Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 434
________________ दशमोऽध्यायः ४०९) स्वतन्त्र सूत्रों द्वारा कहा ही है। तिस कारण निर्जराका व्याख्यान हो चुकनेपर यहां दशमें अध्यायमें मोक्षतत्त्वका ही प्रस्ताव प्राप्त है । ऐसा समझ लेनेपर शिष्य पूछता है कि अच्छी बात है । उस मोक्षका प्रस्ताव प्राप्त होनेपर मोक्ष की प्रतिपत्ति करानेबाला सूत्र कहना चाहिये था। अप्रकृत केवलकी ही उत्पत्तिके हेतुका कथन भला किसलिये किया जा रहा है ? बताओ । यों भलमनुषाई का प्रश्न उतरनेपर तो ग्रन्थकार समाधान करते हैं कि उस केवल (ज्ञान) की प्रधानताको सिद्ध करनेके लिये तथा मोक्षप्राप्त जीवके अज्ञान स्वरूप हो जानेका निराकरण करनेके लिये सूत्रकार इस दशम अध्यायके प्रथम सूत्रको कह चुके हैं, ऐसा हमारा निश्चय यह है कि निःश्रेयस यानी मोक्ष होना परनिःश्रेयस और अपर निःश्रेयस भेदसे दो प्रकार है। उनमें केवलज्ञान, अनन्तदर्शन आदिकी उत्पत्ति हो जाना तो अपरमोक्ष है । जो कि तेरहवें, चौदहवें गुणस्थानमें हो रही जीवनमुक्ति कही जाती हैं। हां, सम्पूर्ण आठों कर्मोंका अनन्तकाल तकके लिये निःशेष रूपेण छूट जाना परमुक्ति है जो कि सिद्ध अवस्थामें प्राप्त हो जाती है। इस समाधानपर शंकाकार पुनः आक्षेप उठाता है कि यदि इस प्रकार है । " कि केवलज्ञानका उपज जाना अपरनिःश्रेयस है। " तब तो केवलज्ञान सुखादिकी उत्पत्ति हो जाना स्वरूप अपर मोक्षका पहिले कथन करना न्याय मार्गद्वारा प्राप्त हुआ, उस अपरनिःश्रेयसके अव्यवहित पश्चात् परमोक्षका कथन करना ठीक है और तैसा सुव्यवस्थित हो जानेपर ग्रन्थकारने केवलकी प्रधानताको सिद्ध करनेके लिये उस प्रथम सूत्रको कहा है । यह समाधान करना किस प्रकार ठीक कहा जा सकता है ? बताओ यही सीधा उत्तर अच्छा था कि मोक्षका प्रस्ताव प्राप्त हो रहा है। प्रथम सूत्र द्वारा अपरमोक्षका प्रतिपादन है, और दूसरे सूत्र करके परमुक्ति कही जा रही है । अब ग्रन्थकार कहते हैं कि यह चोद्य उठाना उचित नहीं है ! क्योंकि केवलज्ञान आदिका उत्पाद हों जाना आत्मलाभ स्वरूप है । अतः अन्तरंग घातिकर्म स्वरूप मलोंके क्षयको हेतु मानकर उपजे आत्मलाभको ही मोक्षपनकी व्यवस्था दी गई है । ऐसा नियत कर देनेसे मोक्षम जीवके अज्ञान स्वरूप ( ज्ञानरहित ) हो जानेका परिहार हो जाता है। जैसे कि मोक्ष अवस्थामें सभी प्रकारोंसे अभाव हो जाने और कुछ भी नहीं कर सकनेका व्यवच्छेद कर दिया जाता है । अर्थात् बौद्धोंने मोक्ष अवस्थाको सर्वथा अभावरूप मान रवखा है। जैसे कि दीपक बुझ जाता है । कुछ भी शेष नहीं रहता है, तथा वैशेषिकोंके

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