Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ श्लोक वार्तिकालंकारे
ननु कृष्ण नीलकापोतलेश्यात्रयं वकुशप्रतिसेवना व कुशीलयोः कथं भवति । सन्त्येव तयोरूपकरणासक्तिसंभवादार्त्तध्यानं कादाचित्कं संभवति तत्संभवादादियात्रयं भवन्त्येवेति मतान्तरं परिग्रहसंस्काराकांक्षा स्वयमेवोत्तर गुणविराधनायामार्त संभवादार्ताविनाभावि च लेश्याषट्कं पुलकस्यार्तकारणाभावान्न षट् लेश्याः । किन्तुत्तरास्तिस्त्र एव ।
यहां कोई शंका उठाता है कि-- वकुश और प्रतिसेवना कुशील दोनों मुनियोंके कृष्ण, नील और कापोत तीनों अशुभ लेश्यायें किस प्रकार हो सकती है ? अर्थात् ग्रन्थोंमें इस प्रकार लिखा है कि- " अयदोत्तिछलेस्साओ सुहतिय लेस्साहु देस विरदतिये तत्तो सुक्का लेस्सा अजोगिठाणं अलेस्सं तु " यों पांचवें, छठे, सातवें गुणस्थानों में तीन शुभ लेश्यायें मानी हैं । वकुश और प्रतिसेवना कुशील जब निर्ग्रन्थ हैं तो कमसे कम छठे सातवें गुणस्थानमें अवश्य रहेंगे इससे निचले गुणस्थानोंमें निर्ग्रन्थोंकी गति ही नहीं है । तो फिर छठे, सातवें, गुणस्थानवालोंके अशुभ लेश्यायें कैसे कहीं गई हैं ? बताओ । इसके उत्तरमें ग्रन्थकार कहते है कि-- इन दोनोंके अशुभ लेश्यायें भी हो जाती ही हैं कारण कि उन वकुश और प्रतिसेवना कुशौल मुनियोंके शास्त्र, शिला, पटा आदि उपकरणोंमें रागपूर्वक आसक्ति हो जाना संभवता है । कभी कभी आर्त्तध्यान हो जानेकी संभावना है । उस आर्त्तध्यानके सम्भव जानेसे पहली तीनों अशुभ लेश्यायें भी संभव जाती ही हैं । यों कतिपय आचार्यों के मतान्तर हैं । नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके मतानुसार मुनियोंके तीन अशुभ लेश्यायें नहीं पाई जाती हैं किन्तु अन्य आचार्योंका मन्तव्य ऐसा है कि--मुनियोंके बहुभाग शुभ लेश्यायें ही रहेंगी किन्तु कदाचित् आर्त्तध्यानके हो जानेपर वकुश और प्रतिसेवना कुशील मुनियोंके अशुभ लेश्यायें भी हो सकती हैं क्योंकि इनके परिग्रहके संस्कारका क्षय नहीं हुआ है । पूर्वदशामें जो परिग्रहका संबंध लगा हुआ था । उसकी स्वल्पवासना मुनिपदमें चली आ रही है । वे मुनि मूलगुणोंको भलेही अक्षुण्ण पालते रहें किन्तु अपने आपही पुरुषार्थ द्वारा जब उत्तर गुणों की विराधना करनेमें रतिकर्म वश होकर प्रवर्त जाते हैं तब इनका आर्तध्यान सम्भव जाता है। आर्त्तध्यानके साथ छहों लेश्याओं का अविनाभावी सम्बन्ध है । यानी आर्त्तध्यानके अवसरपर जीवके शुभ, अशुभ सभी लेश्यायें पाई जाती हैं । पुला मुनिके तो आर्त्तध्यान हो जानेका कारण तीव्र अनुराग या आसक्ति नहीं है,