Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोध्यायः
३८७)
हां, तो थोडा और आर्गे सरकिये, जुये, लीखें, घुन, लटें, पइयां गिजाइयां ही अकेली अकेली भिन्न २ आकृतिवाली है किन्तु इतनाही प्रत्येक वस्तुमें तादात्म्य रूपसे पाया जा रहा अभाव पदार्थ हमें आदेश देता है कि मैंने छाप लगाकर प्रत्येक गेहूं चावल मक्का, बाजरा, पोस्त, सरसों, जीरा, इलायची आदि सब चीजोंमें अथवा आम, अम. रूद, खरबूजा और अंगूर आदि फलों यहांतक कि साग, तोरई, घास, पत्ता, फूल, डण्ठल सबकी परस्परमें न्यारी २ आकृतियां बनने दी हैं। भावार्थ:-दुनियामें करोडों मन गेहू उपजता है । लाखों मन बाजरा उगता है। उन अरबों खरबों गेहूंका प्रत्येक दाना दूसरे गेहूंके दानेकी सूरतका नहीं है। एक बाल (कुकडी) के दो हजार बाजरा भी सब न्यारी २ सूरतके हैं जैसे एक मां के लडकोंकी आकृति न्यारी २ है । प्रत्येक अंगर या अमरूदकी शक्ल दूसरे किसी अंगूर या अमरूदसे नहीं मिलेगी। सूक्ष्मदृष्टिसे निरखिये, पारखी जौहरीके समान इन रत्नोंपर भेदभावकी गहरी दृष्टि डालिये, संसारमें भेद विज्ञानही कठिन है । और भी आगे बढकर समझिये कि भूतकालमें भी जितने घोडे, मक्खियां, गेहूं, बाजरा, पोस्त, घास, वृक्ष, वनस्पतियां और फल हो चुके है वे भी सब न्यारी २ आकृतियोंको लिये हुए थे, वे आकृतियां इन वर्तमानके घोडे आदिकी न्यारी २ आकृतियोंसे भिन्न २ प्रकारकी ही थी। जैसे कि भूतकालमें ऐसा कोई मनुष्य नहीं हुआ जिसकी सूरत आपसमें या आजकलके किसी भी मनुष्यसे ठीक २ पूर्णतया भिलती हुई हो । अब आप सभी अन्य देव-देवियां, त्रसकाय, स्थावरकाय जीवोंकी भूत, वर्तमान, भविष्यकालीन भिन्न २ अनन्तानन्त आकृतियोंका विचार स्वयं कर सकते हैं। क्योंकि जीवोंके अगुरुलघुगुण और अभाव स्वभाव बहुत विलक्षण प्रकारके हैं। समवायीकारण तो भिन्न २ हैं ही, इस बातको तो सभी जानते हैं। इसकी यहां चर्चा ही नहीं है । इस बातका भी लक्ष्य रखना कि प्रत्येक मनुष्य, घोडा, कबूतर, चींटी, लट, फल, घास, गेहं आदिकी सूरत कुछ दिनोंमें बदली रहती है। अर्थात् एक मनुष्यकी बाल्य अवस्थामें मुखाकृति न्यारी थी; युवावस्था और वृद्धदशाकी सूरत बदली हुयी निराली है। यदि आप किसीको शीघ्र २ नहीं देखेंगे तो पहिचानना कठिन हो जाय, बीस वर्ष पीछे तो बाप-बेटेको नहीं चीन्ह सकता है। इस आकृतिओंके परिवर्तित भेदको मै कहांतक बीस वर्ष या दश वर्ष, एक वर्ष, एक मास, एक दिन, एक घंटा, एक मिनट या अन्तिम सीमा एक समयतक ले जाऊं ? । इस सिद्धांतका परीक्षण, निर्णय अब स्वयं कर लीजियेगा।