Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
जानेका युक्तिपूर्वक विवरण किया है। अनन्तवीर्य, सुख, चारित्र आदि गुण मोक्षमें विद्यमान रहते बताये गये हैं। यहां दार्शनिकोंकी मोक्षविषयिणी कतिपय शंकाओं और आक्षेपोंका विद्वत्तापूर्ण प्रत्याख्यान किया गया है। जिससे कि " अट्ठवियकम्मवियला सीदीभूदा णिरंजणा णिच्चा, अट्ठगुणा किदकिच्चा,लोयग्गणिवासिणो सिद्धा:, " (गोम्मटसार) " णट्ठकम्मदेहो लोपालोपस्स जाणओ दटठा, पुरिसायारो अप्पा सिद्धो झाएह लोय सिहरत्थो"(द्रव्यसंग्रह) इस प्रकार सिद्धस्वरूपको परिपुष्टि हो जाती है । सिद्धत्व परिणतिको न्यारा साधते हुये ग्रन्थकारने अन्य दार्शनिकोंके मोक्ष लक्षणका प्रतिवाद कर पहिला आन्हिक समाप्त किया है । उसके पश्चात् सूत्रोक्त हेतु, दृष्टान्त पूर्वक सिद्धोंके ऊर्ध्वगमनकी व्याख्या की गई है। धर्मास्तिकाय नहीं होनेके कारण लोकाग्रसे परली ओर मुक्तोंका जाना निषिद्ध किया है। इस प्रकार मोक्षतत्त्वमें सम्पूर्ण मिथ्या मन्तव्योंकी निवृत्ति कर क्षेत्र आदिका व्याख्यान किया गया है। प्रारम्भसे लेकर ग्रन्थके अन्ततककी प्रबन्ध संगतिको मिलाकर मोक्ष मार्गकी स्तुति करते हुये अन्तिम मंगलाचरण पढा है। प्रकृष्ट ज्योतिके समान रत्नत्रयकी शक्तिको दिखलाकर द्वितीय आन्हिक समाप्त किया गया है।
पादोनवर्षनवकोज्झदनादिकाला, ल्लोकोर्ध्वनिष्ठतनुवातनिचीयमानां, न्नित्यान्नमामि कृतकृत्यवराननन्तान् । सिद्धान् स्ववीर्यसुखदर्शनबोधिलब्धै ॥ १ ॥
इति श्री उमास्वामी महाराज विरचित तत्त्वार्थसूत्र ( आर्हतान ) पर श्री विद्यानन्द स्वामी महाराज करके रची गयी श्लोकवात्तिकालंकार नामक महान् ग्रन्थकी आगरामण्डलान्तर्गत चावली ग्राम निवासी वर्तमान सहारनपुर वास्तव्य " माणिक्यचन्द्र" कृत देशभाषामय " तत्त्वार्थचिन्तामणि संज्ञक टीकामें दशवां अध्याय परिपूर्ण हुआ। " नमोस्तु सिद्धेभ्यः सिद्धिदेभ्यः,"
" गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः"