Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 464
________________ दशमोऽध्यायः निश्चल होकर बैठा रहता है । " यह बात साधने योग्य है, जब कि गायु, वायु, कैदी। छूटनेके स्थानसे अन्यत्र जाते हुये भी देखे जाते हैं। हां यह बात सिद्ध हो चुकी हैं कि सांकल आदिसे विशेषरूपेण निर्मुक्त हो गये। भैंस, हाथी आदिका अन्य देशोंमे गमन होना देखा जा रहा है । यदि इसपर कोई यों कहे कि भैस आदिकी गतिके कारण हो रहे उत्साह, वेग, इच्छा, शारीरिक पुरुषार्थ आदि कारणोंका सद्भाव है । अतः उनको देशांतरमें गमन हो जाना दीख रहा है । यों कहनेपर तो हम भी बडी प्रसन्नताके साथ समाधान करेंगे कि निःशेष कर्मबन्धनोंसे विप्रमुक्त हो रहे आत्माके भी ऊर्ध्वगमनके निमित्तकारण हो रहे ऊर्ध्वगति स्वभावका सद्भाव है। अतः अन्यदेशसंबंधिनी गति हो जाओ। मुक्त आत्मामें वीर्य पुरुषार्थ, ऊर्ध्वगमनस्वभाव, चैतन्य सत्ता, अगुरुलघु, सम्यक्त्व, अनन्तसुख आदि अनन्तानन्त गुण और स्वभाव विद्यमान रहते हैं । द्रव्य या शुद्धद्रव्यकी पर्याय मुक्त आत्मा है । कोई मात्र अविभाग प्रतिच्छेद या स्वभावही तो मुक्त आत्मा नहीं है । तिस कारण इस प्रकार उक्त आक्षेपोंका बढिया समाधान हो चुकनेपर सूत्रोक्त रहस्य जो सिद्ध हुआ है । उसको अग्रिम वात्तिकों द्वारा सुनो समझो । मोक्षः केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसंक्षयात् । सिद्धत्वसंक्षयान्नेति वन्यत्रेत्यादिनाब्रवीत् ॥ १॥ . एतैः सह विरोधस्याभावान्मोक्षस्य सर्वथा। स्वयं सव्यपदेशैश्च व्यपदेशस्तथात्वतः ॥ २ ॥ सिद्धत्वं केवलादिभ्यो विशिष्टं तेषु सत्स्वपि, कर्मोदयनिमित्तस्या सिद्धत्वस्य क्वचिद्गतेः ॥ ३॥ औपशमिक सम्यक्त्व, भव्यत्व, मनःपर्ययज्ञान, मनुष्यगति आदि भावोंका क्षय हो जानेसे जैसे मोक्ष होता है। उस प्रकार केवल सम्यक्त, या केवलज्ञान अथवा क्षायिक दर्शन आदि भावोंका भी भले प्रकार क्षय हो जानेसे मोक्ष होती है ऐसा नहीं है । एवं कर्मोदय जन्य असिद्धत्व भावका विनाश होनेपर उपज गये सिद्धत्व भावका समीचीन क्षय हो जानेसे भी मुक्ति नहीं हो पाती है इस सिद्धान्तको तो “ अन्यत्र केवलज्ञानदर्शन" इत्यादि सूत्र करके उमास्वामी महाराज कह चुके हैं । अर्थात् अन्य भावोंके

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