Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 494
________________ दशमोऽध्यायः ४६९ ) इस प्रकार यहां तक प्रतिवादि भयंकर उद्भट विद्वान् श्री विद्यानन्द महान् चाय महोदय करके विलक्षण स्वरूपसै रचे गये तत्त्वार्थ श्लोकवातिकालंकार नामक अनुपम ग्रंथमें दशम अध्याय समाप्त होकर परिपूर्ण हो चुका हैं । इस दशवें अध्यायकें प्रकरणोंकी सूचिका संक्षेप इस प्रकार है कि प्रथमही सातवें मोक्ष तत्त्वका निरूपण करनेके लिये उसके पूर्ववर्ती केवलका प्रतिपादन किया गया है । इस सूत्रकी व्याख्या करते हुये उत्तर प्रांतको पुस्तकमे प्रकृतियोंके क्षयके क्रम और अधःकरण आदि परिणामोंक। चर्चा की गई है । बारहवें गुणस्थानके अन्ततक होनेवाले कर्मक्षयका क्रम दिखलाते हुये दर कृष्टि, सूक्ष्म कृष्टिका स्वरूप कहा गया है । ताडपत्रपर लिखी हुई प्राचीन पुस्तक अनुसार तो केवलके निरूपणको संगति दिखलाते हुये मोक्षमें ज्ञान नहीं रहनेका खण्डन किया है । लौकिक ज्ञान सुखोंसे भिन्न अनन्त चतुष्टयको जीवनमुक्तदशामें सिद्ध कर दिया है । निर्जराका प्रतिपादन करना चाहिये । इस शंकाका प्रत्याख्यान करते हुए अपर मोक्ष और पर मोक्षका भद बतलाकर जीवके आत्मलाभको ही मोक्षपनकी व्यवस्था दी है। यहां दार्शनिकोंके दूषित मन्तव्योंका निषध किया है । सूत्रोक्त केवलपदसे अकेले केवलज्ञानकाही ग्रहण नहीं है किंतु ज्ञान दर्शन, वीर्य, दान आदि अनेक क्षायिक भावोंको वाच्य किया गया है । सूत्रोक्त रहस्यका अनुमानसे सिद्ध कर मक्ष की अपेक्षा केवलीकी प्रधानता साधी गई है। इसके आगे दूसरे सूत्रमें मोक्षका सिद्धांत लक्षण किया गया है। मोक्षके हेतुओंकी व्याख्या कर 'वि' और 'प्र' शब्दों करके इतर व्यावृत्ति समझायी गई है । अयत्नसाध्य और पुरुषार्थसाध्य कर्मक्षयकी प्रतिपत्ति कराते हुये एक सौ अडतालीस प्रकृतिओंको गिनाकर उनका मोक्षम क्षय हो जाना क्रमानुसार कहा है प्राचीन प्रतिसे प्राप्त हुई टीका अनुसार द्वितीय सूत्रकी उत्थानिका उठकर उत्कृष्ट सबर और निर्जराका स्वरूप बताते हुये सूत्रोक्त कार्यकारणभावको अन्वव्यतिरेक द्वारा या अन्यथानुपपत्तिसे पुष्ट करदिया है । यहां भी ग्रंथकारने मोक्ष लक्षणके घटकावयव हो रहे 'वि' और 'प्र' का वात्तिक द्वारा व्याख्यान किया है । बीजांकुरका दृष्टांत देकर कर्मो का ध्वंस समझाया गया है। व्वय, ध्रौव्य रूपसे पुद्गल द्रज्यका परिणमन पुष्ट किया गया है । कर्मोकी बन्ध, उदय उदीरणा आदिको प्राचीन ग्रंथोंसे ज्ञातकर लेने का निवेश किया है । पश्चात् कतिपय क्षायिक भावोंके अतिरिक्त अन्य सभी औपमिक आदि भावोंके मोक्षमे नाश हो

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