Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकारे
असंख्याते वर्षों तक मानी जाती है, अनन्ते वर्षोंतक व्यक्ति रूप से किसी शरीर का ठहरना असंभव है। इसी प्रकार ऋतुयें, फल, पुष्प आदि के काल नियत हैं, एक ही समयका या अनन्तेवर्षों का झूठा आग्रह करना प्रमाणबाधित है। कोई कपडा यदि तीन वर्ष मे पुराना (जीर्ण) हो जाता है तो यहां यह विचार उठाया जा सकता हैं कि वह पहिले दिन या दूसरे दिन सर्वथा नवीन है, तो महीने भर भी नवीन ही रहेगा, यों वर्ष दो वर्ष क्या पांचसौ वर्ष तक भी नवीन ही बना रहेगा। यदि वह तीन वर्ष में जीर्ण हो जायेगा तो ढाई वर्ष में भी पुराना पड़ ही चुका होगा, यों न्यूनता करते हुए एकदिन में भी उसके जोर्ण होजाने का प्रसंग बन बैठेगा।
__सुबुद्ध भ्रात ! जबकि क्रमक्रम से तीन वर्ष में जीर्ण होजाना प्रत्यक्ष सिद्ध है तो उक्त कुचोद्यों से वस्त्र की नियत मर्यादा का बालान भी खण्डन नहीं हो सकता है। एक मनुष्य चालीस तोले पानी पीकर एक बार अपनी प्यास बुझा लेता है, यहाँ कोई कुतर्क उठावे कि एक तोला पानी पीलेने पर यदि उसकी प्यास नहीं बुझती है तो दो, तीन, आदि उनतालीस तोला पानी पीचुकने पर भी प्यास नहीं बुझेगी। और यदि उन तालीस तोला पानी पीचुकने पर प्यास नहीं बुझी तो इसके उपर एक तोला अन्य भो पानी पीलिया तथापि उसकी प्यास क्या बुझेगी ? हाँ, यदि उनतालीस तोला पानी पी लेने पर प्यास बुझ जावेगी कहोगे तो एक तोला पीलेने पर भी प्यास बुझ गयी कह दो।
इसी प्रकार खिचड़ी एक मुहूर्त में चूल्हे पर पकती हैं । नीहार कर तीन बार मट्टी से हाथ धोलेने पर हस्तशुद्धि होजाती है । तोन बार लोटा माज लेनेपर पात्र शुद्ध कहा जाता है। यों ही कोई मनुष्य साठ वर्षतक जीवित रहकर इकसठ वर्ष के आदि समय में मर जाता हैं, यहाँ भी उक्त निस्सार चोद्य उठाये जा सकते हैं। किन्तु अनेकांत पक्ष में उठाये गये विरोध आदि दोषों के समान उक्त कुतर्कों का निराकरण हो जाता है। क्योंकि अनेक धर्मों से तदात्मक होरहे अर्थ के समान अनेक क्षणों तक एक स्थूल क्रिया या क्रियावान् का बना रहना प्रत्यक्ष प्रमाणों से प्रसिद्ध है। यों ध्यान का स्थितिकाल भी अन्तर्मुहूर्त नियत है, इस से न्यून या अधिक कर दूसरे प्रकारो से ध्यान का काल नियत नहीं किया जा सकता हैं । कोरी धींगा धींगी चलाने से अप्रामाणिकता का दोष माथे मढ़ दिया जायगा।