . यहां किसी स्थूल बुद्धि दार्शनिकका आक्षेप है कि आप जैनोंने मुक्त जीवोंका जब विशेष स्थान माना है । अर्थात् तनुवातवलयमें सिद्धपरमेष्ठी विराजते हैं । जो कोई पदार्थ स्थिर रहता है वह आधार के नहीं होनेपर गिर पडता है । अत: मुक्त जीवका अधोदेशमें पतन हो जाना चाहिये। आचार्य कहते हैं कि यह तो न कहना क्योंकि मुक्त जीवोंकी आत्मामें कोई द्रव्यकर्म या नोकर्मका आस्रव नहीं हो रहा है । नावमें छेद हो जानेपर छेद द्वारा पानीका आस्रव होते रहनेसे नाव जलमग्न हो जाती है, मुख द्वारा अन्न, जलका आस्रव होते रहनेसे उदर स्थिति मल मलाशयमें गिरता है, पर्वतीय पिछले जलका धकापेल आगमन होते रहनेसे अगिला जल नीचे गिर पडता है। यों आस्रव सहित हो रहे नाव आदिका पात देखा जाता है। मुक्त जीवोंके आस्रवही नहीं है । " कारणाभावे कार्याभावः" एक बात यह भी है कि भारी पदार्थ नीचे गिरता है मुक्त जीवोंमें गौरव यानी भारीपन नहीं है जो कि पुद्गल स्कन्धोंमें ही पाया जाता है। देखिये, तालफल, सेव, नारियल आदिका गौरव होते सन्तेही फलके डांठल और शाखाके संयोगका अभाव हो जानेसे पात हो जाना प्रसिद्ध हो रहा है । " वृन्तं कुसुमबन्धनम् " । उछाली गई गेंद भारी होनेसे नीचे गिर पडती है । अतः मुक्त जीवोंमें भारीपन नहीं होनेसे उनका पतन नहीं होने पाता है । केवल अवस्थान होने मात्रसेही किसीका पात नहीं हो जाता है। अन्यथा वायु, सूर्य आदि सभी पदार्थोंका पतन । जायगा जो कि किसीको भी इष्ट नहीं है ।

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