Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 487
________________ ४६२) तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे सकते हैं । ढाई द्वीपकी समतल भूमिसे कहींसे भी निन्यानवे हजार चालीस योजन ऊंचे मनुष्य उछाले जा सकते हैं। उन उच्च प्रदेशोंसे जो सिद्धि प्राप्त करेंगे वे ऊर्ध्वलोक सिद्ध कहे जांयगे, और यहांसे एक हजार योजन मोटी चित्रा पृथ्वीमें नीचे कहीं भी तक मनुष्य गिराये जा सकते हैं। यहां समतलसे लगाकर नीचली वजा पृथ्वीके उपरिम भाग तक गेर दिये गये मनुष्योंकी सिद्धि होना अधोलोक सिद्धि कही जावेगी। तिरछे ढाई द्वीपके पैंतालीस लाख बृहत् योजन लम्बे, चौडे, गोल क्षेत्रसे जो सिद्ध होंगें, वे तिर्यक्लोक सिद्ध माने जाते हैं। यों अनन्तानन्त कर्मोका विनाश कर अनन्तानन्त गुणोंको प्राप्त कर चुके तथा जिनका शिरोग्र भाग उस अनन्तानन्त प्रदेशी अलोकाकाशसे संयुक्त हो रहा है । वे अनन्तानन्त सिद्ध हैं। जो कि अनन्तानन्त अविभाग प्रतिच्छेदोंकों धार रहीं अनन्तानन्त पर्यायोंके समुदाय स्वरूप अनन्तानन्त गुणोंके अविष्वग्भूत पिण्ड हैं। उन सम्पूर्ण सिद्धोंकों ऊर्ध्वदेश, अधोदेश और तिर्यक्देशसे यदि साधा जायगा तो उसका निर्णय इस प्रकार है कि सबसे थोडे ऊर्ध्वलोक सिद्ध है, इतर सिद्ध अन्यथा हैं । यानी बहुत हैं। उन ऊर्द सिद्धोंसे अधोलोक सिद्ध संख्यात गुण हैं। दो से प्रारम्भ कर उत्कृष्ट संख्यात तक संख्यात नामक संख्याके संख्याते प्रकार है । अनवस्था, शलाका, प्रतिशलाका, महाशलाका कुण्डों अनुसार समझाये गये उत्कृष्ट संख्यातको यदि लाखो योजन लम्बे चौडे कागजपर भी लिखा जाय तो पूरा नहीं लिखा जा सकता है। यहां जिनेन्द्र भगवान्के द्वारा ज्ञात हो रहा, अथवा तदनुसार ग्रन्थित किये गये आगममें उपदिष्ट हों रहा, कोई विशेष संख्यात आचार्यको अभीष्ट है। अधोलोकमें हुये सिद्धोंकी गणनासे तिर्यञ्चों करके वेष्टित हो रहे तिर्यक् लोकमें मनुष्य होकर सिद्ध हो चुके जीवोंकी गिनती क्रमसे संख्यात गुणी है। समुद्रे सर्वतः स्तोका द्वीपे संख्येयसंगुणः, लवणोदे समस्तेभ्यः स्तोकाः सिद्धा विशेषतः ॥ २२ ॥ कालोदे सागरे जम्बूद्वीपे च परिनिताः, धातकीखण्ड सवीपे पुष्करद्वीप एव च ।। २३ ॥ ते संख्येयगुणाः प्रोक्ताः क्रमशो वहवोन्यथा, प्रत्येतव्याः समासेन यथागम मशेषतः ॥ २४ ॥

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