Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोध्यायः
अपिच - विकारे विदुषां द्वेषो नाविकारानुवर्तते । तन्नग्नत्वे निसर्गोत्थे को नाम द्वेषकल्मषः ॥ नैकिञ्चन्यमहिंसाच कुतः संयमिनां भवेत् । ते संगाय यदीहतें बल्कलाजिनवाससाम् ॥
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इसका संक्षेप में अर्थ यह हैं कि वस्त्र, दण्ड आदि सभी परिग्रहों का अभाव कर देना अथवा केवल नग्न हो जाना आचेलक्य है वह आचेलक्य तो संयमकी शुद्धि होना, इन्द्रियोंका जय करना, कषायोंका अभाव हो जाना ध्यान और स्वाध्याय करनेमें निर्विघ्न रहना, निर्ग्रन्थता, रागद्वेष रहितपन, शरीरमें आदर न होना, पराधीन न होकर स्ववश रहना, चित्ती विशुद्धिका प्रकट होना, भयरहित होना, सबमें विश्वास करना, परवाह न करना, धोना, लमेडना आदि परिक्रियाओं का छूट जाना, विभूषित करनेमें मूर्च्छा नहीं होना, लघु बने रहना तीर्थंकरोंसे आचरित किया जाना बलवीर्यका नहीं छिपा सकना, मार्दव आदिक अपरिमित गुणसमुदायका उपलम्भ होनेमे स्थितिकल्प पर्ने करके उपदेश— गया है । उस अचेलकत्व गुणके समर्थनको विजयोदय़ा टीकाकी दृष्टिसे कुछ कहा जा रहा है । उस प्रकार सुनिये । पसीना आदि योनिको पाकर उपज गये स प्राणियों को वस्त्रके धोने सुखाने आदिसे बाधा उपजेगी अतः उस वस्त्रका त्याग करनेपर संयम की शुद्धि होगी । लज्जा करने योग्य शरीरके विकारोंका निरोध करनेके लिये प्रयत्नकी दृढता हो जानेसे इन्द्रियों का जय होगा। चोर आदि द्वारा ठगने, लूटने आदिका अभाव हो जानेसे कषायोंका अभाव हो जाता है । सुई, सूत, कपडा आदिके ढूंढने, सींवने, सेवा करने आदि झंझटोंका अभाव हो जानेसे स्वाध्याय और ध्यानमें निर्विघ्नता रहती है । चेल आदि बहिरंग परिग्रहको मूल मान कर अभ्यन्तर परिग्रह उपज जाते हैं । वस्त्रका त्याग कर देनेसे उनका त्याग हो जाता है । मनोजवस्त्रका त्याग करनेसे राग छूटता है । और असुन्दर वस्त्रका त्याग कर देनेसे द्वेष छूटता है । वायु, घाम, डांस आदिकी बाधा सहने से शरीर में आदुर नहीं हो पाता है । देशान्तरकी जाने आदिमें सहायककी अपेक्षा नहीं होनेसे स्वतंत्रता हो जाती है। कौपीन आदि द्वारा प्रच्छादन नहीं करनेसे चित्त की विशुद्धि प्रकट होती हैं । चोर आदि द्वारा मारना पीटना आदिका भय नहीं होनेसे नग्नदिगम्बर मुनिको नग्नत्व प्राप्त होता है । चुराने योग्य कोई पदार्थ नहीं होने से सभी जीवों में मुनिका या मुनिमें सब जीवोंका विश्वास हो जाता है । चौदह प्रकारके उपक